शीतल अवस्थी
श्रीमद्भागवत के अनुसार, महाभारत के युद्ध के बाद जब अश्वत्थामा ने सोए हुए द्रोपदी के पुत्रों का वध किया था, तब उसका प्रतिशोध लेने के लिए श्रीकृष्ण व पांडव अश्वत्थामा के पीछे गए। पांडवों का विनाश करने के लिए अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से पांडव जीवित रहे। तब अश्वत्थामा ने पांडवों के वंश का नाश करने के लिए अपने ब्रह्मास्त्र की दिशा अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी, जिससे उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को प्राणों का भय हो गया, तब श्रीकृष्ण ने पांडवों के वंश को विनाश से बचाने के लिए सुक्ष्म रूप धारण किया तथा उत्तरा के गर्भ में जाकर ब्रह्मास्त्र के तेज से उस बालक की रक्षा की। इस तरह भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित के प्राणों की रक्षा की तथा पांडवों के वंश का नाश होने से बचाया। वहीं महाभारत के अनुसार ब्रह्मास्त्र के कारण उत्तरा ने मृत शिशु को जन्म दिया था, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने पुन: जीवित कर दिया था। यही बालक बड़ा होकर पराक्रमी राजा परीक्षित कहलाया।