संपादकीय : क्या किसान लाड़ले नहीं?

महाराष्ट्र में मिस्टर लाचार शिंदे एंड कंपनी की नेतृत्व वाली असंवैधानिक मौजूदा सरकार आगामी विधानसभा चुनाव के बाद हमेशा के लिए भंग हो जाएगी, लेकिन इस ‘खोकेबाज’ सरकार ने राज्य के खजाने की जो भयानक दुर्दशा की है, उसे चिंताजनक कहा जाना ही उचित है। स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि राज्य के वित्त विभाग के पास छह साल पहले घोषित ऋण माफी योजना के तहत किसानों को ऋण माफी की राशि का भुगतान करने के लिए धन नहीं है। इसलिए २०१७ में तत्कालीन फडणवीस सरकार द्वारा घोषित छत्रपति शिवाजी महाराज शेतकरी सम्मान योजना के कई पात्र किसानों की ऋण माफी निधि के अभाव के चलते रुकी पड़ी है। एक तरफ जहां राज्य में किसानों की हालत खराब हो गई है। बैंकों का कर्ज, साहूकारों से उधार, बीज और खाद की आसमान छूती कीमतें, खेती की लागत में भारी वृद्धि और इन सबकी तुलना में किसी भी फसल या कृषि उपज से प्राप्त होनेवाली कीमत की कुल खर्च से किसी तरह की पटरी न बैठने से राज्य के तमाम किसान वर्ग दिन-ब-दिन अधिक से अधिक परेशानियों में डूबता जा रहा है। सभी फसलों की कीमतें यथावत रहने और उत्पादन लागत दोगुनी होने से किसानों की कमर टूट गई है। आर्थिक तंगी के परिणामस्वरूप महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्याओं में एक बार फिर से वृद्धि हुई है। राज्य में प्रतिदिन औसतन नौ किसान आत्महत्या करते हैं और सरकार मौत के मुंह में जा रहे अन्नदाताओं के बारे में कुछ भी नहीं सोच रही है। २०१७ में मुख्यमंत्री रहते हुए देवेंद्र फडणवीस ने योजना को छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम देकर ऋण माफी योजना शुरू की थी। घोषणा उन किसानों को डेढ़ लाख रुपए तक का कर्ज माफ करने की थी, जिन्होंने १ अप्रैल, २००१ से फसल और मध्यम अवधि के ऋण लिए थे, लेकिन जून २०१६ तक बकाया थे। लेकिन पहले महाऑनलाइन पोर्टल पर गड़बड़ी और फिर महाआईटी में स्थानांतरण के बाद भी, लगभग १,३०,००० किसानों के ऋण खातों में अभी भी कुल १,६४४ करोड़ रुपए की ऋण माफी बाकी है। इसके अलावा लगातार २ साल तक फसल ऋण चुकाने वाले १ करोड़ ७२ लाख किसानों में से २ लाख ३३ हजार किसानों के भी ३४६ करोड़ रुपए अभी भी देने बाकी हैं। इससे पहले २०१७ में किसानों का डेटा उपलब्ध नहीं था, ऐसा चलताऊ कारण सरकार ने गिनाया था, लेकिन अब यह डेटा मिलने के बाद भी किसानों के खाते में ६ साल से बकाया कर्ज माफी की रकम जमा कराने में ढिलाई बरती जा रही है। किसानों का डेटा और बकाए की रकम का प्रस्ताव राज्य के वित्त विभाग के पास लंबित है। इसके बावजूद वित्त मंत्रालय इस प्रस्ताव पर पड़ी गर्द को झटकने को तैयार नहीं है। लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की जनता द्वारा शिंदे और महायुति को करारा झटका देने के बाद लाचार सरकार में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के बीच यह दिखाने की होड़ शुरू हो गई कि उन्हें जनता की कितनी परवाह है। उसने ‘लाडली बहन’, ‘लाड़ला भाई’ आदि जैसी लोकप्रिय योजनाओं की झड़ी शुरू कर दी। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव अब सामने हैं। उससे पहले यह सरकारी खजाने से प्रलोभन या रिश्वत देकर मतदाताओं को आकर्षित करने का एक तरीका है। ‘लाडली बहन’ योजना से सरकार पर हर साल पड़ेगा ४६ हजार करोड़ रुपए का बोझ, कहां से लाएंगे ये फंड? खबरें थीं कि वित्त विभाग की ओर से ऐसा सवाल पूछा गया था। लेकिन हम वह कर रहे हैं जो असंभव है, सरकार की यह गर्वोक्ति है। सरकार की नई लोकलुभावन घोषणाओं के लिए सरकारी खजाने में पैसा नहीं है। वित्त विभाग इन नई योजनाओं के लिए आवश्यक धनराशि के जुगत में व्यस्त होने के कारण ही सरकार ने छह साल पहले घोषित ऋण माफी योजना में शेष किसानों के लिए ऋण माफी का प्रस्ताव छोड़ दिया है, जो धूल खा रहा है। यह दिखाने की कोशिश में कि वे दानवीर कर्ण के अवतार आदि हैं। इन खोखेबाजों ने राज्य की अर्थव्यवस्था की धज्जियां उड़ाकर रख दी हैं। वर्ष २०२१-२२ में प्रति व्यक्ति आय में पांचवें स्थान पर रहनेवाला महाराष्ट्र अब छठे स्थान पर आ गया है। राज्य पर ८ लाख करोड़ का कर्ज है और खजाना ठन-ठन गोपाल है, इस सच्चाई को नजरअंदाज करते हुए ‘घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने’ की तर्ज पर खोकेबाज सरकार ‘अलाणा लाड़ला’, ‘फलाणा लाड़ला’ की घोषणा कर रही है। ऐसे में कर्ज माफी योजना के जिन किसानों की रकम पिछले ६ सालों से अटकी पड़ी है क्या वे किसान भी सरकार के लाड़ले नहीं हैं? महाराष्ट्र के किसानों को लाचार शिंदे सरकार से ये सवाल जरूर पूछना चाहिए!

शर्मनाक! सरकारी अस्पताल में ही मर गया अस्पताल का कर्मचारी! …इलाज में देरी से सेंट जार्ज में हुई चौथी मौत

-कार्रवाई के नाम पर प्रशासकीय खानापूर्ति
धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
‘घाती’ सरकार द्वारा संचालित सेंट जॉर्ज अस्पताल में गत बुधवार की रात एक शर्मनाक घटना घटी है। इस सरकारी अस्पताल में इलाज मिलने में हुई देरी के कारण अस्पताल के ही एक कर्मचारी की मौत हो गई। आरोप है कि अस्पताल में इलाज की देरी के चलते यह चौथी मौत हुई है। हालांकि, कार्रवाई के नाम पर प्रशासनिक खानापूर्ति करते हुए तीन डॉक्टरों को निलंबित कर दिया गया है।
मिली जानकारी के अनुसार, इस मामले की गहन जांच के लिए एक तीन सदस्यीय समिति गठित की गई है, जो एक सप्ताह में रिपोर्ट सौंपेगी। इस रिपोर्ट के आधार पर संबंधित दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी। इसके साथ ही मामले को तूल पकड़ने से बचाने के लिए सरकार की तरफ से तीन साल से ज्यादा समय से कार्यरत डॉक्टरों और कर्मचारियों का तबादला करने का निर्देश भी दिया गया है।
बता दें कि अनीश गत बुधवार की दोपहर घर में गिर गए थे। इसके चलते उनके सिर पर चोट लग गई थी। परिजन उन्हें इलाज के लिए शाम करीब छह बजे सेंट जॉर्ज अस्पताल के आपातकालीन विभाग में ले गए थे। अनीश के परिजनों का कहना है कि जिस समय उन्हें इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया था, उस समय अस्पताल में वरिष्ठ डॉक्टर उपलब्ध नहीं थे इसलिए रेजिडेंट डॉक्टर से जांच कराने के बाद वह एक्स-रे के लिए गए। इसके बाद सिर पर टांके लगाने के लिए अस्पताल में कोई वरिष्ठ डॉक्टर उपलब्ध नहीं होने के कारण टांके लगाने में देरी हुई।
टांके लगाने के लिए पौने आठ बजे माइनर सर्जरी थिएटर में ले जाया गया। इसी दौरान अनीश को मिर्गी आ गई। रात करीब नौ बजे डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इससे गुस्साए परिजनों और उनके सहयोगियों ने अस्पताल में हंगामा किया और डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। इस मामले पर संज्ञान लेते हुए अस्पताल के तीन डॉक्टरों चिकित्सा अधिकारी डॉ. नबीला जबील, रेजिडेंट मेडिकल ऑफिसर डॉ. गोकुल भोले और डॉ. भूषण वानखेड़े को निलंबित कर दिया गया। साथ ही मामले की गहनता से जांच के लिए जे. जे. अस्पताल के सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. अजय भंडारवार, फार्माकोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. विद्या नागर और फॉरेंसिक साइंस विभाग के प्रमुख व जी. टी. अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. भालचंद्र चिखलकर की तीन सदस्यीय समिति नियुक्त की गई है।
सात महीने में चौथी मौत
अस्पताल कर्मियों का आरोप है कि सेंट जॉर्ज अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही के कारण जनवरी से लेकर अब तक चार कर्मचारियों की मौत हो गई है। अस्पताल परिसर में रहनेवाले ३४ साल के विजेंद्र सोलंकी को हार्ट अटैक आने के बाद चार जनवरी को अस्पताल में लाया गया, जहां उन्हें पौने घंटे तक आईसीयू में बेड नहीं मिला और उन्होंने आईसीयू वॉर्ड के बाहर ही दम तोड़ दिया। इसी परिसर में रहनेवाली सेवानिवृत्त संगीता वाघेला नामक महिला की भी २१ जून को पौने घंटे तक इलाज न मिलने से मौत हो गई थी। इसी तरह एक और कमर्चारी की भी अस्पताल में इलाज न मिलने से मौत हुई थी।
बुरे दिन से गुजर रहा अस्पताल
कर्मचारियों का कहना है कि कोरोना काल में अस्पताल को सबसे ज्यादा निधि मिली थी और चिकित्सा सुविधाओं को मजबूत करने का आदेश दिया गया था। इसके बावजूद अस्पताल प्रशासन की तरफ से इस आदेश को दरकिनार किया गया और ‘घाती’ राज में यह अस्पताल बुरे दौर से गुजर रहा है। कर्मचारियों का कहना है कि मौजूदा समय में अस्पताल में केवल सर्जिकल, ऑर्थोपेडिक और नेत्र विभाग ही चल रहा है, जिनके विभागों के प्रमुख हफ्तेभर तक मुंह नहीं दिखाते हैं। कई विभाग कोरोना काल के बाद से ही बंद हैं। उनका कहना है कि अस्पताल में करीब ४० से ५० फीसदी पोस्ट खाली पड़े हुए हैं, जिन्हें भरने के लिए सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।

लाडली योजना पर ‘लड़ाई’! … दादा ने सीएम की ही छाप मिटाई …अजीत पवार ने मुख्यमंत्री का नाम हटाकर योजना का वीडियो कर दिया लांच

सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य में इस वक्त ‘मुख्यमंत्री लाडली बहन योजना’ की चर्चा जोरोें पर चल रही है। इस योजना का श्रेय लेने के लिए महायुति में शामिल दलों में लड़ाई शुरू हो गई है। इसी लड़ाई का परिणाम है कि अजीत पवार गुट ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की छाप ही मिटा दी है यानी मुख्यमंत्री शब्द ही गायब कर दिया है। इतना ही नहीं दादा गुट ने मुख्यमंत्री के नाम हटाने की योजना का वीडियो भी लांच किया है, जो बहुत तेजी से वायरल हो रहा है।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि सत्तारूढ़ दलों ने आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए यह महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है। हालांकि, विपक्ष ने इस योजना को लेकर सरकार को घेर रखा है.
खास बात यह है कि सत्ता पक्ष में भी योजना के श्रेय को लेकर तू-तू मैं-मैं चलती नजर आ रही है। चूंकि अजीत पवार वित्त मंत्री हैं इसलिए वह हर भाषण में इस योजना के बारे में बात कर रहे हैं। सरकार के मुखिया के तौर पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे इस योजना का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
इस बीच अजीत पवार गुट द्वारा लांच किए गए वीडियो के गाने में ‘मुख्यमंत्री लाडली बहन’ योजना का जिक्र सिर्फ ‘मेरी लाडली बहन योजना’ के तौर पर किया गया है। चूंकि यह एक पार्टी सांग है, इसलिए गाने में अजीत पवार की तारीफ की गई है। अजीत पवार गुट की जन सम्मान यात्रा कल से शुरू है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत पवार, कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल, प्रदेश अध्यक्ष सुनील तटकरे और मंत्री छगन भुजबल समेत सभी मंत्री, विधायक और पदाधिकारियों की मौजूदगी में दिंडोरी से यात्रा शुरू हुई।

मानसून के बचे हैं चंद रोज … मुंबई को टेंशन दे रहे मौसमी रोग! …फिर से सक्रिय हुई सुस्त पड़ी मनपा

– स्वास्थ्य व्यवस्था को और अधिक सुसज्जित रखने का निर्देश
सामना संवाददाता / मुंबई
मानसून को चंद रोज बचे हुए हैं। इसके बावजूद मुंबई को मौमसी रोग टेंशन दे रहे हैं। हालांकि, इसे लेकर अब तक की गई मनपा की कोशिशें कहीं न कहीं नाकाम साबित हुई हैं। ऐसे में सुस्त पड़ी मनपा एक बार फिर से सक्रिय हो गई है। मनपा के अतिरिक्त आयुक्त अभिजीत बांगर ने साफ तौर पर निर्देश दिया है कि मौसमी रोगों को कंट्रोल में करने के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था को सुसज्जित और सतर्क रखने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही अस्पतालों में साफ-सफाई, मरीजों की देखभाल, दवा आपूर्ति, शौचालय आदि सुविधाएं योजनाबद्ध और सख्ती से उपलब्ध कराने का भी निर्देश दिया।
मनपा मुख्यालय में कल स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा बैठक आयोजित की गई थी। इस बैठक में उपायुक्त संजय कुल्हाडे, मनपा अस्पतालों की निदेशक डॉ. नीलम अंद्राडे, सायन अस्पताल के डीन डॉ. मोहन जोशी, केईएम की डीन डॉ. संगीता रावत, नायर अस्पताल के डीन डॉ. सुधीर मेढेकर, उपनगरीय अस्पतालों के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. चंद्रकांत पवार आदि उपस्थित थे। अतिरिक्त आयुक्त अभिजीत बांगर ने बैठक में मनपा के प्रमुख और उपनगरीय अस्पतालों को आदेश दिया कि वे वरिष्ठ नागरिक, गर्भवती महिलाओं और बच्चों को अस्पतालों में लगनेवाले समय को कम करने की दृष्टि से क्रियान्वयन करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही अन्य मरीजों को केस पेपर, ओपीडी, एक्स-रे, सोनोग्राफी और दवा लेने में लगनेवाले औसत समय को कम करने के लिए विभिन्न स्तरों पर उपाय करें। उन्होंने यह भी कहा कि इन सुविधाओं को मुहैया कराते समय कतारों को कम करने के लिए टोकन प्रणाली जैसे उपायों पर भी विचार किया जाना चाहिए। साथ ही इलाज के लिए आने वाले मरीजों के लिए बैठने की पर्याप्त व्यवस्था करने का भी निर्देश दिया।

… तो सफाई ठेकेदारों पर होगी कार्रवाई
बांगर ने कहा कि मनपा अस्पतालों में आनेवाले मरीजों में आर्थिक रूप से जरूरतमंद मरीजों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है। ऐसे में इन्हें बेहतरीन सुविधाएं देने पर जोर होना चाहिए। खासकर साफसफाई पर अधिक जोर होना चाहिए। इसमें जो भी ठेकदार लापरवाही बरतते हुए पाया गया, उसके खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश भी उन्होंने दिया।

सात साल की उम्र में थामी हॉकी …हरियाणा के संजय ने दिलाई सफलता

– देश को दिलाया ब्रांज मेडल, गांव में जश्न
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
पेरिस ओलंपिक में रविवार को भारतीय हॉकी टीम ने कांस्य पदक के लिए हुए मैच में स्पेन को हराकर पदक अपने नाम कर लिया है। भारतीय टीम में शामिल हरियाणा के हिसार के गांव डाबड़ा के संजय कालीरावणा का भी भारत के यहां तक पहुंचने में अहम योगदान रहा है। भारत की जीत पर संजय के गांव व परिवार के सदस्यों ने जश्न मनाया है। गांव में लोग खुशी से झूम उठे।
हरियाणा के हिसार के डाबड़ा गांव के संजय कालीरावणा ने सात साल की उम्र में हॉकी थामी। आर्थिक तंगी के कारण वह हॉकी नहीं खरीद सके। एक माह तक अपने सीनियर्स की हॉकी लेकर प्रैक्टिस की। इसके बाद कोच राजेंद्र सिहाग ने हॉकी दिलाई तो संजय ने हॉकी में आज नाम चमका दिया।

भारतीय हॉकी टीम ने पेरिस ओलिंपिक में जीता ब्रॉन्ज
भारतीय हॉकी टीम ने पेरिस ओलिंपिक २०२४ में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है। उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल मैच में स्पेन को २-१ से हराया। हॉकी में भारत का यह चौथा ब्रॉन्ज मेडल है. इसके अलावा देश ने ओलंपिक इतिहास में सबसे ज्यादा ८ गोल्ड और १ सिल्वर मेडल भी जीता है. पिछले यानी टोक्यो ओलंपिक में भी भारत ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था. इसके साथ ही भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में ५२ साल बाद एक इतिहास रच दिया है.
दरअसल, भारतीय हॉकी टीम ५२ साल बाद ओलंपिक में लगातार २ मेडल जीते हैं. इससे पहले १९६० से १९७२ तक भारत ने हॉकी में लगातार ४ मेडल जीते थे. फिर १९७६ ओलंपिक में देश को कोई मेडल नहीं मिला. इसके बाद १९८० में गोल्ड जीता था.

राणा पर रण! …नवनीत की हकालपट्टी पर अड़ा शिंदे खेमा

सामना संवाददाता / मुंबई
संसदीय चुनाव हारने के बाद नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। उनके बेतुके बोलों को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए शिंदे गुट अब उन्हें महायुति से हकालपट्टी करने की मांग पर अड़ गया है। राणा और शिंदे गुट के अडसूल के बीच विवाद चरम पर पहुंच गया है। पूर्व विधायक अभिजीत अडसूल ने चेतावनी दी है कि राणा परिवार को महायुति से हटा दिया जाना चाहिए, अन्यथा शिंदे गुट महायुति से बाहर हो जाएगा। राणा परिवार को लेकर एक बार फिर से महायुति में बगावत की चिंगारी भड़क गई है। कहें तो महायुति में राणा को लेकर ‘जंग’ शुरू हो गई है।
अडसूल के अनुसार, अगर हमारे नेता के बारे में वे कुछ भी बोल रहे हैं तो हम बार्दस्त नहीं करेंगे। राणा को महायुति से बाहर कर देना चाहिए, नहीं तो हमें महायुति में रहने को लेकर पैâसला लेना होगा। अभिजीत अडसूल ने चेतावनी दी है कि ऐसे नेताओं को महायुति में नहीं रखा जाना चाहिए। बता दें कि लोकसभा चुनाव में अमरावती से बीजेपी की ओर से नवनीत राणा को उम्मीदवार बनाया गया था। इस सीट के लिए शिंदे गुट अड़ा हुआ था। इसके अलावा महायुति का सहयोगी दल प्रहार संगठन ने भी अपने गढ़ अमरावती को बचाने के लिए अपना उम्मीदवार खड़ा किया था। नतीजों के बाद नवनीत राणा हार गई और कांग्रेस के बलवंत वानखेड़े १९ हजार ७३१ वोटों से जीत गए।

पालघर जिले के ३० गांव में श्मशान नहीं! …बारिश में कोई स्वर्ग न सिधारे लोग करते हैं प्रार्थना

योगेंद्र सिंह ठाकुर / पालघर
पालघर में विकास के तमाम दावे सरकार भले ही करती हो, लेकिन ग्रामीण इलाकों में आज भी बदहाली बरकरार है, जिसकी वजह से जनता जीते जी तो परेशानियां झेल रही है, लेकिन मरनेवालों को भी चैन नहीं है। शासन-प्रशासन की उदासीनता के चलते क्या मुर्दा, क्या जिंदा सभी परेशान हैं। पालघर जिले के ३० ऐसे गांव हैं जहां श्मशान न होने के कारण लोग खुले में चिता जलाते हैं। गर्मी, सर्दी के मौसम में तो शवदाह में ज्यादा परेशानी नहीं होती है, लेकिन बरसात हो और ऐसे में कोई स्वर्ग सिधार जाए तो उसका दाह संस्कार करना मुश्किल होता है। लोग प्रार्थना करते हैं कि बारिश के मौसम में कोई स्वर्ग न सिधारे।
जहां श्मशान भूमि है, वहां भी अंतिम संस्कार के लिए बने श्मशान खुद ही मृत अवस्था में पड़े हैं। कई जगहों पर श्मशान जर्जर पड़े हैं, कहीं छत गायब है तो कहीं पहुंचने के लिए रास्ता खस्ताहाल अवस्था में है। कई जगहों पर तो श्मशान भूमि तक पहुंचने के लिए मार्ग ही नहीं है। जिला परिषद के अधिकारियों का कहना है कि जिन गांवों में श्मशान भूमि नही है वहां वन विभाग से जमीन की मंजूरी मिलने के बाद श्मशान को निर्माण करवाया जाएगा।
पालघर जिले के आठ तालुकाओं में कुल ९०४ गांव हैं, जिनमें से पालघर, वाडा, वसई के ३० गांवों की ग्राम पंचायतों को अब तक श्मशान भूमि के लिए जगह नहीं मिल सकी है। पालघर जिले के तलासरी तालुका में ४१ गांव हैं। यहां के सभी ४१ गांवों में श्मशान भूमि है, दहानू तालुका में कुल १७४ गांव हैं और सभी १७४ गांवों में श्मशान होने का दावा किया जाता है, लेकिन यहां के कई इलाकों के लोगों को आज भी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। मोखाड़ा तालुका में ५६ गांव हैं, यहां के सभी गांवों में शमशान भूमि हैं वसई तालुका में ४९ गांव हैं और यहां के आठ गांवों में श्मशान नहीं हैं। वाडा तालुका में १६८ गांव हैं और १६० गांवों में ही श्मशान भूमि है। विक्रमगढ़ तालुका में ९३ गांव हैं और यहां के सभी गांवों में श्मशान भूमि है। जव्हार तालुका में १०७ गांव हैं यहां के सभी गांवों में श्मशान भूमि है। पालघर तालुका में २१५ गांव हैं और सिर्फ २०१ गांवों में ही श्मशान भूमि है। यहां के ११ गांवों को आज तक श्मशान भूमि नहीं मिल सकी है। वसई तालुका के अर्नाला, मेढे, वडघर, आंबोडे, वारसई, तरखड, आक्टर और पाली आदि में आठ जगहों पर श्मशान भूमि नहीं है। वाडा तालुका के वीजापुर सोनाले बुद्रुक, किरवली, रायघल, मुंगूस्ते, लखमापूर और वर्धा सहित आठ गांवो में भी श्मशान भूमि नहीं है।

राज्य में वायु प्रदूषण से हर साल एक लाख मौतें! …अवैध वृक्ष कटाई को लेकर अब जागी है सरकार ५० गुना बढ़ाया जुर्माना

सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य में प्रदूषण के चलते हर साल एक लाख से अधिक लोगों की मौत हो रही है। ऐसे में प्रदूषण कम करने के लिए वृक्ष संवर्धन को लेकर सख्ती बरतने की मांग पर सुस्त पड़ी शिंदे सरकार चुनाव नजदीक आते देख नींद से जागी है। सरकार ने वृक्ष संवर्धन के लिए दंड की रकम ५० गुना बढ़ाने के प्रस्ताव को अब जाकर मंजूरी दी है। सरकार ने पेड़ों की अवैध कटाई पर जुर्माना एक हजार रुपए से बढ़ाकर ५० हजार रुपए करने की अनुमति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इसी के साथ पेड़ों की कटाई में इस्तेमाल होने वाले औजार, वाहन और अन्य सामग्री को भी जब्त करने का आदेश दिया गया है।
बता दें कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की रिपोर्ट में राज्य में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के आंकड़े हर साल एक लाख से अधिक हैं। हालही में जारी ररिपोर्ट के अनुसार २०१९ में महाराष्ट्र में वायु प्रदूषण के कारण १,३९,११८ लोगों की मौत हुर्ई थी, ऐसे में राज्य सरकार प्रदेश में हरियाली बढ़ाने के लिए वन संवर्धन पर जोर देने की मांग की गई और अवैध रूप से वृक्ष काटने वालों पर सख्त कार्रवाई की मांग की जा रही थी। लेकिन सरकार की आंखें अब खुली हैं।
आईसीएमआर की रिपोर्ट में राज्य में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। २०१९ में महाराष्ट्र में वायु प्रदूषण के कारण १,३९,११८ लोगों की जान चली गई। वर्ष २०१८ में १.१२ लाख लोगों की वर्ष २०१७ में १.०८ लाख लोगों की जान प्रदूषण के चलते गई है। जबकि देश में १७ लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण के चलते हुई है।
महाराष्ट्र में प्रदूषण से होने वाली मौतों का आंकड़ा देश में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली कुल मौतों का १६.७ प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश के बाद यह राज्य दूसरे स्थान पर है, जहां वायु प्रदूषण के कारण ३.५ लाख लोगों की जान गई है। पूरे भारत में यह आंकड़ा १७ लाख है।

बांग्लादेश में हिंदू लड़की को मॉल में बांधा! …हिंदुओं पर अत्याचार की पराकाष्ठा

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार की विदाई के बाद हिंदुओं पर जुल्म की इंतहा हो गई है। सोशल मीडिया पर एक हिंदू लड़की का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। इस वीडियो में लड़की को एक मॉल के अंदर बांध दिया गया है।
इस वीडियो में नजर आ रहा है कि लड़की के मुंह को भी टेप से चिपका दिया गया है, जिससे लड़की कुछ बोल न सके। इस वीडियो में लड़की असहाय नजर आ रही है और अगल-बगल के लोग वीडियो बना रहे हैं। इस वीडियो के आने के बाद से दुनिया में तहलका मच गया है। भारत में इस वीडियो को देखने के बाद लोग मोदी सरकार से बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे जुल्म को रोकने की अपील कर रहे हैं। बता दें कि बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद वहां अल्पसंख्यक हिंदुओं के घरों और मंदिरों को जलाया जा रहा है। हिंदुओं पर हो रहे जुल्म का आलम यह है कि अब लोग बांग्लादेश छोड़ कर भारत आने लगे हैं। बांग्लादेश की सेना और वहां की अंतरिम सरकार भी इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोल रही है। नतीजा अल्पसंख्यक हिंदुओं के बहु और बेटियों के साथ रेप और आगजनी की घटनाएं बढ़ गई हैं। बता दें कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन और लगातार हो रही हिंसा, आगजनी और पलायन को लेकर बांग्लादेश से सटे भारतीय सीमा पर हाई अलर्ट है। बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों पर हमले और हिंदू नागरिकों और उनके घरों पर इस्लामी कट्टरपंथियों के हमले को लेकर लोगों में गुस्सा नजर आ रहा है।

 

 

 

 

 

 

 

दो गुजराती नेताओं में टकराव …मेहता-शाह की लड़ाई में तीसरे की लगेगी लॉटरी!

सामना संवाददाता / मुंबई
विधानसभा चुनाव बस कुछ ही महीने दूर है। महायुति के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर खींचतान चल रही है। सीट बंटवारे को लेकर सत्तापक्ष के बीच दावे-प्रतिदावे किए जा रहे हैं। लेकिन मुंबई की एक सीट पर दो बीजेपी नेताओं के बीच तकरार शुरू हो गई है। वर्तमान और पूर्व विधायकों ने विधानसभा की तैयारी शुरू कर दी है और भाजपा के दोनों गुजराती नेताओं के बीच में टकराव बढ़ गया है।
बीजेपी ने २०१९ में घाटकोपर से पराग शाह को टिकट दिया। पेशे से बिल्डर शाह निर्वाचित हुए और विधायक बने। बीजेपी ने विधायक प्रकाश मेहता का टिकट काटकर शाह को मौका दिया था। अब जब विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं तो दोनों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं और इससे बीजेपी की चिंता बढ़ गई है। जब देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री थे, तब प्रकाश मेहता उनके मंत्रिमंडल में आवास विभाग मंत्री थे। वह कई सालों से बीजेपी में हैं, फिर भी २०१९ में उन्हें हटाकर शाह को मौका दिया गया। कुछ दिन पहले प्रकाश मेहता मित्र मंडल द्वारा एक भव्य बैठक आयोजित की गई थी। इस बैठक में घाटकोपर की कई प्रमुख मंडलियां मौजूद थीं। इससे पार्टी नेतृत्व को संदेश गया कि अगर इस साल भी मेहता को हटाया गया तो कार्यकर्ता चुप नहीं बैठेंगे। शाह को लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। ‘पराग शाह डेवलपर हैं। वे हमारे लिए उपलब्ध नहीं हैं। उनसे आसानी से संपर्क नहीं किया जा सकता। वे निर्वाचन क्षेत्र में भी सक्रिय नहीं हैं,’ ऐसी स्थानीय लोगों ने शिकायत की।