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शिवरात्रि का अर्थ वह रात्रि है जिसका शिव तत्व के साथ घनिष्ठ संबंध हो

विदिशा। फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष 26 फरवरी बुधवार को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाएगा। इस वर्ष महाशिवरात्रि पर त्रिग्रह योग बन रहा है। सूर्य बुध और शनि तीनों शनि की कुंभ राशि में रहेंगे और चंद्रमा के ही नक्षत्र श्रवण में महाशिवरात्रि के दिन सूर्य बुध शनि कुंभ राशि मे रहेंगे। चंद्रमा मकर राशि में, शुक्र राहु मीन राशि में, मिथुन राशि में मंगल, जबकि वृषभ राशि में बृहस्पति रहेंगे। इन ग्रहों के योग में शिवरात्रि मनाई जाएगी। शिवरात्रि के दिन भगवान शिव का पूजन रुद्राभिषेक एवं भगवान शंकर की चार पहर की पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।एवं भगवान शिव से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। धर्माधिकारी पंडित विनोद शास्त्री ने बताया कि शिवरात्रि का अर्थ वह रात्रि है जिसका शिव तत्व के साथ घनिष्ठ संबंध हो। भगवान शिव की अति प्रिय रात्रि को शिवरात्रि कहा जाता है। शिवरात्रि को शिवार्चन और जागरण ही इस व्रत की विशेषता है। इसमें रात्रि भर जागरण एवं शिव अभिषेक का विधान है।
ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी की रात्रि को आदि देव भगवान श्री शिव करोड़ों सूर्यो के समान प्रभावाले लिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि में चंद्रमा सूर्य के समीप होता है। अतः वही समय जीवन रूपी चंद्रमा का शिव रूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है।

महाशिवरात्रि का पर्व परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है।
शिवरात्रि व्रत फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इस व्रत को अर्धरात्रिव्यापिनी चतुर्दशी तिथि में करना चाहिए।

चतुर्दशी के स्वामी शिव हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रतिपदा आदि सोलह तिथियों के अग्नि आदि देवता स्वामी होते हैं। अतः जिस तिथि का जो देवता स्वामी होता है उसे देवता का उसे तिथि में व्रत पूजन करने से उसे देवता की विशेष कृपा प्राप्त होती है। चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं अथवा शिवजी की तिथि चतुर्दशी है रात्रि में व्रत करने से इसको शिवरात्रि कहते हैं।
व्रत का महत्व
शिव पुराण की कोटरूद्र संहिता मे बताया गया है कि शिवरात्रि व्रत करने से व्यक्ति को भोग एवं मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।

शिव को रात्रि ही क्यों प्रिय
अन्य देवताओं का पूजन व्रत आदि जबकि प्रायः दिन में ही होता है तब भगवान शंकर को रात्रि ही क्यों प्रिय हुई। फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि ही क्यों? भगवान शंकर संहारशक्ति और तमोगुण के अधिष्ठाता हैं।अतः तमोमयी रात्रि से उनका स्नेहा लगा वी होना स्वाभाविक ही है रात्रि संहार काल की प्रतिनिधि है।

फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी का रहस्य
जहां तक प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के शिवरात्रि के लाने की बात है वे सभी शिवरात्रि ही कहलाती हैं और फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष में पडने वाली चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है।

उपवास रात्रि जागरण क्यों

धर्म ग्रंथो के अनुसार उपवास विषय निवृत्ति का अचूक साधन है। अतः आध्यात्मिक साधना के लिए उपवास करना परम आवश्यक है। गीता के अनुसार उपवास इंद्रियों और मन पर नियंत्रित करने वाला संयमी व्यक्ति ही रात्रि में जागरण कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हो सकता है।

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