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मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 असंवैधानिक-हाईकोर्ट

मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असंवैधानिक घोषित करते हुए कहा कि यह एक्ट धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला है। साथ ही कोर्ट ने यूपी सरकार को वर्तमान में मदरसों में पढ़ रहे छात्रों की आगे की शिक्षा के लिए योजना बनाने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने मदरसों में पढ़ रहे छात्रों को बुनियादी शिक्षा व्यवस्था में समायोजित करने के लिए कहा है। याचिकाकर्ता अंशुमान सिंह राठौर समेत कई लोगों ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को चुनौती दी थी। याचिका में भारत सरकार, राज्य सरकार और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा मदरसों के मैनेजमेंट पर आपत्ति जताई गई थी। इस मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की डिवीजन बेंच ने यह आदेश दिया। 2019 में उच्च न्यायालय ने मदरसा बोर्ड के कामकाज और संरचना से संबंधित कुछ सवालों को बड़ी पीठ के पास भेजा था। बड़ी पीठ को भेजे गए सवाल में पूछा गया था कि क्या बोर्ड का उद्देश्य केवल धार्मिक शिक्षा प्रदान करना है। भारत में धर्म निरपेक्ष संविधान के साथ क्या किसी विशेष धर्म के लोगों को किसी भी धर्म से संबंधित शिक्षा के लिए बोर्ड में नियुक्त / नामांकित किया जा सकता है? अधिनियम में बोर्ड को राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय के तहत काम करने का भी प्रावधान है, इसलिए यह सवाल उठता है कि क्या मदरसा शिक्षा को अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के तहत चलाना सही है, जबकि जैन, सिख, ईसाई आदि जैसे अन्य अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित सभी अन्य शिक्षा संस्थान शिक्षा मंत्रालय के तहत चलाए जा रहे हैं।
यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पारित एक कानून था, जो राज्य में मदरसों की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए बनाया गया था। इस कानून के तहत मदरसों को बोर्ड से मान्यता प्राप्त करने के लिए कुछ न्यूनतम मानकों को पूरा करना आवश्यक था। बोर्ड मदरसों को पाठ्यक्रम, शिक्षण सामग्री और शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए भी दिशानिर्देश प्रदान करता था। यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 के के उद्देश्यों में मदरसों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना, मदरसों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जोड़ना और मदरसा छात्रों को रोजगार के बेहतर अवसर प्रदान करना है। हालांकि, इस कानून को लेकर कुछ आलोचनाएं भी थीं, जैसे कुछ लोगों का मानना ​​था कि यह कानून मदरसों की स्वायत्तता को कम करता है, कुछ लोगों का मानना ​​था कि यह कानून मदरसों को धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रदान करने से रोकता है। अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट इस कानून असवैंधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है।

खत्म हो जाएंगे अनुदानित मदरसे?
इलाहाबाद हाईकोर्ट डबल बेंच के फैसले के बाद अब सभी अनुदानित मदरसे के अनुदान यानी सरकार की तरफ से मिलने वाली सहायता राशि बंद हो जाएगी और अनुदानित मदरसे खत्म हो जाएंगे। जांच में पाया गया है कि सरकार के पैसे मदरसों से धार्मिक शिक्षा दी जा रही थी। कोर्ट ने इसे धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी सिद्धांतों के विपरीत माना है। मदरसा शिक्षा में विदेशी फंडिंग की लगातार शिकायत मिल रही थी। इससे पहले योगी सरकार ने पिछले दिनों प्रदेश में चल रहे मदरसों का सर्वे करवाया था। सर्वे में सामने आया था कि प्रदेश में 16,513 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं, जबकि 8,500 गैर मान्यता प्राप्त मदरसे भी चल रहे हैं।उसके बाद आरोप लगाए गए थे कि इन मदरसों को विदेशी फंडिंग मिल रही है, जिसका ये गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। इस मामले की जांच के लिए एसआईटी टीम का गठन किया था।”

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