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संपादकीय : सरकारी फैसलों का ‘झटपट सेल’!

नैतिकता की थोड़ी भी परवाह न करनेवाली महाराष्ट्र की ‘एक फुल, दो हाफ’ सरकार में, राज्य के खजाने की लूट मनमाने ढंग से चल रही है। बेशक, जिस सरकार की बुनियाद अनीति, दगाबाजी और खोकेबाजी पर रची गई हो, उस सरकार के बिल्ले सत्ता के जरिए मिलनेवाले मक्खन के गोलों पर टूट नहीं पड़ते तो यह अपने आप में बड़ी आश्चर्यजनक बात होती! विषय है ‘जीआर’ यानी सरकारी फैसलों का। ताजा खबर यह है कि पिछले एक हफ्ते से राज्य के मंत्रालय में चौबीसों घंटे काम चल रहा है और पिछले ५ दिनों में सरकार की ओर से ७३० जीआर यानी सरकारी फैसले जारी किए जा चुके हैं। किसी प्रदर्शनी में जिस तरह सामानों की झटपट सेल लगाई गई हो, इसी प्रकार थोक में जीआर जारी करने का एक सूत्रीय कार्यक्रम मंत्रालय में एक सप्ताह के लिए चलाया जा रहा है। इन ७३० जीआर में हमें यह जांचना होगा कि कितने सरकारी फैसले वास्तव में महाराष्ट्र की जनता के हित में हैं और कितने फैसले सरकार में मंत्री-संत्री और सत्तारूढ़ विधायकों की भलाई के लिए, लिए गए हैं। राज्य के उद्योगों और विदेशी निवेश को गुजरात भगाकर ले जाने के दौरान हाथ पर हाथ धरे बैठी रही सरकार को अचानक बुलेट ट्रेन या सुपरसोनिक विमानों से भी तेज गति से काम पर लगी देख राज्य की जनता हैरान हो गई है। ५ दिनों में ७३० जीआर का सरकारी धमाका देखकर राज्य के पूर्व नौकरशाह भी हैरान हैं। ‘गल्ली में हंगामा और दिल्ली में सिर झुकाने’ वाली महाराष्ट्र की शिंदे सरकार एक हफ्ते में इतने बड़े और असामान्य निर्णय ले रही है, तो यह सरकार पिछले १८ महीनों में सैकड़ों सरकारी निर्णय लेने के लिए किस मुहूर्त का इंतजार कर रही थी? लोकसभा चुनाव की आचार संहिता जल्द जारी होने की संभावना है। चूंकि सरकार को आचार संहिता के दौरान फंड आवंटन पर निर्णय लेने से प्रतिबंधित किया जाता है इसलिए सत्ताधारी दलों के कई लोक प्रतिनिधि और नेता शेष आठ से पंद्रह दिनों में जितना संभव हो उतना अपना दामन भरने के लिए पिछले महीने से अलग-अलग महकमों की दहलीज पर चक्कर लगा रहे हैं। प्रस्ताव और फाइलों के गट्ठर लेकर विधायक लगातार घूम रहे हैं। सरकारी पार्टियों के समर्थकों, ठेकेदारों, दलालों और राजनीति के सपने संजोए लोगों की बिरादरी के साथ, राज्य का मंत्रालय अब एक मेला बन गया है। सत्तारूढ़ दल के अधिकांश निर्णय विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों में विकास कार्यों को निधि देने के लिए हैं इस जीआर में। जब तक सरकारी निर्णय जारी नहीं होता यानी जीआर जारी नहीं होता तब तक वास्तविक धनराशि उपलब्ध नहीं होती इसीलिए मंत्रालय में पिछले कुछ दिनों से कुछ भी करके सरकार के लंबित पैâसले को फटाफट जारी करने की कोशिश चल रही है। पिछले ५ दिनों में लिए गए ७३० सरकारी फैसलों में से २६९ पैâसले सिर्फ दो दिनों में जारी किए गए। कुल ७३० सरकारी निर्णयों में से अधिकांश ७५ जीआर राजस्व और वन महकमे के हैं। जल आपूर्ति एवं स्वच्छता महकमा ६२ निर्णयों के साथ दूसरे स्थान पर है। इन फैसलों में धन का आवंटन, पोस्टिंग, जल परियोजनाएं, विभिन्न सड़कें जैसे कार्य शामिल हैं। इसके अलावा अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण महकमा ५६, कृषि, पशुपालन, डेयरी विकास महकमा ४९, सहकारिता, विपणन महकमा २६, सामान्य प्रशासन महकमा २२, नगर विकास महकमा २३, पर्यटन महकमा ४४, शिक्षा महकमा ४८, जल संसाधन महकमा ३२ और १५० से अधिक अन्य महकमों से जुड़े सरकारी पैâसलों ने पटाखों की लंबी लड़ी ही लगा दी है। दरअसल, सरकार का पैâसला लेना दिव्य होता है। सबसे पहले, आदेश जारी करने की प्रक्रिया संबंधित विभाग के सचिव के प्रस्ताव से शुरू होती है। फिर फाइल कक्ष अधिकारी, उप सचिव से सचिव के पास जाती है। सचिव के अभिप्राय के बाद निर्णय को कानूनी समीक्षा के लिए विधि विभाग को भेजा जाता है। फिर इस फाइल को वित्त विभाग के पास अनुमति के लिए जमा किया जाता है और उनकी मंजूरी के बाद संबंधित विभाग के मंत्री हस्ताक्षर करते हैं, यह फाइल फिर से सचिव के पास जाती है और इतनी लंबी प्रक्रिया के बाद राज्यपाल के नाम पर यह सरकारी निर्णय यानी ‘जीआर’ जारी किया जाता है। सरकारी फैसलों के लिए फाइलों की लंबी यात्रा, जो धीमी गति से होती है, पिछले सप्ताह में अचानक बिजली की गति हो गई। पिछले सप्ताह में फंड को खत्म करने के लिए थोड़े-थोड़े नहीं, बल्कि कुल ७३० सरकारी फैसले झटपट लिए गए। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगने से पहले शिंदे सरकार ने सरकारी फैसलों की जो ‘झटपट सेल’ सामने रखी उसे बच्चों का खेल ही कहा जाएगा। बेशक, सरकार के ज्यादातर फैसलों का मामला धन आवंटन यानी ‘खोकों’ से संबंधित था इसलिए सरकार की तिजोरी पर आखिरी हाथ मारने के लिए ‘खोका सरकार’ झटपट काम पर लग गई, इस ‘होलसेल’ सरकारी फैसलों का मतलब सिर्फ इतना ही है!

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