द्रुप्ति झा / मुंबई
एक इंसान अपनी पूरी कमाई से मुंबई जैसे शहर में अपना घर खरीदता है। कुछ साल में वह जर्जर हो जाता है और मनपा खतरनाक घोषित कर उसे तोड़ देती है। वहां रहने वालों की जान को खतरा रहता है। लेकिन, सवाल यह है कि जिन लोगों के घर तोड़े जाते हैं, क्या उन्हें नए घर आसानी से मिलते हैं? इसका जवाब है, नहीं। यही कारण है कि लोग खतरनाक इमारतों में जान हथेली पर रखकर रहते हैं। अगर सरकार इन लोगों को समय पर नए घर बनाकर दे या घर बनने तक उन्हें सही जगह रखे तो लोग घर छोड़ भी दें।
हमने इसकी पड़ताल की तो पता चला कि उल्हासनगर में २९४ खतरनाक इमारतें ऐसी हैं, जिन्हें मनपा ने खतरनाक घोषित करने के संबंध में नोटिस जारी किया है। इनमें से ५० इमारतों को तत्काल खाली करके तोड़ने के निर्देश दिए गए हैं। हालांकि, लोग विस्थापन के डर से इन इमारतों को छोड़ना नहीं चाहते हैं। सरकार के पास इसका कोई जवाब नहीं है।
इस संबंध में सरकार के पास कोई ढंग की पॉलिसी नहीं है, जिसकी वजह से इमारतें टूटने के बाद सालों तक नहीं बन पाती हैं और रहिवासी यहां से वहां धक्के खाते फिरते हैं। सरकार सिर्फ आश्वासन देती है कि जल्द ही घर मिलेंगे, लेकिन मिलते नहीं। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां लोगों के घर टूट गए और वे १० साल से भी ज्यादा दिन तक भटकते रहे। सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए, लेकिन शीश महल में बैठे सरकार के लोग सोच नहीं पाते।
इमारत दुर्घटनाओं में हर साल मरते हैं लोग
उल्हासनगर मनपा के तकनीकी विभाग द्वारा हाल ही में पेश रिपोर्ट के अनुसार, २९४ इमारतों को खतरनाक श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है, जिनमें से ८ अत्यधिक खतरनाक हैं। मानसून की पृष्ठभूमि में यह जानकारी चौंकाने वाली है तथा नागरिक सुरक्षा का मुद्दा और भी गंभीर हो गया है। उल्हासनगर मनपा ने पहले ही इन सभी इमारतों को नोटिस जारी कर तुरंत खाली करने का आदेश दिया है। पिछले कुछ वर्षों में मानसून के मौसम में स्लैब गिरने से कई लोगों की मौत होने की खबरें आती रही हैं।
खतरनाक इमारतों का विवरण
वार्ड समिति क्रमांक १–९७ इमारतें
वार्ड समिति क्रमांक २–७१ इमारतें
वार्ड समिति क्रमांक ३–७३ इमारतें
वार्ड समिति क्रमांक ४–५३ इमारतें