रेतीबंदर में अवैध रूप से शुरू है रेत उत्खनन …प्रशासन कार्रवाई में कर रहा है टालमटोल

सामना संवाददाता / ठाणे
ठाणे जिला में खाड़ी से अवैध रूप से रेत निकालने वालों के खिलाफ जिला प्रशासन ने आंख में पट्टी बांध रखी है। आरोप है कि सिर्फ दिखावे के लिए कार्रवाई की जाती है और फिर एक-दो दिन में रेती माफियाओं द्वारा जिले के विभिन्न हिस्सों में रेती का अवैध रूप से उत्खनन शुरू हो जाता है। वर्तमान में ८ से १० सक्शन पंप प्रतिदिन रेत का उत्खनन किया जा रहा है जो कि बेहद गलत हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा हैं लेकिन प्रशासन किसी काम का नहीं ऐसा प्रतीत हो रहा हैं।
बता दें कि ठाणे, मुंब्रा, भिवंडी, मुरबाड समेत जिले की विभिन्न खाड़ियों और नदियों से अवैध रूप से रेत निकाली जा रही है। इस संबंध में कलेक्टर कार्यालय को शिकायतें मिल रही हैं। इन शिकायतों को दर्ज करने के बाद जिला प्रशासन तहसीलदार, नायब तहसीलदार, तलाठी, मंडल अधिकारियों के माध्यम से अवैध रेत माफियाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। इसके पीछे इन विभागों का तर्क है कि राजस्व विभाग को लोकसभा चुनाव के बाद विधान परिषद चुनाव के काम में लगाया गया है जिसके कारण कार्रवाई नहीं हो पाई। आरोप है कि इसका फायदा उठाते हुए कई जगहों पर अवैध रूप से रेत खनन तेजी से हो रहा है। इसमें खारेगाव टोल रोड के पास रेती बंदर के दशक्रिया विधि घाट क्षेत्र में ३ क्रेन और ७ से १० सक्शन पंप के जरिए अवैध रूप से रेत निकाली जा रही है। इससे मैंग्रोज को नुकसान होने आशंका भी जताई जा रही है। साथ ही स्थानीय नागरिक ने बताया कि इस संबंध में बार-बार शिकायत करने के बावजूद जिला प्रशासन द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, जिला प्रशासन के नाक के नीचे रेतीबंदर क्षेत्र के दशक्रिया विधी घाट के समीप मैंग्रोज के जंगल को काटकर अवैध रूप से रेती (बालू) उत्खनन किये जाने का मामला सामने आया है। आरोप है कि इस अवैध रेती उत्खनन के खिलाफ बार-बार शिकायत के बावजूद जिला प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। इस संबंध में जब ठाणे के तहसीलदार उमेश पाटिल से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अवैध कटाई करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

यूपी विधानसभा में नजूल पर बवाल : बीजेपी विधायकों का अपनी ही सरकार पर सवाल … बैकफुट पर सीएम योगी आदित्यनाथ

सामना संवाददाता / लखनऊ
यूपी की राजनीति में इन दिनों ‘सरकार से बड़ा संगठन’ का नारा खूब गूंज रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या ने इस नारे को बुलंद किया, लेकिन इसकी झलक यूपी विधानसभा के मानसून सत्र में देखने को मिली, जब योगी सरकार ने यूपी नजूल संपत्ति विधेयक २०२४ विधानसभा में पेश किया। इस विधेयक को लेकर विपक्ष ने विरोध तो जताया ही, साथ ही बीजेपी विधायकों ने भी विरोध में अपने सुर बुलंद कर दिए। बीजेपी विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह, हर्षवर्धन वाजपेयी से लेकर जनसत्ता दल के राजा भैया ने विरोध जताया। इतना ही नहीं, बीजेपी की सहयोगी और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी विधेयक को गैर जरूरी बताते हुए इसे वापस लेने की बात कर दी।
हालांकि, विरोध के बीच यूपी नजूल संपत्ति विधेयक विधानसभा में तो पास हो गया, लेकिन विधान परिषद में बीजेपी एमएलसी और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने इसे लटका दिया। जैसे ही विधान परिषद में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने विधेयक को पेश किया। बीजेपी एमएलसी भूपेंद्र चौधरी ने इसे प्रवर समिति को भेजने की मांग कर दी। जिसके बाद सभापति ने इसे प्रवर समिति को भेज दिया, जो दो महीने में अपना रिपोर्ट पेश करेगी। अब यूपी के सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा शुरू हो गई कि संगठन के सामने योगी सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा है।
यूपी में करोड़ों की आबादी नजूल की जमीनों पर रहती है, ऐसे में ये एक बड़े विवाद का विषय बन गया। उस आबादी के सर से छत छिनने का खतरा पैदा हो गया। यही वजह है कि यूपी विधानसभा में बहस के दौरान बीजेपी के अपने ही विधायकों ने इसका विरोध कर दिया।

हमने उजाड़ा तो लोग हमको उखाड़ देंगे – संजय निषाद
नजूल संपत्ति विधेयक को लेकर सियासत गरमा गई है। यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि अगर हमने उजाड़ा तो वो हमें उखाड़ देंगे। निषाद ने कहा कि हमारी पार्टी से शुरू से निर्बल को सबल बनाने पर काम कर रही है। आज भी नदी के किनारे सैकड़ों ऐसी जातियों के लोग रहते हैं वो कागज कहां से लाएंगे। जिन लोगों ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी और देश की आजादी में योगदान दिया आज भी उनके कई ट्राइबल है वो कैसे कागज बनवाएंगे,जो पढ़े लिखे भी नहीं हैं.

प्रयागराज में करीब ७१ लाख वर्गमीटर नजूल भूमि
अगर एक उदाहरण के लिए प्रयागराज लें तो प्रयागराज शहर में करीब ७१ लाख वर्गमीटर नजूल भूमि है। इन भूखंडों पर बड़ी तादाद में आम लोग रहते हैं। आंकड़ों के मुताबिक, इनमें से ३५ लाख वर्गमीटर पर काबिज लोगों ने जमीन प्रâी होल्ड करा ली है। वे अब इसके स्वामी बन चुके हैं। इसके अलावा १,८०० लोगों ने करीब १५ लाख वर्गमीटर जमीन प्रâी होल्ड कराने लिए के आवेदन कर रखा है। इस विधेयक के पास होने पर ये अवसर हाथ से निकल जाएगा।

देश के हिंदुओं को कब तक बनाओगे उल्लू? …अंबादास दानवे का बावनकुले पर तंज

सामना संवाददाता / मुंबई
विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने कल भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष चन्द्रशेखर बावनकुले पर कटाक्ष किया कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ईसाई और मुस्लिम वोटों के आधार पर देवेंद्र फडणवीस की आलोचना कर रहे हैं। दानवे ने बावनकुले और भाजपा अध्यक्ष जे. पी. नड्डा की सोशल मीडिया पर चंद्रपुर में टोपी पहने दरगाह पर चादर चढ़ाने की तस्वीर पोस्ट करते हुए सवाल किया है कि आखिर कब तक इस देश के हिंदुओं को उल्लू बनाते रहोगे।
इसी प्रकार एक अन्य तस्वीर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक चर्च का दौरा करते नजर आ रहे हैं। मोदी ने चर्च फादर से ईसा मसीह की छवि वाला क्रॉस भी स्वीकार किया। मुंबई में शिवसेना पदाधिकारियों की बैठक में उद्धव ठाकरे ने देवेंद्र फडणवीस पर जमकर हमला बोला, साथ ही खुली चुनौती दी थी कि अब या तुम रहोगे या तो मैं रहूंगा। पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख पर फडणवीस ने उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करने का दबाव डाला था। उस पर उद्धव ठाकरे ने फडणवीस की आलोचना की थी। इसके बाद बावनकुले ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व छोड़ दिया है।

नौकरी से हाथ धो बैठेंगे १५,००० कर्मचारी … कर्मचारियों की छंटनी करेगी इंटेल

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
चिप बनानेवाली दिग्गज कंपनी इंटेल ने बड़ी संख्या में अपने कर्मचारियों की छंटनी की बात कही है, जिससे यह साफतौर से जाहिर है कि कई देशों में लोगों की नौकरियां जाएंगी। इन देशों में से भारत भी एक हो सकता है। कंपनी की इस बड़ी घोषणा से कई लोगों की नौकरियों अब खतरे में आ गई हैं। करीब १५,००० कर्मचारियों की नौकरियों पर तलवार लटक गई है। हालांकि, अभी यह साफ नहीं है कि किस देश में कितनी नौकरियां जाएंगी।
छंटनी के बारे में सीईओ पैट गेलसिंगर ने कर्मचारियों को लिखे एक मेमो में कहा, ‘यह हम सभी के लिए एक कठिन दिन है और आगे और भी कठिन दिन आनेवाले हैं, लेकिन यह सब जितना कठिन है, हम अपनी प्रगति को आगे बढ़ाने और विकास के एक नए युग की शुरुआत करने के लिए आवश्यक बदलाव कर रहे हैं।’ उन्होंने आगे बताया ‘हमारी योजना २०२५ में लागत में १० अरब डॉलर की बचत करने की है और इसमें हमारे कर्मचारियों की संख्या में लगभग १५,००० कर्मचारियों या हमारे कार्यबल के १५ प्रतिशत की कमी शामिल है।’ अगले हफ्ते कंपनी योग्य कर्मचारियों के लिए सेवानिवृत्ति की पेशकश की घोषणा करेगी और व्यापक रूप से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए एक आवेदन कार्यक्रम की पेशकश करेगी। यह स्वीकार करते हुए कि राजस्व अपेक्षा के अनुसार नहीं बढ़ा है। उन्होंने कहा, ‘हमें अभी तक एआई जैसे शक्तिशाली रुझानों का पूरा लाभ नहीं मिला है। हमारी लागत बहुत अधिक है, हमारा मार्जिन बहुत कम है। हमें दोनों को संबोधित करने के लिए और अधिक साहसिक कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
फाइनेंसियल सिचुएशन और शेयर बाजार पर प्रभाव
हाल की तिमाही रिपोर्ट के अनुसार इंटेल ने १.६ बिलियन डॉलर का घाटा दर्ज किया है, जो पिछले वर्ष के लिहाज से काफी जादा है। राजस्व भी १२.९ बिलियन डॉलर से घटकर १२.८ बिलियन डालर हो गया है। इसके चलते कंपनी के शेयरों में १९ प्रतिशत की गिरावट तो आई ही, जिससे कंपनी का बाजार मूल्य लगभग २४ बिलियन डॉलर कम हो गया है, फाइनेंसियल सिचुएशन और शेयर बाजार पर काफी प्रभाव पड़ा।

निजी अस्पतालों को मरीज उपलब्ध करानेवाली योजना आयुष्मान भारत में भारी भ्रष्टाचार … कांग्रेस ने लगाए आरोप

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
कांग्रेस ने कल ‘आयुष्मान भारत’ स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत इलाज के नाम पर भ्रष्टाचार होने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह निजी अस्पतालों को मरीज उपलब्ध कराने की योजना बनकर रह गई है। केंद्रीय बजट में वर्ष २०२४-२५ के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के नियंत्रणाधीन अनुदान की मांगों पर लोकसभा में चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस सांसद तारिक अनवर ने यह भी कहा कि सरकार को सार्वभौमिक स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बढ़ाना होगा।
उन्होंने दावा किया कि आयुष्मान भारत योजना निजी अस्पतालों को मरीज उपलब्ध करानेवाली योजना बनकर रह गई है इसका मूल उद्देश्य प्राप्त नहीं हो रहा है। अनवर ने दावा किया कि वैâग की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस योजना में इलाज के नाम पर भ्रष्टाचार हो रहा है और मरीजों को कम तथा निजी अस्पतालों को अधिक लाभ हो रहा है। कांग्रेस सांसद ने देश में ‘स्वास्थ्य विभाग का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने’ का दावा करते हुए कहा कि कभी चिकित्सकों की तुलना भगवान से की जाती थी, लेकिन आज चिकित्सा व्यवसाय का रूप ले चुका है।

उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि एक होड़ चल रही है कि वैâसे इस माध्यम से अधिक से अधिक धन जमा किया जाए। आज देश में जरूरी तथा जीवनरक्षक दवाएं बहुत महंगी हो गई हैं और आम आदमी तथा गरीब जनता की पहुंच से बाहर हैं। ऐसी स्थिति में चिकित्सा सुविधाएं लोगों तक पहुंचाने की और सार्वभौमिक स्वास्थ्य क्षेत्र में अत्यधिक निवेश की महती आवश्यकता है।

मायावती ने उठाए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल, क्या दलितों व आदिवासियों का जीवन भेदभाव मुक्त हो गया?

सामना संवाददाता / लखनऊ
बसपा सुप्रीमो मायावती ने आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दिए गए फैसले पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि क्या दलितों व आदिवासियों का जीवन द्वेष व भेदभाव-मुक्त हो गया है? ऐसे में आरक्षण का बंटवारा कितना उचित है? बता दें कि आरक्षण को लेकर बृहस्पतिवार को दिए गए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी कोटे के भीतर कोटा को वैधानिक करार दिया है और क्रीमी लेयर को आरक्षण से बाहर करने की बात कही है।
उन्होंने भाजपा-कांग्रेस को भी निशाने पर लिया और कहा कि एससी-एसटी व ओबीसी लेकर दोनों दलों का रवैया उदारवादी रहा है, सुधारवादी नहीं। उन्होंने सोशल साइट ‘एक्स’ पर कहा कि सामाजिक उत्पीड़न की तुलना में राजनीतिक उत्पीड़न कुछ भी नहीं। क्या देश के खासकर करोड़ों दलितों व आदिवासियों का जीवन द्वेष व भेदभावमुक्त आत्मसम्मान व स्वाभिमान पूर्ण हो पाया है। अगर नहीं, तो फिर जाति के आधार पर तोड़े व पछाड़े गए इन वर्गों के बीच आरक्षण का बंटवारा कितना उचित? देश के एससी, एसटी व ओबीसी बहुजनों के प्रति कांग्रेस व भाजपा दोनों पार्टियों और सरकारों का रवैया उदारवादी रहा है, सुधारवादी नहीं। वे इनके सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्ति के पक्षधर नहीं हैं, वरना इन लोगों द्वारा आरक्षण को संविधान की ९वीं अनुसूची में डालकर इसकी सुरक्षा जरूर की गई होती।

बाप की उम्र के लोगों का इंटरव्यू ले रहे है श्रीकांत शिंदे …शिंदे गुट के वरिष्ठों में आक्रोश, आज भी हो सकती है बगावत

सामना संवाददाता / मुंंबई
शिवसेना से गद्दारी करने वाले एकनाथ शिंदे के साथ गए वरिष्ठ शिवसैनिक अब सांसद श्रीकांत शिंदे के हाथ का खिलौना बनकर रह गए हैं, जिसके कारण शिंदे के साथ गए वरिष्ठ पदाधिकारी पश्चाताप कर रहे है। बता दें कि कल्याण, अंबरनाथ, उल्हासनगर सहित अन्य क्षेत्र के शिंदे गुट के वरिष्ठ पदाधिकारी सांसद श्रीकांत शिंदे के तानाशाही रवैए से परेशान हो गए हैं। बताया जाता है कि सांसद शिंदे अपने पिता एकनाथ शिंदे से भी अधिक उम्र वाले पदाधिकारियों का इंटरव्यू लेकर नियुक्ति कर रहे है, जिसके कारण वरिष्ठों में आक्रोश व्याप्त है। बताया जाता है कि शिंदे गुट में अब पदाधिकारियों का चयन इंटरव्यू के माध्यम किया जा रहा है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि शिंदे गुट में शामिल जो मुख्यमंत्री से भी उम्र में बड़े है, उनका इंटरव्यू सांसद शिंदे ले रहे हैं, जिसका परिणाम यह हुआ है कि अंबरनाथ में शिंदे गुट के वरिष्ठ लोग पहले ही बगावत करते हुए इंटरव्यू में शामिल नहीं हुए।
इस इंटरव्यू में भी बगावत होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। शिंदे गुट के वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अब तक पदाधिकारियों की नियुक्ति वरिष्ठता, अनुभव, योग्यता आदि के हिसाब से होती थी। लेकिन अब सांसद शिंदे उन लोगों का इंटरव्यू ले रहे हैं, जो उनके बाप की उम्र से भी बड़े हैं। यह हास्यास्पद है। बता दें कि शिंदे गुट ने उल्हासनगर और अंबरनाथ शहर कार्यकारिणी को बर्खास्त कर दिया था। जिसके बाद १८ जुलाई २०२४ को अंबरनाथ में और १९ जुलाई २०२४ को उल्हासनगर में नई कार्यकारिणी की नियुक्ति होनी थी। लेकिन १८ जुलाई को अंबरनाथ में पूर्व वरिष्ठ पदाधिकारियों ने सांसद श्रीकांत शिंदे के इंटरव्यू का बहिष्कार किया और चयन पद्धति का विरोध किया, अंतत: शिंदे के पुत्र सांसद श्रीकांत शिंदे को उस दिन अपना बोरिया बिस्तर बिना इंटरव्यू लिए समेटना पड़ा। अंबरनाथ में विरोध के कारण १९ जुलाई को उल्हासनगर में होने वाला इंटरव्यू भी रद्द करना पड़ा। अब आज शिंदे पुत्र श्रीकांत शिंदे इंटरव्यू लेनेवाले हैं। पूरी संभावना है कि आज के इंटरव्यू में भी बगावत होगी। बताया जाता है कि लोकसभा चुनाव जीतने के बाद सांसद श्रीकांत शिंदे का रवैया पूरी तरह से तानाशाही में तब्दील हो गया है, जिसके कारण पुराने पदाधिकारियों के अलावा नए पदाधिकारियों में भी सांसद शिंदे के प्रति नाराजगी व्याप्त है।

सम-सामयिक : सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, कोटे के अंदर कोटा मान्य…!!

विजय कपूर

 

अगर आपने ट्रेन के जनरल कंपार्टमेंट में कभी सफर किया है तो आपको अनुभव होगा कि उसमें बहुत भीड़ होती है, आदमी पर आदमी चढ़ा रहता है, पैर रखने की जगह नहीं होती है इसलिए जो उसमें सवार हो गए होते हैं, उनकी कोशिश होती है कि नए यात्री डिब्बे में प्रवेश न कर पाएं, लेकिन जब धक्कामुक्की करके कोई यात्री प्रवेश करने में सफल हो जाता है तो वह भी डिब्बे के अन्य यात्रियों के साथ मिलकर इस प्रयास में लग जाता है कि अब कोई अतिरिक्त मुसाफिर का इस डिब्बे में इजाफा न होने पाए। इसे ट्रेन के थर्ड क्लास कंपार्टमेंट की मानसिकता कहा जाता है। सुप्रीम कोर्ट की ७-न्यायाधीशों वाली खंडपीठ पर एकमात्र दलित न्यायाधीश बीआर गवई ने अनुसूचित जाति (एससी) व अनुसूचित जनजाति (एसटी) आरक्षण में उप-श्रेणियों का विरोध करने वालों की तुलना रेल के जनरल कंपार्टमेंट के मुसाफिरों से करते हुए कहा कि एससी व एसटी में जो गैर-बराबर हैं, उन्हें बराबर मानकर नहीं चला जा सकता।
न्यायाधीश गवई की इस बात से मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायाधीश विक्रमनाथ, न्यायाधीश पंकज मित्तल, न्यायाधीश मनोज मिश्रा व न्यायाधीश एससी शर्मा सहमत थे, जबकि न्यायाधीश बेला एम त्रिवेदी असहमत थीं। अत: सुप्रीम कोर्ट ने १ अगस्त २०२४ को पांच-सदस्यों वाली खंडपीठ के २००४ के ईवी चिन्नै: पैâसले (कि एससी सजातीय समूह है और उसमें उप-श्रेणिया नहीं हो सकतीं) को ६-१ के बहुमत से पलटते हुए अपने ऐतिहासिक निर्णय में राज्यों को यह अनुमति दी कि वह सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन व सरकारी नौकरियों में कम प्रतिनिधित्व की डिग्री के आधार पर अनुसूचित जाति समुदाय में जातियों की उप-श्रेणियां बना सकते हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए कि १५ प्रतिशत एससी आरक्षण का हिस्सा उनमें जो पिछड़े हैं उनको मिले। लेकिन साथ ही सरकारों से यह भी कहा कि वह एससी व एसटी की मलाईदार परत को आरक्षण का लाभ उठाने से रोकने के लिए उचित क्राइटेरिया गठित करें।
इस पैâसले के साथ अपनी असहमति दर्ज कराते हुए न्यायाधीश बेला एम त्रिवेदी ने कहा कि अनुसूचित जातियां ‘सजातीय वर्ग हैं’ और उसमें ‘राज्यों द्वारा छेड़छाड़ नहीं की जा सकती’। लेकिन ध्यान से देखें तो न्यायाधीश गवई का यह कहना एकदम दुरुस्त है कि एससी/एसटी पैरेंट्स के जिन बच्चों ने आरक्षण का लाभ उठाते हुए उच्च पद हासिल कर लिए हैं और अब सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े नहीं हैं, उनकी तुलना शारीरिक श्रम करने वाले पैरेंट्स के बच्चों से नहीं की जा सकती। दोनों को एक ही पलड़े में रखने से संवैधानिक उद्देश्य असफल होता है। इस लिहाज से सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी के भीतर उप-श्रेणियों की अनुमति देना सही पैâसला है, लेकिन इससे एक नए राजनीतिक पतीले में जबरदस्त उबाल आ जाएगा। राज्य सरकारों को एससी व एसटी में मलाईदार परत (उन व्यक्तियों के बच्चे जो आरक्षण का लाभ उठा चुके हैं) की भी पहचान करनी है।
पहचान करने की इस एक्सरसाइज में दोहरा खतरा है- राजनीतिक स्ट्रेटेजी का भी और उन गुटों की सही पहचान का भी, जिनको वास्तव में सहारे की जरूरत है। अब तक तो देखने में यही आया है कि जो वर्ग राजनीतिक दृष्टि से असरदार है, बात उसी के पक्ष की अधिक हो जाती है। बहरहाल, कुल मिलाकर उप-श्रेणियां सकारात्मक कदम है। लेकिन दुर्भाग्य से आरक्षण सियासी वर्ग के लिए चुनावी अभियान में चलाया जाने वाला तीर बनकर रह गया है। इसके मुख्यत: दो नतीजे निकले हैं। एक जो संपन्न हैं, उन्होंने आरक्षण का अधिक लाभ उठाया है, जबकि कमजोरों को हाशिए पर धकेल दिया गया है। दो एससी/एसटी श्रेणियों का विस्तार हुआ है या वह अधिक झरझरी हो गई हैं। लगातार नए समूह जुड़ते जा रहे हैं। जो समुदाय भीड़भरी ओबीसी सूची के हाशिए पर है, वह अगर एससी सूची में आ जाता है, तो उसके लिए शिक्षा, स्कॉलरशिप व जॉब्स की बेहतर संभावना हो जाती है।
इस लचीलेपन से समुदायों को कूदते हुए और एससी/एसटी सूचियों को बढ़ते हुए देखा गया है। अगर ईमानदारी व प्रभावी ढंग से उप-श्रेणियां बनाई जाती हैं कि जो वास्तव में सामाजिक दृष्टि से अति पिछड़े हैं उनकी पहचान करके उन्हें शामिल किया जाए तो एससी/एसटी आरक्षण अधिक समावेशी हो जाएगा। पंजाब की ३२ प्रतिशत जनसंख्या एससी है। उसने उप-श्रेणी की आवश्यकता को १९७५ में ही महसूस कर लिया था और एससी आरक्षण का ५० प्रतिशत हिस्सा वाल्मीकियों व मजहबी सिखों के लिए रिजर्व कर दिया था। हरियाणा, आंध्रप्रदेश व तमिलनाडु ने भी पंजाब के नक्शेकदम पर चलने का प्रयास किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के २००४ के फैसले ने उनकी कोशिशों पर पानी फेर दिया था, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट की ही बड़ी बेंच ने पलट दिया है।
लेकिन इस पूरी कवायद का एक दूसरा पहलू भी है। आरक्षण का एक बहुत ही छोटा सा टुकड़ा सकारात्मक प्रयास का मूल विचार नहीं हो सकता। कोटा के भीतर कोटा कभी भी भेदभाव की महामारी का इलाज नहीं हो सकता और न ही निरंतर सिकुड़ते जॉब अवसरों का विकल्प बन सकता है। मसलन, जिन लोगों ने हाथ से मैला ढोना त्याग दिया था, उनका पुनर्वास आज भी बड़ी चुनौती बना हुआ है। स्कूल व कार्यस्थल पर भेदभाव को नीति के तौर पर संबोधित करना आज भी अंधी बंद गली में जाने जैसा ही है। आरक्षण की सीढ़ी से आए व्यक्ति के लिए विशेष निंदा आरक्षित रहती है। ‘कोटा-वालों’ को कॉलेजों व कार्यस्थलों पर ‘अपनाना’ बहुत बड़ी चुनौती है; जो दिन-रात भेदभाव अनुभव करते हैं, उनके दिलों से मालूम कीजिए कि अपमान के कितने घूंट पीने पड़ते हैं। सरकारी सेक्टर में जॉब्स निरंतर कम होते जा रहे हैं और प्राइवेट सेक्टर में जॉब्स पहुंच के बाहर होते जा रहे हैं। फिर जाति सर्टिफिकेट के घोटाले भी हैं।
एक किस्म की स्थिर जीविका के लिए जो हताशा है वह बार-बार आरक्षण की मांग में ही अभिव्यक्त होती है जैसे आरक्षण के अतिरिक्त समस्या का कोई समाधान ही नहीं है। यह सब पॉलिसी की नाकामी का परिणाम है, जिसे राजनीतिक दलों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के पैâसले का स्वागत करने से भी छुपाया नहीं जा सकता। सोचने की बात यह भी है कि सब-कोटा को अर्थपूर्ण बनाने के लिए सिरों की गिनती पर्याप्त नहीं है। एससी जातियों की संख्या लगभग १,२०० है और एसटी कबीले ७१५ से अधिक हैं। अब इनमें से हर एक के सामाजिक-आर्थिक डाटा की पदव्याख्या करनी होगी। यह बहुत बड़ा काम है और इसमें राजनीति भी निर्धारक तत्व होगी। सुप्रीम कोर्ट ने तो सब-कोटा की संवैधानिकता के आधार पर पैâसला दिया है, अब इसका सकारात्मक योगदान वैâसे होगा, यह राजनीति के संख्या खेल पर निर्भर रहेगा।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि कोई राज्य मनमाने ढंग से किसी जाति के लिए सब-कोटा निर्धारित न करे कि उसके पास अपने फैसले के लिए उचित कारण होने चाहिए, जो कि न्यायिक समीक्षा के लिए भी खुले रहेंगे, लेकिन इसके बावजूद इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि राज्य सियासी व चुनावी कारणों से मनमानी नहीं करेंगे, भले ही बाद में मामला अदालतों में जाए या सड़कों पर। अत: प्रतीक्षा कीजिए कि कोटा में सब-कोटा क्या-क्या गुल खिलाता है?
(लेखक सम-सामयिक विषयों के विश्लेषक हैं)

दिल्ली का गुस्सा लखनऊ में क्यों उतार रहे हैं? …अखिलेश यादव का सीएम योगी पर तंज

सामना संवाददाता / नई दिल्ली 
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नौकरी और प्रतिष्ठा वाले बयान को लेकर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने तंज कसा है। अखिलेश यादव ने ‘एक्स’ पर ट्वीट कर लिखा कि दिल्ली का गुस्सा लखनऊ में क्यों उतार रहे हैं? सवाल यह है कि इनकी प्रतिष्ठा को ठेस किसने पहुंचाई? कह रहे हैं सामनेवालों से, पर बता रहे हैं पीछेवालों को। कोई है पीछे?’ दरअसल, सीएम योगी ने कहा था कि मैं यहां नौकरी करने नहीं आया हूं, मुझे प्रतिष्ठा चाहिए होती तो मठ में मिल जाती है।
क्या बोले अखिलेश यादव?
सपा प्रमुख अखिलेश यादव लगातार उत्तर प्रदेश सरकार पर निशाना साध रहे हैं। लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद सपा का दावा है कि यूपी बीजेपी में उठापटक चल रही है। अखिलेश यादव ने कहा कि सीएम योगी कह सामनेवालों से रहे हैं, लेकिन बता पीछेवालों को रहे हैं। यहां उनका इशारा बीजेपी आलाकमान और उत्तर प्रदेश के दोनों डिप्टी सीएम की ओर था, जिन्हें लेकर पिछले दिनों अलग-अलग तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं।
क्या कहा था योगी ने?
बता दें कि बृहस्पतिवार को विधानसभा में दिए गए अपने संबोधन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि मैं यहां पर नौकरी करने के लिए नहीं आया हूं, अगर मुझे प्रतिष्ठा चाहिए होती तो मठ में भी मिल जाती। हम व्यवस्था बदलने आए हैं, जो गड़बड़ी करेगा वो अंजाम भुगतेगा। अखिलेश यादव ने उनके इस बयान पर टिप्पणी की है।

भड़के जॉन

निखिल आडवाणी के निर्देशन में बनी फिल्म ‘वेदा’ को लेकर खबरों में बने रहनेवाले जॉन अब्राहम से फिल्म के ट्रेलर रिलीज पर मीडिया ने ढेर सारी बातें कीं, लेकिन एक सवाल पर जॉन भड़क गए। दरअसल, एक रिपोर्टर ने उनसे पूछा, वो एक्शन फिल्मों की जगह कुछ नया क्यों नहीं करते? रिपोर्टर का सवाल जॉन को पसंद नहीं आया। उन्होंने जवाब देते हुए कहा, ‘क्या तुमने फिल्म देखी है? अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए जॉन ने कहा, ‘क्या मैं बेकार सवालों और बेवकूफों को जवाब दे सकता हूं? नहीं, मैं तो आपको केवल डायरेक्टली ये बोलना चाहता हूं कि ये फिल्म अलग है। मेरे हिसाब से तो ये बहुत इंटेंस परफॉर्मेंस है, जो मैंने दी है। जाहिर है आपने फिल्म नहीं देखी है। फिल्म देखिए आप। उसके पश्चात मैं पूरी तरह आपका हूं, आप जो भी कहें।’ आखिर में जॉन ने कहा, ‘लेकिन यदि आप गलत साबित हुए तो मैं आपको छोड़ूंगा नहीं।’