सामना संवाददाता / मुंबई
मुंब्रा में ९ जून को हुए हादसे में चार लोगों की जान चली गई और १० घायल हुए। हादसा दो भीड़भरी १२ डिब्बों की लोकल ट्रेनों के आमने-सामने एक मोड़ पर गुजरने के दौरान हुआ। यह घटना मुंबई लोकल में बढ़ती भीड़ और सेंट्रल रेलवे की धीमी तैयारियों की पोल खोलती है। इस दर्दनाक हादसे के बाद अब सेंट्रल रेलवे ने १५ डिब्बों वाली ट्रेनों की संख्या बढ़ाने की दिशा में कदम तेज करने का फैसला किया है।
रिपोर्ट के अनुसार, सेंट्रल रेलवे का दीर्घकालिक लक्ष्य है कि सभी फास्ट लोकल सेवाएं १५ डिब्बों की हों। इसके लिए कई जरूरी कार्य किए जा रहे हैं, जैसे प्लेटफॉर्म की लंबाई बढ़ाना, नई रेल लाइनों का निर्माण और १२ डिब्बों की ट्रेनों में अतिरिक्त डिब्बे जोड़ना।
लोकल को मुंबई की लाइफलाइन कहा जाता है, लेकिन इससे सफर करना लाखों यात्रियों के लिए हर दिन एक संघर्ष बन चुका है। २०१५ में जब पहली बार ट्रेनों की भीड़भाड़ के खौफनाक वीडियो वायरल हुए थे, जिनमें यात्री दरवाजों से लटके हुए थे और कई गिरते दिखे। उसके बाद रेलवे बोर्ड ने वेस्टर्न और सेंट्रल रेलवे दोनों को निर्देश दिया था कि भीड़ कम करने के लिए तत्काल एक्शन प्लान तैयार करें।
वेस्टर्न रेलवे ने दिखाई तत्परता
सेंट्रल रेलवे की अपेक्षा वेस्टर्न रेलवे ने इस दिशा में तेजी से काम करते हुए अब तक २१० से ज्यादा १५ डिब्बों की लोकल ट्रेनें अपनी तेज और धीमी लाइनों पर शुरू कर दी हैं। इससे वहां भीड़ कुछ हद तक नियंत्रित हुई है।
सेंट्रल रेलवे क्यों पिछड़ा?
दूसरी ओर सेंट्रल रेलवे अब तक सिर्फ २२ ट्रेनें ही १५ डिब्बों की चला पाई है और वो भी केवल सीएसएमटी से कल्याण के तेज मार्ग पर, जबकि ठाणे, डोंबिवली, कल्याण और अंबरनाथ जैसे इलाकों में यात्री भार कहीं अधिक है।
प्रशासनिक सुस्ती पर सवाल
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि प्लेटफॉर्म बढ़ाने, ट्रैक बदलने में समय लगने और ट्रेन की गति कम होने जैसे तकनीकी कारण इसमें बाधा बन रहे हैं। जब वेस्टर्न रेलवे ने इन्हीं चुनौतियों के बीच समाधान निकाला तो सेंट्रल रेलवे ने क्यों नहीं? अगर ९ साल में भी यात्री सुरक्षा को लेकर कोई ठोस सुधार नहीं हुआ तो यह केवल तकनीकी नहीं, बल्कि एक गंभीर प्रशासनिक विफलता है।