मुख्यपृष्ठस्तंभसटायर : मूंछ, पुलिस और पुरस्कार

सटायर : मूंछ, पुलिस और पुरस्कार

-डाॅ रवीन्द्र कुमार

कोई भी जब ये शीर्षक पढ़ेगा तो पहला ख्याल यह ही आएगा कि यह पुरस्कार वीरता के लिए मिला होगा अथवा कोई महत्वपूर्ण केस सॉल्व करने पर मिला होगा। मेरा भी यही मानना था कि कोई जबरदस्त केस क्रैक कर लिया गया है। जब पूरी खबर पढ़ी, तब पता चला यह कि इनाम तो पुलिस ने अपने ही एक साथी को मूंछें रखने पर दिया है। मेरे भारत महान के एक महान सूबे के महान थाने की महान पुलिस ने अपने ही एक पुलिसकर्मी को यह इनाम दिया है।
एक जमाना था, जब पुलिस को उसके शौर्य और बहादुरी के लिए पुरस्कार दिए जाते थे। बड़े-बड़े हाई प्रोफाइल केस सॉल्व करने और चोर-डकैतों को पकड़ने पर दिए जाते थे। अब टाइम बदल गया है। वो एक शेर है न :
लोग हो गए हैं बेपरवाह, या मोहब्बत नहीं करते
क्यों इश्क में अब कोई बदनाम नहीं होता
सो अब बहादुरी-वादुरी के पुरस्कार के लिए कोई कब तक प्रतीक्षा करे। न जाने कब का मारा, कब बहादुरी दिखाने का मौका मिले। फिर वो बहादुरी डिपार्टमेंट की सीनयर्स की नजर में भी आनी चाहिए। अब ऐसे तो नहीं न कि आप खामख्वाह बहादुरी दिखाते फिरें और अगले उसे बहादुरी मानने से ही इनकार कर दें। फिर आजकल जिस तरह का क्राइम हो रहा है, उसमें ज्यादा स्कोप भी तो नहीं है बहादुरी दिखाने का। अब साइबर क्राइम में कोई क्या बहदुरी दिखाएगा या फिर स्कैम में आप बहादुर बन कर क्या उखाड़ लेंगे। वहां कोई लट्ठ नहीं बजाने हैं, न कोई एन्काउंटर या फायरिंग के चांस हैं।
ले-देकर बचे आप और आपकी थुल-थुल बॉडी। आवश्यकता आविष्कार की जननी है। अतः यह तय पाया गया कि क्यों न कुछ और फील्ड्स ढूंढे़ जाएं। आप अगर गिनीस बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स देखें तो पाएंगे सारे ऊटपटांग किस्म के रेकॉर्ड्स हमारे नाम हैं। (रेकाॅर्ड्स होल्डर्स से क्षमा-याचना के साथ) जैसे कि दुनिया में सबसे लंबे नाखून, सबसे लंबी मूंछें आदि। अब दिक्कत ये है कि सबसे लंबी मूंछें रखने में टाइम और अनर्जी बहुत लगती है। लंबी मूंछ दो-चार महीने में नहीं हो जातीं। बरसों की मेहनत लगती है, घी-तेल अलग।
कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक
जाने कब में ट्रान्सफर हो जाए। अतः जो काम निपटा दिया जाए अच्छा। इसी तर्ज पर इंचार्ज महोदय ने अपने मातहत एक पुलिसकर्मी को उसकी शानदार मूंछों के लिए इनाम दे डाला। उनका कहना है कि इस पुलिसकर्मी की मूंछें बहुत जबर्दस्त हैं। उनका कहना है कि आखिर मूंछें भी तो मर्दानगी और बहदुरी का प्रतीक है। एक पूरी की पूरी कॉमेडी फिल्म इस पर बनी है। जहां उत्पल दत्त, अमोल पालेकर के पीछे पड़े रहते हैं कि मूंछ आदमी की आन, बान, शान का प्रतीक है और रखनी ही चाहिए, वरना वो आदमी ही क्या जिसके मूंछ नहीं। एक फिल्म का यह संवाद भी खासा लोकप्रिय रहा था, जिसमें कहा गया था मूछें हों तो नत्थू लाल जैसी नहीं तो न हों।
पुलिस दल का कहना है कि पहले उन्हें मूंछ भत्ता मिला करता था। कालांतर में यह बंद हो गया। मुझे लगता है कि तभी से मूंछों के पतन का युग शुरू हुआ होगा। जिस काम के लिए सरकारी भत्ता न मिले, उसे करने से क्या फायदा ? यह तो ऐसे ही है कि पल्ले से पैसे खर्चो। मैंने सुना है तरह-तरह की मूंछों के कम्पटीशन विदेश में आयोजित किए जाते हैं और राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। लब्बोलुआब ये कि कुछ तो इन्सेन्टिव रहे मूंछ रखने का।
इस केस मे हैड कांस्टेबल महोदय ने हेंडल बार मूंछे रखी हैं, जो लोग क्लीन शेव होते हैं उन्हें न तो दाढ़ी-मूंछ का महत्व पता होता है और न ही उनको ये ज्ञात होता है कि दाढ़ी-मूंछ रखना कहीं ज्यादा मेहनत का काम है और ये कितनी अटेन्शन और मेंटीनेंस मांगता है। क्लीन शेव को क्या करना होता है ? बस रेज़र घुमाया और काम हो गया। हम दाढ़ी-मूंछ वालों से पूछो हर हफ्ते कैंची, कंघी लेकर शीशे के आगे दाढ़ी-मूंछ की सेवा करनी पड़ती है। कोई कितना भत्ता दे देगा। हम कोई भत्ते के लिए थोड़ी दाढ़ी-मूंछ रखते हैं। बहरहाल, इस तरह से रिकाॅग्नाइज करने से और भी लोग मूंछ रखने की प्रेरणा लेंगे। पुराने समय में राजा-महाराजा सभी भांति-भाति की मूंछ रखते थे और इसे अपनी शान मानते थे। कितने ही मुहावरे और कहावतें मूंछ को लेकर बने।
सच तो ये है मूंछ है तो आपकी पूछ है।

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