रह जाओगे

यहां भी रह जाओगे
जब तुम चले जाओगे
जैसे रह जाती है,
तृणपात पर तुहिन कण
पहली बरसात के बाद
धरती की सोंधी सुगंध
बोल तेरे खुशनुमा
बोलेगी आंखों की चमक
कुछ अधुरा सा सही, पर
दर्पण सा रह जाओगे
जब तुम चले जाओगे।
यहां भी रह जाओगे
जैसे रह जाती है,
सकार में भी तारे
गुंचा के मुरझाने, पर भी
महक ढेर सारे
मंदिर की घंटियों में तुम
नदियां भी तुम्हें पुकारे
जीवन के डगर पर
थोड़ा सा रह जाओगे
जब तुम चले जाओगे।
यहां भी रह जाओगे
जैसे रह जाती है,
दमकती प्रार्थना मन में
वसंत के जाने के बाद भी
कलरव रहता उपवन में
तुम्हारे होने का अहसास
जीवट बनाए, पल में
सूरज के किरणों जैसे
कण कण में बस जाओगे
जब तुम चले जाओगे
यहां भी रह जाओगे।
डॉ.वीरेंद्र प्रसाद

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