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ड्रेस कोड, शिक्षकों का अपमान! … शिंदे सरकार के आदेश से शिक्षक सेना आक्रामक

सामना संवाददाता / मुंबई  
राज्य में शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड लागू करने का राज्य सरकार का कदम अतार्किक, जानबूझकर शिक्षकों को अपमानित करने वाला है। नियुक्ति आदेश, स्कूल सेवा शर्तों और आरटीई एक्ट में कहीं भी इसका जिक्र नहीं है, फिर भी इस सरकार को शिक्षकों पर ड्रेस कोड थोपने का भूत चढ़ा हुआ है। इस तरह के तुगलकी फरमान के खिलाफ ‘राज्य शिक्षक सेना’ ने आरोप लगाते हुए कहा है कि अब तक ऐसा कहां पाया गया है कि शिक्षक आपत्तिजनक कपड़े पहनते हैं। अनुकरणीय छात्रों के रोल मॉडल बनने वाले शिक्षक अपनी जिम्मेदारी, नैतिकता और शालीनता के प्रति पूरी तरह जागरूक होते हैं।
हालांकि, इस पैâसले से हंगामा मच गया है। जीआर जारी होने के बाद शिक्षकों और प्राचार्यों ने कड़ा विरोध किया है। ‘राज्य शिक्षक सेना’ ने भी इस पैâसले के खिलाफ आवाज उठाई है और कहा है कि जब मंत्रालय और सरकारी प्रतिष्ठानों के लगभग १० लाख कर्मचारियों के लिए कोई ड्रेस कोड नहीं है, तो केवल शिक्षकों के लिए ही ड्रेस कोड अनिवार्य क्यों है? इस तरह का सवाल राज्य शिक्षक सेना के प्रदेश अध्यक्ष जेएम अभ्यंकर ने पूछा है।
शिक्षकों के ड्रेस के लिए सरकार की ओर से कोई व्यवस्था नहीं की जाएगी। ड्रेस तय करने की जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधकों की है और उनके द्वारा तय की गई ड्रेस शिक्षकों को उपलब्ध करानी होगी। इसलिए ड्रेस का खामियाजा शिक्षकों को ही क्यों भुगतना पड़े? इस तरह का सवाल शिक्षक सेना ने भी पूछा है। यह निर्णय लेते समय सरकार ने उन शिक्षकों के बारे में नहीं सोचा, जो आंशिक रूप से अनुदानित या नाममात्र वेतन प्राप्त कर रहे हैं और अब तक भुगतान नहीं किया गया है। क्या ड्रेस का अतिरिक्त खर्च इन शिक्षकों पर भारी नहीं पड़ेगा? अभ्यंकर ने आरोप लगाया है कि सरकार को इसकी जानकारी नहीं है।

शिक्षकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर है हमला
महाराष्ट्र प्राइवेट स्कूल कर्मचारी (सेवा की शर्तें) अधिनियम १९७७, आरटीई अधिनियम २००९, साथ ही शिक्षकों के नियुक्ति आदेश में कहीं भी ड्रेस कोड के कर्तव्य का उल्लेख नहीं है। आरटीई (२००९) की धारा २४ शिक्षकों के ६ कर्तव्य प्रदान करती है। इसके अलावा आरटीई (२०११) का नियम १० शिक्षकों के ८ अनुशासनात्मक कर्तव्यों का प्रावधान करता है। दोनों ही जगहों पर पहनावे का कोई जिक्र नहीं है। इसलिए ड्रेस कोड को लेकर राज्य सरकार का आदेश शिक्षकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला है।

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