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कोरोना के बाद नए खतरे का बढ़ा संकट… दुनियाभर में महसूस होने लगी है एंटीबायोटिक्स प्रतिरोधी समस्या … विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेताया

 जरूरत न होने पर भी चार में से तीन मरीजों को दी गई एंटीबायोटिक्स
सामना संवाददाता / मुंबई
कोरोना संकट के दौरान डॉक्टरों ने एंटीबायोटिक्स का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया। कई मरीजों को एंटीबायोटिक्स दी गर्इं, जबकि उन्हें इसकी जरूरत नहीं थी। दुनियाभर में औसतन चार में से तीन मरीजों को एंटीबायोटिक्स दी गर्इं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसका निष्कर्ष निकालते हुए चेताया है कि इसके कारण दुनियाभर में एंटीबायोटिक प्रतिरोध की समस्या महसूस होने लगी है। ऐसे में आगामी समय में दुनिया को नए संकट का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ६५ देशों के अस्पतालों में भर्ती ४,५०,००० कोरोनो वायरस रोगियों की स्वास्थ्य रिपोर्ट की जांच की। ये मरीज जनवरी २०२० से मार्च २०२३ तक के हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि कोरोना वायरस संकट के दौरान अस्पतालों में भर्ती होनेवाले केवल ८ प्रतिशत मरीजों को ही एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत पड़ी थी। दूसरी तरफ डॉक्टरों ने दुनियाभर में औसतन ७५ प्रतिशत रोगियों को एंटीबायोटिक्स निर्धारित की थीं। पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में ३३ प्रतिशत रोगियों और खाड़ी के साथ ही अप्रâीकी देशों में ८३ प्रतिशत रोगियों को एंटीबायोटिक्स दी गर्इं। यूरोप और अमेरिका में साल २०२० से २०२२ तक एंटीबायोटिक निर्धारित करने की दर में धीरे-धीरे गिरावट आई। हालांकि, अप्रâीका में यह बढ़ता हुआ पाया गया। कोरोना वायरस के कारण गंभीर स्थिति वाले मरीजों में एंटीबायोटिक्स का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया। वैश्विक स्तर पर ऐसे ८१ प्रतिशत मरीजों को एंटीबायोटिक्स दी गर्इं। मध्यम या हल्की जटिलताओं वाले कोविड मरीजों को दी जानेवाली एंटीबायोटिक्स क्षेत्र के अनुसार भिन्न होती हैं, जिसमें अप्रâीका में ७९ प्रतिशत रोगियों को एंटीबायोटिक्स दी गर्इं। दिलचस्प बात यह है कि एंटीबायोटिक्स देने से कोरोना मरीजों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। संगठन ने कहा है कि इसके विपरीत, बिना जीवाणु संक्रमण वाले मरीजों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा है।
क्या कहता है डब्ल्यूएचओ?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एंटीबायोटिक प्रतिरोध विभाग की डॉ. सिल्विया बर्टनोलियो के अनुसार, जब किसी मरीज को एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता होती है, तो लाभ जोखिमों से अधिक होता है। हालांकि, मरीज को अनावश्यक रूप से एंटीबायोटिक्स देने से कोई फायदा नहीं होता है। इसके विपरीत, रोगी में एंटीबायोटिक प्रतिरोध विकसित हो जाता है। कोरोना संकट के दौरान जरूरत न होने पर मरीजों को एंटीबायोटिक्स दी गर्इं। इससे कई रोगियों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध विकसित हो रहा है, जो चिंता का विषय है।
एंटीबायोटिक प्रतिरोध क्या है?
किसी व्यक्ति को बैक्टीरियल या फंगल संक्रमण होने पर उपचार के तौर पर एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं। यदि एंटीबायोटिक दवाओं का अधिक उपयोग किया जाता है, तो व्यक्ति के शरीर में उनके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। इसलिए बैक्टीरिया और कवक एंटीबायोटिक दवाएं असर नहीं करती हैं। इससे एक बार किसी व्यक्ति के संक्रमित हो जाने पर उसका इलाज करना मुश्किल हो जाता है। संक्रमित व्यक्ति गंभीर रूप से बीमार हो सकता है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है।

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