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संपादकीय : पत्रकारों पर छापे के मायने?

प्रधानमंत्री मोदी और उनकी भाजपा के खिलाफ बोलने और लिखनेवाले वरिष्ठ पत्रकारों पर मंगलवार को दिल्ली में छापे मारे गए। ‘न्यूज क्लिक’ न्यूज वेबसाइट के संस्थापक-संपादक प्रबीर पुरकायस्थ को गिरफ्तार कर लिया गया। चीनी प्रोपेगैंडा फैलाने के लिए अवैध रूप से आर्थिक मदद लेने के आरोप के चलते ‘यूएपीए’ अर्थात अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट के तहत उन पर मामला दर्ज किया गया है। यह छापे मंगलवार की मध्यरात्रि २ बजे से शुरू हुए। जिस तरह से आतंकवादियों के अड्डों में घुसकर कॉम्बिंग ऑपरेशन किया जाता है, उसी तरह पुलिस की टुकड़ियां पत्रकारों के घरों में घुसीं। लेकिन गीता हरिहरण, अभिसार शर्मा, भाषा सिंह, उर्मिलेश, अिंनदो चक्रवर्ती, इतिहासकार सोहेल हाशमी, कार्टूनिस्ट संजय राजौरा, इरफान खान, स्तंभकार अनुराधा रमण, सत्यम तिवारी जैसे अनेक पत्रकारों पर छापे मारकर उनके फोन, लैपटॉप आदि वस्तुएं जप्त की गर्इं। कम्युनिस्ट नेता सीताराम येचुरी के निजी सहायक नारायणन के सुपुत्र सुमीत ‘न्यूज क्लिक’ में नौकरी करते हैं, जिसके कारण येचुरी के घर पर भी छापे पड़े। आपातकाल के दौरान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अखबारों की आजादी का गला घोंट दिया गया था, ऐसा कहकर शोर मचानेवालों के राज में मीडिया की स्वतंत्रता को सूली पर चढ़ा दिया गया है, ऐसा ही कहना होगा। आपातकाल में सेंसरशिप हुआ करती थी। आज की तारीख में सरकार के खिलाफ लिखना, बोलना एक देशद्रोह, आतंकवाद जैसा अपराध हो गया है। देशभर की सभी मीडिया पर भाजपा प्रणित उद्योगपतियों का अधिकार हो गया है, जिसकी वजह से सब एक जैसा ही चल रहा है। चार दिन पहले मोदी सरकार के खिलाफ दिल्ली व आसपास के राज्यों से लाखों लोग जुटे थे। रामलीला मैदान पर जनसागर उमड़ पड़ा था। लेकिन इस जनसागर का क्या कहना था, वह भाजपा की चमचागीरी करनेवाले मीडिया ने नहीं दिखाया। ऐसे गोदी मीडिया के समक्ष यह साहसी मीडिया सोशल प्लेटफॉर्म के जरिए खड़ा रहा, जिसे मिल रहे भारी जनसमर्थन को देख सरकार को मिर्ची लग गई। सरकार इतनी घबरा गई कि उसने इन पत्रकारों पर छापे की कार्रवाई शुरू कर दी। ‘प्रेस प्रâीडम इंडैक्स’ की सूची में भारत बीसवें स्थान पर जा गिरा है। कल की छापेमारी के बाद देश और नीचे लुढ़केगा। एक तरफ तो यह कहा जाता है कि भारत विश्व के लोकतंत्र की जननी है और दूसरी तरफ लोकतंत्र के चौथे स्तंभ अखबार की आजादी पर हमला करना यह कोई अच्छे लक्षण नहीं हैं। जिन पत्रकारों पर छापे मारे गए उन पर आरोप है कि चीन के प्रोपेगैंडा के लिए उन्होंने पैसे लिए। ऐसा कौन कहता है? ५ अगस्त को न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह खबर प्रकाशित की थी कि ‘न्यूज क्लिक’ को अमेरिकी अरबपति उपन्यासकार रॉय सिंघम आर्थिक मदद करते हैं। ऐसा इस खबर में किया गया दावा ही इस छापेमारी का आधार है। चीनी प्रोपेगैंडा के प्रचार के लिए भारत के साथ-साथ दुनियाभर के कई अन्य संस्थानों को सिंघम आर्थिक मदद देता है। चीन आर्थिक मदद कर रहा है अमेरिका के अखबार की इस खबर से ये छापे मारे गए लेकिन जब अमेरिका के अखबारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को हिला देनेवाली एक ‘हिंडनबर्ग’ रिपोर्ट छापी व मोदी सरकार के ‘पार्टनर’ उद्योगपति का पर्दाफाश किया, उस वक्त दिल्ली पुलिस या अन्य जांच एजेंसियों ने इस तरह के छापे मारकर देशहित के नाम का कोई डंका नहीं बजाया था। यह बात स्वीकार की जा सकती है कि चीन के मुद्दे पर सरकार में गुस्सा भरा है लेकिन पीएम केयर फंड में कुछ चीनी कंपनियों ने भी योगदान किया था, इस आरोप को वैâसे भूला जा सकता है। दूसरी ओर लद्दाख की जमीन पर चीन काफी भीतर घुस चुका है। अरुणाचल प्रदेश पर चीन ने दावा ठोक दिया है। मणिपुर की हिंसा में चीन का हाथ है। इससे रॉय सिंघम का कोई संबंध नहीं है। भारत में घुसपैठ कर चुके चीन पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं है। लेकिन पत्रकारों पर छापे मारकर सरकार अलग ही सिंघमगीरी दिखाने का प्रयास कर रही है। पत्रकारों पर छापेमारी से क्या हासिल हुआ, इसका विस्तृत ब्यौरा सरकार को सार्वजनिक करना चाहिए, ऐसी मांग प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने की है। अभिसार शर्मा की जांच की और छोड़ दिया। छूटने के बाद शर्मा कहते हैं, ‘पूछे गए हर सवाल का जवाब दिया जाएगा। डरने जैसा कुछ नहीं है। सत्ता में बैठे लोग और खासकर जिन्हें सरल सवालों से भी डर लगता है, ऐसे लोगों से मैं सवाल पूछता रहूंगा। किसी भी हालात में पीछे नहीं हटूंगा।’ इसी दौरान महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री श्री फडणवीस द्वारा ‘चीन पर हमला किए जाने से चीन में हड़कंप मच गया है। देश में विरोधियों के पीछे एक शक्ति है और उन्हें देश में अराजकता मचानी है। इसके लिए चीन से वित्तीय मदद मिल रही है’, ऐसा आरोप लगाया गया। श्री फडणवीस का आरोप गंभीर है। पाकिस्तान के मुद्दे की हवा खत्म होने के बाद अब चीन के पहिए में हवा भरने का काम चल रहा है। महाराष्ट्र के विधायकों को ५०-५० खोके देकर सरकार गिराने के लिए किस चीनी सिंघम में वित्तीय मदद प्रदान की, इसकी भी जांच फडणवीस को करनी चाहिए। ‘न्यूज क्लिक’ पर पड़े छापों की तर्ज पर विधायक तोड़ने के लिए आर्थिक मदद करनेवालों पर छापे नहीं पड़े। सरकारी तंत्र का दुरुपयोग विपक्षियों की आवाज दबाने के लिए किया जाए यह कोई लोकतंत्र नहीं है। केंद्र सरकार ने पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई का समर्थन किया। ऐसा होता तो भाजपा को आपातकाल निषेध करना छोड़ देना चाहिए। जांच एजेंसियां स्वायत्त और स्वतंत्र होकर अपना कर्तव्य कानूनी ढंग से निभा रही हैं, ऐसा केंद्रीय प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर कहते हैं। जांच एजेंसियां स्वायत्त हैं या सरकार की गुलाम हैं, यह पूरा देश जानता है। ‘ईडी’ जैसी जांच एजेंसी को सर्वोच्च न्यायालय ने फटकार लगाई है कि, ‘निष्पक्ष रहो, बदले की भावना से कार्रवाई मत करो।’ इसी में सब समाहित है। पत्रकारों पर छापे और कार्रवाई यह एजेंसी के निष्पक्ष न होने के लक्षण सरकार डरी हुई है, ऐसे लक्षण है!

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