कुछ बाकी है

बीत गई सदियां मगर
पत्थरों में निशान अभी बाकी है
शिलाओं में जो आग लगा दे
वो चिंगारी अभी बाकी है
मिटा न पाओगे मेरी यादों की बारात
क्यूंकि दीये में जान अभी बाकी है
माना कि गहरी रात है बहुत
पर सुबह का कारवां आना अभी बाकी है
रहने दो हमें अब अकेले ही
जीवन की साजो सहर अभी बाकी है
चलेंगे आसमान में फिर कभी हम तुम
अभी रातों में सर्द काफी है
पतझड़ का क्या भरोसा किसे उठाए, किसे गिराए
पर साख पर परिंदों का आशियाना,
अभी बाकी है
मन रे मुझे भी अपने साथ ले चल
कुछ लोगों से मिलना जुलना अभी बाकी है
ढह गया सपनों का आसमान तो क्या
भीतर हौसलों का समुंदर अभी बाकी है
उठा लो रास्ते का पत्थर इन राहों से
क्योंकि अपनों का आना अभी बाकी है
सही क्या, गलत क्या ये मत सोचो
क्योंकि ईश्वर का हिसाब आना अभी बाकी है।
-वंदना मौर्या, इंदौर

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