मुख्यपृष्ठस्तंभदिल्ली से : तीर्थस्थलों पर हमले होना सरकार की विफलता

दिल्ली से : तीर्थस्थलों पर हमले होना सरकार की विफलता

योगेश कुमार सोनी

बीती ९ जून को शिवखोड़ी से वैष्णो देवी दर्शन के लिए जाते समय श्रद्धालुओं से भरी बस पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया था। इनमें कुल नौ लोगों की मौत हो गई थी। घटना में बचे हुए यात्रियों के अनुसार, मंजर बेहद खतरनाक था। इस घटना के बाद से जो लोग वैष्णो तीर्थ स्थल जाने वाले थे या जाना चाहते थे, अब वे नहीं जा रहे हैं। उनके दिल और दिमाग में दहशत बैठ गई। इसके अलावा अन्य तीर्थस्थलों पर भी लोग जाने से कतरा रहे हैं। हालांकि, हिंदुओं के तीर्थस्थलों पर हमले होना कोई नई बात नहीं है। पिछले कई सालों से हजारों श्रद्धालुओं ने अपनी जान गंवाई है। अब सवाल यह उठता है कि आतंकवाद को जड़ से खत्म बताने वाली बीजेपी सरकार के कालखंड में यह वैâसे हो रहा है? बीजेपी सरकार यदि अपने आपको हिंदुत्व का ब्रांड एंबेसडर मानती है तो कम से कम तीर्थस्थलों पर जाने वाले श्रद्धालुओं की जान तो सुरक्षित रखना सुनिश्चित करे। ऐसी घटनाओं से तो बिल्कुल भी नहीं लगता कि सीमा पार या देश के अंदर आतंकवाद में कोई फर्क पड़ा हो। आखिर आतंकवाद पर पूर्णविराम कब लगेगा? बहुत तकलीफ होती है, जब कोई बेमौत मरता है और जब तीर्थस्थल पर किसी की मौत होती है तो तकलीफ का पैमाना कई गुना बढ़ जाता है। मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में प्रवेश कर चुकी है और इसके बावजूद आतंकवाद पर कोई नकेल नहीं कसी जा रही है। किसी भी देश की जनता सबसे पहले सुरक्षा ही तो मांगती है और यदि वह भी न मिले तो सरकार की संचालन प्रक्रिया पर तमाम तरह के सवालिया निशान खड़े हो जाते हैं। बीती अप्रैल में एक आंकडा पेश किया गया था, जिसमें बताया गया था कि बीते पांच वर्षों में १,०६७ आतंकी हमले हुए थे, जिसमें १८२ जवान शहीद हुए थे व कई नागरिकों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी थी। सारी घटनाओं में ७२९ आतंकवादी भी मारे गए हैं, लेकिन सवाल यह है कि आतंकवादी हमारे देश में लगातार घटनाओं को अंजाम क्यों दे रहे हैं? क्या यह बड़ी साजिश का कोई संकेत है या फिर हमारी सरकार की विफलता? क्या कभी किसी अन्य धर्म के तीर्थस्थल पर कोई हमला देखा या सुना गया है, निश्चित तौर पर नहीं लेकिन हर बात सनातियों को क्यों टारगेट किया जा रहा है? हम महंगाई से लड़ सकते हैं, हम अन्य किसी भी घटना से भी लड़ सकते हैं, लेकिन जीवन की ही सुरक्षा न मिले तो फिर क्या फायदा? असहनीय पी़ड़ा से दिल सा भर आया है। ऐसी घटनाओं में जो अपनों को खो देता है, उसके दिल से पूछो कि उसका क्या हाल हो जाता है। हम कितनी भी तकनीकी युग की बातें कर लें, लेकिन जब ऐसी घटना होती है तो तंत्र से दिल और विश्वास दोनों उठ जाते हैं। वैसे एक ही तरह की पी़ड़ा का बार-बार होना मानव जीवन पर प्रहार सा लगता है। हम आजाद भारत में रहकर भी सुरक्षित नही हैं तो वह गुलामी ज्यादा बढ़िया, क्योंकि उसमें बेवजह तो जान नहीं जाती थी। आज हम हाईटेक हथियारों से अपडेट हैं और हमारी सेना की टुकड़ियां भी अपग्रेड हैं, लेकिन आतंकी भय क्यों नहीं मान रहे हैं? यह सरकार को समझना पड़ेगा और उस पर काम करना पड़ेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के जानकार हैं।)

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