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रोखठोक : बाड़ ने खेत निगला!

संजय राऊत- कार्यकारी संपादक

२०२४ के चुनावों में भारत के चुनाव आयोग का आचरण पूरी तरह से पक्षपाती था। भाजपा की घुड़दौड़ ११० से १२० पर ही रुकने वाली थी। आयोग के पक्षपात के कारण यह आंकड़ा २४० पर पहुंचा। धनुषबाण और घड़ी इन चिह्नों को  फ्रीज ही करना चाहते थे, लेकिन आयोग ने इन चिह्नों को अलगाववादियोेंं को देने का काम किया। यहां तक ​​कि मशाल और तुतारी बजा रहे इंसान के सामने भी चुनौती खड़ी करने का प्रयास हुआ। बाड़ ने ही खेत खा लिया हो, ऐसा ही ये सब हुआ।

पैसा, अपराध और घोटाले इन तीन भयानक चक्रों से भारतीय चुनाव बाहर निकले, ऐसा हर कोई चाहता है।
जो इस बार भी नहीं हो पाया, ऐसा दुर्भाग्य से कहना होगा।
नरेंद्र मोदी की भाजपा अल्पमत में आ गई और दो बैसाखियों की मदद से मोदी प्रधानमंत्री बन गए। विभिन्न प्रकार के तकनीकी घोटालों से भाजपा ने मुंबई सहित देश में कम से कम ६० से ७० स्थानों पर जीत हासिल की। अगर ऐसा नहीं होता तो भाजपा ११० से १२० पर ही रुक जाती और मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन पाते। इन सबके लिए चुनाव आयोग जिम्मेदार है। मुंबई (उत्तर पश्चिम) निर्वाचन क्षेत्र में शिवसेना के अमोल कीर्तिकर ने जीत हासिल की। हालांकि, आखिरी दो राउंड में लगभग सात सौ वोटों का डाका डाला और पोस्टल वोटों की दोबारा गिनती का नाटक करके केवल ४८ वोटों से शिंदे गुट के वायकर को विजयी घोषित करने का पराक्रम इस क्षेत्र के चुनाव अधिकारियों ने किया। पूरा देश इस मामले पर चर्चा कर रहा है और देश का चुनाव आयोग हमेशा की तरह मुंह पर उंगली रखकर मौन बैठा है। देशभर के नतीजों पर नजर डालें तो भाजपा ने करीब १३० सीटें ५०० से १००० वोटों के अंतर से जीतीं। इस जीत पर संदेह है। कम अंतर से जीती गई सीटों पर मतगणना के आखिरी दौर में घोटाले हुए थे और अमित शाह ऐसी सीटों पर विशेष ध्यान दे रहे थे। जो सीटें कांटों पर हैं, उन्हें इस तरह से खींचकर लाने की योजना मानो पहले से ही तय थी। (लोकसभा में ५००-१००० वोटों का अंतर नगण्य है। इसका मतलब है कि भाजपा ने केवल ११० सीटें जीती हैं।)

आयोग के चमत्कार
महाराष्ट्र में चुनाव आयोग द्वारा किए गए चमत्कार देखने लायक हैं। चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को गैरकानूनी तरीके से धनुषबाण का चिह्न दे दिया। कई निर्वाचन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लोगों ने ‘धनुषबाण’ के लिए मतदान किया। लोग तो वोट उद्धव ठाकरे को देना चाहते थे, किंतु आदतन उन्होंने धनुषबाण को वोट दिया, यह बात अब सामने आई है। यह सारा भ्रम भारत के विद्वान चुनाव आयोग द्वारा जानबूझकर पैदा किया गया था। क्योंकि वह निष्पक्ष नहीं रहा है। इन चुनावों में कई जगहों पर ऐसा भी किया गया कि ‘मशाल’ चुनाव चिह्न के नीचे ऐसे उम्मीदवारों को रखा गया, जिनका चुनाव चिह्न मशाल जैसा था जैसे कि मशाल, गन्ने की तीन डंडियां, जिससे ग्रामीण मतदाताओं में चिह्न को लेकर भ्रम की स्थिति होगी। मतदाताओं के बीच भ्रम पैदा करके चुनाव करवाना। मतदाता जिसे वोट देना चाहता है, उसे अपना वोट न दे पाए। यदि भ्रम पैदा कर दूसरे चिह्न पर मोहर लगाने की मानसिकता पैदा की जा रही है तो चुनाव आयोग को जिम्मेदारी से काम करना चाहिए। उद्धव ठाकरे को लेकर आयोग ने पक्षपात किया। धनुषबाण चुनाव चिह्न को फ्रीज करके चुनाव कराया जाए, ये पर्याय था। लेकिन आयोग ने मानो तय करके ही उद्धव ठाकरे से धनुषबाण छीन लिया। शरद पवार के राष्ट्रवादी कांग्रेस को तुतारी बजाते हुए इंसान का चुनाव चिह्न मिला। इस तुतारी को मतदान करते समय भ्रम पैदा हो इसके लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस के निर्वाचन क्षेत्रों में निर्दलीय के तौर पर उम्मीदवार को खड़ा करके उन्हें बाकायदा पिपिहरी-ट्रंपेट का चुनाव चिह्न दिया। चुनाव आयोग ने पिपिहरी-ट्रंपेट का उल्लेख ‘तुतारी’ के रूप में किया और इन सभी निर्वाचन क्षेत्रों में ‘तुतारी’ के लिए होनेवाला मतदान उलझन के कारण पिपिहरी और ट्रंपेट को हुआ। माढ़ा, बीड, दिंडोरी, सातारा, बारामती जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में ऐसा हुआ। सातारा सीट पर राष्ट्रवादी कांग्रेस के शशिकांत शिंदे की जीत तय थी, लेकिन वे ३२ हजार के अंतर से हार गए। शिंदे के वोट कम करने के लिए उनके विरोधियों ने ‘पिपिहरी’ चुनाव चिह्न पर उम्मीदवार खड़ा किया और उस उम्मीदवार को करीब ३७ हजार वोट मिले। ये सभी वोट ‘तुतारी’ के लिए ही होंगे। दिंडोरी निर्वाचन क्षेत्र से राकांपा के उम्मीदवार भास्करराव भगरे एक साधारण शिक्षक हैं। इस क्षेत्र में भगरे गुरुजी के नाम से ये प्रसिद्ध हैं। भारत निर्वाचन आयोग ने मतपत्र में अपने नाम के आगे भास्कर भगरे ‘गुरुजी’ लगाने के उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। उसी दौरान इसी निर्वाचन क्षेत्र के मतपत्र पर बाबू भगरे ‘सर’ ऐसा एक नाम दिखाई दिया। उनकी शिक्षा तीसरी कक्षा तक है। चुनाव आयोग ने उनके नाम के आगे ‘सर’ लगाने को मंजूरी दे दी और वास्तविक शिक्षक को ‘गुरुजी’ लगाने के अधिकार से वंचित कर दिया। इस नकली गुरुजी को ‘पिपिहरी’ चुनाव चिह्न बहाल किया और उसी पिपिहरी को तुतारी बताकर और यही असली भगरे गुरुजी कहकर प्रचार यंत्रणा करके इस बाबू भगरे ने १,०३,६३२ (लाखों में से वोट) हासिल किए। ये बाबू भगरे कौन हैं ये कोई नहीं जानता। एक गुट ने उनका नॉमिनेशन फॉर्म भर दिया और इन भगरे सर को सीधे गोवा के एक फाइव स्टार होटल में ले जाकर रख दिया। अशिक्षित बाबू भगरे ‘सर’ को जो लाखों वोट मिले, दरअसल वो असली तुतारी के हैं।
इस तरह के मतदाताओं को भ्रम में डालकर धोखे से चुनाव कराया जाता है और चुनाव आयोग इसमें शामिल होता है। यह चुनाव आयोग की तटस्थता और निष्पक्षता खत्म होने का प्रमाण है। मतदाताओं को जहां वोट देना है, वहीं वोट दें, ये जरूरी है। हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं, ऐसा हम स्वयं कहें और वास्तविक मतदाताओं को भ्रमित करके वोट हासिल करें, तो यह लोकतंत्र खोखला है।

कीर्तिकर पैटर्न
अमोल कीर्तिकर का मामला चुनाव प्रणाली का एक आदर्श घोटाला है। भाजपा द्वारा कम अंतर से जीती गई सीटों का ‘पैटर्न’ कीर्तिकर जैसा ही होगा, ये अब स्पष्ट हो गया है। हारी हुई सीटें आखिरी फेरी के बाद ‘पोस्टल बैलेट’ में हेराफेरी करके जीती जा सकती हैं। उसके लिए चुनाव प्रणाली मुट्ठी में होनी चाहिए, ये महाराष्ट्र में भाजपा और शिंदे गुट ने कर दिखाया है। फर्जी नामों, फर्जी चुनाव चिह्नों पर वोट हासिल किए गए और यह सब भारत का चुनाव आयोग खुली आंखों से देखता रहा। इसे भारत में लोकतंत्र का स्वर्ण युग समाप्त हो गया है, क्या ऐसा कहा जाए? मतदाताओं ने मोदी और शाह को बहुमत नहीं मिलने दिया। अगर चुनाव आयोग ने पर्दे के पीछे से काम नहीं किया होता तो भाजपा की कम से कम १०० से अधिक सीटें कम हो जातीं और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र जीत जाता। कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि भारत के निर्वाचन आयोग ने ऐसा होने नहीं दिया। चुनाव आयोग ने संविधान द्वारा सौंपे गए कर्तव्यों का पालन नहीं किया। इसी तरह हमारी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, जो भारतीय संविधान की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं, ने लोकतंत्र के सभी संकेतों का उल्लंघन किया। जब मोदी सरकार बनाने का दावा करने राष्ट्रपति भवन पहुंचे तो राष्ट्रपति मुर्मू बहुत आनंदित हुर्इं और दही और चीनी का कटोरा लिए आगे आर्इं। उन्होंने मोदी को ‘दही-चीनी’ खिलाई। यह तस्वीर लोकतांत्रिक संविधान में विश्वास रखने वालों को विचलित करने वाली है। मोदी ने दही-चीनी को गटगट निगल लिया। मानो जैसे लोकतंत्र को ही निगल लिया हो!
भारतीय संविधान और लोकतंत्र के रखवाले ही घोटाले कर रहे हैं। बाड़ ही खेत को खा रहे हैं। नए कल के चुनाव में बाड़ ने खेत को निगल लिया!

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