अनिल तिवारी -निवासी संपादक
दशकों से जम्मू-कश्मीर आतंकवाद के कैंसर से जूझ रहा है, तो पंजाब नशे की महामारी से। दोनों पड़ोसी राज्य इन बीमारियों से दिन-ब-दिन कमजोर होते जा रहे हैं, पर अब लगता है कि आनेवाला वक्त इनके लिए कठिन और… और कठिन होनेवाला है क्योंकि इन दोनों में एक-दूसरे की बीमारी का संक्रमण तेजी से नजर आने लगा है। पंजाब में फिर से खिलाफत का ‘ट्यूमर’ दिखने लगा है तो जम्मू-कश्मीर के युवाओं में नशे का घातक असर। ऐसे में केंद्र के एक मजबूत काट के साथ आगे आने की जरूरत देश में महसूस होने लगी है। केंद्र को जिस तत्परता से इन समस्याओं के खात्मे की ओर आगे बढ़ना चाहिए, वैसा शायद नजर नहीं आ रहा।
जम्मू और कश्मीर में अलगाव का ‘नशा’ १९९० के दशक से नजर आने लगा था और उसी वक्त से यह साफ भी हो गया था कि घाटी में इस नशे का सौदागर कौन है? जो पाकिस्तान पिछले तीन दशकों से जम्मू में अलगाव का नशा बेच रहा था, वही पंजाब में भी खिलाफत की दुकान लगाए बैठा था। जब पंजाब में उसकी दुकान बंद हो गई तो उसने वहां ‘जानलेवा जहर’ का कारोबार शुरू कर दिया। ‘जहरीला जिहाद’, यह जिहाद अब न केवल पंजाब, बल्कि पड़ोसी जम्मू-कश्मीर के पीर-पंजाल तक युवाओं को नशे में मदहोश कर रहा है। कोई गर्द ले रहा है तो कोई नशीली दवा। यह मदहोशी केवल नशे तक सीमित हो, ऐसा भी नहीं है। अब नशे की खुमारी में लोग देश की खिलाफत पर उतर आए हैं। यही पाकिस्तान की मंशा भी है और मकसद भी। पाकिस्तान से सटे इन दोनों प्रदेशों में कोई भीतरी अदृश्य सिस्टम दुश्मन के इशारे पर युवाओं को नशे का आदी बना रहा है। ताकि न केवल ‘जन्नत’ की जम्हूरियत खतरे में आ जाए, बल्कि पंजाब की हवा में भी खिलाफत का जहर जड़ कर जाए। उस पर बोनस के तौर पर युवाओं को नशे का गुलाम बनाकर अपने मंसूबों के लिए इस्तेमाल किया जा सके। कोई अमृतपाल जब रातों-रात खिलाफत के खालिस्तानी सुर बुलंद करता है, तब पाकिस्तान के मंसूबे उजागर हुए बिना नहीं रहते। कल तक जहां शांति थी, भाईचारा था, वहां अचानक खिलाफत का माहौल देखने को मिले तो शक की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। खासकर, उस वक्त तो बिल्कुल नहीं, जब विदेशी धरती पर भी उनका प्रायोजित कार्यक्रम नजर आने लगे। रातों-रात खालिस्तान के खलनायक उग्र होने लगें, तो सरकार को चैन की नींद शोभा नहीं देती।
खालिस्तान मामले में किंचित मात्र ही सही, केंद्र की कूटनीतिक विफलता भी दिखती है और उसकी प्रशासकीय कमजोरी भी। जहां विदेशी धरती पर भारत विरोधी प्रदर्शनों पर कड़ा संदेश दे पाने में मोदी सरकार को विफल माना जा सकता है, यहां पंजाब के बिगड़ते हालातों और अंदरखाने पक रही खिलाफत की षड्यंत्रकारी खिचड़ी की खबर लेने में भी मोदी सरकार असफल रही है। केवल अपने राजनैतिक लाभ के लिए पंजाब के हालातों से यदि समझौता होता है या स्थिति की गंभीरता का कमजोर आकलन होता है, तो यह निश्चित ही गंभीर विषय है।
मई के आखिर में जम्मू-कश्मीर में जी-२० की बैठक प्रस्तावित है। इस दौरान पुलवामा जैसे किसी बड़े हमले की आशंका व्यक्त भी की जा रही है, ताकि दुनियाभर में जम्मू-कश्मीर को लेकर एक नकारात्मक संदेश दिया जा सके। वहां कई आतंकी संगठन इस फिराक में बैठे हैं कि ‘नशे’ में डूबे युवाओं को कब एक असेट के रूप में इस्तेमाल करें क्योंकि नशे में इंसान होशो-हवास खो देता है, फिर उससे जो चाहे वो काम कराया जा सकता है। कश्मीर में सेना के कई जवानों को शहीद करके आतंकियों ने पहले ही अपने खूनी मंसूबों को जतला दिया है। पिछले १८ महीनों में राज्य में ८ बड़े आतंकी हमले हुए हैं, जिनमें २६ जवानों की शहादत हुई है। इस दौरान आतंक से जुड़ी छापेमारी में नशीले पदार्थों और दवाओं के सेवन के कई सुराग सुरक्षाबलों को मिले हैं। सुरक्षाबलों ने स्पैम्मोप्रोक्सीवॉन प्लस कैप्सूल, कोडीन फॉस्फेट सिरप समेत ब्राउन शुगर तक जप्त की है। इसमें गौरतलब बात तो यह है कि जम्मू-कश्मीर में नशे की यह खेप सीमा पार से नहीं, बल्कि देश के अन्य राज्यों से पहुंचाई जा रही है। जिनमें न केवल सड़क और रेल मार्ग का इस्तेमाल हो रहा है, बल्कि हवाई जहाज जैसे सुरक्षित माध्यम भी इस्तेमाल हो रहे हैं। क्या इससे देश की सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न नहीं लगता? मोदी सरकार नोटबंदी से आतंकियों की आर्थिक कमर तोड़ने का श्रेय भले ही ले ले, पर मादक पदार्थों की तस्करी और उससे जुटाए जानेवाले धन का आतंक के लिए इस्तेमाल होने की संभावना से इंकार नहीं कर सकती। पैसों के लालच में देश के भीतर से इस घिनौने धंधे को हवा कौन दे रहा और इसका फायदा पाकिस्तान कैसे उठा रहा है? क्या इसके लिए राजनीति का ध्रुवीकरण तो जिम्मेदार नहीं? इस पर भी गहन चिंतन जरूरी है। यदि समय रहते केंद्र सरकार ने इस दिशा में विचार नहीं किया और किसी पुख्ता रणनीति के माध्यम से इस पर अंकुश नहीं लगाया तो आनेवाले वक्त में इसके भयानक परिणाम देखने को मिल सकते हैं। हो सकता है भविष्य में किसी तरह हम कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद की आग शांत भी कर लें पर उसकी राख में दबी नशे की चिंगारियां पंजाब की ही तरह पीढ़ियों तक, जम्मू-कश्मीर के युवाओं का वर्तमान और भविष्य झुलसाती रहेंगी और देश में समय-समय पर खिलाफत की अग्नि दहकाती रहेंगी।