मुख्यपृष्ठस्तंभराजधानी लाइव :  बिगुल बजा, बिसात बिछी

राजधानी लाइव :  बिगुल बजा, बिसात बिछी

डॉ. रमेश ठाकुर नई दिल्ली

प्लेन यात्रा के दौरान संबोधन होता है कि सभी यात्री अपनी कुर्सियों की बेल्ट बांध लें, मौसम कभी भी बिगड़ सकता है। ठीक उसी तरह अब देश की जनता को ढाई महीने के लिए सतर्क और सावधान हो जाना चाहिए, क्योंकि राजनीतिक माहौल बदलने वाला है। होली का त्योहार नजदीक है, रंग बिखरेंगे। लेकिन उससे कहीं ज्यादा अब राजनीतिक ड्रामेबाजी, गाली-गलौच, शोरगुल, नेताओं की बदजुबानी, अनैतिक हरकतें व लच्छेदार लोकलुभावन वायदों की बरसात होगी। आचार संहिता के नाम पर करीब ढाई महीने सरकारी कामकाज दही की तरह ठंडे पड़े रहेंगे। पूरी सरकारी मशीनरी और उनके अधिकारी-कर्मचारी चुनावों में व्यस्त हो जाएंगे। जनता के जरूरी कामों को भी आचार संहिता का हवाला देकर नकारा जाएगा। इसके अलावा किसी भी समय नेताओं की दस्तक आपके दरवाजों पर हो सकती है। उनसे जबरदस्ती स्वागत करवाने के लिए तैयार भी रहें। आपके समक्ष हाथ भी जोड़े जाएंगे और आपके पैर भी सियासी लोग पड़ेंगे। चुनाव चाहे कितने भी चरणों में क्यों न हों, लेकिन अभी वे आपके ही चरणों में दिखाई देंगे।
फिलहाल, लोकतंत्र के सबसे बड़े चुनावी महासमर का बिगुल बज चुका। दिल्ली में बीते शनिवार मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार की अगुवाई में उनकी टीम ने तारीखों का एलान करके सियासी सरगर्मियां तेज कर दी हैं। देश में ढाई माह से अधिक चलेगी चुनावी चिकचिक। संसदीय इतिहास का ये दूसरा चुनाव है, जो इतना लंबा होगा। इससे पहले सन १९५२ में करीब चार महीने की चुनावी प्रक्रिया चली थी। मौजूदा चुनाव अवधि इस बार जरूर लंबी है, पर इलेक्शन का मिजाज पिछले लोकसभा यानी २०१९ जैसा ही है। २०२४ के चुनाव भी ७ चरणों में संपन्न होंगे। पिछले लोकसभा चुनाव की तारीखें और सभी चरण भाजपा को खूब भाए थे। सफलता भी जबरदस्त मिली थी, इसलिए उसी अंदाज में मौजूदा चुनाव का शेड्यूल आयोजित हुआ है। मौजूदा शेड्यूल से भाजपा नेता खुश हैं, प्रधानमंत्री ने भी एक्स पर खुशी जाहिर की है। लेकिन विपक्ष खेमा खुश नहीं है, कुछ आपत्तियां हैं उन्हें। उनका कहना है कि चुनावी प्रक्रिया लंबी खींचने की जरूरत नहीं थी। सात की जगह पांच चरणों में भी चुनाव कराए जा सकते थे। आरोप ये भी है कि चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री के मुताबिक ही तारीखों का एलान किया क्योंकि प्रधानमंत्री चाहते हैं उन्हें प्रचार का ज्यादा से ज्यादा समय मिले।
४०० के टारगेट को पूरा करने के लिए पूरी भाजपा कमर कसे हुए है। हालांकि, इस जादुई आंकड़े को पार करना बड़ी चुनौती है। लेकिन इस टारगेट से विपक्ष पर भाजपा मनोवैज्ञानिक दवाब जरूर डालना चाहती है, वहीं अपने तीसरे कार्यकाल की तलाश में प्रधानमंत्री न केवल भारत पर अपने चुनावी प्रभुत्व की मुहर लगाना चाहते हैं, बल्कि हैट्रिक लगाकर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी करके इतिहास रचने की कवायद में भी हैं। पूरी तरह से अपने मजबूत राष्ट्रवाद के ब्रांड को आगे बढ़ाते हुए पीएम अपनी ‘मोदी की गारंटी’ और ‘विकसित भारत’ के मुद्दे पर अपनी पार्टी का इस चुनाव में नेतृत्व भी अकेले करना चाहते हैं। वह तीसरी बार प्रधानमंत्री पद पर लौटने के आत्मविश्वास के साथ चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। उनका आत्मविश्वास इतना बढ़ा हुआ है कि अभी वे प्रधानमंत्री बने भी नहीं हैं लेकिन अगले कार्यकाल का खाका बनाना अभी से आरंभ कर दिया है। लोग अचंभे में इसलिए हैं कि जब भाजपा की स्थिति मजबूत है तो खलबली क्यों? ईडी-सीबीआई के जरिए क्यों विपक्षी नेताओं को डराया-धमकाया जा रहा है? अन्य दलों के नेताओं को लालच देकर क्यों तोड़ा जा रहा है?
इसके सिवाय प्रधानमंत्री की हैट्रिक में इस वक्त सबसे बड़ा रोड़ा चुनावी चंदे का मुद्दा बन गया है। चंदे के नाम पर कितनी लूट मची थी, उस खेल का भंडा सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बिगुल बजने से पहले ही फोड़ डाला। भाजपा को विभिन्न कंपनियों ने भर-भरकर चंदा दिया, जिसने नहीं दिया, उन्हें ईडी का नोटिस भिजवाया गया। नोटिस के बाद उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए भाजपा को मुंह मांगा धन दिया। ये सभी हथकंडे बैंक द्वारा जारी आंकड़ों से एक्सपोज हो गए हैं। जनता में थू-थू मची है। देशवासियों में भंयकर नाराजगी व्याप्त है, इससे उनके वोट बैंक में नुकसान भी होगा। चंदा मामले को लेकर माहौल इतना खराब हो चुका है कि भाजपा को अपनी जान बचानी भी मुश्किल हो गई है। अगर सामान्य स्थिति होती और अन्य किसी दल की सरकार केंद्र में होती, तो सरकार गिर भी सकती थी। इस मसले पर प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री और पूरी भाजपा चुप्पी साधे हुए है। कोई कुछ भी नहीं बोल रहा। यहां तक गोदी मीडिया में भी कहीं कोई चर्चा नहीं है। वहां चर्चा सिर्फ केजरीवाल के ९वें ईडी के नोटिस को लेकर है या फिर विपक्षी दलों की आलोचनाएं? कुल मिलाकर भाजपा अपनी डैमेज स्थिति को बचाने में लगी हुई है। लेकिन शायद जितना नुकसान होना था, वो हो चुका है!
(लेखक राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान, भारत सरकार के सदस्य, राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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