स्कूलों की समस्याओं की अनदेखी कर रही ‘घाती’ सरकार … आज राज्यभर में महामोर्चा, मुंबई में स्कूल बंद आंदोलन!

शिक्षक निरीक्षक कार्यालय पर होगा धरना
सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र में घाती सरकार की सत्ता आने के बाद से ही शिक्षा और स्वास्थ्य समेत सभी क्षेत्रों में कामकाज रामभरोसे ही चल रहा है। आलम यह है कि प्रदेश में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूल कई समस्याओं से जूझ रहे हैं, जिसकी घाती सरकार अनदेखी कर रही है। सरकार के इस रवैए के खिलाफ आज राज्यभर में महामोर्चा निकाला जाएगा। इसके साथ ही मुंबई में स्कूल बंद आंदोलन किया जाएगा। इतना ही नहीं, शिक्षा निरीक्षक कार्यालय पर भी धरना दिया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि घाती सरकार ने राज्य में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों में विभिन्न परेशानियों की अनदेखी कर रही है। शिक्षा मंत्री केवल बातूनी ही हैं। वे शिक्षकों और शिक्षक कर्मचारियों की समस्याओं से अवगत हैं, इसके बावजूद उन समस्याओं की अनदेखी कर रहे हैं। इसलिए शिक्षकों और कर्मचारियों में गुस्से की लहर है। इसी के साथ ही इसके खिलाफ ६ अगस्त को राज्यभर में महामोर्चा निकालने का फैसला किया गया है। इसके अलावा मुंबई में स्कूल बंद आंदोलन किया जाएगा, जबकि शिक्षा निरीक्षक कार्यालय पर भी धरना आयोजित किया जाएगा। यह जानकारी महाराष्ट्र राज्य माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालय के मुख्याध्यापक संगठन के मुंबई विभाग अध्यक्ष संजय पाटील ने दी। उन्होंने कहा कि जिलों के सभी शिक्षा-शिक्षकेतर संगठन, महामुंबई शिक्षण संस्था संगठन समेत शिक्षक सेना ने इस आंदोलन को समर्थन दिया है।

ये हैं प्रमुख मांगें
स्कूलों में मुख्याध्यापक पद एक नवंबर २००५ से पहले नियुक्त शिक्षक और कर्मचारियों को पुरानी पेंशन, प्रचलित पद्धति से चरणबद्ध तरीके से आयु का विचार करते हुए शत-प्रतिशत अनुदान, पोर्टल पर शिक्षकों की नियुक्ति अथवा संस्था को शिक्षक नियुक्ति की अनुमति, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के मानधन के बजाय वेतन पर नियुक्ति, रिक्त पदों पर शत-प्रतिशत भर्ती करने की अनुमति, पात्र स्कूलों और कॉलेजों को शत-प्रतिशत अनुदान आदि मांगों के लिए यह महामोर्चा निकाला जा रहा है।

मानसिक बीमारियों के प्रति समाज संवेदनशील नहीं! …मरीजों को अधिकार दिलाने के लिए प्रदेश में बनेंगे १६ रिहैबिलिटेशन होम

धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
प्रदेश के मेंटल अस्पतालों में बड़ी संख्या में भर्ती मरीज मानसिक रोगों को मात दे चुके हैं। इसके बावजूद उनके परिवार और रिश्तेदारों के साथ ही समाज स्वीकार नहीं कर रहा है। ऐसे में दिव्यांग कल्याण विभाग ने इन्हें भी समाज में समान अधिकार दिलाने का पैâसला किया है। इसके तहत प्रदेश में १६ स्थानों पर रिहैबिलिटेशन होम शुरू करने का फैसला किया गया है।
उल्लेखनीय है कि राज्य के विभिन्न अस्पतालों में मानसिक रोगियों का इलाज किया जाता है। ऐसी मानसिक बीमारी से उबरने वाले मरीजों को अक्सर उनके परिवार, रिश्तेदार और समाज स्वीकार नहीं करते हैं। कुछ मरीजों में वर्षों तक अस्पताल में रहने के बाद समाज के बीच अथवा अपने परिवार के साथ घर पर रहने की इच्छा नहीं होती है। कुछ के साथ उचित व्यवहार नहीं होता, इसलिए साल २०१७ में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को बेघरों और मानसिक बीमारी से उबरने वाले लोगों के लिए रिहैबिलिटेशन होम स्थापित करने का आदेश दिया, ताकि उनके स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखा जा सके। दिव्यांग कल्याण विभाग के उपसचिव वीपी घोडके के मुताबिक, विभाग संस्थाओं के माध्यम से करीब १६ स्थानों पर पुनर्वास गृह बनाए जाएंगे। इसके तहत ठाणे, पुणे और नागपुर में इन रिहैबिलिटेशन होम के निर्माण का कार्य प्रगति पर है, जिसे जल्द शुरू किए जाने की उम्मीद है।

मानसिक अस्पतालों से नजदीक बनेंगे ये होम
मानसिक बीमारी से उबरने वाले व्यक्तियों के लिए राज्य में मानसिक अस्पतालों के पास १६ नए रिहैबिलिटेशन होम बनाने की तैयारी की गई है। इस प्रस्ताव को मंजूरी भी मिल गई है। दिव्यांग कल्याण विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक बजट में ५.७६ करोड़ की निधि का प्रावधान भी किया गया है। मुंबई, नागपुर, पुणे और रत्नागिरी में रिहैबिलिटेशन होम पहले से ही चालू हैं। इसकी वजह से मानसिक बीमारी से मुक्त हुए लोगों को एक बार फिर से समाज में सम्मान के साथ जीने का मौका मिलेगा।

बांग्लादेश में फौजतंत्र! … ४५ मिनट के भीतर शेख हसीना ने दिया इस्तीफा

हिंसा में मरनेवालों का आंकड़ा ३०० पार
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
बांग्लादेश में भारी हिंसा के बीच प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सोमवार को इस्तीफा दे दिया। इसी के साथ बांग्लादेश में तख्तापलट हो गया है। यहां सेना सत्ता में इन और हसीना आउट हो गई हैं। सेना प्रमुख वकार-उज-जमान के अल्टीमेटम देने के बाद महज ४५ मिनट के भीतर न सिर्फ शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया, बल्कि वह देश छोड़कर किसी सुरक्षित स्थान पर चली गर्इं। उनके इस्तीफे के बाद बांग्लादेश सेना के प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान ने प्रेस कॉन्प्रâेंस की। इस दौरान उन्होंने कहा, `पीएम शेख हसीना के इस्तीफा के बाद अब हम शासन करेंगे। अंतरिम सरकार का गठन करके देश चलाएंगे। वहीं दूसरी ओर प्रदर्शनकारियों ने शेख हसीना के घर में घुसकर तोड़-फोड़ की। वहां हिंसात्मक घटनाएं बढ़ गई हैं।
बता दें कि पीएम शेख हसीना के इस्तीफे की मांग को लेकर रविवार से शुरू हुई हिंसा में कुछ घंटों के भीतर ही ३०० लोगों की मौत हुई और अरबों की संपत्ति को आग के हवाले कर दिया गया। सभी बड़े शहरों में लाखों की तादाद में लोग शेख हसीना के इस्तीफे की मांग करते हुए सड़कों पर उतर गए। राजधानी ढाका पर प्रदर्शनकारियों ने पूरी तरह कब्जा कर लिया है। शेख हसीना के साथ उनकी बहन ने भी ढाका छोड़ दिया है। सूत्रों की मानें तो बांग्लादेश आर्मी चीफ ने हसीना से कहा था कि उनको सम्मानजनक तरीके से इस्तीफा देकर सत्ता से हट जाना चाहिए।
हसीना के बेड पर कब्जा
बांग्लादेश में आंदोलनकारी शेख हसीना के आवास में घुस गए और उनके बिस्तर पर कब्जा कर लिया है। इस घटना से जुड़े कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए हैं। वायरल हो रहे वीडियो में एक युवा आंदोलनकारी को जूते पहने हुए हसीना के बिस्तर पर लेटे हुए देखा जा सकता है। साथ ही वह यह भी चिल्ला रहा, `गणभवन हमारे नियंत्रण में है।’ उल्लेखनीय है कि गणभवन, बांग्लादेश का पीएम आवास है। उनके जाने के एक घंटे के भीतर, हजारों लोगों ने पीएम आवास पर हमला बोल दिया।

 

अधूरे प्रशासकीय इमारत का उद्घाटन … राकांपा करेगी विरोध

अनिल मिश्रा / बदलापुर
बदलापुर में नपा की बरसों से बन रही करोड़ों की प्रशासकीय इमारत का १५ अगस्त, २०२४ को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के हाथों उद्घाटन होना है इसलिए इस आधी-अधूरी इमारत को आनन-फानन में बनाया जा रहा है। जल्दबाजी में इमारत बनाने के कारण जनता के पैसों की बर्बादी होगी। खैर, जब तक इमारत पूर्ण नहीं होती और यदि इसका उद्घाटन किया गया तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) की ओर से इसका विरोध किया जाएगा।
बता दें कि आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बदलापुर में राजनीति में इच्छुक लोगों ने बदलापुर में बरसों से बन रही सात मंजिला इमारत का उद्घाटन मुख्यमंत्री के हाथों करने की बात को हवा दी है। इसे लेकर राकांपा के पदाधिकारियों ने इमारत का दौरा कर देखा कि इमारत का कार्य अधूरा है। इमारत में गेट, फर्श, खिड़की, ओपन परिसर, सीलिंग जैसे तमाम कार्य अभी अधूरे हैं। पदाधिकारियों के साथ इमारत का निरीक्षण करनेवाले राकांपा के महासचिव अविनाश देशमुख ने देखा कि इमारत का निर्माण कार्य अभी अधूरा है। अगर इमारत का कार्य जल्दबाजी में किया गया तो काम घटिया होगा। जल्दबाजी में काम करने से इमारत की गुणवत्ता पर असर होगा। इमारत पूरी होने के बाद यदि मुख्यमंत्री इमारत का उद्घाटन करते हैं तो राकांपा उसका स्वागत करेगी, लेकिन यदि अधूरी इमारत का उद्घाटन किया गया तो बदलापुर राकांपा इसका विरोध करेगी। अविनाश देशमुख ने बताया कि राज्य सरकार ने विगत लोकसभा चुनाव का लाभ लेने के लिए कई प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया, जो घटिया कामों की आज कलई खोल रहे हैं। उसका प्रत्यक्ष प्रमाण बदलापुर का रेलवे स्टेशन है, जिसका उद्घाटन आधी-अधूरी अवस्था में किया गया। इसका भी राकांपा समेत महाविकास आघाड़ी ने विरोध किया था।
प्रशासकीय इमारत के निरीक्षण दौरे में राकांपा (शरदचंद्र पवार) पार्टी के प्रदेश महासचिव अविनाश देशमुख, सचिव कालिदास देशमुख, प्रदेश सचिव संगठक हेमंत रुमने, जिला संयुक्त सचिव सुभाष सूर्यराव, शहर सचिव लक्ष्मन फुलवरे, महिला शहर उपाध्यक्ष सुनीता चौधरी, जिला ग्रामीण पदाधिकारी पप्पू भोईर, सोनाली ताई, हेमांगी सालुंखे, आशा, शारदा, मनीषा, विजयश्री जैसे लोगों ने भाग लिया।

ट्रिपल इंजन सरकार में जनता राम भरोसे …विजय वडेट्टीवार का जोरदार हमला

सामना संवाददाता / मुंबई
गढ़चिरौली जिले के कोरची तालुका में एक गर्भवती महिला को चारवीदंड से एक खाट का कांवड़ बनाकर उससे बाढ़ के पानी और जंगल के रास्तों से दो किलोमीटर लेकुरबोडी गांव तक ले जाना पड़ा। उस गर्भवती महिला को किसी तरह से जिला अस्पताल तक पहुंचाया गया, लेकिन डिलिवरी के बाद बच्चे की मौत हो गई। इस घटना को लेकर विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार ने महायुति सरकार पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जिस गढ़चिरौली जिले के पालकमंत्री हैं, वहां स्वास्थ्य पूरी तरह से बीमार हो गया है। एक तरफ लाडली बहन योजना के प्रचार-प्रसार पर २७० करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। ऐसे में इस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं, जो प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था की पूरी तरह से कलई खोल रही है। यह एक बार फिर से साबित हो गया है।

वडेट्टीवार ने कहा कि कहीं बेटे को अपने पिता को लेकर जाना पड़ रहा है, तो कहीं गर्भवती महिला को कांवड़ बनाकर उससे अस्पताल में ले जाना पड़ रहा है। एक के बाद एक इस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं। लेकिन इस सरकार और प्रशासन को कोई फर्क पड़ता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। केवल प्रतिशत के मामले में ही आगे जाने वाली ट्रिपल इंजन सरकार ने जनता को रामभरोसे छोड़ दिया है। बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण जान गंवाने वाले मरीजों के परिवारों की वेदना इस महायुति सरकार को श्राप के तौर पर लगेगी।

उद्घाटन से पहले ही भंगार हुआ इंटिग्रेटेड बस टर्मिनल …टूटकर गिर रहे इमारत के शीशे

– निर्माण कार्यों पर उठ रहे सवाल
सामना संवाददाता / मुंबई
वाशी, सेक्टर-९-ए स्थित एनएमएमटी के पुराने बस डिपो की जगह पर अत्याधुनिक इंटिग्रेटेड बस टर्मिनल का निर्माण किया जा रहा है। १०,३७३ वर्ग मीटर के इस बस डिपो की जमीन पर २१ मंजिला इमारत बनाई जा रही है, जिसका उद्घाटन विधानसभा चुनाव से पहले करने की तैयारी है, लेकिन उदघाटन से पहले ही इसके निर्माण कार्यों पर सवाल उठने लगे हैं। इमारत पर लगे शीशे टूटकर गिरने लगे हैं।
एनएमएमटी और मनपा की आय बढ़ाने के उद्देश्य से निर्माण किए जा रहे अत्याधुनिक बस डिपो की इमारत में दुकान, कार्यालय और रेस्टोरेंट के लिए विशेष तौर पर जगह आरक्षित की गई है। अत्यंत मौके के स्थान पर बन रही यह इमारत नई मुंबई में आकर्षण का केंद्र बनने वाली है। इस इमारत से विज्ञापनों के माध्यम से भी नई मुंबई महानगरपालिका को आय मिलने का नियोजन किया गया है। हाल ही में वाशी के सेक्टर- ९ (ए) में निर्माणाधीन इंटिग्रेटेड बस टर्मिनल का दौरा करके मनपा आयुक्त ने इसके काम का निरीक्षण किया था। इस डिपो को अप्रैल २०२३ तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अब जाकर इसका काम लगभग पूरा हो पाया है। आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इसका उद्घाटन करने की तैयारी है, लेकिन उससे पहले ही इमारत में लगे शीशे टूटकर गिरने लगे हैं। इसके कार्य की गुणवत्ता पर नई मुंबई कांग्रेस जिला अध्यक्ष अनिल कौशिक ने सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने इसके निर्माण कार्यों की जांच करने की मांग की है।

आम आदमी पार्टी के अभिषेक पांडेय ने बताया कि जिस तरह सड़क की तरफ आम नागरिकों पर यह गिरते-गिरते बचा है इससे आम नागरिकों की सुरक्षा पर भी सवाल उठते हैं। अभिषेक पांडेय ने कहा कि पूर्व शहर अभियंता संजय देसाई के कार्यकाल में किए गए इस प्रोजेक्ट की जांच की जानी चाहिए। संजय देसाई के कार्यकाल में भारी मात्रा में भ्रष्टाचार किए गए हैं।

कांवड़ियों के मार्ग में बना रोड़ा! … अधिकारियों का भ्रष्टाचार

योगेंद्र सिंह ठाकुर / पालघर
पालघर का सार्वजनिक बांधकाम विभाग इन दिनों पूरी तरह भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। सड़कों और ब्रिज के निर्माण में हुई धांधली की पोल लगातार खुलने से लोगों का आक्रोश भी चरम पर है। कहीं ब्रिज पर उद्घाटन से पहले ही दरारें आ गई हैं और कहीं तो नाले-नाली और रोड के बीच फर्क खत्म हो गया है। चरम पर हुई कमीशनखोरी के कारण जिले भर के मार्ग खस्ताहाल पड़े हैं। सार्वजनिक बांधकाम विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों ने मानों सरकार के मुंह पर कालिख ही पोत दी हो। श्रावण के महीने में निकलने वाली कांवड़ यात्रा जगह-जगह टूटे मार्गों से निकल रही है, जो रास्ता दुरुस्त किया गया है असल में वह कागजों में ही है, वास्तविकता से उसका कोई लेना-देना नहीं है। टूटी सड़कों और जमे पानी से उठती दुर्गंध के जरिए शायद भ्रष्ट अधिकारी शिवभक्तों की परीक्षा लेना चाहते हैं। पालघर, बोईसर और वानगांव सहित आस-पास के इलाकों में रहनेवाले हजारों कांवड़िए संजान के प्राचीन शिवमंदिर में जलाभिषेक के लिए चिंचणी-दहाणू मार्ग से पैदल जाते हैं। इस मार्ग पर कई जगहों पर बड़े-बड़े गड्ढे हैं। कुछ जगहों पर तो जगह-जगह पानी जमा है। कई कांवड़िए इन गड्ढों में गिरकर जख्मी भी हो चुके हैं। बावजूद इसके सार्वजनिक बांधकाम विभाग के कमीशनखोर अधिकारियों पर इसका कुछ भी असर नहीं है। कांवड़ यात्रा में गए इंद्रजीत यादव ने बताया कि बाड़ा, पोखरण सहित कई जगहों पर मार्ग खस्ताहाल होने के कारण पानी भरा था। किसी तरह बच-बचाकर कांवड़िए निकल सके।

ठाणेकरों को पानी का नो टेंशन …९४.१६% भरा बारवी बांध!

सामना संवाददाता / ठाणे
ठाणे जिले की प्यास बुझाने वाले महाराष्ट्र औद्योगिक विकास महामंडल के बारवी बांध में रविवार सुबह तक ९४.१६ फीसदी पानी जमा हो गया है। शनिवार, रविवार और सोमवार को हुई भारी बारिश के कारण महज कुछ घंटे में बांध में तकरीबन १२ फीसदी पानी भर गया, जिस पर एमआईडीसी ने संतुष्टि व्यक्त की है। बता दें कि ठाणे जिले की अधिकांश मनपाओं, नगरपालिकाओं और औद्योगिक क्षेत्रों को बारवी बांध से जलापूर्ति की जाती है। सभी को उम्मीद है कि महाराष्ट्र औद्योगिक विकास महामंडल के अधिकार क्षेत्र में आनेवाला बारवी बांध मानसून में भरने से उद्योग और पीने के लिए आवश्यक पानी पूरे वर्ष उपलब्ध रहता है। शनिवार व रविवार को बारवी बांध क्षेत्र में करीब २०० मिमी बारिश दर्ज की गई, इससे बारवी बांध का जलस्तर तेजी से बढ़ा। बारवी बांध में शनिवार को जल भंडार ८२ फीसदी और रविवार को ९२.२६ फीसदी तक पहुंच गया। सोमवार को यह बढ़कर ९४.१६ फीसदी हो गया। बारिश इसी तरह जारी रही तो उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में यह बांध पूरी क्षमता से भर जाएगा। बांध में वर्तमान में ३१९.०४ मिलियन क्यूबिक मीटर पानी है। लेकिन पिछले साल की तुलना में यह जल भंडारण कम है। पिछले साल ४ अगस्त को बारवी बांध लबालब भर गया था।

छात्रों की मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट सख्त : `कोचिंग सेंटर बन गए डेथ चैंबर’ …केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
दिल्ली के राजेंद्र नगर में यूपीएससी के छात्रों की मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कोचिंग सेंटरों की सुरक्षा को लेकर स्वत: संज्ञान लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि कोचिंग सेंटर बच्चों की जिंदगी से खेल रहे हैं। कोचिंग सेंटर डेथ चैंबर बन गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी को नोटिस जारी कर पूछा है कि कोचिंग सेंटरों में क्या सेफ्टी के नियम लागू किए गए हैं? बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को इस मामले में कोर्ट की सहायता करने के लिए कहा है। कोर्ट ने कहा कि हमारा ये सोचना है कि अगर कोचिंग सेंटर सेफ्टी नॉर्म को पूरा नहीं करते हैं तो इनको ऑनलाइन मोड में कर दिया जाना चाा, लेकिन फिलहाल हम ये नहीं कर रहे हैं। दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने पर सुप्रीम कोर्ट ने कोचिंग सेंटर फेडरेशन के अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया। बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट ने मुखर्जी नगर कोचिंग हादसे के बाद जिन कोचिंग सेंटर के पास फायर एनओसी नहीं है उन्हे बंद करने का आदेश दिया था।

राज की बात :  बाढ़ की समस्या विकराल …सरकार हुई फेल!

द्विजेंद्र तिवारी
मुंबई

दिल्ली के कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में डूबकर तीन प्रतिभाशाली विद्यार्थियों की मौत से पूरा देश हिल गया। केरल में भी सैकड़ों लोग मलबे के नीचे दब गए। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी यूपी और बिहार में बाढ़ ने तांडव मचाया। इस तरह की घटनाएं लगभग हर साल होती हैं। लेकिन समस्या का कोई स्थायी समाधान ढूंढ़ने की ईमानदार कोशिश नहीं की गई।
हम वर्षों से पढ़ते आए हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां नदियों का व्यापक जाल है। यहां नदियों का महत्व केवल कृषि के लिए ही नहीं, बल्कि लोगों की जीवनशैली और संस्कृति में भी बहुत गहरा है, परंतु जब यही नदियां उफान पर होती हैं तो वे विनाश का कारण बन जाती हैं। हाल के दिनों में भारत में बाढ़ की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। यह समस्या न केवल जान-माल का नुकसान करती है, बल्कि देश की आर्थिक प्रगति में भी बाधा उत्पन्न करती है।
इस वर्ष, विशेषकर उत्तरी और पूर्वी भारत के राज्यों में बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है। बिहार, असम, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। हजारों लोगों को अपने घरों से विस्थापित होना पड़ा और कई लोगों की जान चली गई। लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि जलमग्न हो गई, जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ।
बाढ़ की यह समस्या हर वर्ष आती है, लेकिन इस बार इसका प्रभाव अधिक गंभीर रहा है। बाढ़ के कारण नदियों के किनारे बसे गांव और शहर पूरी तरह से जलमग्न हो गए। दिल्ली-मुंबई जैसे महानगर भी इससे नहीं बचे। सड़कों, पुलों और अन्य बुनियादी ढांचों को भी भारी नुकसान पहुंचा है।
भारत में बाढ़ की समस्या कोई नई नहीं है। यह समस्या हर साल बरसात के मौसम में आती है और हजारों लोगों की जिंदगी को प्रभावित करती है। बाढ़ की समस्या का एक बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन भी है। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा की मात्रा और उसका वितरण असमान हो गया है, जिससे बाढ़ की स्थिति और गंभीर हो जाती है।
बाढ़ की समस्या के समाधान में प्रशासन की विफलता भी एक बड़ा मुद्दा है। हर साल बाढ़ आने के बावजूद, प्रशासनिक स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते हैं। बाढ़ प्रबंधन योजनाओं का अभाव, आधुनिक चेतावनी प्रणाली की कमी और राहत एवं बचाव कार्यों में देरी प्रशासन की असफलता को दर्शाती है। अधिकांश राज्यों में बाढ़ प्रबंधन योजना या तो होती नहीं है या फिर यदि होती भी है तो वह प्रभावी नहीं होती। बाढ़ से पहले लोगों को सचेत करने के लिए प्रभावी चेतावनी प्रणाली का अभाव है। इससे लोग समय रहते सुरक्षित स्थान पर नहीं पहुंच पाते। बाढ़ आने के बाद राहत एवं बचाव कार्यों में देरी होती है, जिससे लोगों को और अधिक नुकसान होता है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की एक पुरानी रिपोर्ट के अनुसार भारत के ३२९ मिलियन हेक्टेयर के कुल भौगोलिक क्षेत्र में लगभग ४० मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ प्रवण क्षेत्र है। हर वर्ष औसतन ७५ लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित होती है। १,६०० लोगों की जान जाती है और बाढ़ के कारण फसलों, घरों और सार्वजनिक संपत्ति को १,८०० करोड़ रुपए का नुकसान होता है। वर्ष १९७७ में सबसे अधिक ११,३१६ लोगों की जान गई थी। भीषण बाढ़ की आवृत्ति अब हर पांच वर्षों में एक से अधिक बार होती है।
बाढ़ उन क्षेत्रों में भी आ रही है, जिन्हें पहले बाढ़ प्रवण नहीं माना जाता था। नदियां जलग्रहण क्षेत्रों से भारी मात्रा में तलछट लाती हैं। नदियों की अपर्याप्त वहन क्षमता के साथ-साथ ये बाढ़, जल निकासी की कमी और नदी के किनारों के कटाव के लिए जिम्मेदार हैं। चक्रवात और बादल फटने से अचानक बाढ़ आती है और भारी नुकसान होता है। यह एक तथ्य है कि भारत में नुकसान पहुंचाने वाली कुछ नदियां नेपाल जैसे पड़ोसी देशों से निकलती हैं; जो समस्या बढ़ा देती हैं। बाढ़ के कारण लगातार और बड़े पैमाने पर जान-माल की हानि और सार्वजनिक व निजी संपत्ति को नुकसान यह दर्शाता है कि हम अभी भी बाढ़ के लिए एक प्रभावी प्रक्रिया विकसित नहीं कर पाए हैं।
दरअसल, केंद्र सरकार के पास कोई ठोस बाढ़ प्रबंधन योजना नहीं है। नदियों के किनारे बने इलाकों को चिह्नित कर उन्हें सुरक्षित बनाने की कोई योजना नहीं है। बाढ़ वाले क्षेत्र में कितने लोग या घर हैं, इसकी कोई जानकारी नहीं होती। जब यह जानकारी ही नहीं है तो बाढ़ आने से पहले लोगों को सचेत वैâसे करें।
शहरों में नाला सफाई और गांवों में प्रभावी जल निकासी प्रणाली ध्वस्त हो चुकी है। मुंबई में नालासफाई के नाम पर इस वर्ष करोड़ों रुपए खर्च हुए, पर थोड़ी बारिश में भी इस वर्ष सड़कों पर पानी जमा हो गया। सिर्फ मुंबई ही नहीं, देश की लगभग सारी नदियों के किनारे अवैध निर्माण हुए हैं, इसका सीधा असर पड़ा है।
बाढ़ की समस्या को हल करने के लिए राज्यों के बीच सहयोग महत्वपूर्ण है। नदियों का जल विभिन्न राज्यों से होकर गुजरता है इसलिए एक राज्य में उठाए गए कदमों का प्रभाव दूसरे राज्य पर भी पड़ता है। इसलिए अंतरराज्यीय सहयोग से ही बाढ़ की समस्या का स्थायी समाधान निकाला जा सकता है, लेकिन केंद्र सरकार के पास इसके लिए समय ही नहीं है। सत्तारूढ़ दल के नेता हमेशा राजनीति और चुनाव में व्यस्त रहते हैं।
पहाड़ों से जिस तरह मिट्टी दरक रही है, उसके लिए ज़रूरी है कि हरित आवरण का विकास किया जाए। इससे नदियों के किनारे की मिट्टी के कटाव को रोका जा सकता है और जल के बहाव को नियंत्रित किया जा सकता है।
बाढ़ की समस्या को समझने और उसके समाधान के लिए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करना भी आवश्यक है।
बाढ़ की समस्या भारत में एक विकराल समस्या बन गई है। इसके समाधान के लिए प्रभावी बाढ़ प्रबंधन योजना, चेतावनी प्रणाली में सुधार, जल निकासी प्रणाली का विकास, अवैध निर्माण पर रोक, जन जागरूकता कार्यक्रम, अंतरराज्यीय सहयोग, हरित आवरण का विकास और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन जैसे कदम उठाने की ज़रूरत है। केवल तब ही इस समस्या से प्रभावी रूप से निपट सकते हैं और देश की जनता को सुरक्षित रख सकते हैं। केंद्र सरकार को इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा और ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि भविष्य में बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।
(लेखक कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)