हार्दिक पंड्या ने तो इतिहास ही रच दिया है। वे ऑलराउंडर्स की टी-२० रैंकिंग में टॉप पर पहुंचने वाले पहले भारतीय बन गए हैं। टी-२० वर्ल्डकप के बाद आईसीसी ने नई रैंकिंग का एलान कर दिया है। एक तरफ आईसीसी टी-२० टीम पर टीम इंडिया के दबदबे के बाद अब ऑलराउंडर्स की लिस्ट में भी टीम इंडिया के हार्दिक पंड्या ने बाजी मार ली है। इस लिस्ट में हार्दिक पंड्या ने लंबी छलांग लगाते हुए ऑलराउंडरों की सूची में शीर्ष स्थान हासिल कर लिया है। इस साल हुए टी-२० वर्ल्डकप में हार्दिक पंड्या ने ऑलराउंड प्रदर्शन किया। हार्दिक पंड्या २२२ अंकों के साथ ऑलराउंडरों की सूची में शीर्ष पर हैं। हालांकि, हार्दिक पंड्या और श्रीलंका के वानिंदु हसरंगा के बराबर अंक है, लेकिन आईसीसी ने हार्दिक को पहले स्थान पर रखा है। हार्दिक पंड्या पहले स्थान पर हैं, उनके बाद श्रीलंका के वानिंदु हसरंगा दूसरे और ऑस्ट्रेलिया के मार्कस स्टाइनिस तीसरे स्थान पर हैं। स्टिनिस के २११ अंक हैं और जिम्बाब्वे के सिकंदर रजा २१० अंकों के साथ चौथे स्थान पर हैं।
मेहनतकश : मेहनत के बलबूते पर संवारा परिवार की जिंदगी!
अशोक तिवारी
प्रत्येक इंसान के जीवन में संघर्ष कितना महत्वपूर्ण होता है, ये वही बता सकता है, जिसने जिंदगी में कठिन संघर्ष किया हो और संघर्ष के बाद कुछ कामयाबी हासिल की है। बिहार के दरभंगा जिले के एक छोटे से गांव से मुंबई शहर में रोजी-रोटी की तलाश में आए इकबाल अंजुम शेख की कहानी भी संघर्षों से भरी हुई है। इकबाल अंजुम शेख बताते हैं कि उनके पिता जहीर अहमद दरभंगा जिले के जाले तालुका के देवरा बंदोली गांव के रहने वाले थे। इकबाल अंजुम के परिवार में तीन भाई और दो बहनें थीं। परिवार में इकबाल अंजुम सबसे बड़े थे। जब इकबाल अंजुम की उम्र मात्र १० वर्ष थी, तभी उनके जीवन में एक भयानक हादसा हुआ। इकबाल अंजुम के पिता जहीर अहमद ने उनकी मां और भाई-बहनों को छोड़कर दूसरी शादी कर ली। इसके बाद इकबाल अंजुम के परिवार पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। ऐसे में उनके मामा ने उन्हें सहारा दिया। इकबाल अंजुम की मां छोटी-मोटी नौकरी कर अपने बच्चों का भरण-पोषण करने लगीं। जैसे-तैसे मामा और मां के सहयोग से इकबाल अंजुम ने बारहवीं तक की शिक्षा बिहार से प्राप्त की। उसके बाद डीएमएलटी की डिग्री प्राप्त की। परिवार का खर्च चलाने के लिए वर्ष २००२ में इकबाल अंजुम दरभंगा जिले से मुंबई शहर आ गए। मुंबई में उन्होंने एक पैथोलॉजी लैबोरेट्री में तीन वर्षों तक असिस्टेंट के पद पर काम किया। बचपन से ही सामाजिक प्रताड़ना के शिकार हुए इकबाल अंजुम के दिल में समाजसेवा करने की प्रबल इच्छा थी। उसी इच्छा की वजह से वर्ष २००५ में उन्होंने लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ज्वॉइन किया। वर्ष २००७ में राष्ट्रीय जनता दल ने उन्हें नागपाड़ा के कमाठीपुरा से नगर निगम का चुनाव भी लड़ाया, जिसमें वो हार गए। लेकिन राजनीति में आने के बाद इकबाल अंजुम के सामाजिक कार्यों का दायरा बढ़ता चला गया। इसके बाद वो रियल स्टेट के धंधे में भी आ गए। आर्थिक आमदनी कुछ बढ़ी तो इकबाल अंजुम अपनी मां को बिहार से मुंबई शहर लेकर आ गए और अपनी मां की सेवा कर उनका कर्ज उतारने का प्रयास करने लगे। वर्ष २०१० में इकबाल अंजुम का विवाह हो गया, जिसके बाद उन्हें दो लड़के और दो लड़कियां पैदा हुर्इं। इकबाल अंजुम बताते हैं कि वर्ष २००९ में जब बिहार में भयानक बाढ़ आई तो उन्होंने मुंबई की सड़कों पर भीख मांगकर चंदा इकट्ठा किया था और बिहार सरकार को मदद के तौर पर भेजा था। मुंबई शहर में जब कोरोना की लहर थी, तब इकबाल अंजुम ने अपनी पूरी टीम के साथ दक्षिण मुंबई और मुंब्रा इलाके में जनता की भलाई के लिए अनेक वैंâप लगार्ए। इकबाल अंजुम के चारों बच्चे आज अच्छी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। उनका सपना है कि वह अपने बच्चों को उच्च शिक्षित कराकर वह मुकाम दिलाएंगे, ताकि उन्हें खुद की तरह दूसरों के सामने हाथ न फैलाना पड़े। इकबाल अंजुम मुंबई शहर की कई गैर सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं, जिनके माध्यम से वो झोपड़पट्टियों में मेडिकल कैंप इत्यादि का आयोजन करते रहते हैं।
झांकी : सुपर सीएम रिटायर
अजय भट्टाचार्य
२०१४ में नरेंद्र मोदी के केंद्र जाने के बाद गुजरात में प्रधानमंत्री की `आंख और कान’ बने रहे `सुपर सीएम’ के रूप में मशहूर नौकरशाह ७२ वर्षीय कुनियिल वैâलाशनाथन उर्फ केके ने बीते सप्ताहांत गुजरात की नौकरशाही से इस्तीफा दे दिया और मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव के रूप में अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद `स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति’ का विकल्प चुना, तो यह एक युग का अंत था। वैâलाशनाथन के जाने का असर गुजरात की नौकरशाही-खासकर आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के कामकाज पर जल्द ही महसूस होने की संभावना है। यह २००१ के अंत में था, जब मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला था, तब वैâलाशनाथन उनकी नजर में आ गए। २००६ तक वैâलाशनाथन को मुख्यमंत्री कार्यालय में नियुक्त कर दिया गया था। २०१३ में जब वे सीएमओ में अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए, तो राज्य में मोदी सरकार ने वैâलाशनाथन के लिए मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव का पद सृजित किया। पिछले ११ वर्षों में उन्हें नियमित अंतराल पर सेवा विस्तार मिलता रहा और उन्हें मोदी की पसंदीदा परियोजनाओं जैसे गिफ्ट सिटी, नर्मदा और अब गांधी आश्रम पुनर्विकास का प्रभार दिया गया। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात में उनके बाद तीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल, विजय रूपानी और भूपेंद्र पटेल आए, लेकिन वैâलाशनाथन के कद में कोई कमी नहीं आई। वैâलाशनाथन को मुख्य सचिव और कई बार मुख्यमंत्री (जिन्होंने मोदी की जगह ली) से भी अधिक शक्तिशाली माना जाता था। आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के तबादलों और पोस्टिंग में वे ही पैâसले लेते थे। उनके विचार उन मामलों पर भी मांगे जाते थे, जो उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आते थे। केके के बारे में महत्वपूर्ण बात यह थी कि वे खुद को स्थिति के अनुसार ढाल लेते थे, मौजूदा मुख्य सचिव के अनुसार अपना दृष्टिकोण बदलते थे। यदि मुख्य सचिव बहुत सक्रिय नहीं होते थे, तो वे पहल करना शुरू कर देते थे और चीजों को आगे बढ़ाते थे, लेकिन यदि मुख्य सचिव सक्रिय होते थे, तो केके पीछे हट जाते थे। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने स्वीकार किया कि वैâलाशनाथन के पास जो प्रभाव था, उसका मतलब था कि वे अक्सर शक्तिशाली लोगों के पद पर आसीन होते थे।
झारखंड सबक का असर
झारखंड लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए सबक हैं। पार्टी १४ में से १३ सीटों पर चुनाव ल़ड़ी, लेकिन ८ सीटें ही जीत पाई। एक सीट सहयोगी आजसू ने जीती, वहीं `इंडिया’ गठबंधन ने ५ सीटों पर जीत दर्ज की। इनमें ३ पर झामुमो और २ सीटें कांग्रेस जीतने में सफल रही। ऐसे में प्रदेश में राजनीतिक परिस्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं। इन ५ वर्षों में पार्टी का नेतृत्व दो पूर्व मुख्यमंत्रियों बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा के हाथ में रहा। इस लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मरांडी को आदिवासी चेहरे के तौर पर पेश किया, जबकि केंद्र में अर्जुन मुंडा को कृषि जैसा मंत्रालय दिया। लेकिन दोनों पूर्व मुख्यमंत्री आदिवासियों के लिए रिजर्व ५ में से एक भी सीट पर जीत नहीं दिला सके। लिहाजा, आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी किसी स्थानीय चेहरे पर नहीं, बल्कि पार्टी के मुख्य प्रचारक नरेंद्र मोदी के चेहरे पर मैदान में उतरेगी। अगर बहुमत मिला तो पार्टी राजस्थान, मध्य प्रदेश और ओडिशा की तरह किसी कम लोकप्रिय चेहरे को यह जिम्मेदारी सौंप सकती है। खूंटी से डेढ़ लाख मतों से हारे अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी चुनाव लड़ेंगे, ये भी तय है, क्योंकि पार्टी आदिवासी नेताओं को दरकिनार नहीं कर सकती। मुख्यमंत्री के चेहरे की बजाय पार्टी, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा की रणनीति पर काम कर इस बार सत्ता में वापसी करना चाहेगी। लोकसभा चुनाव में हार के बाद राज्य अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की रणनीति भी सवालों के घेरे में है। दुमका से सीता सोरेन ने हार के बाद पार्टी के कई नेताओं पर भीतरघात करने का आरोप लगाया। प्रदेश में ५ सीटों पर हार के लिए पैराशूट उम्मीदवार उतरना महंगा पड़ा, क्योंकि ऐसे उम्मीदवारों को पार्टी उतना समर्थन नहीं देती, जितना पार्टी के नेताओं को देती है। दुमका के अलावा लोहारदग्गा, सिंहभूम, खूंटी समेत कई लोकसभा क्षेत्रों में भीतरघात की शिकायतें सामने आई हैं। एक खबर यह भी है कि पार्टी इस बार रघुवर दास को फिर से विधानसभा चुनाव में उतार सकती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)
तड़का : वक्त ने बदला हाथी
कविता श्रीवास्तव
केरल में त्रिवेंद्रम स्थित वेंगनूर के सुप्रसिद्ध पूर्णमिकावु मंदिर में पूर्णिमा पर गजराज हाथी को आभूषणों-फूलों से सजा-धजा कर धूमधाम से उत्सव मनाने की परंपरा है, पर इस बार मंदिर में असली हाथी नहीं दिखेंगे। उनकी जगह ली है एकदम असली जैसा दिखने वाले रोबोटिक हाथी `बलधासन’ ने, जिसे पशु-अधिकार संगठन `पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स’ (पेटा) इंडिया ने बनवाकर मंदिर को सौंपा है। `द केरल स्टोरी’ फिल्म की अभिनेत्री अदा शर्मा के साथ `पेटा’ की टीम ने यह काम जीवित हाथी का इस्तेमाल रोकने के उद्देश्य से किया है। असली हाथी जंगलों में मस्त रहे। वह प्रताड़ित सा महसूस न करे। साथ ही धार्मिक, पारंपरिक कार्यक्रम भी प्रभावित न हो, यही भाव लेकर यांत्रिक हाथी का निर्माण हुआ है। वर्षों से असली हाथी देखने की बजाए अब यह अद्भुत इलेक्ट्रॉनिक हाथी को देखने के लिए भीड़ उमड़ रही है। यह हमारी धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए प्राणी संरक्षण की दिशा में उठाया गया सकारात्मक कदम है। यह विकसित दुनिया के साथ चलने का क्रांतिकारी कदम है। पुराने रीति-रिवाजों को आधुनिकता में बदलने की यह तरकीब है, जो विकास की ओर ले जाती है। तिरुवनंतपुरम में पूर्णमिकावु मंदिर पूर्णिमा पर ही खुलता है, इसीलिए वहां उस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते हैं। देश में ऐसे अनेक स्थान हैं, जहां पूजा-पाठ ही नहीं अनेक परंपराएं हैं, जिनमें प्राणियों का उपयोग वर्षों से हो रहा है। प्राचीन युग में ग्रामीण सभ्यता में यह सब चल जाता था, लेकिन आज के आधुनिक युग में प्राणियों की सुरक्षा के लिए लोग जागरूक हुए हैं। बदलते युग के साथ हर चीज बदलती रहती है और बदल ही रही है। अब अनेक मंदिरों में डोनेशन, पूजा-पाठ, अनुष्ठान आदि ऑनलाइन हो रहे हैं। दर्शन भी ऑनलाइन होने लगे हैं। प्रसाद भी ऑनलाइन मिलने लगे हैं। डिजिटल युग में यह सब संभव हुआ है। श्रद्धा और भाव में बदलाव नहीं होनी चाहिए। आस्था बनी रहनी चाहिए। संस्कार अपनाने चाहिए। यही सामाजिक मान-मर्यादाएं टूटनी नहीं चाहिए। यदि जीवित हाथी की जगह पर यांत्रिक हाथी से परंपराओं को कायम रखा जा सकता है, तो यह निश्चित ही सराहनीय बदलाव है। विकसित सोच और आधुनिक युग के बढ़ते कदम का प्रयास है। यह सामाजिक सहयोग और शासन-प्रशासन की सहमति से पूरी होती है तो वाकई प्रशंसनीय है। केरल में हाथियों की संख्या भी अच्छी-खासी है। हमने देखा है कि हाथी कई बार भीड़ को देखकर क्रोधित हो जाते हैं और अनर्थ भी हो जाता है। उनका स्थान वन में है तो उन्हें वहीं रहने देना बेहतर है। खुशी की बात है कि प्राणी संगठन ने अन्य स्थानों पर भी उपयोग हो रहे जानवरों की जगह यांत्रिक जानवर उपलब्ध कराने की तैयारी की है। पारंपरिकता में बदलाव की इस पहल का हर जगह स्वागत हो रहा है। बदलते वक्त के साथ यह बदलाव भी जरूरी है।
सटायर : गैस-हवा, हवा
डॉ. रवींद्र कुमार
स्कूल में हमें अलग-अलग गैस के गुण पढ़ाए गए थे। गैस वह होती है, जो हवा-हवा होती है। गंध कैसी होती है? रंग कैसा होता है? उसकी तासीर क्या होती है? ज्वलनशील होती है अथवा नहीं? इत्यादि-इत्यादि, तभी का याद है कि हमारे वायुमंडल में ७८ प्रतिशत नाइट्रोजन है और मात्र २१ प्रतिशत ऑक्सीजन होती है, जिस पर हम जीते हैं शान से…मरते हैं शान से।
इसी शृंखला में होती है एक लिक्विफाइड पैट्रोलियम गैस (एल.पी.जी.) बोले तो कुकिंग गैस। कुकिंग गैस तक आने में हमें एक उम्र लगी है। एक रात में नहीं पहुंचे हैं यहां तक। पहले चूल्हे जलाए जाते थे। लकड़ी खरीदी जाती थी। जलाई जाती थी। लकड़ी, लकड़ी की टाल से खरीद कर लाई जाती थी। घर में स्टोर की जाती थीं और चूल्हे के अनुरूप छोटी-छोटी तोड़ी जाती थीं, फिर आई अंगीठी, जिसमें कोयला और लकड़ी दोनों एक निश्चित अनुपात में जलाए जाते थे। उसके बाद मॉडर्न लोग स्टोव ले आए, जिसमें वैâरोसीन और हवा भरनी पड़ती थी। स्टोव शोर खूब करता था।
कैरोसीन की बहुत मारामारी रहती थी। डिब्बों में और बोतल में दुकान से लाना पड़ता था। यूं कैरोसीन को मिट्टी का तेल कहा जाता था, पर यह अच्छा-खासा महंगा बिकता था और आसानी से मिलता भी नहीं था। किल्लत रहती थी। बहुत जगह राशन में मिलता था। पांच-दस पैसे बढ़ते ही बावेला मच जाता था।
तब किसी-किसी के घर पर ही गैस होती थी। गैस यूं ही नहीं मिल जाती थी। वेटिंग लिस्ट होती थी। वी.आई.पी. कोटा होता था। दो-एक बड़ी कंपनी ही गैस बनाती थीं, आवंटित करती थीं, सप्लाई करती थीं। गली-गली ठेले गैस के सिलिंडर लाते-ले जाते देखे जा सकते थे। स्कूटर पर उसे ढंक कर ले जाते थे, क्योंकि इस प्रकार से ले जाना मना था। गैस लाने वाले को टिप देने का रिवाज था। एक-दो रुपया काफी होता था। इसमें दो-तीन तरह के स्वैâम भी चलते थे:
१. सिलिंडर में वजन से कम गैस होना। गैसकर्मी एक-दो सिलिंडर से तीसरा नया सिलिंडर भर देता था। इसका पोर्टेबल जुगाड़ भी वह रखता था। कहीं-कहीं लोग तंग आकर वजन तोलने वाली मशीन घर में रखने लगे थे, मगर आखिर कितने घर में ऐसी मशीन थीं।
२. यदि आपकी गैस खत्म हो जाए तो अर्जेंट बेसिस पर आपको सिलिंडर मिल जाता था। थोड़ा ‘ब्लैक’ में पैसा देना पड़ता था। इसका ‘एंटीडोट’ ये निकाला गया कि लोग दो सिलिंडर रखने लगे, मगर फिर वही बात कि कितने लोग ये ‘एफोर्ड’ कर सकते थे।
३. जिससे आप गैस लेते थे, वह आपको चूल्हा भी बेचता था। चूल्हा बेचने में ज्यादा प्रॉफिट था। यदि आप गैस वाले से चूल्हा खरीदने में ना-नुकुर करते थे तो गैस वाले भी सिलिंडर देने में हील-हवाला करते थे।
फिर आई पाइप वाली गैस, लेकिन वह आज भी कहीं-कहीं ही है। बहुत कम इलाकों/शहरों में पाई जाती है। चुनाव में गैस के सिलिंडर ने खूब भूमिका निभाई है। एक दल कहता है कि हम ५००/- का देते थे, अब सरकार १,१००/- का दे रही है। हमें दोबारा सत्ता में लाओ, हम फिर ५००/- का कर देंगे, फिर बयान आया हम ३५०/- का कर देंगे। ऐसा करते-करते एक ऐसी स्टेज आएगी और मैं उस दिन का ही इंतजार कर रहा हूं, जब एक पार्टी कहेगी हम प्रâी में देंगे और दूसरी पार्टी कहेगी कि हम सिलिंडर के साथ आपको ५००/- ऊपर से देंगे। आखिर गैस भी तो ऊपर ही जाती है न।
हवा हवा, ऐ हवा, खुशबू लुटा दे….
नोट: मैं एक शहर में ट्रांसफर पर गया तो अगली सुबह स्टाफ मेरा हाल-चाल पूछने आया। मैंने बताया ‘गैस की प्रॉबलम है! `एक स्टाफ ने तुरंत कहा ‘सर! मेरे पास दो सिलिंडर हैं’ तब मैंने उन्हें समझाया ‘मैं अपने पेट की गैस की बात कर रहा हूं।’
अवधी व्यंग्य : उधारी-महिमा
एड. राजीव मिश्र
मुंबई
यहि दुनिया मा सबसे बड़ी कला उधारी मांगे के है। वइसे तो अदमी वक्त जरूरत पर ही उधारी मांगत है, पर कुछ लोग अइसनव होत हैं जेहिके उधारी से काम करय में अलगइ आनंद आवत है। लगभग हर गांव में एक दुइ लोग उधारी मांगय मा माहिर होत हैं। उनके पास एक से बढ़िके एक बहानव होत है। अउर तो अउर उधारी मांगय के समय पता नहीं कहां से अस उदासी अउर मजबूरी लपेटत हैं कि भइया पाथर भी मोम होइके टेहकि जाय। अब अईसने गांव के एक धुरंधर उधारीखोर मनई अपने मित्र किहां पहुंचे, पहुंचतय खटिया पे अइसन पसरे कि मित्र के करेजा मुंह के आइ गवा। का भवा भइया चुनमुन? अरे कुच्छउ न पूछो बनवारी, कुछ समझि नही परत है कि का अउर कैइसे करी। पर भवा का कुछ बतइहौ तबै ओहि समस्या के निदान होइ न। का बताई भइया, कल हमरे बड़कना के स्कूल में नाम लिखावे के है अउर हमरा चेक पास नहीं भवा उही टेंशन के टिटवाला हुइ गवा है। तो भइया चेक कब डारो है बैंक मा? चेक तो चार दिन पहिले डारा है भइया, पर बैंक वाला बाबू कुछ बतावे के तैयार नहीं है अब समझ में नही आवत है का करी। देख लेव का पता आज पास होइ जाय। अरे भइया बनवारी अगर आज नहीं पास भवा तो हमरे लड़िका के जिनगी खराब होइ जाई। हम का कहत हैं बनवारी! तुम हमका अबहीं ५ हजार रुपिया देइ देव, जइसय हमरा चेक पास होइ पइसा वापिस कइ देब। अइसा है चुनमुन थोड़ा देर पहिले आय होते तो हम ५ नहीं ५० हजार देइ देइत पर तोहरे आवय के पहिले ट्रैक्टर के क़िस्त जमा करे बदे भेज दिहिन। अरे बनवारी सुबह आठ बजे कवन बैंक किस्त जमा करत है भइया? जवन बैंक मा तुम्हरा चार दिन से चेक नहीं पास भवा है उहै बैंक सुबह आठ बजे किस्त जमा करत है। कुच्छउ न होइ पाई का? देखो हजार-पांच सौ कही परा होय जेब मा? नहीं है भइया सच्ची कहत हैं जहर खाये भर के पइसा नही है। अइसा करो बनवारी! हमरी जेब मा पचास रुपिया है चाहो तो जहर मंगाय लेव? बनवारी खटिया के पास रखी लाठी की ओर गुस्से से जइसे देखें चुनमुन चुप्पय उठिके चौपाल की ओर निकरि परे।
दक्षिण मुंबई में यूनिवर्सल फाउंडेशन ने किया वृक्षारोपण
सामना संवाददाता / मुंबई
राष्ट्रीय वृक्षारोपण सप्ताह के अवसर पर यूनिवर्सल फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. पद्माकर नांदेकर ने कफपरेड में मरीना बीच के पास बड़ी संख्या में वृक्षा रोपण किया। उनके साथ संस्था के अन्य लोगों के साथ स्थानीय पुलिस ने भी इस मामले में आगे आकर सहयोग किया।
बता दें कि डॉ. पद्माकर नांदेकर को मानद डॉक्टरेट पुरस्कार परिषद द्वारा मीडिया और वित्त में मानद डॉक्टरेट (पीएचडी) से सम्मानित किया गया है। यह प्रतिष्ठित सम्मान मीडिया, वित्त और व्यापक व्यावसायिक परिदृश्य में उनके उत्कृष्ट योगदान का सराहता है। क्षेत्र में सामाजिक कार्य और हरित क्षेत्र विकास में पद्माकर ने काफी काम किया है। समाज सेवा से जुड़कर इन्होंने कई लोगों को आर्थिक व सामाजिक स्तर पर मदद पहुंचाई है। क्षेत्र में हरित क्षेत्र बरकरा रखने के लिए बड़े पैमाने पर कार्यक्रम भी चलाते हैं।
डॉ. पद्माकर ने कहा कि मीडिया और वित्त में मेरे योगदान के लिए पहचाना जाना सम्मान की बात है। मैं विभिन्न क्षेत्रों में सकारात्मक प्रभाव डालने के अवसरों के लिए आभारी हूं और अपने सभी प्रयासों में उत्कृष्टता के लिए प्रयास करना जारी रखूंगा।
पिछले वर्ष उन्हें मुंबई के राजभवन में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार प्राप्त हुआ था। इस वर्ष की शुरुआत में भी डॉ. नांदेकर को आइकॉनिक JIO बॉलीवुड लाइफ एंड वेल्थ कोच अवार्ड मिला था। इस पुरस्कार ने बॉलीवुड उद्योग के भीतर जीवन कोचिंग और धन प्रबंधन पर उनके उत्कृष्ट प्रभाव का जश्न मनाया।
`हंसता बचपन’ का हुआ लोकार्पण
सामना संवदाददाता / मुंबई
रविवार 30 जून को हिंदी साहित्य भारती एवं प्रतीक पब्लिकेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित रीता अमर कुशवाहा द्वारा सृजित बाल-कृति “हंसता बचपन” का भव्य लोकार्पण महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे, डॉ. कृष्ण कुमार मिश्र (वैज्ञानिक, होमी भाभा विज्ञान केंद्र), आईपीएस सूर्यकांत त्रिपाठी (डीसीपी वाराणसी), आईपीएस ब्रजेश कुमार मिश्र (एसपी, सुल्तानपुर पुलिस प्रशिक्षण केंद्र), डॉ. डी. एस. मिश्र (अध्यक्ष, रेडक्रॉस सोसायटी), डॉ. सुशील एस. सावंत (प्रख्यात त्वचारोग विशेषज्ञ), डॉ. ममता झा (हिंदी विभागाध्यक्ष, एनएम कॉलेज), मीना चतुर्वेदी (वरिष्ठ साहित्यकार, वाराणसी), यज्ञ नारायण दुबे (संस्थापक पब्लिक हाई स्कूल), प्राचार्य (पब्लिक हाईस्कूल, वाकोला) के करकमलों से किया गया। इस अवसर पर परमार्थ ट्रस्ट के ट्रस्टी संतोष पाण्डेय, प्रख्यात शायर व गजलकार संतोष सिंह, अंजनी द्विवेदी, बी. एन. पाण्डेय, अमर कुशवाहा कार्यक्रम का संचालन डॉ. वर्षा महेश और धन्यवाद ज्ञापन प्रतीक पब्लिकेशन के प्रशासक एड. राजीव मिश्र द्वारा किया गया।
हाथरस दुर्घटना : राजनैतिक दल ने बाबा को दोषी नहीं माना…विपक्ष ने सरकार को जिम्मेदार बताया
-महिला आयोग ने की बाबा के गिरफ्तारी की मांग!
मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाथरस में हुए हादसे की बहुत दर्दनाक और दुःखद बताया है। उन्होंने कहा कि हादसे को लेकर हमें और हमारी पार्टी को बहुत दुःख है। जिन लोगों की जान गयी है, उनके परिजनों के प्रति गहरी संवेदना है। इस घटना में पूरी सरकार और प्रशासन की लापरवाही है। सरकार और प्रशासन को पता है कि जब कभी इस तरह के कार्यक्रम होते हैं, बड़ी संख्या में लोग आते हैं। सरकार के पास जानकारी थी उसके बावजूद जरूरी इंतजाम नहीं किए गए। लापरवाही की वजह से जो जानें गई हैं, उसकी जिम्मेदार सरकार है। जानें बच सकती थीं, लेकिन सरकार एम्बुलेंस और गाड़ियों की व्यवस्था नहीं कर पाई, जो घायल इलाज के लिए अस्पताल पहुंचे, उन्हें पर्याप्त इलाज नहीं मिला। न दवाएं मिलीं न ऑक्सीजन मिली। लोगों को बचाने का कोई इंतजाम नहीं था। इस सबके लिए भाजपा सरकार जिम्मेदार है। भाजपा सरकार दुनिया में विश्व गुरु बन जाने की बात करती है।
बड़े-बड़े दावे करती है कि दुनिया में भारत पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गयी, तीसरी अर्थव्यवस्था बनने जा रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि यह सरकार आपात स्थिति में लोगों को ठीक से इलाज नहीं दे सकती। लोगों को कोई सुविधा नहीं दे सकती। भाजपा सरकार ने पूरा सिस्टम बर्बाद कर दिया है। यह कैसी अर्थव्यवस्था है, जहां न अस्पताल है न दवाई है। न इलाज और न ऑक्सीजन है। भाजपा सरकार के सभी दावे झूठे हैं। इस सरकार में झूठ और लूट के अलावा कुछ नहीं है। भ्रष्टाचार चरम पर है। हर विभाग और हर जगह भ्रष्टाचार है।
हाथरस सत्संग में अगर अनुमति 50 हजार लोगों के पहुंचने की थी, लेकिन अगर ज्यादा लोग आये तो प्रशासन क्या कर रहा था? रोका क्यों नहीं? अगर ज्यादा संख्या में लोग आ रहे थे तो प्रशासन ने फोर्स क्यों नहीं बढ़ायी? बैरिकेडिंग क्यों नहीं बढ़ायी? बैरिकेडिंग क्यों नहीं की। सरकार की जिम्मेदारी थी। सरकार अपनी जिम्मेदारी दूसरों पर न डालें। उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने हाथरस दुर्घटना में घायल हुए लोगों से मुलाकात की। बीते दिन हाथरस में आयोजित सत्संग में 121 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं 28 लोग घायल हो गए थे।
हाथरस हादसे पर राष्ट्रीय महिला आयोग की प्रमुख रेखा शर्मा ने कहा कि नारायण हरि साकार जो भी हो। उसने एक गैरकानूनी गतिविधि की है। मुझे लगता है कि उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी चाहिए। तत्काल ही गिरफ्तार किया जाना चाहिए। साथ ही पता लगाया जाए कि आखिर ये सब किसके कहने पर हो रहा था। इसके पीछे की क्या योजना थी। हाथरस दुर्घटना पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और पीएम नरेंद्र मोदी को शोक संदेश भेजा है।
शोक संदेश में पुतिन ने लिखा है कि हाथरस में हुई दुर्घटना में घायल लोग जल्द ही ठीक हो जाए। इस दुखद दुर्घटना पर हमारी गहरी संवेदनाएं हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा, ‘हाथरस, उत्तर प्रदेश में सत्संग के दौरान भगदड़ की वजह से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की मृत्यु एवं कई के घायल होने का समाचार हृदयविदारक है। ईश्वर दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करें। शोक-संतप्त परिजनों के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं। घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करती हूं। राज्य सरकार से मेरी अपील है कि पीड़ितों को उचित मुआवजा देने एवं घायलों के उपचार की व्यवस्था की जाए।’
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाथरस के हादसे पर कहा, ‘इस पूरी घटना की तह तक जाने के लिए शासन स्तर पर हमने कल भी व्यवस्था बनाई थी, लेकिन हमारी प्राथमिकता राहत-बचाव कार्य थी। इस हादसे में 121 श्रद्धालुओं की मृत्यु हुई, जो उत्तर प्रदेश के साथ-साथ हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश से जुड़े हुए थे।’ ‘सीएम ने कहा, ‘इस कार्यक्रम में जो सज्जन अपना उपदेश देने आए थे, उनकी कथा संपन्न होने के बाद उनके मंच से उतरने के पर, उन्हें छूने के लिए महिलाओं का एक दल आगे बढ़ा, तभी उनके पीछे एक भीड़ गई।
इसी दौरान वे एक-दूसरे के ऊपर चढ़ते गए। सेवादार भी लोगों को धक्का देते रहे, जिसके कारण यह हादसा हुआ। इस पूरी घटनाक्रम के लिए एडीजी आगरा की अध्यक्षता में एक एसआईटी गठित की गई है, जिसने प्रारंभिक रिपोर्ट सौंपी है। कई पहलू हैं, जिन पर जांच होना आवश्यक है।’ योगी ने कहा कि इस पूरे हादसे में उत्तर प्रदेश के साथ साथ हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश से भी जुड़े हुए थे। वहीं प्रदेश में हाथरस, बदायूं, कासगंज, अलीगढ़, एटा, ललितपुर, फैजाबाद, आगरा जनपद के लोग शामिल हैं। हाथरस के जिला अस्पताल में कई लोगों का इलाज चल रहा है।
बाबा को भाजपा पर बचाने का आरोप…हाथरस से भागकर मैनपुरी वाले आश्रम में छिपा था
रमेश ठाकुर / नई दिल्ली
हाथरस भगदड़ मामले में हुई पहली एफआईआर में बाबा सूरजपाल का नाम नहीं है, सिर्फ उनका मुख्य आयोजक वेदप्रकाश मधुकर नामजद है। बाबा और वेदप्रकाश दोनों फरार हैं। दोनों आरोपी हैं, इसकी पूरी जानकारी पुलिस के पास है। लेकिन हाथ नहीं डाल रही, तभी विपक्षी दलों ने प्रदेश सरकार और भाजपा पर बाबा को बचाने का आरोप लगाया है। आरोप इसलिए भी सच साबित होते हैं। भक्त जब पैरों तले कुचले जा रहे थे, तब बाबा अपने काफिले के साथ भागने की फिराक में था और मौका पाते ही मैनपुरी वाले बिछुआ आश्रम में भाग गया, जहां उनकी आखिरी लोकेशन मिली है। वहां पहुंचकर उसने अपना फोन बंद किया। सूचना पर स्थानीय पुलिस का एक डीएसपी उनके आश्रम गया, करीब घंटे भर अंदर रहा। डीएसपी का इंतजार बाहर मीडियाकर्मी कर रहे थे। जब वह बाहर निकले तो पत्रकारों से बोले, ‘बाबा अंदर नहीं हैं, जबकि बाबा अंदर ही था। लोगों ने देखा कि बुधवार तड़के आश्रम से भाजपा का झंडा लगी पांच-सात कारें बाहर निकलीं। चर्चा है कि बाबा उन्हीं में बैठा था।
भागने के बाद बाबा ने आश्रम के करवाए सभी गेट बंद
मैनपुरी का बिछुआ आश्रम 21 बीघे में फैला हुआ है। आश्रम में बाबा लग्जरी लाइफ जीता है। प्रत्येक सुविधाएं हैं। बाबा भागकर जब वहां पहुंचा, तो सबसे पहले उसने आश्रम के गेट बंद करवाए। स्थानीय प्रशासन को बोलकर आश्रम के चारों ओर पुलिस फोर्स तैनात करवा ली। सूत्र बताते हैं कि बाबा आधी रात हाथरस से आश्रम पहुंचा था।
गिरफ्तार किया जाए बाबा-महिला आयोग
दिल्ली से राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा रेखा शर्मा भी बुधवार को अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचीं। घटना का मुआयना, अस्पताल में भर्ती घायलों का हालचाल जाना। हादसे में जान गंवाने वाले 125 लोगों में 114 महिलाएं हैं। रेखा शर्मा ने कहा कि बाबा और उनके सेवादारों के ऊपर पांच-पांच लाख रुपए का इनाम घोषित हो, ताकि जल्द गिरफ्तार किए जाए। उन्होंने कहा कि ये बाबा नहीं, शातिर दिमाग का कोई अपराधी दिखता है। बाबा पर पहले से ही बलात्कार का आरोप है। कई साल उसने उत्तर प्रदेश पुलिस में काम भी किया था।