मुख्यपृष्ठस्तंभमेहनतकश : कोशिश करनेवालों की हार नहीं होती!

मेहनतकश : कोशिश करनेवालों की हार नहीं होती!

नागमणि पांडेय

हरदिल अजीज मुंबई सपनों के शहर के नाम से मशहूर है। यहां हर व्यक्ति अपने सपने को साकार कर सकता है, बस जरूरत है तो कठिन परिश्रम की। जो संघर्षों से लड़ता हुआ अपनी मंजिल की तरफ बढ़ा है, मुंबई ने उसे सफलता का स्वाद जरूर चखाया है। मायानगरी में शून्य से शिखर तक पहुंचने के कई किस्से देखने और सुनने को मिल जाते हैं। इसी कड़ी में एक नाम टार्गेट पब्लिकेशंस प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक दिलीप गंगारमानी का भी शामिल है। २ अक्टूबर, २००६ को जब उन्होंने टार्गेट का बीजारोपण किया था, तब उन्होंने भी शायद यह नहीं सोचा होगा कि एक दिन यह एक विशाल वटवृक्ष बन जाएगा। शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी टार्गेट पब्लिकेशंस आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है। महाराष्ट्र के साथ ही देश के कोने-कोने में रहनेवाले अनगिनत विद्यार्थी टार्गेट की शैक्षणिक पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त कर अपना भविष्य उज्ज्वल बना रहे हैं।
सफलता के शिखर पर पहुंचने वाले दिलीप की राह आसान नहीं थी, लेकिन उन्होंने कभी परिस्थितियों के सामने घुटने नहीं टेके। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण ग्रेज्युशन के दौरान ही उन्होंने एक शैक्षणिक संस्था में नौकरी कर ली। वहां उन्होंने विद्यार्थियों की आवश्यकताओं और उन्हें उपलब्ध कराई जानेवाली सामग्री का गहन अध्ययन किया। वहीं काम करते हुए उनके मन में शिक्षा के क्षेत्र में कुछ नया करने का अंकुर फूटा, लेकिन सवाल यह था कि आखिर पूंजी कहां से आए। न जेब में पैसे थे, न राह दिखानेवाला और न ही कोई साथ देनेवाला था। उनके पास था तो केवल कुछ कर गुजरने का जुनून था। कहते हैं कि कोशिश करनेवालों की हार नहीं होती है। बुलंद हौसलों के साथ उन्होंने टार्गेट पब्लिकेशंस की नींव रखी और फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज उनकी संस्था में लगभग ३५० कर्मचारी काम कर रहे हैं। टार्गेट पब्लिकेशंस अब तक लगभग ६५० पुस्तकों का प्रकाशन कर चुका है और यह गिनती लगातार बढ़ती चली जा रही है।
दिलीप शिक्षा में गुणवत्ता के साथ ही तकनीक को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं। उनका मानना है कि बदलते वक्त के साथ ही शिक्षा के पारंपरिक तरीकों में भी बदलाव होना अनिवार्य है। इसी के मद्देनजर टार्गेट विद्यार्थियों को रोबोटिक और एआई शिक्षा से संबंधित पुस्तकें व सामग्रियां भी उपलब्ध करा रहा है।
फर्श से अर्श तक के उनके इस सफर में जब भी उनके विरोधियों ने उन्हें पीछे धकेलने की कोशिश की तो वे पूरी हिम्मत के साथ आगे बढ़े। शिक्षा को समाजसेवा के रूप में देखनेवाले दिलीप की यही कोशिश है कि देश का कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे और हर विद्यार्थी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो। इसी उद्देश्य के साथ वे आगे बढ़ते चले जा रहे हैं। उनका यह सफरनामा हमेशा लोगों में एक उत्साह भर देता है। उनकी सफलता यह साबित करती है कि मुंबई कभी किसी को निराश नहीं करती है।

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