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रोखठोक : युद्ध सचमुच होगा क्या?

संजय राऊत-कार्यकारी संपादक

भारत-पाकिस्तान युद्ध क्या सचमुच होगा? जब इस पर चर्चा हो रही थी, तभी प्रधानमंत्री मोदी ने जाति जनगणना कराने के निर्णय की घोषणा की। इससे भारत-पाकिस्तान युद्ध संबंधी गरमागरम वार्ता की दिशा बदल गई। भारत-पाक एक धर्मयुद्ध था। जाति आधारित जनगणना के निर्णय ने धर्म को जाति से मात दे दी। लोग अब जाति पर चर्चा कर रहे हैं। ऐसी उपलब्धियां और उपक्रम केवल भाजपा ही कर सकती है। युद्ध होगा, ऐसा माहौल स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने बनाया। प्रधानमंत्री मोदी इस समय तीनों सेनाप्रमुखों के साथ बातचीत कर रहे हैं। देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इन बैठकों में मौजूद हैं, इतना ही नजर आता है। पहलगाम हमले के बाद देश में गुस्सा भड़क उठा। पाकिस्तान के खिलाफ पहली सख्त कार्रवाई उन्हीं २४ घंटों में हो जानी चाहिए थी, लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ मामूली कार्रवाई करने के बाद मोदी चुनाव प्रचार के लिए बिहार पहुंच गए। मोदी और नीतीश कुमार एक-दूसरे से ‘प्रसन्न’ होकर बातें कर रहे हैं, ऐसा दृश्य तब कई लोगों ने देखा। पाकिस्तान को चेतावनी देने के लिए मोदी ने बिहार की धरती को चुना। २६ मृतकों की राख ठंडा होने की जरूरत उन्हें महसूस नहीं हुई। मोदी को दिल्ली में रहना चाहिए था और सर्वदलीय बैठक में भाग लेना चाहिए था। मोदी को इस उपचार की जरूरत नहीं थी। श्री. राहुल गांधी अपना अमेरिकी दौरा बीच में ही छोड़कर भारत लौट आए। उन्होंने सर्वदलीय बैठक में भाग लिया। कश्मीर जाकर घायलों से मुलाकात की। इन सबके बीच देश के प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह कहां हैं, जिनकी जिम्मेदारी पर्यटकों की सुरक्षा की थी? गृह मंत्री को कश्मीर में हुए हमले की जिम्मेदारी लेकर इस्तीफा दे देना चाहिए था। गृह मंत्री ने इस्तीफा नहीं दिया और सर्वदलीय बैठक में किसी ने भी हमले के लिए जिम्मेदार शाह के इस्तीफे की मांग नहीं की। ‘‘संकट के इस समय में हम सरकार के साथ हैं,’’ बस इतना कहने के लिए बैठक हुई। यह पहलगाम में मारे गए लोगों का अपमान है। पुलवामा, उरी, मणिपुर से लेकर पहलगाम तक जो कुछ हो रहा है, ऐसे संकटकाल में सरकार के साथ रहनेवाले विपक्षी दल को अब सरकार से जवाब मांगने का कोई अधिकार नहीं है।
पसीना छूट गया
युद्ध शुरू होने से पहले ही पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी, जनरल को पसीना छूट गया है और वे थर-थर कांपने लगे हैं, ऐसी तस्वीरें जो भारतीय समाचार चैनलों पर २४ घंटे दिखाई जा रही हैं, उन्हें सच ही मानना चाहिए। पाकिस्तान की तुलना में भारत की सैन्य क्षमता बहुत अधिक है। इसलिए पाकिस्तान ‘थर-थर’ कांप रहा है, वो सच ही है। तो फिर पाकिस्तान द्वारा भारत में आतंकी गतिविधियों के लिए भेजे गए आतंकवादी बेधड़क भारत में प्रवेश कर हमारे लोगों पर हमला करते हैं वो वैâसे? वे थर-थर क्यों नहीं कांपते हैं? यह शोध का विषय है। सर्वदलीय बैठक में एक भी विपक्षी नेता ने यह सवाल नहीं पूछा। वे झिझक गए और अब हर कोई कश्मीर पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र चाहता है। देश की सुरक्षा को हवा में छोड़कर नफरत की राजनीति करनेवालों का इस्तीफा न मांगनेवाले विरोधी दल के नेता एक दिन जनता की नजरों में गिर जाएंगे। यह सही है कि कश्मीर जैसी घटनाओं पर राजनीति नहीं करनी चाहिए और ऐसे मौकों पर सभी को एकजुट होना चाहिए, लेकिन कितनी बार एकजुट होकर सरकार के साथ खड़े रहें? सरकार को लोकतंत्र की परवाह नहीं है और विपक्ष राष्ट्रहित के नाम पर सरकार को समर्थन देता है। पहलगाम घटना के बाद भाजपा समर्थित संगठनों ने देशभर में कश्मीरी छात्रों का जीना दुश्वार कर दिया। देश के गृह मंत्री इस पर बात करने को तैयार नहीं हैं। क्योंकि वे इस लड़ाई को हिंदू-मुस्लिम का रूप देना चाहते हैं। सैयद आदिल हुसैन पर्यटकों की जान बचाते हुए मारा गया। इसका उल्लेख न तो प्रधानमंत्री ने किया और न ही गृह मंत्री ने। सरकार पाकिस्तान के साथ युद्ध नहीं चाहती, बल्कि इस मुद्दे पर गृहयुद्ध चाहती है, यही उसका मतलब है। ये ठीक नहीं है। इसके लिए भाजपा और उसके सहयोगी दलों को छोड़कर एक सर्वदलीय बैठक जरूरी है, लेकिन इसका नेतृत्व कौन करेगा?
असफल कौन?
पहलगाम मामले में देश की खुफिया व्यवस्था (इंटेलिजेंस) पूरी तरह विफल रही। ईडी, सीबीआई, आयकर जैसी संस्थाएं सफल साबित होती हैं और सरकार के लिए सहायक भूमिका निभाती हैं, लेकिन ‘इंटेलिजेंस’ विफल है। दोबारा इस पर सवाल मत पूछना। कश्मीर में ‘AFSPA’ लागू है। सारी सुरक्षा केंद्र सरकार और सुरक्षा बलों के हाथ में है। केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद ‘राज्य सरकार’ की औकात नगरपालिका के बराबर भी नहीं है। फिर भी, अपने राज्य में पड़े पर्यटकों के शवों और खून की धार को देखकर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की भावनाएं जम्मू-कश्मीर विधानसभा में फूट पड़ीं। उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘मेरे राज्य में जो हुआ, उससे मैं शर्मिंदा हूं।’’ कश्मीर में पूरी सुरक्षा व्यवस्था के ‘मालिक’ गृह मंत्री अमित शाह हैं। उनसे जवाब मांगनेवालों को आलोचना का सामना करना पड़ता है। राजदीप सरदेसाई का सवाल सीधा था, ‘पर्यटकों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि होने के बावजूद भी पहलगाम और बैसरन में एक भी पुलिस चौकी नहीं है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? Who is accountable? ‘’ इस पर भाजपा के ‘ट्रोल धारियों’ ने सरदेसाई को ही आरोपी के पिंजरे में डाल दिया। उन्हें ‘पाकिस्तान समर्थक’ करार दिया गया। ‘‘आप पाकिस्तानी मीडिया की ही भाषा बोल रहे हैं,’’ इस तरह फटकारा गया। देश में संकट के समय जब ‘सत्य’ बोलना अपराध बन जाता है, तब उस देश का पतन तेजी से शुरू हो जाता है। क्या भाजपा प्रचारक के रूप में काम कर रहे किसी भी बाबा और महाराज को पहलगाम हमले की जानकारी नहीं होगी? नरेंद्र मोदी जिन्हें अपना ‘छोटा भाई’ मानते हैं, उन धीरेंद्र शास्त्री के चमत्कार और इंटेलिजेंस विफल हो गए। वे कई समस्याओं के समाधान के लिए पर्चियां निकालते हैं, लेकिन ‘आतंकवादी हमला होगा’, ऐसी पर्ची उन्होंने नहीं निकाली। ये बाबा सीधे भगवान से बात करते हैं, लेकिन २६ निर्दोष लोगों की हत्या होगी के बाबत वे ‘आसमान’ में संवाद साध नहीं पाए। यह अजब ही चमत्कार है। जब भारत-पाक युद्ध प्रत्यक्ष में शुरू हो तब इन सबको प्रत्यक्ष युद्धभूमि पर जवानों का शौर्य देखने के लिए भेज देना चाहिए। युद्ध कोई चमत्कार नहीं होता है, बल्कि बलिदान की मांग करने वाला एक महासंग्राम होता है। युद्ध प्रवचनों पर नहीं चलता। यह बहादुरों की कलाई पर चलता है। ऐसे समय में धर्म भी पीछे रह जाता है। धर्म के नाम पर बने कई राष्ट्र प्रत्यक्ष युद्ध के मैदान में पराजित हुए हैं। बगल का पाकिस्तान इसका एक बड़ा उदाहरण है।
कौन कहां?
अब यह स्पष्ट हो गया है कि यदि युद्ध छिड़ा तो चीन और तुर्किस्तान खुलकर पाकिस्तान का समर्थन करेंगे। मोदी युग में कोई भी ‘पड़ोसी’ देश भारत का मित्र नहीं है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध भड़केगा और देश तृतीय विश्व युद्ध की ओर बढ़ जाएगा, ऐसा लगता था। वैसा नहीं हुआ। यूक्रेन के विघटन के समय उसका समर्थन करने वाले एक भी ‘नाटो’ राष्ट्र ने यूक्रेन के लिए प्रत्यक्ष युद्ध में भाग नहीं लिया। चीन की सीमाएं ढीली हैं। नेपाल को चीन पहले ही निगल चुका है। ऐसे में भारत को चीन और पाकिस्तान इन दोनों मोर्चों पर लड़ना होगा। क्या मोदी और शाह पाकिस्तान के साथ एक और युद्ध का जोखिम उठा पाएंगे? आलोचना करना और उकसाना आसान है। मोदी की परीक्षा तब होगी जब वास्तविक युद्ध होगा। युद्ध से पहले मोदी को मंत्रिमंडल में कई बड़े बदलाव करके नई ‘सरकार’ बनानी होगी। सीमा पर युद्ध शुरू होने पर घरेलू सुरक्षा अधिक संवेदनशील हो जाती है और तब व्यापारी और षड्यंत्रकारी लोगों का सत्ता में रहना खतरनाक होता है। पाकिस्तान तो कमजोर है ही, लेकिन क्या हमारे देश की मानसिक स्थिति मजबूत है? यह भी एक सवाल है। पहलगाम के बाद भारत ने प्रâांस से ६३,००० करोड़ रुपए के २६ राफेल खरीदे। ३७ राफेल पहले से ही थे। इसमें २६ नए आ गए। ये सब होने के बावजूद २६ पर्यटक मारे जाते हैं और जवानों का सामूहिक हत्याकांड होता है। देश शोक में डूबे रहने के दौरान सरकार के मुखिया बिहार जाकर चुनावी सभाएं करते हैं। महाराष्ट्र में आकर सिनेमा पर भाषण देते हैं। सब कुछ आनंददायी है। यदि किसी और ने ऐसा किया होता तो भाजपा देशभर में उस नेता के पुतले जलाती और उसका इस्तीफा मांगने के लिए दिल्ली पर चढ़ाई कर देती। भारत में चमत्कार अलग तरह के होते हैं। समस्त विपक्षी दल सरकार के पीछे मजबूती से खड़ा है। इस्तीफा मांगने की कोई बात ही नहीं है।
यह लोगों की आवाज नहीं है।
हम पाकिस्तान के साथ युद्ध चाहते हैं, लेकिन यह निर्णायक होना चाहिए। २६ नए राफेल खरीदे गए हैं! आगे का आगे।
युद्ध होने तक जाति जनगणना का मुद्दा चर्चा के लिए रख दिया गया है। वो भी युद्ध ही है!

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