मुख्यपृष्ठस्तंभतीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा...‘थ्री टायर’ रिक्शा सरकार की राजनीति!

तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा…‘थ्री टायर’ रिक्शा सरकार की राजनीति!

राजन पारकर

राजधानी में क्या हो रहा है, ये समझने के लिए किसी गुप्तचर एजेंसी की जरूरत नहीं। ‘निधि’ नाम की पत्नी के बंटवारे को लेकर अब ‘सरकार’ नाम के पति के घर में झगड़ा मचा हुआ है। खास बात ये है कि इस घर में एक पति है, तीन सासुएं हैं और दर्जन भर दामाद- मतलब, तीन गुट। एक सत्ता की कुर्सी और उस पर बैठने के दावेदार दर्जनों!
शिंदे साहब के तंबू से हमेशा की तरह धुआं उठ रहा है। “निधि नहीं मिल रही, विकास रुक गया है, हमारे विधायक टूट सकते हैं…” ये सुर अब आदत बन गया है। लेकिन इस बार उन्होंने सीधे ‘बड़े साहब’ को शिकायत भेजी और-चमत्कार! सरकार ने झटपट एक ‘उप समिति’ गठित कर दी। ये ठीक वैसा है जैसे किसी तेज बुखार वाले मरीज को दवा देने के बजाय उसे दूसरे डॉक्टरों की जांच में भेज देना!
मज़ेदार बात ये है कि इस निधि उपसमिति का अध्यक्ष बनाया गया है उसी नेता को, जिस पर निधि के बंटवारे में भेदभाव के आरोप हैं-अजित दादा पवार! यही है असली ‘तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा’ स्टाइल!
अब सोचिए, किसी बैंक में गल्ला गायब हो जाए और उसी कैशियर को जांच अधिकारी बना दिया जाए – तो क्या ये मजाक नहीं है?
मतलब, चाबी उसी को सौंपना, जिस पर तिजोरी खोलने का शक है!
शिंदे गुट की नाराजगी अब ‘अंदरूनी फुसफुसाहट’ से बाहर आकर ‘सार्वजनिक शोर’ बन चुकी है। बोले – “दादा ने हमारी तरफ़ पीठ कर ली।”
अरे! यही हैं वही एकनाथ? जिन्होंने बगावत कर कुर्सी पाई, वो अब शिकायतपत्र पर दस्तखत कर रहे हैं?
और सरकार? वो तो बन चुकी है ‘थ्री टायर रिक्शा’-चलती कहीं भी है, लेकिन दिशा नहीं, रफ्तार नहीं। और तीन टायर–एक दिल्ली से घसीटता है, एक बारामती से और एक ठाणे से! फिर रिक्शा सीधे कैसे चलेगी?
इस पूरी यात्रा में जनता हमेशा की तरह सिर्फ़ एक मुसाफिर-पीछे की फ्री सीट पर बैठी हुई, लेकिन सारे धक्के उसी को!
सरकार को ये शायद मजाक लगे, लेकिन जनता के लिए ये एक ‘खोदाई वाला मज़ाक’ बन चुका है-सड़कें खुदी हैं, फैसले अटके हैं, निधि वितरण गड्ढों में उलझ गया है।
“यह उपसमिति जख्म पर नमक नहीं-नमक की पूरी फैक्ट्री सीधे जख्म पर बैठा दी गई है!”
शिंदे साहब, सावधान रहिए, क्योंकि ये सरकार अब तीन पहियों पर नहीं दौड़ रही, बल्कि एक ही पैर पर खड़ी है-वो भी आख़िरी सहारे के भरोसे!

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