ठाणे ट्रैफिक पुलिस उपायुक्त डॉ. विनयकुमार राठौड़ ने बताया कि ९० लाख ५३ हजार ६५० रुपये का जुर्माना वसूला गया है। साथ ही राष्ट्रीय लोक अदालत को मिले अच्छे प्रतिसाद को देखते हुए सुलह अदालतों में लंबित मामलों को निपटाने का अभियान सितंबर २०२४ में फिर से चलाया जाएगा। हालांकि, ठाणे परिवहन विभाग सभी नागरिकों से अपील करता है कि वे इस अभियान का पूरा लाभ उठाएं।
सामना संवाददाता / ठाणे
राष्ट्रीय लोक अदालत में ठाणे शहर पुलिस आयुक्तालय के ठाणे यातायात विभाग में दायर ८ हजार ४४४ मामलों का निपटारा किया गया और ७४ लाख ७५ हजार ०५० रुपए का जुर्माना वसूला गया। साथ ही लोक अदालत के संबंध में भेजे गए नोटिस के कारण नागरिकों ने ४ करोड़ ९७ लाख १८ हजार ४५० रुपए की जुर्माना राशि का भुगतान किया है और २७ जुलाई २०२४ को लोक अदालत के दिन २ चालान के तहत कुल १८ लाख ६० हजार १५० रुपए की राशि का भुगतान किया गया है। एक हजार ६८५ चालान का भुगतान वाहन चालकों ने सीधे किया है।
बता दें कि यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाले वाहन चालकों के खिलाफ मोटर वाहन अधिनियम के तहत जुर्माना लगाया जाता है। इसके लिए ट्रैफिक पुलिस के रजिस्टर्ड मोबाइल फोन पर जुर्माना चालान भेजकर जुर्माना राशि वसूल की जाती है। जुर्माना देने में लापरवाही बरतने वाले मोटर चालकों पर मुकदमा चलाया जाता है। लेकिन ऐसे कई मामले लंबित हैं और अदालत उन मामलों को निपटाने के लिए हर तीन महीने में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन करती है। इस दौरान अधिक से अधिक वाहन चालकों, आम नागरिकों को लोक अदालत तथा उनके विरूद्ध दायर मामलों में समझौता कराकर जुर्माने की राशि वसूल कराई जाती है। २७ जुलाई २०२४ को ठाणे आयुक्तालय की सभी अदालतों में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया गया था। चूंकि लोक अदालत के महत्व को पहले ही हेल्प डेस्क के माध्यम से आम जनता तक पहुंचाया जा चुका है, इसलिए इस बार ठाणे आयुक्तालय को जनता से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली और जुर्माना वसूला जा सका है।
ट्रैफिक विभाग हुआ मालामाल! … लोक अदालत के जरिए रु. ४,९७,१८,४५० दंड वसूली
मीरा रोड के पात्र फेरीवालों को मिलेगी जगह …आयुक्त के आश्वासन के बाद आमरण अनशन समाप्त
– शांतिनगर में जगह को लेकर ७ दिनों से कर रहे थे अनशन
प्रेम यादव / भायंदर
शांतिनगर में जगह को लेकर फेरीवालों का पिछले सात दिनों से जारी आमरण अनशन कल समाप्त हो गया। अनशन का नेतृत्व ‘आजाद हॉकर्स यूनियन’ के जय सिंह कर रहे थे। मनपा आयुक्त के आश्वासन के बाद फेरीवालों ने अनशन खत्म किया।
मीरा रोड के शांतिनगर में अक्टूबर में मनपा की कार्रवाई के बाद हटाए गए फेरीवालों ने भायंदर-पश्चिम में सुभाषचंद्र बोस मैदान के बाहर सात दिनों तक आमरण अनशन किया। मनपा आयुक्त ने पात्र फेरीवालों को जगह देने का आश्वासन दिया, जिसके बाद अनशन समाप्त हो गया।
मीरा रोड स्टेशन से जैन मंदिर तक की लगभग ३०० मीटर लंबी सड़क पर २२ अक्टूबर २०२३ से पहले ४०० से अधिक फेरीवालों ने कब्जा जमा रखा था। ३० फीट चौड़ी इस सड़क के १५-२० फीट हिस्से पर फेरीवालों का नियंत्रण था, जिससे वहां गाड़ियों का आना-जाना ही नहीं, बल्कि पैदल चलना भी मुश्किल हो गया था। सैकड़ों शिकायतों के बावजूद फेरीवालों की दादागिरी और मनमानी पर कोई लगाम नहीं लगाई जा सकी थी, जिससे स्थानीय निवासियों और दुकानदारों को भारी परेशानी हो रही थी।
स्थिति तब गंभीर हो गई, जब २२ अक्टूबर २०२३ को सुरेंद्र राजपुरोहित नामक एक दुकानदार पर फेरीवालों ने इसलिए हमला कर दिया, क्योंकि उन्होंने अपनी दुकान के सामने एक फेरीवाले को गाड़ी पार्किंग से रोका था। इस घटना के बाद स्थानीय दुकानदारों ने फेरीवालों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
जय सिंह ने कहा कि भले ही मनपा आयुक्त ने पात्र फेरीवालों को बैठने के लिए जगह उपलब्ध कराने की बात कही हो, यह हमारी जीत है। हाई कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यदि पात्रता के मापदंड पर अमल हुआ तो सभी फेरीवालों को फिर से जगह मिल जाएगी। उन्होंने इस लड़ाई को फेरीवालों के हक और न्याय की जीत बताया। हालांकि, उन्होंने कहा लिखित आश्वासन का इंतजार है। लिखित आश्वासन मिलने के बाद ही पूर्ण रूप से आंदोलन खत्म किया जाएगा।
राहुल गांधी ने फूंका सामाजिक न्याय की लड़ाई का बिगुल! … कांग्रेस का दावा
सामना संवाददाता / मुंबई
समाज के सभी घटकों को जनसंख्या के अनुपात में न्याय और अधिकार मिले, इसके लिए जातिवार जनगणना कराना आवश्यक है। कांग्रेस पार्टी और इंडिया गठबंधन में उसके सहयोगी दल जातिवार जनगणना कराने के लिए कटिबद्ध हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी जातिवार जनगणना का कड़ा विरोध कर रही है। लोकसभा में जब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने जातिवार जनगणना का मुद्दा उठाया तो भाजपा के अनुराग ठाकुर ने कहा कि जिसकी जाति का कोई अता-पता नहीं है, वे जातिवार जनगणना की मांग कर रहे हैं। उन्होंने इस तरह का बयान देकर इस देश के बहुजन और पिछड़ी जनजाति के लोगों का अपमान करके भाजपा की मनुवादी प्रवृत्ति को दर्शाया है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सामाजिक न्याय की लड़ाई का बिगुल फूंक दिया है और भाजपा चाहे जितना भी विरोध कर ले, फिर भी देश में जातिवार जनगणना होगी ही। इस तरह का हमला महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नाना पटोले ने किया है। साथ ही उन्होंने आंदोलन की भी चेतावनी दी है।
मीडिया से बात करते हुए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा कि भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने हिंदुस्थान के ८० प्रतिशत से अधिक बहुजन समाज का अपमान किया है। महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस भाजपा के इस रवैये की निंदा करती है। भाजपा का एजेंडा जाति और धर्म के आधार पर राजनीति करना है। लोकसभा सदन में विरोधी पक्षनेता की जाति को पूछनेवाले लोग उसी मानसिकता के हैं, जिन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक को इनकार कर दिया था। इन्हीं लोगों ने जगद्गुरु संत तुकाराम महाराज, महान समाज सुधारक गोपाल गणेश आगरकर, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, लोकराजा राजर्षि शाहू महाराज, विट्ठल रामजी शिंदे, महापुरुष डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, पेरियार, प्रबोधनकार ठाकरे जैसे महान महापुरुष के कामों में अड़चनें पैदा किए थे। जिन समाज सुधारकों, महापुरुषों ने समाज में वंचितों, दलितों, दीनों और कमजोरों की आवाज उठाई, उन सभी को अपमान, उत्पीड़न और अयोग्य आलोचना का सामना करना पड़ा। भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने दिखा दिया है कि २१वीं सदी में भी ये रवैया कायम है।
विज्ञापन में झूठी सुविधाओं की घोषणा करने वाले डेवलपर्स पर कसेगी नकेल! … महारेरा का निर्णय
सामना संवाददाता / मुंबई
ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कई डेवलपर्स विज्ञापन देते हैं कि आवास परियोजना स्विमिंग पुल सहित कई पांच सितारा सुविधाएं प्रदान करेगी, लेकिन अक्सर ये सुविधाएं वास्तव में मुहैया नहीं कराई जातीं या फिर समय पर नहीं मिल पातीं। लेकिन अब डेवलपर्स की इस धोखाधड़ी पर लगाम लगेगी। यानी अब डेवलपर्स की नकेल कसेगी। महारेरा ने अब डेवलपर्स के लिए परियोजना में सभी सुविधाओं का विवरण उस तारीख के साथ घोषित करना अनिवार्य कर दिया है जब वे महारेरा पंजीकृत परियोजनाओं को प्रदान की जाएंगी। यह जानकारी अब अनुबंध १ में बिक्री समझौते के हिस्से के रूप में प्रदान की जानी आवश्यक होगी।
हाउसिंग प्रोजेक्ट में स्विमिंग पुल, स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, थिएटर, एक्सरसाइज स्कूल जैसे कई पहलू शामिल हैं। इनमें से कई सुविधाएं और छूट जरूरी नहीं कि वास्तव में आगे बढ़ने के बाद ही उपलब्ध हों। न ही उन्हें घर के कब्जे के समय ही उपलब्ध कराया जाता है। बड़ी परियोजनाओं के कई चरण होते हैं। ऐसे में इस आखिरी चरण में कई सहूलियतें मिल सकती हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, महारेरा ने अब डेवलपर्स के लिए सुविधाओं के सभी विवरण प्रदान करना अनिवार्य कर दिया है, जिसमें वह तारीख भी शामिल है जब वे उपलब्ध होंगी। प्रमुख परियोजनाओं में चरणवार उपलब्ध कराई जाने वाली सुविधाओं का तिथिवार ब्यौरा देना भी अनिवार्य कर दिया गया है। घर खरीदारों के लिए इसके महत्व को ध्यान में रखते हुए महारेरा द्वारा इस प्रावधान को अपरिवर्तनीय बना दिया गया है। महारेरा की ओर से ऐसा आदेश जारी किया गया है और इसके बाद इसे महारेरा में रजिस्टर्ड सभी हाउसिंग प्रोजेक्ट्स पर लागू कर दिया गया है।
अब बिक्री समझौते के अनुबंध १ में सुविधाओं का विवरण देना भी अनिवार्य होगा। यह छठा प्रावधान पहले से प्रमाणित बिक्री अनुबंधों में प्राकृतिक आपदा, दायित्व अवधि, मैट क्षेत्र, स्थानांतरण और पार्किंग के कृत्यों के बाद अपरिवर्तनीय होगा। अब से मॉडल बिक्री समझौते की अनुसूची में इन सुविधाओं और सुविधाओं का व्यापक विवरण प्रदान करना भी अनिवार्य होगा।
परिवर्तनों का विवरण भी आवश्यक है
सुविधाओं या सार्वजनिक क्षेत्रों में किसी भी बड़े सुधार, परिवर्तन, स्थानांतरण या मरम्मत के लिए महारेरा की मंजूरी आवश्यक है। महारेरा की मंजूरी के बिना इन बदलावों पर विचार नहीं किया जाएगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि डेवलपर द्वारा स्थान और सुविधाओं की संख्या में एकतरफा बदलाव नहीं किया जा सकता है। इसके लिए उन्हें २/३ निवासियों की सहमति की आवश्यकता होगी। बताया जा रहा है कि महारेरा के ये नए नियम सुविधाओं के नाम पर उपभोक्ताओं से धोखाधड़ी को रोकेंगे।
आखिरकार सुधाकर शिंदे का हुआ ट्रांसफर …शिंदे के फैसलों को क्या रद्द करेगी सरकार? …नेता प्रतिपक्ष विजय वडेट्टीवार का तीखा सवाल
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई मनपा के अतिरिक्त आयुक्त सुधाकर शिंदे नियमों के खिलाफ जाकर कामकाज कर रहे थे, ऐसे में उनका आखिरकार तबादला कर दिया गया है। हालांकि, नियमों के विपरीत पद पर बैठे अधिकारी द्वारा आठ महीनों में लिए गए पैâसलों को क्या सरकार रद्द करेगी? इस तरह का तीखा सवाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय वडेट्टीवार ने ईडी सरकार से पूछा है। मीडिया से बातचीत में नेता प्रतिपक्ष विजय वडेवट्टीवार ने कहा कि नियमों के खिलाफ जाकर मुंबई मनपा के अतिरिक्त आयुक्त के तौर पर कामकाज हाथ में लेनेवाले सुधाकर शिंदे का आखिरकार ट्रांसफर हो गया है। इसे लेकर हमने लगातार फॉलोअप किया था। नवंबर २०२३ के बाद सुधाकर शिंदे की सेवा में विस्तार नहीं दिया जा सकता है। इस तरह का साफ उल्लेख ट्रांसफर के आदेश में किया गया है। इसलिए नवंबर २०२३ से जुलाई २०२४ इन आठ महीनों में सुधाकर शिंदे द्वारा लिए गए पैâसलों की जांच होनी चाहिए।
विजय वडेवट्टीवार ने कहा कि आठ महीनों में सुधाकर शिंदे के लिए गए पैâसलों पर अपनी भूमिका शिंदे सरकार स्पष्ट करे।
कॉलम ३ : मौत बांटते कोचिंग…
डॉ. रमेश ठाकुर
दिल्ली स्थित एक आईएएस कोचिंग सेंटर में पानी भरने से हुई तीन छात्रों की दर्दनाक मौत ने शिक्षण संस्थाओं की कार्यशैली पर फिर से बड़ा सवाल खड़ा किया है। सवाल ऐसा, जिसका जवाब शायद वो कभी न दे पाएं। क्योंकि ऐसे सवाल उनसे प्रत्येक घटनाओं के बाद कई वर्षों से पूछे जा रहे हैं। देशभर के छात्र अपना भविष्य बनाने की चाह लेकर कोचिंग सेंटरों में पहुंचते हैं। भारी-भरकम फीस भरते हैं, लेकिन सुविधाओं के नाम पर सिर्फ हादसे और मौत? राजस्थान का कोटा शहर तो हादसों के लिए कुख्यात है ही, उस रास्ते पर अब दिल्ली भी चल पड़ी है। दिल्ली को सिविल सेवाओं की तैयारी का गढ़ माना जाता है। मुखर्जी नगर और राजेंद्र नगर में सालाना हजारों की संख्या में छात्र तैयारी करने जाते हैं। ज्यादातर कोचिंग सेंटर किराए के मकानों में संचालित हैं, जिनमें जरूरत की सुविधाएं बिल्कुल भी नहीं होतीं।
राजधानी के ओल्ड राजेंद्र नगर में जिस कोचिंग सेंटर में हादसा हुआ है, वह भी किराए पर था। बेसमेंट में बारिश का पानी हमेशा से भरता रहता था, जिसे सेंटरवालों ने कभी गंभीरता से नहीं लिया। आस-पड़ोस और चश्मदीदों ने बताया कि सेंटर में पानी जमा होने की समस्या पुरानी है। ड्रेनेज की सही व्यवस्था नहीं है और साफ-सफाई भी नियमित रूप से नहीं होती। स्टूडेंट्स के रहने की व्यवस्था भी ठीक नहीं थी। जगह-जगह पर बिजली के तार भी गिरे रहते हैं, जिससे किसी को भी करंट लग सकता है। पिछले सप्ताह दिल्ली में अच्छी बारिश हुई, जिसका पानी हादसे वाली राव कोंचिंग में इतना भर गया कि तीन होनहार बच्चे डूबकर मर गए। घटना के वक्त छात्र बेसमेंट में केबिन के भीतर पढ़ाई में मग्न थे, लेकिन उन्हें क्या पता था आज की पढ़ाई उनकी अंतिम होने वाली है। पानी के रूप में बेसमेंट में मौत प्रवेश कर चुकी है। छात्रों को नहीं पता था कि अंदर पानी भर आया है। क्योंकि बेसमेंट में रिसेप्शन भी था, सेंटरकर्मी भी कई मौजूद थे, लेकिन अंदर पानी भरता देख वे छात्रों की सहायता करने की बजाय भाग खड़े हुए। घटना के वक्त राव कोचिंग का मुख्य संचालनकर्ता भी मौजूद था, वो भी भाग निकला। अगर ये लोग बच्चों को बचाने का प्रयास करते तो शायद उनकी जान बच जाती। लेकिन उन्होंने ऐसा करना मुनासिब नहीं समझा।
दिल्ली में कुकुरमुत्तों की भांति अब कोचिंग सेंटर संचालित हो चुके हैं। यूपीएससी, बैंकिंग, एनडीए, सैनिक, डिफेंस एकेडमी आदि परीक्षाओं की तैयारी करने विभिन्न राज्यों से बच्चे दिल्ली पहुंचते हैं। दिल्ली में कोचिंग सेंटरों में छात्रों के हताहत होने की ये पहली घटना नहीं है, पूर्व में भी कई दर्दनाक घटनाएं हुर्इं, लेकिन पूर्ववर्ती घटनाओं से न प्रशासन ने कुछ सीखा और न ही कोचिंग संचालनकर्ताओं ने कुछ सबक लिया। सेंटर छात्रों से मोटी फीस वसूलते हैं, यूपीएससी के छात्रों से तो मुंह मांगा? छात्र और उनके परिजन उज्ज्वल सपनों का ख्याल करते हुए सभी मांगें पूरी करते हैं। पर, कोचिंग वालों को पढ़ाई के अलावा सुरक्षा संबंधित जो सुविधाएं बच्चों को मुहैया करवानी चाहिए, वो नहीं करते। कोचिंग वालों को सिर्फ शिक्षा के नाम पर धंधा करना होता है। इनके तार पुलिस और सफेदपोशों तक होते हैं, ताकि कोई अनहोनी घटना होने पर सुलझा लिया जाए। दिल्ली की घटना के बाद हादसा करने वाला कोचिंग सेंटर का मालिक भी इसी के जुगत में हैं। उसके संबंध विभिन्न राजनीतिक दलों से बताए गए हैं, स्थानीय पुलिस में भी उसकी अच्छी सांठगांठ है।
बहरहाल, मन को झकझोर देने वाली घटना ने पूरे देश में कोहराम मचाया हुआ है। घटना से आक्रोशित सैकड़ों छात्र सेंटर घटनास्थल पर धरने पर भी बैठ हुए हैं। उनका दर्द शायद कोई समझ पाए, क्योंकि उन्होंने अपने तीन साथियों को खोया है। मृतक छात्रों के परिवार घटना सुनने के बाद किस हाल में हैं, उन्हें देखकर रूहें कांपने लगती हैं। परिजन दिल्ली पहुंचकर बिलख रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अपने दिल के टुकड़ों को भविष्य बनाने के लिए दिल्ली भेजा था, लेकिन प्रभु की लीला देखो, अपने कलेजे के टुकड़ों के शव लेकर घरों को लौट रहे हैं। हताहतों में एक छात्रा यूपी के आंबेडकरनगर और दूसरी तेलंगाना की तो वहीं तीसरा छात्र केरल के एर्नाकुलम का था। उत्तर प्रदेश की छात्रा श्रेया यादव के पिता दूध बेचते हैं, उनका सपना था बेटी अफसर बने।
दिल्ली सरकार ने घटना के संबंध में बेशक मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हों, लेकिन मृतक छात्रों के साथी चीख-चीख बोल रहे हैं कि घटना कोचिंग वालों की लापरवाही से हुई। घटना की सच्चाई एकदम सामने है। घटना बीते शनिवार को उस वक्त घटी, जब कुछ छात्र पढ़ाई में मग्न थे, तभी बेसमेंट में पानी घुसा। बेसमेंट से निकलने का एक ही रास्ता था, जहां से पानी अंदर आया। दूसरा कोई रास्ता नहीं था। पानी घुसता देख कोचिंगकर्मी खुद की जान बचाकर भाग निकले, लेकिन बेसमेंट के केबिन में पढ़ रहे छात्रों को नहीं बचाया। मृतकों के नाम श्रेया यादव, तान्या सोनी और नवीन हैं, तीनों यूपीएससी की तैयार करते थे। हालांकि, घटना को लेकर पुलिस ने कोचिंग सेंटर के संचालकों पर गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है और दिल्ली की मंत्री आतिशी ने घटना पर दुख जताते हुए, दोषियों पर कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया है। लेकिन ये सब उस जख्म को कभी नहीं भर सकते जो मृतकों के परिवारों को मिल चुके है। कोचिंग सेंटरों को अपनी कार्यशैली बदलनी होगी, सिर्फ कमाई का जरिया सेंटरों को नहीं समझना चाहिए, अध्ययनरत छात्रों की सुरक्षा और सुविधाओं पर ध्यान देना होगा।
घटना होने के बाद कोचिंग मालिकों और शिक्षकों का रवैया भी हैरान करता है। इतने बड़े हादसे के बाद भी एक भी शिक्षक छात्रों के समर्थन में खड़ा नहीं दिखाई दिया, सभी फरार हैं। कोचिंगों में हादसे होने की एक बड़ी सच्चाई यह भी है, ज्यादातर सेंटर बेसमेंट में हैं और लाइब्रेरियां भी उन्हीं में हैं। ऐसा राजनीतिक नेताओं, एमसीडी अधिकारी और जमीन मालिकों के बीच सांठगांठ से संभव होता है। दिल्ली के करीब ९० फीसदी कोचिंग सेंटरों की लाइब्रेरी बेसमेंट में मौजूद है। इसके अलावा कोचिंग में पढ़ने वाले छात्र छोटे-छोटे कमरों में रहते हैं, जिनमें न खिड़कियां होती हैं और न घटना होने पर निकलने की कोई आपात सुविधाएं? दिल्ली में कोचिंग सेंटरों के पास उपयुक्त इन्प्रâास्ट्रक्चर नहीं हैं, उन्होंने सड़कों पर अतिक्रमण किया हुआ है। दीवारें होडिंग से पाट रखी हैं। क्या ये सब एमसीडी अधिकारियों को नहीं दिखाई देता? कुल मिलाकर ऐसे हादसे राजनीतिक पहुंच, एमसीडी और कोचिंग संस्थानों के मालिकों के बीच गठजोड़ का ही नतीजा होते हैं। घटना के बाद कई कोचिंग सेंटरों को सील किया गया है, जांच के नाम पर धर-पकड़ तेज हुई है। लेकिन ये तभी तक है जब तक घटना का शोर रहेगा, शोर शांत होते ही कोचिंग वाले फिर से एक्टिव हो जाएंगे। जनता और प्रशासन नए हादसे का इंतजार करेगी।
(लेखक पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)
उत्तर की बात : यूपी बीजेपी में अभी सब कुछ ठीक नहीं
रोहित माहेश्वरी
लखनऊ
लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही यूपी बीजेपी में घमासान मचा हुआ है। पिछले एक महीने से तो योगी विरोधी गुट अति सक्रियता दिखा रहा है। बात दिल्ली दरबार तक पहुंच चुकी है लेकिन योगी और विरोधी गुट की पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात और बैठकों के अलावा कुछ खास सामने नहीं आया है। योगी और उनके विरोधी गुट के पक्ष में पार्टी, संगठन और सरकार के किसी बड़े नेता का बयान सामने नहीं आया है। पर्दे के पीछे एक दूसरे को नीचा दिखाने की राजनीति जारी है।
पिछले दो महीने से यूपी के दोनों उप मुख्यमंत्री, केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक खुलकर तेवर दिखा रहे हैं। यह मैसेज बन रहा है कि दोनों उप मुख्यमंत्री नाराज हैं और इसलिए वे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बुलाई बैठकों में नहीं शामिल हो रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से केशव प्रसाद मौर्य ने खुला विरोध किया है। कई और नेताओं ने योगी प्रशासन पर सवाल उठाया और हार का ठीकरा उनके ऊपर फोड़ने का प्रयास किया। कांवड़ियों के रास्ते में दुकानों पर दुकानदारों का नाम लिखने के उनके पैâसले के समर्थन में पार्टी का कोई बड़ा नेता नहीं उतरा। तभी जब सुप्रीम कोर्ट ने पैâसले पर रोक लगाई तो इस पर भाजपा के अंदर से कोई आवाज नहीं उठी। इस मामले में प्रदेश सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। जानकार तो ये भी कहते हैं कि योगी विरोधी गुट ने दुकानदारों के नाम लिखने वाले मामले को हवा देने का काम किया। असलियत तो खैर किसी को मालूम नहीं, लेकिन लखनऊ के राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि प्रदेश सरकार की छवि जो सीधे तौर पर योगी आदित्यनाथ से जुड़ी है, उसे डैमेज करने की कोशिशें जारी हैं।
दिल्ली में २ दिन तक चली भारतीय जनता पार्टी की उच्च स्तरीय बैठक के बावजूद उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच शीत युद्ध पर विराम नहीं लगा है। केशव प्रसाद मौर्य मानूसन सत्र के पहले दिन दोपहर में भारतीय जनता पार्टी पिछड़ा वर्ग मोर्चा की बैठक में मुख्यमंत्री के आते ही निकल गए और उसके बाद शाम को उन्होंने योगी आदित्यनाथ के अंतर्गत आने वाले गृह विभाग की बैठक ले ली। इस बैठक की जानकारी उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट की मगर, मुख्यमंत्री को टैग नहीं किया। इस बैठक को लेकर अब चर्चाओं का बाजार गर्म है। किसके निर्देश पर केशव मौर्य मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विभाग की बैठक ले रहे हैं।
बैठक में पहुंचे डीजीपी प्रशांत कुमार और एसीपी दीपक कुमार को कानून व्यवस्था दुरुस्त करने समेत कई निर्देश दिए। इस मीटिंग के बारे में केशव ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स और फेसबुक पर कई फोटो के साथ जानकारी साझा की। लेकिन, सीएम योगी के विभाग की बैठक कर रहे केशव ने उन्हें ही टैग नहीं किया है। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ बीजेपी और यूपी बीजेपी को टैग किया है। केशव प्रसाद मौर्य की इस मीटिंग की पॉवर कॉरिडोर में बड़ी चर्चा है।
पार्टी के अंदर असंतोष और खींचतानी तो जारी है ही। वहीं पार्टी के नेताओं के साथ भाजपा की सहयोगी पार्टियों जैसे अपना दल, निषाद पार्टी, रालोद आदि के नेता भी खुल कर बोलने लगे हैं। अपना दल की नेता और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कम से कम दो मौकों पर योगी सरकार को घेरा। पहले उन्होंने ज्यादा टोल टैक्स वसूले जाने की शिकायत की और फिर सरकारी नौकरियों में आरक्षित सीटों पर सामान्य श्रेणी के लोगों की नियुक्ति का मुद्दा उठाया। इस विवाद और खींचतान के बीच मुख्यमंत्री ने पल्लवी पटेल से मुलाकात की है।
पल्लवी पटेल केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की बहन हैं और अपना दल कमेरावादी की नेता हैं। उन्होंने २०२२ के विधानसभा चुनाव में सिराथू सीट पर केशव प्रसाद मौर्य को हराया था। तभी उनकी इस मुलाकात को बहुत अहम माना जा रहा है। योगी ने पल्लवी पटेल से मिल कर केशव प्रसाद मौर्य और अनुप्रिया पटेल दोनों को मैसेज दिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि इस मुलाकात का कोई राजनीतिक नतीजा निकलता है या सिर्फ प्रेशर पॉलिटिक्स की कवायद मात्र ही रहता है। लब्बोलुआब यह है कि बीजेपी यूपी में दिनों-दिन भितरघात और आपसी खींचतान में कमजोर हो रही है। आने वाले दिनों में विधानसभा की दस सीटों पर उपचुनाव भी होना है, ऐसे में इस खींचतान और तनातनी का असर उपचुनाव के नतीजों पर पड़ना लाजिमी है।
(लेखक स्तंभकार, सामाजिक, राजनीतिक मामलों के जानकार एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं)
राज की बात : मोदी का कमाल …चुनावी पारदर्शिता पर सवाल!
राजेश विक्रांत
मुंबई
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कमाल के लिए जाने जाते हैं। वे कोई भी कमाल कर सकते हैं। सर्जिकल के नाम पर फर्जीकल स्ट्राइक कर सकते हैं। अर्थव्यवस्था के आंकड़े को बढ़ा-चढ़ाकर बता सकते हैं। सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के आंकड़े में बढ़ोतरी कर सकते हैं। संभवत: उनकी प्रेरणा, प्रोत्साहन व सहयोग से चुनाव आयोग भी आंकड़ों की हेराफेरी में अगर उस्ताद बन गया है, तो इसका श्रेय मोदी को ही जाएगा। चुनाव आयोग ने जो किया है, उससे चुनावी पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
लोकतंत्र में चुनाव आयोग से आशा की जाती है कि वो चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता का पालन गंभीरता से करेगा, लेकिन शायद ऐसा हुआ नहीं है। चुनावी प्रक्रिया में सुधार को लेकर काम कर रही संस्था- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स- एडीआर ने लोकसभा चुनाव २०२४ को लेकर दावा किया है कि ५३८ संसदीय क्षेत्रों में डाले गए मतों और गिने गए मतों की संख्या में अंतर है। एडीआर के विश्लेषण के अनुसार, लोकसभा चुनावों में ३६२ संसदीय क्षेत्रों में पड़े कुल वोटों से ५,५४,५९८ वोट कम गिने गए। वहीं १७६ संसदीय निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पड़े कुल वोटों से ३५,०९३ वोट ज्यादा गिने गए।
अगर एडीआर का दावा सही है तो यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हिंदुस्थान में चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता पर बड़े गंभीर सवाल खड़े करता है। हालांकि, एडीआर ने यह साफ नहीं किया कि वोटों में इस अंतर की वजह से कितनी सीटों पर अलग परिणाम सामने आए, लेकिन मतगणना के दौरान ३६२ सीटों पर वोट कम गिने जाने तथा १७६ सीटों पर वोट ज्यादा गिने जाने से बड़ी संख्या में परिणाम प्रभावित हुए हैं, इतना तो तय है। लोकसभा चुनावों के दौरान देशभर में जैसा ट्रेंड चल रहा था, उसे देखते हुए यह तो तय ही था कि भाजपा को मिली २४० सीटों में कायदे की कमी आती। यह भी हो सकता है कि तब भाजपा १०० का भी आंकड़ा न हासिल कर पाती।
वोटों के गिनने में हुई हेराफेरी पर चुनाव आयोग की ओर से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। चुनाव आयोग ने ७ जून को लोकसभा चुनाव २०२४ में कुल वोटिंग का आंकड़ा जारी किया था। इस बार कुल मिलाकर ६५.७९ प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। यह २०१९ चुनाव के मुकाबले १.६१ प्रतिशत कम है। पिछली बार कुल आंकड़ा ६७.४० प्रतिशत था, लेकिन चुनाव आयोग को इसके बजाय कुल वोटों की संख्या जारी करनी चाहिए, जो कि उसने नहीं किया।
लोकसभा चुनाव के दौरान भी आयोग की भूमिका ऐसी हो गई थी कि उसे सरकार का जेबी आयोग तक कह दिया गया था। एक तो उसने भीषण गर्मी में चुनावों का कार्यक्रम बनाया। चुनावी प्रक्रिया ७७ दिनों तक चलती रही, जबकि इसे २२-२५ दिन में पूरा किया जा सकता था। इसके साथ ही देश भर में भाजपा नेता सांप्रदायिक चुनावी भाषण देते रहे, लेकिन आयोग खामोश बैठा रहा या दिखावे की कार्रवाई करता रहा। मसलन, मोदी ने राजस्थान के बांसवाड़ा में भाषण दिया था, जिसमें घुसपैठिए और ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले जैसे अपमानजनक जुमलों का प्रयोग किया गया, लेकिन मोदी की जगह भाजपा अध्यक्ष को नोटिस जारी कर दिया गया। कांग्रेस के खातों के प्रâीज होने की खबर तथा इलेक्टोरल बॉन्ड के मुद्दे पर भी आयोग बहरा बन गया था, जबकि चुनाव आयोग को न सिर्फ निष्पक्ष होना चाहिए, बल्कि निष्पक्ष दिखना भी चाहिए।
चुनाव आयोग की हरकतों की वजह से एडीआर की हालिया रिपोर्ट पर भरोसा किया जा सकता है कि आयोग ने अपना फर्ज गंभीरता से नहीं निभाया, जाहिर है कि यह सब मोदी के इशारे पर ही किया गया होगा। वोटिंग का अंतिम आंकड़ा जारी करने में अत्यधिक देरी करना, अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों और मतदान केंद्रों पर हुई वोटिंग के क्षेत्रवार व केंद्रवार आंकड़े उपलब्ध नहीं कराना, शायद आयोग ने जानबूझकर और सच छुपाने के लिए किया है।
इसके साथ ही यहां पर एक सवाल और उठता है कि क्या चुनाव परिणाम आंकड़ों के अंतिम मैचिंग के आधार पर घोषित किए गए थे? आयोग ने वोटों की गिनती पर अंतिम और प्रामाणिक डेटा जारी करने से पहले परिणाम घोषित क्यों किए? ईवीएम में पड़े वोटों, उनकी गिनती में अंतर, चुनाव संपन्न होने के कुछ दिन बाद अंतिम मतदान प्रतिशत में वृद्धि, केंद्रवार डाले गए वोटों की संख्या का खुलासा न करना, डाले गए वोटों के आंकड़े जारी करने में बहुत देरी और अपनी वेबसाइट से कुछ आंकड़ों को हटाने पर भी आयोग की ओर से कोई सफाई नहीं आई है।
इससे साफ-साफ लगता है कि आयोग ने मोदी या सरकार के जेबी आयोग के रूप में काम किया और मनमर्जी काम किया। आयोग मोदी को हेट स्पीच के लिए फटकार नहीं लगा पाया, बल्कि उसने पार्टी अध्यक्ष को जवाबदेह बना दिया। इसने चुनाव में कुल वोटों की संख्या की बजाय, वोटिंग प्रतिशत जारी कर दिया और अब एडीआर की रिपोर्ट में आयोग एक बार फिर कटघरे में खड़ा हो गया है। पूरी चुनावी प्रक्रिया संदेह के घेरे में आ गई है। क्या आयोग इस बारे में सफाई देगा?
(लेखक तीन दशक से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और ११ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)
जाति पर भाजपा की गंदी राजनीति! …केंद्र सरकार पर विपक्ष का हमला
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
इन दिनों लोकसभा में जाति को लेकर जमकर घमासान हो रहा है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी से भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर द्वारा `जाति’ पर सवाल पूछे जाने पर राजनीति में उबाल आ गया है। कांग्रेसी आगबबूला हो उठे हैं। जाति पर भाजपा की गंदी राजनीति देखकर पूरे देश में भाजपा का विरोध जताया जा रहा है। उस पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुराग ठाकुर के भाषण का समर्थन किया है, जिससे पूरे देश में घमासान मचा हुआ है। देश के कोने-कोने में अनुराग ठाकुर के पुतले जलाए जा रहे हैं। सुलतानपुर से भदोही तक भाजपा और अनुराग ठाकुर का विरोध जताया है।
पीएम को शोभा नहीं देता :दिग्विजय सिंह
बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर द्वारा लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की जाति पूछे जाने पर विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठाकुर के भाषण की तारीफ की है। इस पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा, `यह बदतमीजी है…प्रधानमंत्री से उम्मीद नहीं थी कि वह इसका समर्थन करेंगे।’
मोदी के खिलाफ एक्शन का प्लान
संसद में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक्शन की तैयारी की है। कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी ने पीएम मोदी के खिलाफ एसजी के सामने विशेषाधिकार हनन की शिकायत दर्ज करा दी है। कांग्रेस ने बुधवार को ही आरोप लगाया है कि पीएम मोदी ने केंद्रीय मंत्री ठाकुर के भाषण का वीडियो शेयर कर संसदीय विशेषाधिकार के घोर हनन को बढ़ावा दिया है। कांग्रेस का आरोप हैं कि सांसद ने नेता प्रतिपक्ष की जाति पूछकर चर्चा के स्तर को गिराया है।
कांग्रेस ने फूंका अनुराग ठाकुर का पुतला
संसद में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर की तरफ से राहुल गांधी पर एक विवादित टिप्पणी पर देशभर में सत्ता और विपक्ष के बीच सियासी जंग तेज हो गई है। बुधवार को भदोही से लेकर सुलतानपुर तक जगह-जगह अनुराग ठाकुर के पुतले फूंके गए। बुधवार को अवध के सुलतानपुर जिले में कलेक्ट्रेट के सामने पुलिस की मौजूदगी में कांग्रेसियों भाजपा नेता अनुराग ठाकुर का पुतला फूंककर विरोध प्रदर्शन किया।
चिरंजीवी भी निकले धक्केबाज
फिल्मी सितारे इन दिनों धक्केबाज बन गए हैं। कुछ दिनों पहले मुंबई एयरपोर्ट पर तेलुगु स्टार नागार्जुन के बॉडीगार्ड ने अपने एक दिव्यांग फैन को धक्का दे दिया था। बाद में जब यह मामला सोशल मीडिया पर काफी सुर्खियों में आ गया तो वापसी में नागार्जुन ने उस दिव्यांग फैन को गले लगाकर सेल्फी खिंचवाई थी। अब बारी चिरंजीवी की है। पेरिस ओलिंपिक देखकर स्वदेश लौटे चिरंजीवी द्वारा एयरपोर्ट पर उनके साथ सेल्फी लेने की कोशिश कर रहे फैन को धक्का देकर साइड किए जाने का वीडियो सामने आया है। अपनी यूनिफॉर्म से यह फैन एयरपोर्ट स्टाफ का सदस्य लग रहा था। कुछ यूजर्स ने वीडियो को लेकर चिरंजीवी की आलोचना की है, जबकि कुछ ने उनका बचाव किया है।