मुख्यपृष्ठग्लैमर‘जो दिखता है वह टिकता है!’ -तनुज विरवानी

‘जो दिखता है वह टिकता है!’ -तनुज विरवानी

मॉडलिंग से अभिनय की दुनिया में कदम रखनेवाले तनुज विरवानी अभिनेत्री रति अग्निहोत्री के सुपुत्र हैं। इस वक्त तनुज ‘धर्मा प्रोडक्शंस’ यानी करण जौहर के निर्माण में बनी और दो निर्देशकों द्वारा निर्देशित फिल्म ‘योद्धा’ के कारण सुर्खियों में हैं। इस फिल्म से पहले तनुज अपनी दमदार एक्टिंग का जलवा ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिखा चुके हैं। फिल्म इंडस्ट्री में अपने करियर के १० वर्ष पूर्ण कर चुके तनुज की फिल्म ‘योद्धा’ उनकी पहली बिग बजट फिल्म है। पेश है, तनुज विरवानी से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

फिल्म ‘योद्धा’ करने की क्या खास वजह रही?
दर्शक इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि मैंने अपने १० वर्षों के करियर में ज्यादातर वेब शोज ही किए हैं। मेरे वेब शोज काफी पसंद किए गए और ओटीटी एक्टर के रूप में मेरी अच्छी-खासी साख बन गई। इन १० वर्षों में जो इक्का-दुक्का फिल्में मैंने की वो सफल नहीं रहीं। कुछ समय से मुझे बड़े पर्दे का आकर्षण होने लगा और मुझे लगने लगा कि मुझे भी बड़े पर्दे का कमर्शियल ऑडियंस मिले। जब ‘धर्मा प्रोडक्शन’ जैसे बड़े प्रोडक्शन हाउस से फिल्म ‘योद्धा’ के लिए कॉल आया तो मुझे ऐसे लगा जैसे मेरे दोनों हाथों में लड्डू हो।

आपके किरदार समर खान की क्या खासियत है?
फिल्म ‘योद्धा’ के हीरो सिद्धार्थ मल्होत्रा हैं और मैं यानी समर खान उन्हीं की टीम में काम करता हूं। कहानी की परतों के बारे में बहुत ज्यादा खुलकर नहीं कह सकता इसलिए सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ मेरा अलगाव हो जाता है और एक अर्से बाद मेरी उससे भेंट होती है। यहां कहानी को ट्विस्ट मिलता है। रिएलिस्टिक किरदार होने के साथ ही उस पर परफॉर्म करना उतना ही यादगार रहा।

इस फिल्म के लिए होमवर्क करना भी आपके लिए एक मुश्किल टास्क रहा होगा?
फिल्म ‘योद्धा’ की कहानी में मेरे दो अलग-अलग लुक नजर आएंगे। कहानी के पहले हिस्से में मैं क्लीनशेव नजर आता हूं, जबकि मेरी उम्र असलियत में ३७ वर्ष है जबकि मुझे २५ का दिखना था। फिल्म के दूसरे हिस्से में मुझे अलग ही नजर आना था। इस किरदार को समझने और निभाने के लिए मुझे एअरक्राफ्ट्स से जुड़े टेक्निकल टर्म्स समझना था। निर्देशकों ने मुझे एयरक्राफ्ट की पूरी तकनीकी जानकारी दी। हवाई जहाज से संबंधित नौकरी करनेवाला स्टाफ अमूमन एक अलग कम्युनिकेशन की भाषा में बात करता है। मैंने यह कोड लैंग्वेज भी सीख ली।

सिद्धार्थ मल्होत्रा और राशि खन्ना के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
पहली बार मैं सिद्धार्थ से ‘योद्धा’ के सेट पर मिला। वो निहायत ही साफदिल इंसान हैं। उनमें मैंने हमेशा अनुशासन, काम के प्रति लगन और निष्ठा देखी। कई हिट फिल्में देने के बाद भी उनके पांव जमीं पर हैं। सिद्धार्थ से बहुत कुछ सीखने जैसा है। मैं उनसे मिलकर बहुत प्रभावित हुआ हूं।

एक साथ दो निर्देशकों पुष्कर ओझा और सागर आंब्रे के साथ फिल्म करना आपके लिए कितना अलग था?
मैं ओटीटी की दुनिया से आया हूं और वहां राज और डीके यह डायरेक्टर की जोड़ी मशहूर है। अगर स्क्रिप्ट, संवाद, कहानी इस पर निर्देशकों की अच्छी पकड़ हो तो वे जानते हैं उन्हें क्या करना है और वैâसे काम लेना है। मुझे दो निर्देशकों के साथ काम करने की आदत ओटीटी के कारण हो चुकी है। मुझे ‘योद्धा’ के दौरान ज्यादातर सागर ने निर्देशित किया। पुष्कर ने एक्शन सीन को निर्देशित किया। अपने काम में दोनों बेहद काबिल हैं।

रति अग्निहोत्री का बेटा होने का आपने कितना प्रेशर महसूस किया?
नेपोटिज्म पर मैं कुछ कहना नहीं चाहता। यह तो अपनी-अपनी सोच है। जो दिखता है वह टिकता और आगे बढ़ता है। मैं यही मानता हूं। जहां तक मेरी मम्मी के स्टारडम का सवाल है, मॉम ने मात्र १५ वर्ष की उम्र में फिल्मों में काम करना शुरू किया और २५ की उम्र में मम्मी की शादी भी हो चुकी थी। विवाह और मातृत्व के बाद मॉम ने फिल्मों को गुडबाय कह दिया। उन्होंने अपनी जिंदगी बहुत ही सम्मान और शालीनता से गुजारी। अपनी टैलेंटेड, खूबसूरत और प्यारी मां पर मुझे जिंदगी भर नाज है और रहेगा। हां, मुझ पर अपनी मां के अभिनय की विरासत का प्रेशर शुरू-शुरू में जरूर था लेकिन जैसे-जैसे मैं अभिनय में आगे बढ़ता गया मेरा तनाव निकलता गया। अब मैं अभिनय की प्रोसेस को एन्जॉय करता जा रहा हूं।

आपने अपनी मां से क्या सीखा?
मैंने मेरी मां से क्या नहीं सीखा यह पूछिए? लेकिन उनके सभी गुणों को आत्मसात करना मेरे लिए संभव नहीं है। मां ने हमेशा से यही कहा कि बेटा तुम चाहे किसी के भी पैâन रहो लेकिन अपना अस्तित्व बनाए रखना। कोई एक्टर कितना भी महान क्यों न हो नकल से दूर रहना।

अपनी मां की कौन सी फिल्मों ने आपको प्रभावित किया?
मॉम की सभी फिल्में मेरे लिए मैजिकल रहीं। मैं उनकी फिल्मों को बार-बार देखना पसंद करता हूं। फिर भी मैं ‘कुली’, ‘मशाल’, ‘तवायफ’, ‘शौकीन’, ‘हम तुम’, ‘यादें’ जैसी फिल्मों को देखना पसंद करता हूं।

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