गंगा स्नान में `मौत’ से सामना! …जलस्तर बढ़ने से ऋषिकेश में गंगा नदी के बीच फंसे १०० श्रद्धालु बाल-बाल बचे

महाशिवरात्रि के अवसर पर ऋषिकेश के जानकी झूला घाट पर गंगा स्नान करने पहुंचे हरियाणा के १०० से अधिक श्रद्धालु अचानक बढ़ते जलस्तर के कारण बीच नदी में फंस गए। जब उन्होंने खुद को घिरा पाया तो घबराकर मदद के लिए चिल्लाने लगे। श्रद्धालुओं की चीख-पुकार सुनकर जानकी घाट के पास तैनात जल पुलिस ने तुरंत रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया और सभी को सुरक्षित बाहर निकाला। घटना शुक्रवार रात की है, जब गंगा का जलस्तर अचानक बढ़ गया और श्रद्धालु टापू पर फंस गए। सोशल मीडिया पर इस घटना का एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें श्रद्धालुओं को बचाने के लिए जल पुलिस का साहसिक प्रयास साफ देखा जा सकता है।
मुनि की रेती थाना पुलिस के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन हरियाणा से श्रद्धालु ऋषिकेश पहुंचे थे और गंगा का जलस्तर कम देखकर वे बीच नदी में स्थित टापू पर स्नान करने चले गए। कुछ समय बाद टिहरी बांध से पानी छोड़े जाने के कारण गंगा का जलस्तर अचानक बढ़ गया, जिससे श्रद्धालु टापू पर फंस गए और मदद के लिए चिल्लाने लगे। मुनि की रेती थाना इंस्पेक्टर प्रदीप चौहान ने बताया कि जैसे ही जल पुलिस को इस घटना की जानकारी मिली, वे तुरंत मौके पर पहुंचे। जल पुलिस के जवान राजेंद्र सिंह, रवि राणा, विदेश चौहान, पुष्कर रावत और महेंद्र चौधरी ने अपनी जान जोखिम में डालकर श्रद्धालुओं को सुरक्षित बाहर निकाला।

हिमाचल में फटा बादल, बहीं गाड़ियां
हिमाचल प्रदेश में मूसलाधार बारिश के बीच कांगड़ा जिले में बादल फटा है और किन्नौर, कुल्लू व चंबा में नुकसान की खबरें हैं। कुल्लू में भंयकर बारिश के चलते नदी-नाले उफान पर हैं और कई गाड़ियां बह गर्इं हैं जबकि भुंतर सब्जी मंडी डूब गई है। वहीं, मंडी जिले के ओट में भारी लैंडस्लाइड के कारण चंडीगढ़-मनाली हाईवे बंद है।

सिर्फ अमेरिका ही नहीं, सऊदी अरब के लिए भी डंकी रूट … बॉर्डर पर बुलेट व बलात्कार का टॉर्चर! …बड़े पैमाने पर घुसपैठ करते रहे हैं इथोपियाई

हाल के दिनों में अमेरिका में शरण लेने की चाह में डंकी रूट अपनाने वालों और अवैध प्रवासियों को डिपोर्ट करने की खबरें सुर्खियों में रही हैं। अमेरिका ऐसा अकेला देश नहीं है, जहां बसने या रोजगार की चाहत में जाने के लिए लोग डंकी रूट अपनाते हैं। दुनियाभर के मुस्लिमों के लिए सऊदी अरब भी अमेरिका से कम नहीं है। वहां भी बड़े पैमाने पर मुस्लिम और अन्य धर्मों के लोग रोजगार के लिए जाना पसंद करते हैं। कुछ वैध वीजा लेकर वहां जाते हैं, जबकि कुछ लोग अवैध तरीके से डंकी रूट अपनाकर वहां पहुंचते हैं।
पूर्वी अप्रâीकी देश इथोपिया से बड़े पैमाने में लोग डंकी रूट के जरिए यमन की सीमा के सहारे सऊदी अरब में घुसपैठ करते रहे हैं। इस दौरान उन्हें सीमा पर गोलियां तक खानी पड़ती हैं। कई बार कई महिलाओं को बलात्कार की असहनीय पीड़ा भी झेलनी पड़ती है, बावजूद वे सऊदी अरब नहीं पहुंच पातीं। कुछ लोग तो रास्ते में दम तोड़ देते हैं, जबकि कुछ सीमा पर सऊदी सुरक्षा बलों की गोली का शिकार हो जाते हैं। एक ऐसे ही इथोपियाई नागरिक, जो अवैध प्रवासी बनने की चाहत में यमन सीमा पर सऊदी सुरक्षा बलों की गोली का शिकार हुआ, ने कहा कि रास्ता बहुत भयानक था। रास्ते में कई सड़ी-गली लाशें थीं और जब यमन-सऊदी की सीमा पर पहुंचे तो वहां सऊदी बलों की गोलियां खानी पड़ीं, जिसमें एक पैर गंवाना पड़ा। उसके साथ दर्जनों लोग सऊदी के नजरान प्रांत में रात के अंधेरे में घुसने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन दूसरी तरफ से भयानक गोलीबारी होने लगी।

उड़ता तीर : खराब लतीफे का जवाब अच्छा लतीफा है…

विजय कपूर

सुप्रीम कोर्ट का डंडा
ऐतिहासिक निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने २५ फरवरी २०२५ को बिहार विधान परिषद के २६ जुलाई २०२४ के पैâसले को पलट दिया है, जिसके तहत राजद के नेता सुनील कुमार सिंह को सदन से बर्खास्त कर दिया था; क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नकल (मिमिक्री) उतारते हुए उनका मजाक उड़ाया था। न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायाधीश एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने सदन के फ्लोर पर और एथिक्स कमेटी के समक्ष राजद के मुख्य व्हिप सुनील कुमार सिंह के आचरण की कड़ी आलोचना की, लेकिन उनको दी गई सजा को ‘अत्यधिक व असंगत’ घोषित करते हुए उनकी बर्खास्तगी को निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सुनील कुमार सिंह की सदन की सदस्यता तो बहाल कर दी है, लेकिन निलंबन अवधि के दौरान का वेतन या कोई अन्य आर्थिक लाभ उन्हें नहीं दिया जाएगा। गौरतलब है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एमएलसी की बर्खास्तगी के कारण रिक्त हुई सीट के लिए चुनाव आयोग द्वारा उपचुनाव कराने के फैसले पर रोक लगा दी थी।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह इस सिद्धांत कि सजा अपराध से असंगत नहीं होनी चाहिए, में और सदन में शिष्टाचार व उचित आचरण की आवश्यकता में संतुलन स्थापित करता है। खंडपीठ ने कहा, ‘संसद या विधानसभा की कार्यवाही के दौरान आक्रामकता व बदतमीजी के लिए कोई जगह नहीं है। सदस्यों से उम्मीद की जाती है कि वह एक-दूसरे का पूर्ण आदर व सम्मान करें। यह उम्मीद मात्र परंपरा या औपचारिकता ही नहीं है बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की प्रभावी कार्यवाही के लिए जरूरी भी है। इससे डिबेट्स व चर्चाओं का उत्पादक होना सुनिश्चित होता है, फोकस मुद्दे पर ही रहता है और कार्यवाही संस्था की गरिमा के अनुरूप संचालित होती है’। सुप्रीम कोर्ट द्वारा बिहार के एमएलसी की बर्खास्तगी को निरस्त करना न केवल उचित है बल्कि इसके विस्तृत प्रभाव होने जा रहे हैं। अदालत का कहना है कि सजा ‘प्रतिकार’ का औजार नहीं है। यह बात केवल वर्तमान न्यायिक संदर्भ में ही प्रासंगिक नहीं है, बल्कि संपूर्ण राजनीति व सरकारों के लिए उचित है। यह सही है कि सुनील कुमार सिंह का सात माह से अधिक बर्खास्त रहना असाधारण था कि चुनाव आयोग ने उनकी रिक्त सीट पर उपचुनाव भी घोषित कर दिया था, जिस पर अदालत ने रोक लगाई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के अनुसार उनका आचरण ‘घिनौना’ था और ‘परिषद के सदस्य के अनुरूप न था’।
राजनीतिक वार्ता में पतन
सच में, एक प्रकार का भौंडापन राजनीतिक वार्ता में आ गया है, जो बिना रोक-टोक निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। यह पतन संसद से लेकर विधानसभाओं तक जग जाहिर है।
बिहार के एमएलसी द्वारा की गई टिप्पणी से अधिक भद्दी, वीभत्स व वास्तव में आपत्तिजनक बातें संसद और विधानसभाओं में की जाने लगी हैं और किसी के कान पर जूं नहीं रेंगती। यही वजह है कि अत्यधिक वीभत्स टिप्पणी, विशेषकर महिलाओं के खिलाफ, करने के बावजूद आज तक किसी सांसद या विधायक के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं हुई है। चर्चाओं का स्तर कितना गिर गया है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछली लोकसभा का जब नए संसद भवन में पहले विशेष सत्र हुआ था तो दक्षिण दिल्ली से बीजेपी के सांसद रमेश बिधूड़ी ने अमरोहा से बसपा सांसद दानिश अली के विरुद्ध जिस अपमानजनक व आपत्तिजनक भाषा बल्कि गालियों का प्रयोग किया था, वह वास्तव में हेट स्पीच के दायरे में थी। रमेश बिधूड़ी की इस अशोभनीय हरकत से संसद की गरिमा को तो ठेस पहुंची ही थी, पूरा देश भी शर्मसार हुआ था, लेकिन इससे भी अधिक निंदनीय यह था कि जिस समय रमेश बिधूड़ी हाउस के फ्लोर पर अपशब्दों का प्रयोग कर रहे थे तो उन्हें चुप कराने की बजाय बीजेपी के दो वरिष्ठ सांसद व पूर्व मंत्री रविशंकर प्रसाद व डॉ. हर्षवर्धन न सिर्फ हंस रहे थे बल्कि डेस्क थपथपा कर उन्हें प्रोत्साहित कर रहे थे। भारत के संसदीय इतिहास में रमेश बिधूड़ी की यह शर्मनाक हरकत अप्रत्याशित है, लेकिन अफसोस! रमेश बिधूड़ी के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं हुई थी।
हास्य व्यंग्य गायब
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने अब कहा है कि सदन के अंदर बोलने के अधिकार का अर्थ यह नहीं है कि साथी सदस्यों, मंत्रियों या चेयर का अपमान किया जाए, उन्हें नीचा दिखाया जाए या उन्हें बदनाम किया जाए। यहां यह बताना आवश्यक है कि सदन में जो कुछ कहा जाता है, उसे अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। अलबत्ता उसे स्पीकर के आदेश से सदन की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग से निकाला जा सकता है। वैसे सदन की चर्चाओं व डिबेट्स में जो पतन आया है, उसका सबसे दुखद पहलू यह है कि राजनीति से हास्य-व्यंग्य की कला लुप्त हो गई है। एक समय था, जब सदन में सदस्य अच्छी भावना से एक-दूसरे की चुटकी लिया करते थे और अगले दिन के अखबार में वह बॉक्स आइटम बन जाया करती थी। मजाक, हास्य-व्यंग्य के यह बेतकल्लुफ बाण केवल सदन में ही नहीं चलते थे बल्कि अखबारों में कार्टूनिस्ट और व्यंग्यकार भी चलाया करते थे। शंकर या लक्ष्मण जब सरकार पर कोई गहरा व्यंग्य बाण अपने कार्टूनों में चलाते थे तो पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वयं उन्हें फोन करके उनकी कला की प्रशंसा किया करते थे। हरिशंकर परसाई, केपी सक्सेना, दिलीप सिंह या फिक्र तौंसवी जैसे व्यंग्यकारों को कोई सियासतदां अपना दुश्मन नहीं समझता था। सदन में भी गंभीर चर्चाओं के दौरान पक्ष व विपक्ष में दिलचस्प व आलोचनात्मक मजाक हो जाया करता था, जिसका हर कोई आनंद लिया करता था, बुरा मानने की तो बात ही न थी।
वफा की उम्मीद…
मसलन, २०११ में जब संसद में विकिलीक्स केबल को लेकर हंगामा हो रहा था तो विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर हमला बोलते हुए कहा था, ‘तू इधर-उधर की न बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा / हमें रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है’। इसके जवाब में मनमोहन सिंह ने कहा था, ‘माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं / तू मेरा शौक देख, मेरा इंतजार देख’।
इसी तरह २०१३ में भी जब राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस हो रही थी तो इन दोनों नेताओं में शायराना नोक-झोंक हुई थी। तब मनमोहन सिंह ने बीजेपी पर निशाना कसते हुए कहा था, ‘हमको उनसे है वफा की उम्मीद/ जो नहीं जानते वफा क्या है’।

इसका पलटवार करते हुए सुषमा स्वराज ने कई शेर पढ़े थे, जिनमें से एक यह भी था, ‘तुम्हें वफा याद नहीं/हमें जफा याद नहीं। जिंदगी और मौत के दो तराने हैं/एक तुम्हें याद नहीं, एक हमें याद नहीं’। लेकिन अब तो देशभर में आवश्यकता से अधिक छुईमुई के पौधे हो गए हैं-पुरुष व महिला राजनीतिज्ञ जो हल्के-फुल्के मजाक पर भी इतना बुरा मान जाते हैं कि जेल में डालने की केवल धमकी ही नहीं देते, बल्कि डलवा भी देते हैं। अब तो अखबारों में कार्टून प्रकाशित होना लगभग बंद हो गए हैं। हास्य-व्यंग्य व लतीफे तो नेतागिरी का अटूट हिस्सा होने चाहिए। मोटी चमड़ी का होना तो नेताओं का दूसरा स्वभाव होता है। अपनी परिधि का विस्तार करने की बजाय नेताओं को अपने दिमाग का विस्तार करना चाहिए, ताकि हर तरह की आलोचना, चाहे जिस रूप में हो, के लिए जगह बन सके। अगर वह भौंडी है तो उसका स्तर बेहतर करो। खराब लतीफे का जवाब अच्छा लतीफा है। अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की कीमत पर अच्छे लतीफे से बढ़कर कोई बेहतरीन बदला नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अपना काम बेहद जहीन तरीके से कर लिया है। सवाल यह है कि क्या सियासतदां अपनी फितरत बदलने की कोशिश करेंगे? क्या सियासत में लौटेगा सेहतमंद हास्य और सदन में फिर गूंजेगा खुशनुमा माहौल, जहां पर राजनीतिक उन पर चलाए गए व्यंग्य बाणों पर उबलकर बरसने की जगह हंसते हुए कटाक्ष करेंगे!

(लेखक सम-सामयिक विषयों के विश्लेषक हैं।)

जीवदया ही जीवन : बेजुबानों का बने सहारा

नरेंद्र गुप्ता
किसी जीव के दुख को देखकर उसे दूर करने की इच्छा करना, उसके लिए प्रयास करना ही जीवदया है। हमें प्रत्येक जीव के प्रति प्रेम व दया भाव रखना चाहिए। मानवता का यही धर्म है। प्राचीनकाल में भी देवी-देवताओं के साथ पशु-पक्षी का संबंध होना पशु संरक्षण का प्रतीक माना गया है। जानवर और इंसान एक-दूसरे पर निर्भर हैं। जब हम एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, तो हमें जानवरों के साथ आम लोगों की तरह व्यवहार करना चाहिए। पशुओं के साथ हमें प्यार से रहना चाहिए। बेशक, जानवर हमारी भाषा नहीं बोलते हैं, लेकिन संवेदनाएं मनुष्यों के समान रहती हैं। पशु-पक्षियों के प्रति होने वाले अत्याचार, क्रूरता और अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। बीमार पक्षियों और घायल जानवरों का इलाज कराना भी मानव का धर्म है। होली का त्योहार आ रहा है। शरारती लोग मूक जीवों जैसे श्वान, बिल्ली, गाय आदि पशुओं पर रंग डाल देते हैं, रंग में हानिकारक केमिकल होते हैं, मूक जीव अपने शरीर को साफ करने के लिए जीभ से चाटते हैं एवं केमिकल उनके पेट में चला जाता है और बीमार पड़ जाते हैं। गुलाल आदि सिंथेटिक रंगों से बने होते हैं, जिससे जीवों में त्वचा की एलर्जी एवं नाक में संक्रमण हो सकता है इसलिए त्योहार मनाते समय मूक जीवों का ध्यान रखना चाहिए।

उत्तर प्रदेश से : बीजेपी-सपा के बाण चले, कौन होगा परास्त?

रोहित माहेश्वरी

प्रदेश की राजनीति में बीजेपी और सपा में इन दिनों वाकयुद्ध जोरों पर है। दोनों दल किसी न किसी मुद्दे पर एक-दूसरे को घेरने और बयानबाजी करने का कोई अवसर चूकते नहीं हैं। विधानसभा में सीएम योगी की सपा के विरुद्ध की गई बयानबाजी का उत्तर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तीखे अंदाज में दिया। अखिलेश ने कहा कि सीएम में भावनात्मक संवेदना नहीं है। वे अमर्यादित और अलोकतांत्रिक भाषा का प्रयोग करते हैं। आस्था को व्यापार बना दिया है। दान, पुण्य, सेवा का कुंभ उनके लिए तीन लाख करोड़ का कारोबार बन गया है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद हर सरकार ने महाकुंभ कराया, लेकिन भाजपा के लोग समझते हैं कि सिर्फ इन्होंने यह आयोजन कराया है। सपा सरकार ने २०१३ में भव्य और शानदार आयोजन किया था। हार्वर्ड विश्वविद्यालय की टीम ने उसके प्रबंधन और व्यवस्थाओं की सराहना की थी।
बिहार में नई दुकान या पुरानी दुकान का विस्तार?
यूपी में एनडीए घटक में शामिल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) अब बिहार में भी अपनी जमीन तैयार करेगी। पार्टी की नजर बिहार के पिछड़े वर्ग के मतदाताओं पर है। पार्टी एनडीए के साथ बिहार विधानसभा चुनाव में २९ सीटों पर लड़ने की तैयारी कर रही है। इसके लिए सुभासपा विधानसभा वार अन्य पिछड़ा वर्ग, महिला और युवा सम्मेलन करने जा रही है। पार्टी १७ मार्च को सीतामढ़ी में भी एक रैली का आयोजन करेगी। प्रदेश सरकार में मंत्री और सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर बिहार में चुनाव लड़ने की तैयारियों की समीक्षा लगातार कर रहे हैं। सुभासपा नवादा, पश्चिमी चंपारण, सासाराम, नालंदा, औरंगाबाद, गया और बेतिया सहित २८ जिलों में अपने लिए २९ सीटें मांग रही है। पिछले तीन महीने में पार्टी बिहार में २४ रैलियां कर चुकी है।
जल्द आएगी की घोषणा
खुद ही स्थायी हो गई?
यूपी के सत्ताधारी दल बीजेपी में इस समय संगठन चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। यूपी बीजेपी में संगठन चुनाव के तहत मंडल अध्यक्षों की लिस्ट जारी होने के बाद अब सबकी नजरें जिलाध्यक्षों की सूची और नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर टिकी हुई हैं। बीजेपी जल्द ही नए जिलाध्यक्षों की लिस्ट जारी कर सकती है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक लिस्ट तो तैयार हो चुकी, चूंकि दिल्ली के विधानसभा चुनाव और प्रयागराज में कुंभ की वजह से शीर्ष नेतृत्व व्यस्त था इसीलिए घोषणा नहीं हो सकी। दिल्ली में बीजेपी सरकार बना चुकी है, और २६ फरवरी को महाकुंभ का समापन भी हो गया है। ऐसे में उम्मीद है एक हफ्ते के अंदर जिलाध्यक्षों की लिस्ट जारी हो जाएगी।
एक राष्ट्र, एक चुनाव या एक मुद्दा कई भाषण?
पीएम मोदी एक राष्ट्र, एक चुनाव यानी ओएनओई पर काफी जोर दे रहे हैं। बीजेपी ने युवाओं, खासकर पहली बार वोट देने वालों को अपने साथ लाने के लिए इस मुद्दे पर अभियान शुरू करने की योजना बनाई है। यूपी ही नहीं, बल्कि पूरे देश में यह अभियान चलाया जाएगा। इसकी शुरुआत २७ फरवरी पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से हुई। बीजेपी छात्रों को ओएनओई पर एक कार्यक्रम आयोजित करने में मदद करेगी। बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक, पार्टी यूनिवर्सिटी, कॉलेज और प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट के छात्रों से संपर्क करेगी। यह भी बताया जाएगा कि इससे कामकाज में रुकावटें वैâसे कम होंगी और सरकार वैâसे बेहतर तरीके से काम कर पाएगी।

`बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ से रु. ४५५ करोड़ रुपए `गायब’!

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मोदी सरकार की `बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना’ पर हमलावर होते हुए आरोप लगाया है कि इस योजना के ४५५ करोड़ रुपए गायब कर दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि आरटीआई से खुलासा हुआ है कि मोदी सरकार की बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना में ४५५ करोड़ रुपए गायब हो गए हैं। खड़गे ने `एक्स’ पर पोस्ट करते हुए लिखा कि हमने पिछले दिनों `बेटी बचाओ’ पर मोदी जी से तीन सवाल पूछे थे, जिसमें से एक सवाल आंकड़े छिपाने पर भी था। आज आरटीआई के ताजे खुलासे से मोदी सरकार के झूठ की कलई एक बार फिर खुल गई है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने लिखा, `बहुत हुआ नारी पर वार’ वाले भाजपाई विज्ञापन की गूंज पिछले १० वर्षों से उन सभी महिलाओं की चीखों का उपहास उड़ा रही हैं, जो भाजपा राज में और कभी-कभी भाजपा के गुंडों द्वारा प्रताड़ित हुई हैं।

आउट ऑफ पवेलियन : अभिनेता दंपति की मौत बनी पहेली

अमिताभ श्रीवास्तव

महान अभिनेता जीन हैकमैन और उनकी पत्नी बेट्सी अराकावा की मौत वैâसे हुई यह एक पहेली बन चुकी है। लगातार जांच के बाद भी अब तक कोई सुराग नहीं मिला है। हालांकि, मौत के प्रारंभिक पोस्टमार्टम परिणामों से पता चला है कि उनमें किसी प्रकार के बाहरी आघात के लक्षण नहीं थे। अभिनेता और उनकी पत्नी के शव एक कमरे में पाए गए। शव लगभग सड़ने लगे थे। ९५ वर्षीय हैकमैन को रसोईघर से लगे गीले कमरे में पूरे कपड़े पहने हुए पाया गया, जबकि ६४ वर्षीय बेट्सी को बाथरूम में पाया गया। यह दंपति ३४ वर्षों से विवाहित था और दशकों से ओल्ड सनसेट ट्रेल के निकट एक एकांत निवास में रहता था। हलफनामे के अनुसार, पुलिस फिलहाल उनकी मौत को ‘संदिग्ध’ मान रही है, क्योंकि उनके घर का दरवाजा खुला पाया गया था। जबरन प्रवेश का कोई संकेत नहीं मिला। जांच अधिकारियों ने बताया कि कार्बन मोनोऑक्साइड और विष विज्ञान परीक्षण अभी भी लंबित हैं। अधिकारियों ने यह भी पुष्टि की है कि दंपति के जर्मन शेफर्ड कुत्तों में से एक मृत पाया गया, जबकि दो अन्य कुत्ते बच गए। यह स्पष्ट नहीं है कि कुत्ता घर के अंदर किस जगह पाया गया? यह मौत एक ऐसी पहेली बन गई है, जिसे लेकर खूब सुर्खियां बन रही हैं। साधारण मौत भी नहीं लगती और किसी ने हत्या की हो ऐसा भी अब तक नहीं पाया गया है।
क्यों बंद हो रहे हूटर्स के अर्धनग्न रेस्तरां?
हूटर्स एक ऐसी रेस्तरां शृंखला है, जो दुनियाभर में कुख्यात है। यह एक समय इतनी लोकप्रिय हो गई कि होटल मालिकों की पांचों उंगलियां घी में और सिर कढ़ाही में था। दरअसल, यह कुख्यात रेस्तरां शृंखला अपने चिकन विंग्स, बीयर और कम कपड़े पहने वेट्रेसों के लिए प्रसिद्ध है। अर्धनग्न लड़कियों द्वारा खाना परोसने से लेकर बिकनी पैâशन शो भी होने लगा था और तो और अपनी एयरलाइंस भी इसने शुरू कर डाली थी। कम परिधान पहने युवतियों की वजह से भी यह विवादों में आने लगा था और धीरे-धीरे कई होटलों के शटर बंद होने लगे। ऐसे में रेस्तरां शृंखला के मालिक कथित तौर पर ऋणदाताओं के साथ मिलकर इसके परिचालन को पुनर्गठित करने की योजना पर काम कर रहे हैं। हालांकि, हूटर्स की अपनी एक निंदनीय दुनिया रही है, जिसमें यौन शोषण से लेकर घर में बिकनी प्रतियोगिताएं शामिल हैं। अब यह कामुक रेस्तरां शृंखला हूटर्स दिवालिया हो सकती है। ये अटकलें पिछले महीने शृंंखला द्वारा ४० स्थानों को नाटकीय ढंग से बंद करने के बाद आई है। अपनी लोकप्रियता के चरम पर हूटर्स की विश्वभर में ६०० से अधिक जगहें थीं, लेकिन अब यह संख्या घटकर २९३ रह गई है। ‘हूटर्स गर्ल’ की अनूठी पोशाक कई वर्षों से विवाद का विषय रही है। यह एक छोटा शॉर्ट्स और बनियान वाला सेट है, जिसके सामने उल्लू का शुभंकर बना होता है। दुनिया में जहां भी हूटर्स स्थित है- वर्दी हमेशा एक जैसी रही है, लेकिन २०२१ में नारंगी शॉर्ट्स को और भी छोटा बनाने के लिए शृंखला को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। मिस हूटर्स इंटरनेशनल स्विमसूट पेजेंट, दुनियाभर की वेट्रेसों की एक प्रतियोगिता है, जो १९९६ से चल रही है। इसके बंद होने के कारण के पीछे यौन शोषण बड़ा कारण बताया जाता है। अब क्या फिर से बंद हुए होटल खुलेंगे? यह सवाल है।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार व टिप्पणीकार हैं।)

निवेश गुरु : सोच ही है आपकी दौलत!

भरतकुमार सोलंकी
मुंबई

क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ लोग साधारण शुरुआत से भी शिखर तक कैसे पहुंच जाते हैं, जबकि कुछ लोग भरपूर संसाधनों के बावजूद वहीं के वहीं रह जाते हैं? आखिर सफलता और समृद्धि का रहस्य क्या है? जवाब एक ही है- सोच।
हर व्यक्ति के जीवन में सोच एक ऐसा बीज है, जो उसके व्यक्तित्व निर्माण के साथ-साथ आर्थिक विकास का वटवृक्ष भी बना सकता है। आप जितना सोचते हैं, उतना ही पाते हैं। सोच ही है, जो किसी को करोड़पति बना सकती है और किसी को सीमित दायरे में बांध सकती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या हर सोच हमें मंजिल तक पहुंचा सकती है? नहीं, क्योंकि सोच के साथ लक्ष्य, संकल्प और धारणाएं भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं।
सोच से लक्ष्य तक का सफर: भगवान महावीर ने अपने सिद्धांतों में अपरिग्रह के साथ अभिग्रह यानी धारणा के महत्व को समझाया है। यह एक ऐसी सोच है, जो हमें यह तय करने में मदद करती है कि हम अपने जीवन में क्या चाहते हैं और किस दिशा में जाना चाहते हैं। सोच और लक्ष्य एक-दूसरे के पूरक हैं। सोच दिशा देती है, जबकि लक्ष्य गति। कोई व्यक्ति यदि सौ करोड़ की संपत्ति बनाना चाहता है तो सबसे पहले यह तय करना होगा कि उसकी सोच उस स्तर की है या नहीं। सिर्फ इच्छा करने से कुछ नहीं होता, सोच में स्पष्टता होनी चाहिए और लक्ष्य को पाने की धारणा यानी अभिग्रह भी मजबूत होना चाहिए।
अभिग्रह; सफलता का मूल मंत्र: अभिग्रह का अर्थ केवल किसी विचार को पकड़कर रखना नहीं है, बल्कि उस पर पूरी निष्ठा के साथ कार्य करना है। जब व्यक्ति एक लक्ष्य निर्धारित करता है और उसके लिए पूरी ऊर्जा झोंक देता है तो यह अभिग्रह ही होता है, जो उसे असंभव को संभव बनाने की ताकत देता है।
आर्थिक सफलता; धारणा और निवेश की भूमिका: अगर हम निवेश की दुनिया में देखें तो केवल पैसे कमाना ही नहीं, बल्कि सोच, लक्ष्य और अभिग्रह को सही दिशा देना भी आवश्यक है। एक अच्छा निवेशक वही है, जो अपने आर्थिक लक्ष्य को स्पष्ट रूप से देख सकता है, उसमें विश्वास रखता है और बिना विचलित हुए उस दिशा में कार्य करता है। सोचिए, अगर किसी ने २० साल पहले अमूल, टाटा, रिलायंस, इंफोसिस जैसी कंपनियों में निवेश किया होता तो क्या आज वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं होता? लेकिन जिनकी सोच केवल अल्पकालिक लाभ तक सीमित रही, वे लंबे समय में वैसी सफलता नहीं पा सके।
आप क्या सोचते हैं, यह तय करता है कि आप क्या बनेंगे: हर बड़ा उद्योगपति, निवेशक और सफल व्यक्ति इस एक बात पर सहमत होगा। सोच ही सब कुछ है। सोचने का स्तर जितना ऊंचा होगा, सफलता उतनी ही बड़ी होगी। सवाल यह है कि आपकी सोच क्या है? क्या आप सीमित सोच के साथ सिर्फ छोटी बचत और खर्च में उलझे रहना चाहते हैं या फिर बड़े लक्ष्य तय करके स्पष्ट धारणा के साथ निवेश की रणनीति बनाकर आर्थिक स्वतंत्रता हासिल करना चाहते हैं? आज ही सोचिए, क्योंकि आज की सोच ही कल का भविष्य तय करेगी!
(लेखक आर्थिक निवेश मामलों के विशेषज्ञ हैं)

 

पाकिस्तान में चैंपियंस ट्रॉफी; खैबर में बम धमाका … खिलाड़ियों की सुरक्षा पर खतरा!

– मस्जिद में आत्मघाती आतंकवादी ने खुद को उड़ाया
– मौलाना समेत १० लोगों की मौत, कई घायल
पाकिस्तान में एक तरफ चैंपियंस ट्रॉफी का आयोजन हो रहा है। दूसरी तरफ भीषण बम धमाके ने देश को दहलाकर रख दिया है, जिससे खिलाड़ियों की सुरक्षा से खिलवाड़ किया जा रहा है। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र में स्थित एक मस्जिद में उस वक्त जोरदार धमाका हो गया, जब वहां जुमे की नमाज पढ़ी जा रही थी, जिसमें मौलाना समेत १० लोगों की मौत हो गई, जबकि कई घायल लोग हैं। रिपोर्ट के अनुसार, जिला पुलिस प्रमुख अब्दुल राशिद ने बताया कि यह विस्फोट खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के एक जिले अक्कोरा खट्टक में हुआ। अभी तक किसी भी समूह ने जामिया हक्कानिया मदरसे के अंदर हुए इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है। रिपोर्ट के मुताबिक खैबर पख्तूनख्वा के पुलिस महानिरीक्षक जुल्फिकार हमीद ने पाकिस्तानी मीडिया जानकारी दी।

केपी के पुलिस महानिरीक्षक जुल्फिकार हमीद ने कहा है कि नमाजियों को निशाना बनाकर घटना को अंजाम दिया गया है। और रिपोर्टों से पता चलता है कि यह एक आत्मघाती बम विस्फोट था। उन्होंने कहा कि अब तक १० लोगों की मौत की खबर मिली है, जबकि १० से १२ लोग घायल हुए हैं।

`डंकी रूट’ का दर्द : बंदूक की नोंक पर प्रेग्नेंट

एम.एम.एस.

२६ साल की वह महिला अपने बच्चे के साथ उस कमरे में बैठी थी। उसे पता था कि इस कमरे में गुप्त रूप से वह छिपी हुई है, क्योंकि एजेंट ने कहा था यदि वह पकड़ी गई तो उसे वापस भेज दिया जाएगा उसके देश। उसके साथ अन्य महिला भी और बच्चे भी। उसे इस बात का नहीं पता था कि वह अब यौन उत्पीड़न का शिकार बननेवाली थी।
दरवाजा भड़ाक से जोर की आवाज के साथ खुला, डरकर बच्चे दुबक गए। दो लोग कमरे में दाखिल हुए, उनके पास बंदूक थी। एक ने बच्चों को बाहर निकाला। उनके पास बंदूकें थीं और जब वह हम पर हमला कर रहा था तो बंदूकें सिर पर तान दीं। पहले उसने मुझे गाली दी और फिर उसने उसे गाली दी। हम उसके नियंत्रण में हैं और हमें लगता है कि हम बेकार हैं। हम कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा लगता है कि वे हमें बता रहे हैं कि वे हमें मार सकते हैं और कोई कुछ नहीं कहेगा।
वक्त तेजी से निकलता जा रहा था। उसे पता तक नहीं चला कब दिन महीनों में बदलते चले गए।
जब तक वह उस गुप्त कमरे में छिपी रही, तब तक वहशियों का शिकार बनती रही। एक दिन उसे बताया गया कि अब उन्हें बॉर्डर पार कर अमेरिका जाना है। हालांकि, इस बात से उसे बहुत खुशी नहीं थी, लेकिन वह इस बीच जितनी जिल्लत सह चुकी थी उसको देखते हुए, भले खुद के लिए नहीं, लेकिन बच्चे के भविष्य के मद्देनजर अमेरिका जाने के सिवा वह और क्या कर सकती थी?
लेकिन बदकिस्मती से वह बॉर्डर पेट्रोलिंग टीम द्वारा पकड़ी गई। उसके साथ उसका बच्चा भी था और अन्य कहीं महिलाएं भी। उन सभी को पकड़कर डिटेंशन वैंâप ले आया गया।
सभी के मेडिकल टेस्ट किए गए। मेडिकल टेस्ट की रिपोर्ट उसकी जिंदगी में भूचाल ले आया। वह प्रेग्नेंट थी। रिपोर्ट उसके हाथ में थी। उसे जैसे काठ मार गया था। वह जमीन पर बैठ गई। सामने उसका बेटा बैठा हुआ था। वह हैरतभरी नजरों से अपनी मां की ओर तक रहा था, जो मुंह को अपनी हथेली से ढककर अपनी रुलाई रोकने की कोशिश कर रही थी। आज उसे खाया नहीं गया। नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। उसके सामने उसके पति का चेहरा तैर रहा था। वह उससे वैâसे नजरें मिलाएगी? उसे क्या जवाब देगी? क्या उसने उसके विश्वास को तोड़ दिया था? क्या वह उस पर विश्वास करेगा? आखिर उन्होंने प्रेम विवाह किया था। एक पल उसे लगा कि जैसे उसे मर जाना चाहिए। उसने तय किया कि वह आत्महत्या कर लेगी। फिर उसकी नजर अपने बच्चों पर पड़ी। अगर मर गई तो इस बच्चे का क्या होगा? डिटेंशन वैंâप में उसके बच्चे का क्या होगा? हो सकता है कि उसे वापस भेज दिया जाए! वह तो अपने देश को अपने शहर को जानता भी नहीं। कहीं वह गलत लोगों के हाथ लग गया तो… उसने सुना था बच्चों के साथ भी दरिंदगी होती है! बैठे-बैठे उसकी सांसें तेज हो गर्इं… पूरा शरीर पसीने से नहा गया… नहीं-नहीं, वह अपने इकलौते बच्चे को किसी के भरोसे नहीं छोड़ सकती! एक बार वह अपने बच्चों को उसके पिता से मिला दे, उसके बाद रोज जिंदा नहीं रहेगी! वह धीमे से उठी उसने अपने बच्चे को पास खींचा और उसके सिर पर हौले-हौले हाथ फेरने लगी। उसी हालत में कब उसे नींद आ गई उसे पता नहीं चला।
‘उस टेस्ट से पहले मुझे पता नहीं था कि मैं गर्भवती हूं। उस पल, ऐसा लगा जैसे मुझ पर निशान लगा दिया गया हो। मेरे साथ जो हुआ, उस उल्लंघन के कारण मुझे निशान लगा दिया गया था।’
यह उसकी खुशकिस्मती थी कि उसके प्रेमी पति ने उसे अबॉर्शन की इजाजत नहीं दी और उसे बच्चों को खुशी-खुशी स्वीकार लिया। उसे पवित्र बाइबिल का नाम एडोनाई दिया। उसके पति का कहना था कि उस बच्चे का क्या दोष है?
इस घटना के बाद भी लंबे अरसे तक उसके मन में आत्महत्या के विचार आते रहे और वह हमेशा खुद को दोषी समझती रही।
‘साइकोलॉजिस्ट के पास जाने से मुझे ठीक होने में मदद मिली। उसने मुझसे कहा कि हमें इस बारे में बात करनी चाहिए, हमें इसके बारे में सोचना चाहिए और हमें अपने जीवन को आगे बढ़ाना सीखना चाहिए, भले ही जो कुछ भी हुआ हो।’
‘जीवन में आगे बढ़ने के लिए मेरी प्रेरणा मेरे दो बच्चे हैं। मैं ईश्वर का शुक्रिया अदा करती हूं, क्योंकि मैंने जो कुछ भी सहा, वे उससे मिली खुशी हैं।’