फोटो मॉर्फिंग के माध्यम से अश्लील फोटो बनाकर प्रशासनिक अधिकारियों को बदनाम करके फिरौती की मांग करने वाला गिरफ्तार

राधेश्याम सिंह / वसई

क्राइम ब्रांच यूनिट 3 ने एक ऐसे अपराधी को गिरफ्तार करने में सफलता प्राप्त की है, जो वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को बदनाम करने के उद्देश्य से उनके फोटो मॉर्फिंग के माध्यम से अश्लील बनाकर उन्हें सोशल मीडिया पर प्रसारित कर फिरौती की मांग करता था। इस अपराधी की गिरफ्तारी से 8 अपराध (वांछित) का खुलासा हुआ है। यह कार्रवाई क्राइम डीसीपी अविनाश अंबुरे और एसीपी मदन बल्लाल के मार्गदर्शन में क्राइम ब्रांच यूनिट 3 के पुलिस निरीक्षक साहुराज रणवरे के नेतृत्व में सहायक पुलिस निरीक्षक सुहास कांबले की टीम ने की है। पुलिस अधिकारी ने बताया कि 18 नवंबर 2024 से 8 दिसंबर 2024 के दरम्यान किसी अज्ञात आरोपी ने वसई-विरार महानगरपालिका के एक वरिष्ठ अधिकारी के चेहरे को एक नग्न साइट पर एक पुरुष और महिला के फोटो में रूपांतरित किया और संबंधित अधिकारी को बदनाम करने के इरादे से उक्त फोटो को सोशल साइट पर प्रसारित किया। साथ ही संबंधित अधिकारी और उनके परिवार के सदस्यों को बदनाम करने की धमकी देने के आरोप में भारतीय न्याय संहिता की धारा 351 (2), 356 (2) के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 (सी), 67 के तहत बोलिंज पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया था। उक्त अपराध की समानांतर जांच के दौरान तकनीकी विश्लेषण एवं प्राप्त गोपनीय सूचना के आधार पर आरोपी चंदन सूर्यभान सिंह ऊर्फ चंदन ठाकुर (उम्र 32 वर्ष) को विरार पश्चिम के ग्लोबल सिटी से गिरफ्तार कर लिया। पुलिस अधिकारी ने बताया कि ठाकुर की गिरफ्तारी से 8 अपराध (वांछित) का खुलासा हुआ है। आरोपी ठाकुर के पिछले रिकार्ड को देखने पर पता चला है कि उसके खिलाफ 7 गंभीर अपराध दर्ज हैं। पुलिस अधिकारी ने बताया कि उक्त आरोपी को बोलिंज पुलिस स्टेशन के हवाले कर दिया गया है।

कल्याण निर्भया कांड : आरोपियों के खिलाफ 948 पन्नों की चार्जशीट दाखिल

सामना संवाददाता / कल्याण

-फास्ट ट्रैक कोर्ट में होगी सुनवाई…सरकारी वकील उज्ज्वल निकम करेंगे पैरवी–डीसीपी अतुल झेंडे

कोलसेवाड़ी पुलिस स्टेशन क्षेत्र में 24 दिसंबर 2024 को एक महिला की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया था, जिसमें पुलिस ने विभिन्न धाराओं सहित पॉक्सो कानून की धाराओं में केस दर्ज किया था। इस मामले की जांच के दौरान पीड़िता का शव पड़घा पुलिस स्टेशन सीमा के बापगांव इलाके में मृत अवस्था में मिला था। कोलसेवाड़ी पुलिस ने तकनीकी जांच कर इस अपराध में आरोपी विशाल अभिमान गवली और उसकी पत्नी साक्षी विशाल गवली को गिरफ्तार किया था। जांच में सामने आया कि आरोपी विशाल गवली ने नाबालिग लड़की से दुष्कर्म कर उसकी हत्या कर दी और साक्ष्य नष्ट करने के उद्देश्य से अपनी पत्नी साक्षी गवली की मदद से शव को बापगांव क्षेत्र में फेंक दिया।
पुलिस को इस मामले में ठोस सबूत मिले हैं, जिसके आधार पर 21 फरवरी 2025 को 948 पन्नों का आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया गया। इस मामले की जांच अपर पुलिस आयुक्त पूर्व प्रादेशिक विभाग संजय जाधव, पुलिस उपायुक्त परिमंडल-3 अतुल झेंडे और सहायक पुलिस आयुक्त कल्याण विभाग कल्याणजी घेटे के मार्गदर्शन में वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक गणेश न्हायदे और उनकी टीम ने की है। इस केस की सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में होगी और न्यायालयीन प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने विशेष सरकारी वकील के रूप में एड. उज्ज्वल निकम की नियुक्ति की है।

उल्हासनगर का डीजल, गैस शवदाह गृह कब होगा शुरू…दो करोड़ रुपए हो चुके हैं खर्च…डीजल, गैस का पता नहीं

अनिल मिश्रा / उल्हासनगर

उल्हासनगर में शव को लकड़ी से जलाने के उपरांत धुएं के रूप में बड़ी मात्रा में प्रदूषण बढ़ता है। लकड़ी से शव को जलाने से पर्यावरण की हानि होती है। जंगल काटे जाते हैं। इसके साथ ही शमशान परिसर के लोगों का धुएं से जीना हराम सा हो जाता है। पर्यावरण को प्रदूषण से निजात दिलाने के इरादे से कोविड के बाद उल्हासनगर की चार में से दो श्मशान भूमि में से एक में डीजल तो दूसरे में गैस से चलने वाली शवदाह गृह वर्षों से बनाया जा रहा है। जिस पर दो करोड़ रुपए के करीब लागत आई है। उल्हासनगरवासियों का मनपा प्रशासन पर सवाल उठाया जा रहा है कि आखिरकार कब शुरू होगा डीजल, गैस का शवदाह गृह?
केंद्र सरकार की पहल पर पर्यावरण से प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए नेशनल वायु प्रदूषण नियंत्रण मिशन के तहत वर्षों से उल्हासनगर पांच कैलाश कॉलोनी की शमशान भूमि में गैस तो उल्हासनगर तीन की शांतिनागर की शमशान भूमि में डीजल का शवदाह गृह बनाया जा रहा है, जो कि कब शुरू होगा यह कहना कठिन है। शवदाह गृह के दरवाजे पर ताला लगा है और काम बंद है।  इस बारे मे सार्वजनिक बांधकाम विभाग भी कुछ बताने में अपने आपको असमर्थ बता रहा है। सूत्र बताते हैं कि इस शवदाह का ठेका ठाणे जिले के एक बड़े नेता के द्वारा दिया गया है। कब शुरू होगा यह भी नेता के हाथ में ही है। महिला आयुक्त मनीषा आव्हाले क्या इस शवदाह गृह में दौरा कर क्यों संचालित हो रहा है? इस तरफ जांच कर योग्य कारेंगी, ऐसे सवाल स्थानीय क्षेत्र में उठने लगे हैं।
उल्हासनगर मनपा के जनसंपर्क अधिकारी अजय साबले से संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि जल्द शुरू होने में क्या अड़चन है? उसकी जांच कर योग्य कदम उठाया जाएगा।

नहीं बंद होगी मुंब्रा-मीरा रोड की एसी बस सेवा…परिवहन समिति सदस्य का दावा

  सामना संवाददाता / मुंब्रा

मुंब्रा से मीरा रोड चलने वाली एसी बस क्र 75 अब नहीं होगी बंद। इस तरह का दावा ठाणे महानगरपालिका की परिवहन समिति सदस्य शमीम खान ने परिवहन वस्थापक से मुलाकात कर उन्हें विज्ञापन देने के बाद पत्रकार परिषद में किया।
मुंब्रा से भिवंडी, मीरा रोड और अन्य शहरों लिए ठामपा की एसी और नॉनएसी बसें चलती हैं। इनमें अचानक से मीरा रोड के लिए चलने वाली एसी बसें बंद करने की खबर पर राकांपा (शरदचंद्र पवार) के मुंब्रा कलवा के अध्यक्ष व परिवहन समिति के सदस्य शमीम खान बताया कि मीरा रोड प्रवासी संगठन का शिष्टमंडल हमारे पास आया था, जिसने बताया कि मुंब्रा से मीरा रोड के लिए चलने वाली एसी बसों के बंद करने से इस रूट के यात्रियों को बहुत परेशानी होगी। जिसके बाद हमने परिवहन वस्थापक से मुलाक़ात कर के यह ज्ञापन दिया और मांग की कि मीरा रोड का जो रनिंग है वह तकरीबन बस के जरिए से दो घंटा का है। इस बस द्वारा कई छात्र मुंब्रा आते हैं। बहुत से मीरा रोड जाते हैं तो कुछ तो काम-काज के लिए यात्रा करते हैं। यानी मुंब्रा और मीरा रोड का एक भाई-बहन जैसा रिश्ता है। इस बस में हमने देखा कि कई वरिष्ठ नागरिक व महिलाएं भी यात्रा करती हैं, ऐसे में एसी बसें बंद करने से उन्हें परशानी होगी। शमीम खान ने बताया कि नॉनएसी का टिकट ₹28 में है और एसी वाली का ₹35 है तो ₹8 के लिए यात्रियों को परेशानी में डालने का क्या मतलब है, फिर ऐसी बस होने पर यात्री भी तो बढ़ेंगे। इसके लिए मैंने आज व्यवस्थापक से बात की। जिस पर उन्होंने हमारी बातें सुनते और समझते हुए बस को बंद करने की बात खारिज कर दी और मुझे आश्वासन दिया और कहा कि एसी बस चलेगी इस रूट पर, सिर्फ तीन नॉन एसी चलेगी और आगे 1 जून से मीरा रोड के लिए सभी एसी बसें चलाई जाएंगी। शमीम खान ने बताया कि भारत गियर्स से ठाणे के माजिवाड़ा तक चलने वाली बस क्रमांक 142 को, जो सुबह 9 से दोपहर 2 चलती है, इसको दोपहर 2 बजे से 6 बजे तक चेंदणी कोलीवाड़ा से मुंब्रा के ठामपा के हकीम अजमल खान अस्पताल कौसा तक चलाने की मांग की है, ताकि अस्पताल जाने वालों को आसानी हो। साथ ही बताया कि मुंब्रा निवासी और ठामपा के परिवहन में सईद गुलबर की कार्यरत रहते हुए मृत्यु हो गई थी। उनकी जगह उनके बेटे शहीद गुलबार को नौकरी देने की हमने मांग की थी, जो पूरी हुई। इस पर हमने परिवहन समिति का धन्यवाद किया। इसके अलावा उन्होंने बसें टाइम पर न पहुंचाने वाले और बस स्टैंड पर ठीक से बसें न रोकने वाले ड्राइवरों के विरुद्ध भी शिकायत की और कहा कि हम खुद बस में बैठकर स्टिंग ऑपरेटिव करेंगे।

एक साथ हुई दोनों भाइयों की मौत…जीवनभर कभी नहीं हुआ विवाद

अनिल मिश्र / पटना

बिहार प्रदेश के सुपौल जिले के मरौना प्रखंड क्षेत्र के बेलही पंचायत वार्ड नंबर तीन में दोनों भाइयों की एक साथ मृत्यु होने से पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। छोटा भाई सेवानिवृत्त प्रधान व शिक्षक फुलेश्वर साह (90) बीमार थे, जब उनकी अंतिम सांस चल रही थी तो उनसे पहले बड़े भाई भुवनेश्वर साह (100) का निधन हो गया। उसके बाद दोनों भाई की अर्थी एक साथ निकली। इस संबंध में बताया जाता है कि दोनों भाई के पूरे जीवन में कभी भी वाद-विवाद तक नहीं हुआ है।
इह घटना लोगों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। लोगों का कहना है कि ईश्वर की लीला भी अपरंपार है। इनकी लीला को कोई नहीं जान सकता है। छोटा भाई बीमार था तो बड़ा भाई बोला कि तुम मुझसे छोटा है, तुम मुझसे इस दुनिया को नहीं छोड़ सकते। बड़ा मैं हूं, तुमसे पहले इस दुनिया को छोड़ूंगा। उनका कहना सत्य साबित हुआ। जब बीमार छोटा भाई और सेवानिवृत प्रधान व शिक्षक फुलेश्वर साह की अंतिम सांस चल रही थी, उससे पहले बड़ा भाई भुवनेश्वर साह इस दुनिया को छोड़ चल बसे। एक साथ दोनों भाई की अर्थी आंगन से श्मशान घाट के लिए निकली और एक साथ दो चिताओं पर इनके मृत शरीर राख में तब्दील हो गया।
इस संबंध में बताया जाता है कि छोटा भाई सेवानिवृत प्रधान व शिक्षक फुलेश्वर साह प्राथमिक विद्यालय भवन निर्माण के लिए अपने ही वॉर्ड तीन में अनुसूचित जाति टोले में साढ़े तीन कट्टा जमीन दान में दिए थे। दोनों भाई के पूरे जीवन में कभी भी किसी प्रकार का वाद-विवाद तक नहीं हुआ। वहीं दोनों भाई की एक साथ मौत होने से इस क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है।

कैदी और बंदियों को भी त्रिवेणी संगम जल से कराया सरकारी स्नान

राजेश सरकार / प्रयागराज

महाकुंभ में गंगा-जमुना के जल को नहाने लायक नहीं बताने वाली केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट को लेकर डबल इंजन सरकार की हो रही किरकरी के बीच शुक्रवार को खबर मिली कि योगी सरकार ने प्रदेश की जेलों में बंद कैदियों के लिए भी पवित्र स्नान कराने की पहल की है। प्रयागराज के नैनी सेंट्रल और जिला जेल के हजारों कैदियों को भी कुंभ स्नान इसका अवसर दिया है। सरकारी दावे के मुताबिक, कैदियों ने त्रिवेणी के पुण्य जल से स्नान किया है। इसके लिए जेल के अंदर ही बड़े-बड़े हौज बनाए गए, जिसमें त्रिवेणी से लाया गया पवित्र जल मिलाया गया। इसी जल से स्नान कर जेल में बंद कैदी भी पुण्य के भागीदार बने हैं। प्रयागराज के नैनी सेंट्रल जेल में इसके लिए भव्य व्यवस्था की गई। नैनी जेल के वरिष्ठ जेल अधीक्षक रंग बहादुर पटेल बताते हैं कि जेल में इस समय 1,700 से ज्यादा कैदी हैं, इनमें 1,400 से अधिक कैदियों को त्रिवेणी के पावन जल से स्नान का अवसर मिला है। शासन के निर्देश पर त्रिवेणी से एक कलश में वहां का पावन जल लाया गया। जेल के अंदर विधि-विधान से उसका पूजन किया गया और फिर इसी जल को जेल के अंदर बनाए गए कुंड में डाल दिया गया, फिर जल से कैदियों ने पुण्य स्नान किया है।
जिला जेल के बंदियों को भी मिला अवसर
नैनी सेंट्रल जेल के अलाव जिला जेल के बंदियों को भी अमृत काल में संगम के पुण्य जल से स्नान का पुण्य लाभ अर्जित करने का अवसर मिला। प्रयागराज नैनी जिला जेल की वरिष्ठ अधीक्षक अमिता दुबे बताती हैं कि जेल में वर्तमान में 1,300 से अधिक बंदी हैं। इनमें 1,000 से अधिक बंदियों को महाकुंभ के जल से स्नान की व्यवस्था की गई। संगम से लाए गए पवित्र जल को विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने के बाद उसी जल से कैदियों ने पुण्य स्नान किया है।
जेल में हर हर गंगे का हुआ उद्घोष
जेल में बंद इन कैदियों ने संभवतः कभी सोचा भी न होगा कि सलाखों के अंदर रहते हुए भी उन्हें 144 साल के इस दुर्लभ संयोग में त्रिवेणी के पावन जल में स्नान का अवसर मिल पाएगा। कैदियों को त्रिवेणी संगम में ले जाकर स्नान कराने की कानूनी व सुरक्षा समस्याओं को देखते हुए जेल के अंदर ही इनको त्रिवेणी जल से स्नान की व्यवस्था की गई थी। त्रिवेणी जल से कैदियों ने स्नान किया। इस दौरान हर गंगे के उद्घोष से पूरा जेल परिसर गूंज रहा था। बता दें कि उत्तर प्रदेश की जेलों में वर्तमान में लगभग 90 हजार बंदी निरुद्ध हैं।

भीड़, भगदड़ और जनता का अनियंत्रित उन्माद

भारतीय रेलवे को देश की जीवन रेखा माना जाता है, जो कि आज बेतहाशा भीड़ के कारण गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। भारतीय रेलवे हर दिन लाखों यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने का काम करती है, लेकिन बढ़ती भीड़, प्रबंधन और असुरक्षित माहौल ने रेल यात्रा को एक जोखिम भरा सफर बना दिया है। यात्रियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, लेकिन ट्रेनों की उपलब्धता और बुनियादी ढांचे का विकास उस गति से नहीं हो पा रहा है, जिससे प्लेटफॉर्मों और ट्रेनों में असहनीय भीड़ जमा हो जाती है। हाल ही में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ जैसी घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था भीड़ को नियंत्रित करने में असमर्थ साबित हो रही है। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में निर्दोष यात्रियों की जान चली गई, जिससे यह सवाल उठता है कि आखिर उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है? क्या हर यात्री को अपनी जान हथेली पर रखकर सफर करना होगा?
यात्रा के दौरान ना तो यात्रियों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त रेलवे पुलिस मौजूद होती है और ना ही भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस प्रबंधन। प्लेटफॉर्मों पर अव्यवस्थित प्रवेश और निकास द्वार, अनियंत्रित भीड़, ट्रेनों में सीमित जगह और टिकटिंग प्रणाली में खामियों के कारण यात्रियों को हर समय असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। कई बार ट्रेन पकड़ने की होड़ में यात्री चलती ट्रेन में चढ़ने की कोशिश करते हैं, जिससे दुर्घटनाएं होती हैं, लेकिन रेलवे प्रशासन इस ओर ध्यान देने में असफल रहा है।
सिर्फ भारतीय रेलवे ही नहीं, बल्कि दिल्ली मेट्रो की सुरक्षा भी सवालों के घेरे में है। गत दिनों दिल्ली मेट्रो मे शब्बे बरात की रात में जो हुड़दंग देखने को मिला वो मेट्रो की सुरक्षा पर सवालिया निशान खड़ाकरता है। सवाल यह उठता है कि कोई यात्री बिना टिकट और बिना किसी जांच के मेट्रो में प्रवेश कैसे कर सकता है? यह घटना यह सोचने पर मजबूर करती है कि यदि असामाजिक तत्व इस तरह सुरक्षा में सेंध लगा सकते हैं, तो मेट्रो यात्रियों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। हाल ही में दिल्ली मेट्रो की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठे हैं, विशेषकर जामा मस्जिद मेट्रो स्टेशन पर हुई इस तरह के हुडदंग की घटना के बाद। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित हुआ, जिससे सुरक्षा और व्यवस्था पर चिंताएं बढ़ीं दिल्ली मेट्रो में सुरक्षा उल्लंघन की घटनाएं पहले भी सामने आई हैं, जो सुरक्षा में गंभीर चूक को दर्शाता है।
दिल्ली मेट्रो, जिसे देश की सबसे सुरक्षित और आधुनिक सार्वजनिक परिवहन सेवा माना जाता है, उसकी सुरक्षा अब सवालों के घेरे में है। शबे बरात की रात जो हुड़दंग हुआ, उसने न केवल मेट्रो की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी, बल्कि यात्रियों के मन में गहरी चिंता भी पैदा कर दी। सवाल उठता है कि अगर हुड़दंग करने वाले इतनी आसानी से मेट्रो के भीतर घुस सकते हैं, तो क्या कोई भी असामाजिक तत्व इसी तरह सुरक्षा में सेंध लगा सकता है? क्या मेट्रो प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियां सिर्फ नाम के लिए मौजूद हैं?
दिल्ली मेट्रो की सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के पास है। हर स्टेशन पर हाई-टेक सीसीटीवी कैमरे, स्कैनर और सुरक्षाकर्मी तैनात होते हैं, लेकिन फिर भी हुड़दंगियों ने पूरे मेट्रो स्टेशन को अपने कब्जे में ले लिया। कैसे? किसकी लापरवाही से? कौन जिम्मेदार है? यह घटना यह साबित करती है कि मेट्रो की सुरक्षा सिर्फ कागजों पर मजबूत है, लेकिन असलियत में यह एक छलावा है। 13 फरवरी की देर रात जामा मस्जिद मेट्रो स्टेशन पर जो कुछ हुआ, वह किसी भी यात्री के लिए भयावह था। हुड़दंगियों ने स्टेशन पर कब्जा कर लिया, यात्री असहाय नजर आए और सुरक्षा बल कहीं नजर ही नहीं आए! अगर यही स्थिति रही तो मेट्रो में सफर करने वाले यात्रियों को कब तक असुरक्षित महसूस करना पड़ेगा? यह पहली बार नहीं है जब इस तरह की घटनाएं हुई हैं। हर साल इन मौकों पर कुछ असामाजिक तत्व सड़कों पर उत्पात मचाते हैं। लेकिन अब मेट्रो जैसी संवेदनशील जगह भी इनकी गिरफ्त में आने लगी है। अगर आज हम नहीं चेते, तो कल को यह लापरवाही एक बड़े हादसे का कारण बन सकती है। सोचिए, अगर इसी तरह कोई आतंकवादी या संगठित अपराधी मेट्रो की सुरक्षा भेदकर भीतर घुस जाता है, तो क्या हम इसके लिए तैयार हैं?
दिल्ली मेट्रो करोड़ों लोगों का भरोसा है, लेकिन जब सुरक्षा की धज्जियां उड़ती नजर आती हैं, तो यह भरोसा कमजोर पड़ जाता है। सरकार, सीआईएसएफ और दिल्ली मेट्रो प्रशासन को कड़े कदम उठाने होंगे और सुरक्षा को हाई-टेक और सतर्क बनाना होगा–हर स्टेशन पर सुरक्षा जांच और कड़ी होनी चाहिए। हुड़दंग करने वाले अगर बिना टिकट मेट्रो में घुसे थे, तो यह सिस्टम की सबसे बड़ी विफलता है। दिल्ली मेट्रो में हुई यह घटना एक चेतावनी है। अगर अब भी सही कदम नहीं उठाए गए, तो आगे स्थिति और बिगड़ सकती है। यह सिर्फ दिल्ली मेट्रो  और भारतीय रेल की बात नहीं, बल्कि पूरे देश की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की विश्वसनीयता का सवाल है। अगर अब भी सही कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में यह लापरवाही एक बड़े हादसे का कारण बन सकती है। यात्रियों की सुरक्षा सरकार और प्रशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए, अन्यथा रेलवे और मेट्रो में सफर करना यात्रियों के लिए और भी अधिक खतरनाक हो सकता है।
-मुनीष भाटिया
5376 ऐरो सिटी, मोहाली

आशा के पल

आशाएं थीं अदाएं थीं सादगी भी थी
साथ रुठी हुई परछाईं थी
चुपी छाई थी खामोश निगाहों में
मुकद्दर की सोई हुई तन्हाई थी
सब खो गया धीरे-धीरे हर जगह हर पल
कैसी किस्मत पाई थी
दिल बना भरा समुद्र
आंखों की पलकों में ऐसी गहराई थी
वो नादानियां वो सहेलियां
अब बन गई हैं पहेलियां
याद है जब रंगीन हवा हमारे संघ लहराई थी
वो घड़ियां लौट के आती
हमें भी चैन की सांस दिलाती
बीते लम्हों ने ऐसी आस जगाई है
खुशी का नजारा होता
चमकता तारा होता वो दिन हमारा होता
क्यूं हमारी जिंदगी ठुकराई है
बेरंगी मौसम की करवट
आलम की बेरुखी यह दौर कुछ हरजाई है
बरस बीत गए असमय को समय पर भारी पड़ते
अब इसने अपनी खैर नहीं मनाई है
हर हद से गुजर गए कितने पड़ाव पार किए
न थमे न झुके जिंदगी अब तो कहीं ठहराई है।
-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

सभी वॉल अश्लील

छीन लिए हैं फोन ने, बचपन से सब चाव।
दादी बैठी देखती, पीढ़ी में बदलाव॥
मन बातों को तरसता, समझे घर में कौन।
दामन थामे फोन का, बैठे हैं सब मौन॥
नई सदी में आ रहा, ये कैसा बदलाव।
रिश्तों से ज्यादा हुआ, आज फोन से चाव॥
गूगल में अब खो गयी, रिश्तों की पहचान।
पहले जैसे है कहां, भाव और सम्मान॥
बढ़ती जाती मीडिया, खतरों का संसार।
सोच समझकर मित्रगण, साझा करें विचार॥
कोई करता ट्वीट है, कोई इंस्टा रील।
बात काम की कम दिखे, सभी वॉल अश्लील॥
दिन भर दुनिया ढूंढते, करी न खुद की खोज।
गूगल की आगोश में, हम खोए हैं रोज॥
‘सौरभ’ सोशल मीडिया, देता गहरे घाव।
बेमतलब की बात से, सामाजिक बिखराव॥
कहां हृदय मिलते भला, हर दिल बैठा चोर।
मुखपोथी-संबंध अब, अर्थहीन हर ओर॥
-डॉ. सत्यवान सौरभ

प्यार

हर गम भुलाया जाता वक्त की रफ्तार से
सूख जाते जख्म हरे, धीरे-धीरे प्यार में
नफरत के भंवर से बच सका न प्यार भी
डूब जाती जीवन नैया, पतवार बिन प्यार की
फासले ना हों दिलों में, कोई किनारा दूर नहीं
वो पास आएं या हम बुलाएं, बात जरा सी
कर देती है दिलों में दीवारें खड़ी,
रिश्तों में दरारें बड़ी
मकसद रंज भुलाना है, प्यार का चलन चलाना है
गिले-शिकवे, ‘सिक्के खोटे’
इनसे दामन बचाना है
चार दिन की जिंदगी के हर पल का लुत्फ उठाना है।
-त्रिलोचन सिंह अरोरा