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पंचनामा : टीचर्स के लिए ‘ड्रेस कोड’ … शिंदे सरकार का तुगलकी फरमान

शिक्षकों ने कहा- क्या सुधरेगी पढाई?
सरकार के फैसले से हुए नाराज

ट्विंकल मिश्रा
शिंदॅे सरकार ने राज्य में स्कूल के शिक्षकों के लिए एक ‘ड्रेस कोड’ लागू किया है, जिसके तहत उन्हें टी-शर्ट, जींस, डिजाइन या प्रिंट वाली कोई अन्य शर्ट पहनने की इजाजत नहीं होगी। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी एक सरकारी आदेश (जीआर) के अनुसार, राज्य सरकार ने स्कूलों से संबंधित पुरुष और महिला शिक्षकों के लिए ‘ड्रेस कोड’ तय करने को कहा है। सरकार के इस फैसले से शिक्षक नाखुश हैं।

कैसा होना चाहिए ड्रेस?
जीआर में कहा गया है कि शिक्षकों द्वारा पहनी जाने वाली पोशाक साफ-सुथरी होनी चाहिए। महिला शिक्षकों को साड़ी या परिधान (सलवार, चूड़ीदार, कुर्ता और दुपट्टा) पहनना चाहिए और पुरुष शिक्षक पैंट और शर्ट पहन सकते हैं। ध्यान रहें पुरुष शिक्षकों की शर्ट अंदर से टकिंग होनी चाहिए, वह बाहर न निकली हो। बताया जाता है कि पुरुष शिक्षकों के लिए हल्के रंग की शर्ट और गहरे रंग की पैंट को प्राथमिकता दी गई है। इसी के साथ महिलाएं इस बात का ध्यान रखें कि साड़ी या सलवार सूट रंग ज्यादा चटक और आंखों में चुभने वाला नहीं होना चाहिए।
टीचरों के लिए ‘साइन’ नेम 
महाराष्ट्र सरकार के इस सर्वुâलर में यह भी कहा गया है कि डॉक्टरों के लिए ‘डॉ (Dr)’, वकीलों के लिए ‘एड (Adv)’ की तरह ही, शिक्षक भी अब अपने नाम के आगे अंग्रेजी में ‘टीआर (Tr)’ और मराठी में ‘ऊ (टी)’ लगाएं। राज्य के स्कूल शिक्षा विभाग के इस निर्णय का उद्देश्य शिक्षकों को मान्यता देकर उनका मनोबल बढ़ाना है। स्कूली शिक्षा आयुक्तालय को इसके लिए पर्याप्त प्रचार-प्रसार के साथ-साथ एक साइन (प्रतीक) को अंतिम रूप देने का काम सौंपा गया है।
शिक्षकों ने जताया रोष 
सरकार के इस फरमान को लेकर शिक्षकों ने रोष जताया है उनका है उन्हें क्या पहनना है और क्या नहीं ये उनका व्यक्तिगत मामला है और उन्हें ये अधिकार भी है। इसलिए ‘ड्रेस कोड’ उन नहीं थोपा जाना चाहिए। इस बारे में एक स्कूल शिक्षक ने कहा कि शिक्षक पहले से ही उचित पोशाक पहनने के प्रति सचेत हैं। स्कूल भी अपने तरीके से इसे सुनिश्चित करने में सावधानी बरतते हैं। इसमें सरकार को हस्तक्षेप करने और शिक्षकों के लिए ड्रेस-कोड निर्धारित करने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं थी।
क्या कहते हैं अधिकारी? 
ड्रेस कोड को लेकर सरकार की तरफ से स्पष्ट किया गया है कि शिक्षकों के पहनावे का असर विद्यार्थियों पर न पड़े, इसकी वजह से ड्रेस कोड बनाया गया है। विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस संबंध में बताया कि ये सिर्फ दिशानिर्देश हैं और इन्हें शासन का आदेश नहीं माना जाना चाहिए। इसका अनुपालन न करने की स्थिति में कोई कार्रवाई करने पर अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है।

यह कोई जरूरी विषय नहीं है
शिंदे सरकार को ड्रेस कोड के अलावा और भी चीजों पर ध्यान देना चाहिए। स्कूलों के लिए यह कोई बहुत जरूरी विषय नहीं है। इसके अलावा बच्चों को किताबी पढ़ाई के साथ अलग एक्टिविटी भी करनी बहुत जरूरी है। सरकार इस पर ध्यान दे तो बेहतर होगा।
ममता राय, टीचर, पुणे

साड़ी अनिवार्य करना उचित नहीं
महिलाओं के लिए साड़ी अनिवार्य करना उचित नहीं है। विशेषता जो दूर से आती हैं या जो लोकल ट्रेनों में यात्रा करती हैं। जो महिलाएं शादीशुदा नहीं हैं उनके लिए रोजाना साड़ी पहनना एक मुश्किल वाला काम है। सरकार से अनुरोध है कि किसी भी स्कूल में रोजाना साड़ी पहनना अनिवार्य न हो। पूजा पांडे (गार्गी), मुंबई

टीचर्स पहनें पसंद के कपड़े 
मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि शिक्षा के क्षेत्र में यह अनिवार्य किया जाए क्योंकि जो भी यूनिफॉर्म संस्था देगी, एक तो उसका कपड़ा सही होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। दूसरा सभी की संस्कृति उसे मानेगी यह जरूरी नहीं है, क्योंकि हमारा देश विभिन्न संस्कृतियों वाला देश है। अध्यापक ज्यादा आकर्षक और आरामदायक महसूस करेंगे, यदि वे अपनी पसंद के कपड़े पहनें।
गायत्री शर्मा, टीचर

सरकार कर रही है समय बर्बाद 
ड्रेस कोड के बजाए सरकार को शिक्षा विभाग के कुछ नियमों का बदलना चाहिए। बच्चों के भविष्य के लिए सिर्फ किताबी पढ़ाई ही जरूरी नहीं है। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए न कि यूनिफॉर्म बदलने में अपना समय बर्बाद करना चाहिए।
अरुणा प्रभात, मुंबई

सरकार गंभीर मुद्दों पर दे ध्यान 
यह एक बेतुका सा पैâसला है। टीचर्स वैस ही कपड़े पहनकर आते हैं जो विद्यालय के लिए ठीक होता है। कपड़े बदलने से किसी की नियत नहीं बदल जाएगी। जरूरत है देश के कानून को सख्त करने की, न कि टीचर्स के कपड़ों को बदलने की। यह जरूरी पैâसला नहीं था, बेहतर होगा सरकार गंभीर मुद्दों पर ध्यान दें।
प्रीति झा, मुंबई

कपड़ों से न किया जाए जज
मैं इस बात से सहमत नहीं हूं क्योंकि वेशभूषा के बजाय सरकार को अकादमिक पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यह तो ठीक वैसा ही हो गया कि शिक्षकों को उनके कपड़ों से जज किया जाएगा। अगर हम कहते हैं कि हम लोकतांत्रिक देश में रहते हैं तो कपड़ों को लेकर आजादी होनी चाहिए। प्रगति शुक्ला, टीचर, ठाणे

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