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उड़न छू : लिफाफा प्रबंधन

अजय भट्टाचार्य

एक बहुत बड़ी कंपनी में नवनियुक्त मैनेजर को पुराने मैनेजर ने जाते-जाते तीन बंद लिफाफे दिए। इन लिफाफों पर क्रमश: एक, दो और तीन के अंक लिखे हुए थे। इन लिफाफों को देने के बाद निवर्तमान मैनेजर ने अपने नए उत्तराधिकारी की तरफ मुखातिब होकर कहा कि जब कभी भी तुम्हें इस कार्यालय में कोई बड़ी समस्या आ जाए तो यह एक नंबर का लिफाफा खोलना। तुम्हें उस समस्या का समाधान मिल जायेगा। बड़ी कंपनियों के कामकाज इसी तरह के लिफाफों पर चलते हैं। जब कभी दूसरी बड़ी समस्या आ जाए तो यह दो नंबर का लिफाफा खोलना। उस बड़ी समस्या का समाधान हो जाएगा। इस तरह तुम अपना काम आसानी से कर सकोगे और अगर इसके बाद भी खुदा न खस्ता जब कभी तुम्हें तीसरी बड़ी समस्या आ जाए तो इस तीन नंबर वाले लिफाफे को खोलना ताकि बार-बार की समस्या से छुटकारा मिल सके। नव नियुक्त मैनेजर ने खुश होकर हामी भरी और तीनों लिफाफों को संभालकर रख लिया।
काफी समय के बाद कंपनी के मुख्यालय ने व्यापार में बढ़ोतरी नहीं होने पर काफी कड़ा पत्र लिखा। पत्र पढ़ते ही मैनेजर साहब को कुछ सूझा नहीं कि मैनेजमेंट को क्या जवाब दें, तभी उन्हें याद आया और उन्होंने लिफाफा नंबर एक खोला। लिफाफे के अंदर जो पत्र निकला उस पर लिखा था, ‘अपना सारा दोष पुराने मैनेजर के माथे डाल दो कि उसने कुछ किया नहीं अत: वह सब नए सिरे से ठीक कर रहा है!’ मैनेजर साहब ने लिफाफे से मिले ज्ञान का उपयोग किया और समस्या टल गई। इस तरह एक अरसा गुजर गया। लिफाफा नंबर एक काम कर गया था इसलिए दूसरा लिफाफा खोलने की कोई जरूरत नहीं पड़ी।
पांच साल बाद फिर वैसा ही पत्र आया कि कंपनी द्वारा तय किए गए लक्ष्य पूरे नहीं हो रहे हैं, क्यों न उसके विरूद्ध कोई कार्यवाही की जाए? घबराकर मैनेजर साहब ने लिफाफा नंबर दो खोला और उसमें लिखे संदेश को पढ़ने लगा, जिसमें लिखा था कि जवाब दो कि स्टाफ बराबर काम नहीं करता वह कुछ को हटा रहा है व कुछ को ट्रांसफर कर रहा है, कार्यालय में भारी परिवर्तन कर रहा है। मैनेजर साहब ने वैसा ही किया और मुसीबत फिर टल गई।
पांच साल पश्चात फिर प्रधान कार्यालय द्वारा धंधा नहीं बढ़ने पर भारी चिंता व्यक्त की गई कि चेयरमैन साहब भी बहुत नाराज हैं। तब मैनेजर को तीसरे लिफाफे की याद आई। लिफाफा नंबर तीन खोला उसमें लिखा था…..अब तुम भी तीन लिफाफे बना लो…..।
बहरहाल संयोग से एकदा जंबूद्वीपे भरतखंडे आर्यावर्ते भारत देशांतर्गत राजनीतिक प्रबंधन में बदलाव हुआ और नए प्रबंधक ने कारभार संभाला। कंपनी के नए मैनेजर वाली कहानी उनके एंटायर पॉलिटिकल वाले कोर्स में थी, सो आते ही देश के पुराने प्रबंधकों पर दोष मढ़ना शुरू कर दिया। हर गलती के लिए ‘फलाने’ को दोषी ठहराकर साहब पांच साल टिके रहे। देश में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन होने से रहा। लिहाजा, कुर्सियों पर बैठे बाबुओं को हटाने से लेकर उनके तबादले तक के लिए और समय मांगा, ताकि देश को सुधारा जा सके। जनता ने एक बार फिर प्रबंधन उन्हें ही सौंप दिया। खुद को फकीर प्रचारित-प्रसारित कराने वाले स्वयंघोषित विश्वगुरु तीसरा लिफाफा नहीं खोलना चाहते, जबकि अब तक के उनके सारे झूठ-फरेब जनता के सामने आ चुके हैं। अब इस बार फिर वे गारंटी वाला लिफाफा बांच-बांट रहे हैं, जिनकी खुद अपनी ही गारंटी की गारंटी नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)

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