मुख्यपृष्ठस्तंभअर्थार्थ : एनआई और रियल इस्टेट निवेश की कठिनाइयां

अर्थार्थ : एनआई और रियल इस्टेट निवेश की कठिनाइयां

पी. जायसवाल मुंबई

वैâसा भी मंदी का दौर हो अनिवासियों का निवेश हमेशा एक संजीवनी का काम करता है, चाहे वो देश हो या खुद का उनका परिवार हो, जहां वह पैसा भेजते हैं। प्रवासी अनिवासी ज्यादातर अपने गृह जिले में भावनात्मक निवेश या शेयर मार्वेâट निवेश या रियल एस्टेट में निवेश की इच्छा रखते हैं। हालांकि, मौजूदा कर कानूनों के कारण अनिवासियों को भावनात्मक या रियल स्टेट निवेश में दिक्कतें आ रहीं हैं। बहुत से नागरिकों ने बताया कि उनके मकान मालिक विदेश में रहते हैं और उनके मकान में रहने के कारण जो किराया उन्हें वह भुगतान करते हैं, उस भुगतान में से उन्हें ३१.२ फीसदी टीडीएस काटकर बाकी ६८.८० फीसदी ही उन्हें भुगतान करना पड़ता है। टीडीएस की यह दर बहुत ज्यादा है। वही यदि मकान मालिक अनिवासी भारतीय नहीं है तो वही किरायेदार और किराया ५० हजार से कम है तो उसे बिना टीडीएस काटे किराया हर माह मकान मालिक को भुगतान करना पड़ता है। यदि किराया ५० हजार से ज्यादा है तो ५ फीसदी टीडीएस काटकर बचा ९५ फीसदी मकान मालिक को भुगतान करता है। अनिवासी मकान मालिक होने से उसे अतिरिक्त औपचारिकताएं भी करनी पड़ती हैं। जैसे उसे टैन लेना पड़ता है, हर माह की सात तारीख को इनकम टैक्स की वेबसाइट पर जाकर टीडीएस भुगतान करना पड़ता है और हर तिमाही उसी भुगतान किए गए टीडीएस का तिमाही रिटर्न भरना पड़ता है। इन सब झंझटों के कारण किरायेदार सोचता है कि अनिवासियों के मकान की जगह किसी निवासी भारतीय का मकान ही किराए पर लें। इस कारण अनिवासियों को दोहरी कठिनाई हो रही है पहला टीडीएस ३१.२ फीसदी कटकर उन्हे सिर्फ ६८.८ फीसदी ही हाथ में मिल रहा है, दूसरा टीडीएस की औपचारिकताओं के कारण उन्हें किरायेदार मिलने में दिक्कत हो रही है। इस कारण अब अनिवासी रियल एस्टेट में निवेश करने में कठिनाई महसूस कर रहें हैं। अनिवासियों से अगर रियल एस्टेट में निवेश लेना है तो माननीय वित्त मंत्री को इस पर ध्यान देना पड़ेगा तथा टीडीएस की किराए से जुड़ी धाराओं में उन्हें अनिवासियों को निवासियों के समकक्ष रखना पड़ेगा, अन्यथा बड़े रियल इस्टेट निवेश प्रभावित हो सकते हैं। अनिवासी वैसे भी भावनात्मक निवेश के कारण रियल एस्टेट इंडस्ट्री का आसान ग्राहक होता है और अगर इस कारण से निवेश प्रभावित हुआ तो इससे जुड़ा सारा उद्योग, इकोसिस्टम भी प्रभावित होगा, चाहे वह स्टील हो या सीमेंट हो या कुछ और। हाल ही में इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन की २०२४ की रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष २०२२ में अनिवासी भारतीयों ने करीब ९.२८ लाख करोड़ रुपए रेमिटेंस के रूप में अपने देश भेजे हैं। इसके कारण भारत १०० बिलियन डॉलर से ज्यादा रेमिटेंस पाने वाला अब दुनिया का पहला देश बन गया है। भारत में रेमिटेंस का इतिहास काफी पुराना है, लोग इसे मनी आर्डर इकॉनमी भी बोलते हैं। रेमिटेंस मतलब बाहर गया कोई प्रवासी जब अपने गांव या देश पैसा भेजता है तो उसे रेमिटेंस कहते हैं। रेमिटेंस आज भी देश के अलावा निम्न और मध्यम आय वाले परिवारों के लिए आय का एक नियमित जरिया भी है। भारत में रेमिटेंस के मामले में खाड़ी देशों में बसे भारतीयों का योगदान अधिक रहता है। इसके अलावा अमेरिका, कनाडा, यूके और ऑस्ट्रेलिया से भी भारत में रेमिटेंस बड़ी मात्रा में आता है। पलायन के लिहाज से देखा जाए तो भारत से श्रम पलायन की संख्या ज्यादा है और खाड़ी देश इन प्रवासी श्रमिकों के प्रमुख डेस्टिनेशन के रूप में उभर रहें हैं। खाड़ी देश हमेशा से प्रवासी श्रमिकों के लिए प्रमुख डेस्टिनेशन हैं। भारत, पाकिस्तान बांग्लादेश से बड़ी संख्या में श्रमिक खाड़ी देश में जा रहे हैं, जहां वह मैन्युपैâक्चरिंग, हॉस्पिटैलिटी, सिक्योरिटी और घरेलू काम सहित अन्य क्षेत्रों में काम करते हैं। चूंकि खाड़ी देश अपने यहां नागरिकता नहीं देते इसलिए उनके मन में यही रहता है कि भारत ही उनका अंतिम घर है। ऐसे में वह अपने जीवनकाल में यहां घर जरूर बनाने की सोचते हैं और पलायन अवधि तक उससे किराए की आय पाने की इच्छा रखते हैं। ऐसे में यदि उनके इस किराए की आय में बाधा आएगी तो इस निवेश पर ब्रेक लग सकता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना महामारी के दौरान वेतन नहीं मिलने, सामाजिक सुरक्षा के कम होने और नौकरियां जाने से बड़ी संख्या में अनिवासी भारी कर्ज और असुरक्षा में चले गए। इससे श्रमिकों के माइग्रेशन और निवेश रेमिटेंस पैटर्न पर असर पड़ा। प्रवासी समुदाय द्वारा भारत में स्थायी घर लेने की पूछताछ भी बढ़ने लगी थी। कोरोना का दौर तो चला गया, लेकिन हालात सुधरने के साथ जैसे-जैसे इनके निवेश बढ़ रहें हैं। ऐसे में आगामी बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को इस कठिनाई पर विचार कर इसे दूर करना चाहिए, ताकि हर अनिवासी भारत में घर खरीदने को लेकर प्रोत्साहित हो। कुछ ही दिनों में बजट पर सुझाव आमंत्रित करने के लिए वित्त मंत्री रायशुमारी की प्रक्रिया शुरू करेंगी, आशा है इस प्रक्रिया में वह इस सुझाव पर भी ध्यान देंगी।
(लेखक अर्थशास्त्र के वरिष्ठ लेखक एवं आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक विषयों के विश्लेषक हैं।)

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