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भाजपा में भगदड़! … चुनाव से पहले ही १०० सीटों पर कांग्रेस मजबूत!

सामना संवाददाता / भोपाल
मध्य प्रदेश में चुनावी रणभेरी बजने के साथ ही माहौल में गर्मी आ गई है। सभी चुनावी सर्वे में मामा शिवराज की विदाई तय बता दी गई है, जिससे भाजपा के खेमे में हताशा और भगदड़ का आलम है, वहीं कांग्रेस वैंâप उत्साह से लबरेज है। फिलहाल, प्रदेश का जो सीन दिखाई दे रहा है उसमें कांग्रेस करीब १०० सीटों पर काफी मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है। दूसरी तरफ भाजपा के घोटालों और वादाखिलाफी के कारण आम लोगों में उसके प्रति भारी नाराजगी व्याप्त है।
दोनों पूर्व सीएम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने प्रदेश में कांग्रेस की कमान मजबूती से थाम रखी है। सूबे की कुल २३० सीटों में से २०१८ के विधानसभा चुनाव में एसटी के लिए आरक्षित ४७ सीटों में से ३१ की अपनी संख्या में सुधार करने को लेकर कांग्रेस आश्वस्त दिख रही है। आरक्षित सीटों के अलावा करीब ४० सामान्य सीटों पर भी आदिवासी वोट निर्णायक हैं। यही वजह है कि कांग्रेस ने आदिवासी समुदाय को लुभाने के लिए कड़ी मेहनत की है। गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ३१ आदिवासी सीटें जीतने में सफल रही, जबकि भाजपा सिर्फ १६ सीटें ही जीत सकी थी। इस बार कांग्रेस का आत्मविश्वास पार्टी के तीन वादों से उपजा है, जो आदिवासियों को सशक्त बनाने के लिए है। आदिवासी एमपी की आबादी का २१ फीसदी हिस्सा हैं। इसलिए कांग्रेस ने अपना फोकस इन क्षेत्रों की ओर रखा है। आदिवासियों की आजीविका का प्रमुख साधन तेंदू पत्ता है। इसकी मौजूदा दर ३,००० रुपए से बढ़ाकर ४,००० रुपए प्रति बैग करना आदिवासियों को आकर्षित करनेवाला है। जिस चीज ने कांग्रेस के आत्मविश्वास को और मजबूत किया है,

वह है आदिवासी समुदाय में उनकी सुरक्षा, सम्मान और सांस्कृतिक मूल्यों को सुनिश्चित करने में कथित विफलता के लिए शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ व्यापक गुस्सा। १२ अक्टूबर को मंडला में एक चुनावी रैली में मुख्य रूप से आदिवासी जिले में एक बड़ी सभा के बीच कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा किए गए तीन वादों आदिवासियों को कांग्रेस के काफी करीब कर दिया है।
तेंदू पत्ता तोड़ने की दर में जिस बढ़ोतरी का वादा किया गया है, उससे आदिवासी क्षेत्रों के कम से कम ४५ लाख लोगों को फायदा होने की उम्मीद है। इसी तरह छठी अनुसूची, जनजातीय क्षेत्र को अपनी भूमि और संस्कृति की रक्षा के लिए पर्याप्त कानूनी शक्तियां प्रदान करती है। यह मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में लागू है। मध्य प्रदेश में ५० फीसदी से अधिक आदिवासी आबादी वाले छह जिले हैं जिनमें बड़वानी, अलीराजपुर, झाबुआ, धार, डिंडोरी और मंडला शामिल हैं। छठी अनुसूची के लागू होने के बाद आदिवासी समुदाय को न केवल जल, जंगल और जमीन पर बल्कि अपने रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह और विरासत पर भी अपना कानून बनाने और लागू करने का अधिकार होगा। साथ ही समुदाय को यह तय करने का अधिकार होगा कि खनन और रेत के पट्टे किसके पास होंगे। यही कारण है कि इस बार कांग्रेस आदिवासी इलाकों में अपनी जीत के प्रति आश्वस्त है।

तृतीयपंथी भाजपा से नाराज
तृतीय पंथी समुदाय भाजपा से नाराज है। इनकी शिकायत है कि उनके लिए मायने रखने वाले मुद्दे पर भाजपा की सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। उनकी नाराजगी का असर चुनाव में दिखेगा। देश के अन्य सूबों के मुकाबले मध्य प्रदेश में तृतीय पंथियों के लोगों के लिए राज्य सरकार ने कुछ भी नहीं किया है। समुदाय के एक नेता का कहना है कि ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को केवल दिखावे के लिए सरकारी कार्यक्रमों में बुलाया जाता है। ऐसे में इन समुदाय की नाराजगी भी भाजपा को झेलनी पड़ेगी।

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