कस्तूरी

स्मृतियां कैसी भी हों
हृदय पटल पर हर पल
अंकित रहती है।
बीत रहा हर क्षण
इन्हीं स्मृतियों से
कहीं न कहीं जुड़ा होता है।
प्रभात हो या संध्या
हो ऋतु की कोई बेला
नहीं होता कभी भी
यह चित अकेला।
बिछड़ गया हो साथी
यही यादें सखी से अरि बन जाती हैं।
अश्रु की बूंदें आंखों की
कोरों पर टिक जाती हैं।
खट्टी-मीठी यादों को भिगोते
वियोग में वह क्षण
मन को अधिक व्यथित करते हैं
संयोग में जिन्हें हमने तरजीह न दी होती है
लगता है छाया चित्र में
अब तुम बोल पड़ोगे
तुम्हारी छवि पर पुष्प माला
नहीं लगाती हूं मैं,
पुष्प सूख कर झर जायेंगे
पर हो तुम जीवंत मेरे मन में।
समय न रुका न रुकेगा
सांसों का सिलसिला चलता रहेगा।
प्रिय तेरे प्यार की कस्तूरी
मुझे सतत सुवासित करती रहेगी।

बेला विरदी।

खत्म हुई अठखेलियाँ

दुनिया मतलब की हुई, रहा नहीं संकोच।
हो कैसे बस फायदा, यही लगी है सोच॥

औरों की जब बात हो, करते लाख बवाल।
बीती अपने आप पर, भूले सभी सवाल॥

मतलब हो तो प्यार से, पूछ रहे वह हाल।
लेकिन बातें काम की, झट से जाते टाल॥

लगी धर्म के नाम पर, बेमतलब की आग।
इक दूजे को डस रहे, अब जहरीले नाग॥

नंगों से नंगा रखे, बे-मतलब व्यवहार।
बजा-बजाकर डुगडुगी, करते नाच हज़ार॥

हर घर में कैसी लगी, ये मतलब की आग।
अपनों को ही डस रहे, बने विभीषण नाग॥

बचे कहाँ अब शेष हैं, रिश्ते थे जो ख़ास।
बस मतलब के वास्ते, डाल रहे सब घास॥

‘सौरभ’ डीoसीo रेट से, रिश्तों के अनुबंध।
मतलब पूरा जो हुआ, टूट गए सम्बन्ध॥

तेरी खातिर हों बुरे, नहीं बचे वे लोग।
समझ अरे तू बावरे, मतलब का संयोग॥

रिश्तों में है बेड़ियाँ, मतलब भरे लगाव।
खत्म हुई अठखेलियाँ, गायब मन से चाव॥

—डॉo सत्यवान ‘सौरभ’
तितली है खामोश (दोहा संग्रह)

कविता – न मिला

एक उम्र खरच कर कुछ न मिला
तुमको क्या पता सचमुच न मिला
क्या हुआ है कोई धरती पर
के जिसको थोड़ा भी दुःख न मिला

अपार हर्ष के साथ सहर्ष
निज आगमन को स्वीकार किया
कुछ ही सपनों का जीवन में
फिर से जीर्णोद्धार किया
धीरज को जेहन तक ले जाए
ऐसा कोई सम्मुख न मिला
क्या हुआ है कोई धरती पर
के जिसको थोड़ा भी दुःख न मिला

जीवन में हर दिन बाधा लेकर
कभी पूरा तो कभी आधा लेकर
आदमी सुखी रहा है कभी?
कम या थोड़ा ज्यादा लेकर
आदमी कभी तृप्त हुआ ही नहीं
फिर कैसे कहे के कलुष न मिला
क्या हुआ है कोई धरती पर
के जिसको थोड़ा भी दुःख न मिला

आदमी क्या कभी निर्विवाद रहा
क्या जीवन भर वो आबाद रहा
जिसे भूल गया उसे याद किया
जो भूल गया उसे याद रहा
फिर जीवन भर ये खेल चला
और मानुष को भल मानुष न मिला
क्या हुआ है कोई धरती पर
के जिसको थोड़ा भी दुःख न मिला
-सिद्धार्थ गोरखपुरी

ब्रज की एक संध्या

पावस बरसा,सावन बरसा
जल बरसा घनघोर,
ब्रज भूमि में काली घटाएं
छा गई चंहु और।
पावस बरसा——–
ग्वाल सखा संग कान्हा निकले
कालिंदी कुंज की ओर,
भूरी ,कजरी, काली धेनू
सब मिल रंभा रही जोर।
पावस बरसा ———-+
श्याम वर्ण,पीत वसन
हरित मुरलिया,धवल पुष्प माल
भाल सुहावे मोर मुकुट
कान्हा तो बने चितचोर।
पावस बरसा——–
धेनु चरावें, बांसुरी बजावें
ग्वाल सखा संग रार मचावें,
कदंब झार से झांक रहे
पपीहा खंजन और मोर।
पावस बरसा ———-
आज कन्हैया लग रहे अधूरे
अपनी राधा को कैसे भूले,
राधा लग रहीं कुछ रूठी
काहे ठाड़ी हैं दूर-दूर।
पावस बरसा——–
पल में कान्हा टोली से बाहर आए
अपनी राधा को हाथ बढ़ाएं,
पकड़ ले गये मझधार टोली के
मुरली बजाई बहुत जोर।
पावस बरसा ————
तर्जनी तनूजा लहर उठी
जबर तड़िता चमक गई ,
पांखुरयो भरी मंजूषा बिखर पड़ी
ब्रज भूमि संध्या में आज
आंनद लहर छाई चहूं और।
पावस बरसा सावन बरसा
जल बरसा घनघोर।
बेला विरदी।

यूपी में बिखरे पंजाबी समाज को एकजुटता की कवायद

सामना संवाददाता / मुरादाबाद
पंजाबी संगठन, यूपी की कपूर कंपनी के समीप एक होटल में हुई बैठक में वक्ताओं ने पंजाबी समुदाय के बिखराव और छोटे-छोटे खेमों में विभाजित होने पर गहरी चिंता जताई। सभी वक्ताओं ने एकजुटता पर जोर देते हुए कहा, संगठन में ही शक्ति होती है। बैठक में पंजाबी भाषा, संस्कारों, रीति-रिवाजों, शिक्षा, जॉब्स और वैवाहिक संबंधों सरीखे विषयों पर विचार व्यक्त किए गए। मुरादाबाद समेत यूपी भर में बिखरे पंजाबी समाज को एकजुट करने की जिम्मेदारी पंजाबी संगठन, यूपी के जिलाध्यक्ष वीरेंद्र अरोड़ा, विनोद गुम्बर के संग-संग तमाम पंजाबी समाज के सीनियर्स को सौंपी गई है। शिवसेना के अरोड़ा की ओर से पंजाबी समुदाय के प्रति सेवा, संकल्प और समर्पण के लिए करतल ध्वनि के बीच शाॅल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। पंजाबी संगठन के जिला संयोजक नरेंद्र सिक्का उर्फ हैप्पी ने जल्द ही संगठन के लिए सदस्यता अभियान चलाने का फैसला लिया गया। मीटिंग में  विनोद गुम्बर और प्रो. श्याम सुंदर भाटिया की उल्लेखनीय मौजूदगी रही। बैठक में थोड़ी देरी से पहुंचे श्री गुम्बर बोले, सभी को राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर पंजाबी एकता पर संजीदगी से सोचना होगा। उल्लेखनीय है, श्री गुम्बर का भी पंजाबी समुदाय के कल्याणार्थ अविस्मरणीय योगदान रहा है।

पंजाबी समुदाय की एकता के प्रतीक वीरेंद्र अरोड़ा ने पंजाबी संगठन के महत्व और संगठन के विस्तार पर व्यापक विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा, किसी भी कम्युनिटी के लिए एक जुटता जरूरी है। उन्होंने कहा, तीस बरसों से मैं न केवल पंजाबी समुदाय, बल्कि सर्वसमाज की निस्वार्थ सेवा कर रहा हूं। अरोड़ा बोले, युवा शक्ति के संग-संग नारी सशक्तीकरण भी वक्त की दरकार है। उन्होंने श्रीराम मंदिर मुक्ति आन्दोलन से लेकर संभल के हरिहर मंदिर तक के अपने और अपने संगठन के योगदान पर प्रकाश डाला। अंततः बोले, जैसे शरीर में रीढ़ की हड्डी महत्वपूर्ण होती है, वैसे ही बिना संगठन के कोई भी समुदाय अपने हकों के लिए नहीं लड़ पाएगा। मीटिंग में जोगेन्द्र कत्याल, सुमित कत्याल, संदीप बजाज,  नीटू टोडा, पोनी सहगल, सरदार गुरदीप सिंह बेदी,  महेन्द्र कुमार,  केवल सिक्का,  सुनील सिक्का,  कमलदीप छाबड़ा,  भारत अरोड़ा, सरदार इंद्रजीत सिंह,  राजू कपूर,  विकास छाबड़ा,  अजय कंकड़,  रूबल सचदेवा,  विकास छाबड़ा,  विकास भाटिया, आदर्श कथूरिया आदि की उल्लेखनीय मौजूदगी रही।

लॉरेंस के शिकंजे में पुणे : कॉलेजों तक पहुंचे बिश्नोई के रिक्रूटर! …छात्रों को गैंग में शामिल करने का गोरखधंधा हुआ उजागर

– लग्जरी लाइफ के लालच में आ रहे हैं युवा
– एटीएस के शिकंजे में आए शूटरों ने किया खुलासा
– हरियाणा में भी गैंग की होती है भर्ती
सामना संवाददाता / मुंबई
अपराध की दुनिया में तेजी से छा जानेवाले गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के शिकंजे में पुणे के कॉलेज हैं। गैंग में नए शूटरों को भर्ती करने के लिए बिश्नोई के रिक्रूटर अब पुणे के कॉलेजों तक जा पहुंचे हैं। वहां पढ़नेवाले कुछ छात्रों को लग्जीरियस लाइफ का लालच देकर उन्हें गैंग में भर्ती किया जा रहा है। पुणे के अलावा हरियाणा के
कॉलेज में भी शूटरों की भर्ती करने के लिए बिश्नोई गैंग के रिक्रूटर चक्कर लगा रहे हैं।
एटीएस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, अपराध की दुनिया के सरगना अब कॉलेज छात्रों को अपने गैंग में शामिल कर रहे हैं। कम समय में ज्यादा पैसा कमाना और लग्जरी लाइफ का लालच देकर इन छात्रों का ब्रेनवॉश किया जा रहा है। इस तरह का सनसनीखेज खुलासा हाल ही में पकड़े गए बिश्नोई गैंग के शूटरों ने एटीएस से किया है। मुंबई में एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद मुंबई क्राइम ब्रांच ने बिश्नोई गैंग के कई सदस्यों को गिरफ्तार किया, जिनसे कई चौंकानेवाली जानकारी सामने आई है।

गोल्डी बराड़ के आदेश पर
लॉरेंस गैंग में छात्रों की भर्ती!

लॉरेंस बिश्नोई का गैंग नए सदस्यों की भर्ती के लिए कॉलेजों का चक्कर लगा रहा है। हाल ही में बिश्नोई गैंग के दो शूटरों ने एटीएस की पूछताछ में यह बात कबूल की है। यह काम विदेश में बैठे गोल्डी बराड़ के आदेश पर किया जा रहा है। बिश्नोई गैंग के दो आरोपियों विनय कालवानी और अजीम सहरावत ने एटीएस को पूछताछ के दौरान बताया कि पुणे और हरियाणा के कई कॉलेज छात्रों को बिश्नोई गैंग में शमिल कराया जा रहा है।
बता दें कि हाल ही में चंडीगढ़ में दो क्लबों के पास विस्फोट किया गया था। विस्फोट के बाद बिश्नोई गैंग ने सोशल मीडिया के जरिए ब्लास्ट की जिम्मेदारी ली थी। इसके बाद पुलिस हरकरत में आई और बिश्नोई गैंग के दो आरोपी विनय कालवानी और अजीत सहरावत को गिरफ्तार किया गया। हिसार एटीएस ने जब पकड़े गए आरोपियों से सख्ती से पूछताछ की तो कई सनसनीखेज जानकारी सामने आई। पकड़े गए आरोपियों ने बताया कि पुणे और हरियाणा के हिसार जिले में कई कॉलेज छात्रों को बिश्नोई गैंग में शामिल किया जा रहा है और यह काम विदेश में बैठे गोल्डी बराड़ कर रहा है। आरोपियों ने एटीएस को बताया है कि छात्रों को विदेश में सेटल कर उन्हें लग्जीरियस लाइफ देने का लालच दिया जाता है, ताकि वे गैंग के झांसे में आ जाएं। आरोपियों के खुलासे को तब और बल मिल जाता है, जब मुंबई क्राइम ब्रांच को आरोपी शिवकुमार गौतम ने पूछताछ में बताया था कि उसे विदेश में सेटल करने के साथ-साथ मोटी रकम देने का वादा बिश्नोई गैंग के गोल्डी बराड़ ने किया था। शिवकुमार गौतम को बाबा सिद्दीकी हत्या के आरोप में मुंबई क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया है।

संपादकीय : स्वबल की नई परीक्षा …आप, तृणमूल व अन्य

‘इंडिया’ गठबंधन के प्रमुख सदस्य ‘आम आदमी पार्टी’ यानी ‘आप’ ने दिल्ली विधानसभा के लिए ‘स्वबल’ का नारा दिया है। दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनाव वह अकेले लड़ेगी। ‘आप’ के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल की भूमिका है कि वे किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। इसका मतलब है कि ‘आप’ ने विधानसभा के लिए कांग्रेस पार्टी से तलाक ले लिया। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आप के बीच दिल्ली, हरियाणा, गुजरात में गठबंधन हुआ, लेकिन ये दोनों दिल्ली में एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत सके। हरियाणा और गुजरात में भी कांग्रेस की मदद से ‘आप’ ने एक-एक सीट पर लड़ने की कोशिश की। वोट तो भरपूर मिले, लेकिन सीटें नहीं जीती जा सकीं। कांग्रेस के साथ गठबंधन का लोकसभा में कोई फायदा नहीं हुआ और ऐन चुनाव में ही कांग्रेस और आप के बीच मनमुटाव बढ़ गया। स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व ने ‘आप’ पर हमला जारी रखा। कांग्रेस ने अपने शीर्ष नेताओं को दिल्ली में उतारा और वे हार गए। इसमें आप की गलती क्या है? कन्हैया कुमार भी दिल्ली से उम्मीदवार थे। उनकी हवा अच्छी बनी थी। फिर भी जैसे कन्हैया कुमार गिरे, वैसे ही आप के नेता भी गिरे। इसलिए एक-दूसरे के माथे खप्पर फोड़कर क्या होगा? ‘आम आदमी पार्टी’ दिल्ली विधानसभा और दिल्ली महानगरपालिका चुनाव जीतती है, लेकिन लोकसभा चुनाव हार जाती है। ‘आप’ का प्रचार तंत्र, कार्यकर्ताओं की मेहनत में भी वे पीछे नहीं हैं। फिर भी भाजपा ने उन्हें लोकसभा चुनाव में हरा दिया। ऐसा लगता है कि दिल्लीवासियों ने तय कर लिया है कि लोकसभा में भाजपा और विधानसभा और महानगरपालिका में आम आदमी पार्टी को जिताना है। इन सबके बीच कांग्रेस पार्टी मुश्किल में फंसती नजर आ रही है। यदि ‘आप’ जैसा ‘इंडिया’ गठबंधन का घटक दल स्वबल का नारा बुलंद कर रहा है तो कांग्रेस नेतृत्व को ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि यह स्वबल की बीमारी अन्य राज्यों तक न पैâले। ‘आप’ नेता अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह के मामले में ईडी, सीबीआई का जमकर इस्तेमाल किया गया। हालांकि, ‘आप’ के नेतृत्व ने आत्मसमर्पण नहीं किया और उन्होंने तानाशाही के खिलाफ अपनी लड़ाई बरकरार रखी। केजरीवाल ने मोदी की नीतियों पर तीखे हमले जारी रखे हैं और दबाव के बाद भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते दिल्ली की कानून व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए केजरीवाल यह कहने से बिल्कुल नहीं हिचकिचाते कि दिल्ली के अपराधीकरण के लिए अमित शाह खुद जिम्मेदार हैं। केजरीवाल जेल से बाहर आए और अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए संघर्ष करते रहे। उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसका बढ़िया असर हुआ। इससे शराब घोटाले की बदनामी कम हुई और उस शराब का सुरूर भाजपा को चढ़ गया। दिल्ली क्षेत्र में प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य क्षेत्र में ‘आप’ सरकार द्वारा किए गए कार्य काबिल-ए-तारीफ हैं। ‘आप’ ने उसी के दम पर ‘पंजाब’ जैसे राज्य पर भी कब्जा कर लिया। उन्होंने पंजाब में कांग्रेस को हराया और दिल्ली में भाजपा और कांग्रेस को पछाड़ते हुए राज्य जीता। लोगों के सहयोग के बिना ऐसी सफलता हासिल नहीं की जा सकती। इसलिए ‘आप’ जैसे ‘मित्र’ का होना भाजपा विरोधी गठबंधन की जरूरत है। गुजरात राज्य में ‘आप’ का जाल फैल गया है। अगर ‘आप’ और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो गुजरात में अच्छे नतीजे तय हैं। ‘आप’ अब क्षेत्रीय पार्टी नहीं रही और कई राज्यों में उभर चुकी है। इसलिए ‘आप’ को विधानसभा में मतभेद को छोड़कर ‘राष्ट्रीय’ गठबंधन में रहना चाहिए। यही राष्ट्रहित में है। पश्चिम बंगाल में सुश्री ममता बनर्जी कांग्रेस से दो हाथ दूर रहकर अपनी राजनीति करने की कोशिश कर रही हैं। अब ‘आप’ के केजरीवाल ने भी यही शंख फूंका है। यह कांग्रेस पार्टी के लिए चिंतन-मंथन करने और एकजुटता के लिए पहल करने का मामला है। हमें चिंता है ‘इंडिया’ गठबंधन की एकता की। केजरीवाल के मन को बदलवाना ही होगा!

बांग्लादेशी हिंदुओं पर अत्याचार क्यों चुप है भाजपा सरकार? …आदित्य ठाकरे का केंद्र से सवाल

सामना संवाददाता / मुंबई
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों को लेकर केंद्र सरकार चुप क्यों है? शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता, युवासेनाप्रमुख और विधायक आदित्य ठाकरे ने केंद्र सरकार से यह सवाल पूछा है। उन्होंने पूछते हुए कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार ने इस मुद्दे पर कुछ कदम क्यों नहीं उठाया? क्या विदेश मंत्रालय इस पर सच बताएगा!
आदित्य ठाकरे ने सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए लिखा है कि हमने सुना है कि बांग्लादेश में फिर से हिंदुओं पर अत्याचार हो रहे हैं, लेकिन केंद्र सरकार शांत है। जो खबरें आ रही हैं, वे सच हैं या नहीं? एक महीने पहले जब बीसीसीआई ने बांग्लादेश की क्रिकेट टीम को भारत में खेलने का न्योता दिया था, तब भी हमने यही सवाल उठाया था। उन्होंने आगे लिखा कि वहां हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं अगर यह सच है, तो हर छोटे मुद्दे पर हिंदुत्व का पाठ पढ़ाने वाले लोग अब चुप क्यों हैं? भाजपा की केंद्र सरकार आखिर क्यों खामोश है? क्या विदेश मंत्रालय इस पर सच्चाई बताएगा? आदित्य ठाकरे के इन सवालों ने केंद्र सरकार के रुख पर बहस छेड़ दी है।

‘गृह’ युद्ध! … मुख्यमंत्री पद का कांटा बना हुआ है गृह मंत्रालय

– भाजपा और शिंदे गुट की सिर फुटव्वल जारी
रामदिनेश यादव / मुंबई
दुनिया में कई जगहों खासकर मध्य पूर्व के देशों में सत्ता के लिए गृह युद्ध की खबरें आती रहती हैं, जिसमें हजारों लोगों की जानें जाती रहती हैं। महाराष्ट्र में भी इन दिनों एक ‘गृह’ युद्ध जारी है। हालांकि, यहां कोई खूनी विद्रोह की स्थिति नहीं, बल्कि चुनाव में महायुति की जीत के बाद एक राजनीतिक जोर-आजमाइश चल रही है, जिसके केंद्र में गृह मंत्रालय है। इस वजह से मुख्यमंत्री पद का कांटा बना हुआ है गृह मंत्रालय और इसे लेकर भाजपा व शिंदे गुट में सिर फुटव्वल जारी है। नई सरकार में शिंदे गृह मंत्रालय लेने पर अड़े हुए हैं, जबकि फडणवीस इसे किसी भी सूरत में शिंदे को देने के लिए तैयार नहीं हैं। भले ही शपथग्रहण की तारीख तय हो गई है, पर इस ‘गृह’ युद्ध के कारण ही अभी तक नई सरकार की रूपरेखा नहीं बन पा रही है।

शिंदे को सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के भी लाले!

सूचना एवं जनसंपर्क विभाग महत्वपूर्ण है, जो फडणवीस का पसंदीदा विभाग है। उसके जरिए राज्य के तमाम विभागों में होने वाली गतिविधियों पर नजर रखी जाती है। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने खास आदमी को उसका मुखिया बना रखा है।

महाराष्ट्र में सत्ता गठन को लेकर महायुति की ओर से नियम के बाहर जाकर जोरदार तैयारियां चल रही हैं। शपथ ग्रहण समारोह ५ दिसंबर की शाम ५ बजे आजाद मैदान में किए जाने की घोषणा कर दी गई है। महायुति सरकार की शपथ विधि का कार्यक्रम नजदीक आ रहा है, लेकिन कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की बीमारी ठीक होने का नाम नहीं ले रही है। नई सरकार में मुख्यमंत्री पद हाथ से जाने के बाद से बीमार हुए शिंदे अब तक ठीक नहीं हुए हैं। उनकी बात अब गृहमंत्री पद पर रुकी है, लेकिन भाजपा के सामने लाचार हो चुके शिंदे को अब गृहमंत्री पद भी नहीं मिलने का आभास हो गया है। ऐसे में वे अब सूचना एवं जनसंपर्क विभाग मांग रहे हैं। उनकी आस अब इस विभाग पर अटकी है। सूत्रों की मानें तो यह विभाग भी भाजपा उन्हें देने के मूड में नहीं है।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, शिंदे की बीमारी नहीं यह सत्ता की लाचारी है, उनकी मांगें पूरी नहीं होने से उनकी तबीयत पर असर पड़ रहा है। बता दें कि मुख्यमंत्री पद भाजपा के पास जाने से शिंदे गुट खफा है, लेकिन उसकी लाचारी है कि वह भाजपा से अलग नहीं हो सकता है। इसीलिए जब शिंदे को भाजपा ने मुख्यमंत्री पद देने से इनकार किया तो वे निराश होकर अपने गांव सातारा के दरेगांव चले गए, लेकिन वहां से भी वे गृहमंत्री पद के लिए गुहार लगाते रहे। यह नहीं मिलने से उन्हें तेज बुखार हो गया, उनकी तबीयत बिगड़ गई। नाराज शिंदे को मनाने की कोशिश की गई, लेकिन फडणवीस के फोन के बाद वे अपने पैतृक गांव से लौट तो आए, पर ठाणे में फिर से बीमार होने की खबर आ रही है। सूत्रों की मानें तो उन्होंने कल सोमवार को अपनी सभी बैठकें लगभग रद्द कर दीं और किसी से मुलाकात नहीं की।
बीमारी है या लाचारी?
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि यह शिंदे की बीमारी है या उनकी लाचारी, जो भाजपा के सामने इतने बेबस नजर आ रहे हैं। मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद गृहमंत्री पद मांगा, वह भी नहीं मिलेगा, वित्त मंत्रालय अजीत पवार के पास जाएगा, ऐसे में शिंदे के खाते में शहरी विकास और सार्वजनिक बांधकाम विभाग ही आएगा, लेकिन सरकार में मजबूत पकड़ वाला कोई विभाग उनके पास नहीं होगा। ऐसे में सूचना एवं जनसंपर्क विभाग महत्वपूर्ण है, जो फडणवीस का पसंदीदा विभाग है। उसके जरिए राज्य के तमाम विभागों में होने वाली गतिविधियों पर नजर रखी जाती है।

कोई मुख्यमंत्री नहीं बन पा रहा है, इसका दु:ख! …गडकरी ने भी ली चुटकी

सामना संवाददाता / मुंबई
केंद्रीय परिवहन व राजमार्ग मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी किसी भी हालत में चुटकी लेने से बाज नहीं आते। अब कल नागपुर के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पद की चाहत पर टिप्पणी कर चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया है। लोग इसे महाराष्ट्र की वर्तमान परिस्थिति से जोड़कर देखकर मजा ले रहे हैं। गडकरी ने उक्त कार्यक्रम में कहा कि कोई मुख्यमंत्री नहीं बन पा रहा, इसका उसे दु:ख है!
इतना ही नहीं, गडकरी ने राजनीति को असंतुष्ट आत्माओं का समुद्र करार दिया है। वे नागपुर में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के दौरान बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि राजनीति में हर कोई असंतुष्ट और दु:खी है। हर व्यक्ति को अपनी वर्तमान स्थिति से बड़ा पद चाहिए।

हर तरफ पसरा है दु:ख ही दु:ख
विधायक बनने के लिए
दु:खी हैं नगरसेवक!
गडकरी ने दिखाया वर्तमान राजनीति का चेहरा

नागपुर के एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने आज की राजनीति का चेहरा उजागर किया है। कार्यक्रम में बोलते हुए नितिन गडकरी ने कहा कि राजनीति असंतुष्ट आत्माओं का समुद्र है, जहां हर कोई दुखी है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि नगरसेवक इस बात से दुखी है कि उसे विधायक बनने का मौका नहीं मिला। विधायक इसलिए नाराज हैं कि उन्हें मंत्री पद नहीं मिला। मंत्री दुखी हैं कि वे मुख्यमंत्री नहीं बन सके। वहीं मुख्यमंत्री को इस बात का डर है कि हाईकमान कभी भी उनसे पद छोड़ने के लिए कह सकता है। गडकरी ने आगे कहा कि जीवन में कई चुनौतियां होती हैं। इनका सामना करते हुए आगे बढ़ना ही जीवन जीने की कला है। उन्होंने इस दौरान अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की आत्मकथा का जिक्र किया और कहा कि इंसान तब समाप्त नहीं होता जब वह हारता है, बल्कि तब समाप्त होता है जब वह प्रयास करना छोड़ देता है। गडकरी का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब हाल ही में संपन्न महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में महायुति ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया है। हालांकि, इसके बाद अब मुख्यमंत्री पद को लेकर महायुति में संशय की स्थिति बनी हुई है। हालांकि, कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि मुख्यमंत्री कोई भी बने, उन्हें मंजूर है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि शिंदे फिर से मुख्यमंत्री बनने के लिए बेचैन हैं।