मुख्यपृष्ठस्तंभमेहनतकश : परिस्थितियों को मात देकर हुए सफल

मेहनतकश : परिस्थितियों को मात देकर हुए सफल

अनिल मिश्र

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जैसे ही रविशंकर त्रिपाठी ने होश संभाला वैसे ही अपनी पारिवारिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए बिना टिकट रोजी-रोटी की तलाश में मुंबई चले आए। एक नहीं, बल्कि कई जगहों पर काम करनेवाले रविशंकर ने कंपनी द्वारा किए गए अत्याचार को सहते हुए अपने कार्य को अंजाम दिया और आज उनकी पारिवारिक दशा बदल गई है। रविशंकर का कहना है कि संतोषी व्यक्ति सदा सुखी रहता है और वे इस घोषवाक्य को महामंत्र मानकर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के धानापुर गांव के निवासी रविशंकर त्रिपाठी बारहवीं अर्थात इंटर की परीक्षा पास कर ४ दिसंबर, १९८९ को मुंबई के लिए घर से निकल पड़े। टिकट का भी पैसा उनके पास नहीं था इसलिए ‘काशी’ गाड़ी में चालू डिब्बे में बिना कुछ खाए-पीए कल्याण रेलवे स्टेशन पर उतरकर अपने ससुर के घर आ गए, जो उल्हासनगर में रहते थे। कुछ दिनों के बाद वे कुर्ला के साकीनाका परिसर में रह रहे अपने परिवार के पास चले गए। पांच दिनों तक बिना काम घर में बैठकर खाना खाना उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था। अब उन्होंने हेयर टेक्सटाइल कंपनी में दो सालों तक निरीक्षक के पद पर काम किया। इसके बाद अंधेरी औद्योगिक क्षेत्र की दूसरी टेक्सटाइल कंपनी में निरीक्षक के पद पर काम करने के बाद १९९३ में ऑटोरिक्शा का लाइसेंस निकालकर वे रिक्शा चलाने लगे। नौकरी के बाद होटल चलानेवाले रविशंकर त्रिपाठी बताते हैं कि अपने बड़े बेटे की शादी करने जब वो गांव गए और वहां से लौटने के बाद देखा तो घर में रहनेवाले पटीदारों ने दूसरा ताला लगा दिया था। पूछने पर उन्होंने यहां तुम्हारा कुछ नहीं कहकर उन्हें घर से बेदखल कर दिया। उसके बाद रविशंकर अपने साढ़ू के पास बदलापुर गए। दो माह के बाद भाड़े पर घर लेकर भाई के परिवार के साथ रहे। २०१० में तुर्भे स्थित ममपुरे ड्रिलिंग फूड पावडर नामक कंपनी में ढाई वर्षों तक काम करने के बाद पैâइनो टैक्स केमिकल कंपनी तुर्भे में भी उन्होंने ८ वर्षों तक कड़ी मेहनत और ईमानदारी से काम किया। कोरोना काल में कंपनी का ऑर्डर पूरा करने के लिए बदलापुर से तुर्भे तक बस, बाइक, ट्रेन से निरंतर उन्होंने काम किया। ईमानदारी से नौकरी करने के बावजूद एक दिन बीमार होने पर दूसरे दिन जब वो नौकरी पर गए तो मालिक ने कोई बात न सुनते हुए उन्हें घर जाने का फरमान सुना दिया। कोरोना काल में नौकरी से निकाले जाने पर भारी आर्थिक बोझ आ गया। नौकरी छूट जाने के बाद रविशंकर तीन माह तक घर बैठे रहे। उसके बाद बदलापुर (प.) में जानगॉल्ट कंपनी में उन्होंने नौकरी की। रविशंकर के पिता टैक्सी चालक थे। रविशंकर के पिता अपने बड़े भाई का बहुत सम्मान करते थे और जो कुछ भी कमाते थे उनके हाथों में सौंप देते थे, लेकिन अंत में बड़े भाई ने ही उन्हें घर से बेघर कर दिया, पर आज स्थिति बदल गई है। रविशंकर के तीनों बेटों का विवाह हो चुका है और सभी अपने मकान में आनंद से जीवनयापन कर रहे हैं। यह सब रविशंकर त्रिपाठी के संतोष के चलते ही संभव हो सका है क्यों विवाद घर-परिवार को विकास की बजाय बर्बादी का राह दिखा देता है।

अन्य समाचार