दिल्ली का गुस्सा लखनऊ में क्यों उतार रहे हैं? …अखिलेश यादव का सीएम योगी पर तंज

सामना संवाददाता / नई दिल्ली 
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नौकरी और प्रतिष्ठा वाले बयान को लेकर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने तंज कसा है। अखिलेश यादव ने ‘एक्स’ पर ट्वीट कर लिखा कि दिल्ली का गुस्सा लखनऊ में क्यों उतार रहे हैं? सवाल यह है कि इनकी प्रतिष्ठा को ठेस किसने पहुंचाई? कह रहे हैं सामनेवालों से, पर बता रहे हैं पीछेवालों को। कोई है पीछे?’ दरअसल, सीएम योगी ने कहा था कि मैं यहां नौकरी करने नहीं आया हूं, मुझे प्रतिष्ठा चाहिए होती तो मठ में मिल जाती है।
क्या बोले अखिलेश यादव?
सपा प्रमुख अखिलेश यादव लगातार उत्तर प्रदेश सरकार पर निशाना साध रहे हैं। लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद सपा का दावा है कि यूपी बीजेपी में उठापटक चल रही है। अखिलेश यादव ने कहा कि सीएम योगी कह सामनेवालों से रहे हैं, लेकिन बता पीछेवालों को रहे हैं। यहां उनका इशारा बीजेपी आलाकमान और उत्तर प्रदेश के दोनों डिप्टी सीएम की ओर था, जिन्हें लेकर पिछले दिनों अलग-अलग तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं।
क्या कहा था योगी ने?
बता दें कि बृहस्पतिवार को विधानसभा में दिए गए अपने संबोधन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि मैं यहां पर नौकरी करने के लिए नहीं आया हूं, अगर मुझे प्रतिष्ठा चाहिए होती तो मठ में भी मिल जाती। हम व्यवस्था बदलने आए हैं, जो गड़बड़ी करेगा वो अंजाम भुगतेगा। अखिलेश यादव ने उनके इस बयान पर टिप्पणी की है।

भड़के जॉन

निखिल आडवाणी के निर्देशन में बनी फिल्म ‘वेदा’ को लेकर खबरों में बने रहनेवाले जॉन अब्राहम से फिल्म के ट्रेलर रिलीज पर मीडिया ने ढेर सारी बातें कीं, लेकिन एक सवाल पर जॉन भड़क गए। दरअसल, एक रिपोर्टर ने उनसे पूछा, वो एक्शन फिल्मों की जगह कुछ नया क्यों नहीं करते? रिपोर्टर का सवाल जॉन को पसंद नहीं आया। उन्होंने जवाब देते हुए कहा, ‘क्या तुमने फिल्म देखी है? अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए जॉन ने कहा, ‘क्या मैं बेकार सवालों और बेवकूफों को जवाब दे सकता हूं? नहीं, मैं तो आपको केवल डायरेक्टली ये बोलना चाहता हूं कि ये फिल्म अलग है। मेरे हिसाब से तो ये बहुत इंटेंस परफॉर्मेंस है, जो मैंने दी है। जाहिर है आपने फिल्म नहीं देखी है। फिल्म देखिए आप। उसके पश्चात मैं पूरी तरह आपका हूं, आप जो भी कहें।’ आखिर में जॉन ने कहा, ‘लेकिन यदि आप गलत साबित हुए तो मैं आपको छोड़ूंगा नहीं।’

मरा नहीं हूं!

फिल्मों में हिट-फ्लॉप तो लगा ही रहता है, परंतु फिल्मों के लगातार फ्लॉप होते ही लोग कलाकार को फ्लॉप मान लेते हैं। लेकिन अक्षय कुमार एक ऐसे स्टार हैं जो हार मानने की बजाय उत्साह के साथ आगे बढ़ने पर विश्वास करते हैं। हिट फिल्में देनेवाले अक्षय की कुछ फिल्में फ्लॉप रहीं, पर वे कभी टूटे नहीं। फिल्म ‘खेल खेल में’ के ट्रेलर लॉन्च पर फ्लॉप फिल्में देने पर रिएक्ट करते हुए अक्षय ने बताया कि लोग उन्हें कैसे-कैसे मैसेज भेजने लगे थे। अक्षय ने कहा, ‘मैं ज्यादा सोचता नहीं। मैं आपको बताऊं कि पांच पिक्चरें नहीं चलीं तो ऐसे-ऐसे मैसेज आते हैं कि यार डोंट वरी सब ठीक हो जाएगा। ये सब क्या है? मैं मरा नहीं हूं।’ अक्षय ने आगे कहा, ‘मैं मरते दम तक काम करता रहूंगा। तब तक काम करता रहूंगा जब तक कि वो मुझे शूट करके गिरा नहीं देते। बस मुझे इतना ही कहना है।’

नहीं कटवाऊंगी बाल

अपनी अपकमिंग फिल्म ‘उलझ’ को लेकर चर्चा में रहनेवाली जाह्नवी कपूर लगातार फिल्म का प्रमोशन कर रही हैं। प्रमोशन के दौरान खुलासा करते हुए उन्होंने बताया कि जब अपने बाल उन्होंने छोटे कर लिए थे तो उनकी मां ने बहुत डांट लगाई थी। जाह्नवी ने कहा, ‘मुझे याद है ‘धड़क’ के दौरान जब मैंने अपने बाल काट लिए थे तो मम्मी ने मुझे बहुत डांट लगाई थी। उन्होंने मुझसे कहा था कि तुम ऐसा कैसे कर सकती हो? किसी भी रोल के लिए अपने बाल मत काटना।’ जाह्नवी ने बताया कि उनकी मां उनके सिर में तेल लगाती थीं, मसाज करती थीं इसीलिए अब जाह्नवी ने ये फैसला लिया है कि वो किसी भी रोल के लिए अपने बाल नहीं कटवाएंगी। जाह्नवी ने कहा कि अगर कोई लाइफ टाइम चेंजिंग मौका मिलेगा तब भी वे अपने बाल नहीं कटवाएंगी। जाह्नवी ने ये भी बताया कि फिल्म ‘उलझ’ के दौरान उनका डायरेक्टर के साथ मतभेद भी हुआ था, क्योंकि वो चाहते थे कि जाह्नवी अपने बाल छोटे कर लें।

छलका दर्द

कैंसर का नाम सुनते ही अच्छे-अच्छे हिम्मत हार जाते हैं, परंतु तीसरे स्टेज का ब्रेस्ट कैंसर होने के बाद हिना खान कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट से गुजर रही हैं। ईश्वर के साथ खुद पर विश्वास रखनेवाली हिना को विश्वास है कि वो इस जंग को जीत लेंगी। पहली कीमोथेरेपी के बाद बालों को छोटा करवानेवाली हिना के इलाज का प्रोसेस जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे हिना को साइड इफेक्ट्स दिख रहा है। लगातार झड़ते बालों से वह खुद को परेशान नहीं करना चाहतीं इसलिए उन्होंने अपना सिर मुंडवाने का फैसला किया है। एक वीडियो शेयर करते हुए उन्होंने बताया कि आखिर उन्होंने ये बड़ा कदम क्यों उठाया? वीडियो में उनका दर्द छलक रहा है। हिना ने कहा, ‘मैं मेंटली स्ट्रॉन्ग रहना चाहती हूं।’

बदली आदतें

नशा कोई भी हो सेहत के लिए ठीक नहीं होता। एंग्जाइटी की समस्या के चलते माही विज ने शराब और काफी छोड़ दी। माही ने बताया कि कार्डिएक अरेस्ट से उनकी मामी का देहांत हो जाने के बाद वे काफी डिप्रेस्ड हो गई थीं। डॉक्टर के पास जाने पर उन्होंने उन्हें कॉफी और अल्कोहल छोड़ने के लिए कहा। माही ने बताया कि वे ओवरथिंकर हैं और ६ महीने से उन्होंने इसे हाथ तक नहीं लगाया क्योंकि इससे एंग्जाइटी ट्रिगर होती है। माही ने कहा कि कॉफी, एल्कोहल और एरेटेड ड्रिंक्स एकदम नहीं पीना चाहिए क्योंकि ये एंग्जाइटी ट्रिगर करते हैं, दिल की समस्या होती है और लीवर इश्यू हो जाता है।

पेरिस ओलिंपिक में बवाल …पुरुष खिलाड़ी बन गया महिला!

अंतर्राष्ट्रीय ओलिंपिक समिति (आईओसी) ने अल्जीरियाई बॉक्सर इमान खलीफ के पेरिस ओलिंपिक्स में महिला बॉक्सिंग वर्ग में भाग लेने के निर्णय का बचाव किया है। आईओसी के अनुसार, पिछले ओलंपिक्स की बॉक्सिंग प्रतियोगिताओं की तरह, एथलीट्स के पासपोर्ट पर लिखे जेंडर और उम्र को ही मान्यता दी गई है। खलीफ, जो एक `बायोलॉजिकल मेल’ हैं, पिछले साल जेंडर एलिजिबिलिटी टेस्ट में फेल हो गई थीं। हालांकि, उनके उच्च टेस्टोस्टेरोन स्तर के कारण जेंडर टेस्ट में असफलता के बावजूद, उन्हें महिला वर्ग में प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति दी गई है। यह विवाद तब और बढ़ गया जब `हैरी पॉटर’ की लेखिका जेके रोलिंग ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने ट्वीट किया, `मनोरंजन के लिए एक मर्द द्वारा औरत की सरेआम पिटाई आपको क्यों ठीक लगती है?… यह मर्दों द्वारा औरतों पर ताकत आजमाए जाने की नुमाइश है।’
इस विवाद ने `डिफरेंसेस इन सेक्स डेवलेपमेंट’ (डीएसडी) पर भी ध्यान खींचा है। डीएसडी जीन, हार्मोन और जननांगों से जुड़ी दुर्लभ कंडिशन्स का एक ग्रुप है। डीएसडी के तहत महिला माने जाने वाले कुछ लोगों र्में ेंभ् सेक्स क्रोमोसोम होते हैं और ब्लड टेस्टोस्टेरोन का लेवल पुरुषों जैसा होता है। खलीफ का मामला इसी श्रेणी में आता है, जिससे उनकी भागीदारी पर विवाद गहराता जा रहा है। आईओसी के निर्णय और खलीफ की भागीदारी ने खेल जगत में जेंडर और समानता के मुद्दों पर एक नई बहस छेड़ दी है। आने वाले पेरिस ओलंपिक्स में यह मुद्दा और भी चर्चा में रहेगा, जहां खेल के नियमों और जेंडर एलिजिबिलिटी पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता हो सकती है।

हार के बाद छलका दर्द …भूखी-प्यासी रही निकहत!

भारत की सबसे मजबूत पदक संभावनाओं में से एक मानी जा रही मुक्केबाज निकहत नॉर्थ पेरिस एरेना में शीर्ष वरीयता प्राप्त चीनी मुक्केबाज के खिलाफ ०-५ से दिल तोड़ने वाली हार के बाद ओलिंपिक से बाहर हो गर्इं। इस हार के बाद निकहत का दर्द छलक आया। निकहत ने कम से कम पांच बार कहा, ‘मैं मजबूत वापसी करूंगी।’ यह स्पष्ट है कि यह हार उन्हें लंबे समय तक परेशान करेगी। यू ने मुकाबले में दबदबा बनाए रखा, जबकि निकहत ने दूसरे दौर में वापसी की कोशिश की लेकिन वह पर्याप्त नहीं थी। ‘क्या मुझे थोड़ा पानी मिल सकता है।’ निकहत ने अपने कोच की ओर इशारा करते हुए कहा और फिर आधी भरी बोतल से एक घूंट लिया। उन्होंने कहा, ‘माफ करना दोस्तों, मैं देश के लिए पदक नहीं जीत सकी। मैंने यहां तक पहुंचने के लिए बहुत त्याग किए हैं। मैंने इस ओलिंपिक के लिए खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से अच्छी तरह से तैयार किया था।’ निकहत ने कहा, ‘मैंने पिछले दो दिनों से कुछ नहीं खाया था, मुझे अपना वजन नियंत्रित रखना था। मैंने पानी भी नहीं पिया था और वजन मापने के बाद ही मैंने पानी पिया, लेकिन मेरे पास उबरने का समय नहीं था, मैं आज रिंग में सबसे पहले उतरी।’

ओलिंपिक पदक जीतने के बाद स्वप्निल को मिला प्रमोशन

इंडियन शूटर स्वप्निल कुसाले ने एक अगस्त को पेरिस ओलिंपिक्स के ५० मीटर थ्री पोजिशन राइफल इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल जीता। इस जीत के बाद उनको बड़ा तोहफा मिला है। बता दें कि स्वप्निल २०१५ से सेंट्रल रेलवे में टीटीई के पद पर काम कर रहे हैं। अब उनका प्रमोशन हुआ है। हालांकि, इस प्रमोशन के लिए उन्हें लगभग दशक भर का इंतजार करना पड़ा, वो बात अलग है। अब इंडियन रेलवे के ओएसडी बनाए गए हैं। २०१५ में सेंट्रल रेलवे में शामिल होने के बाद स्वप्निल ने बार-बार प्रमोशन की मांग की, लेकिन उनका प्रमोशन हो ही नहीं पाया। मिली जानकारी के अनुसार, इंडियन रेलवे द्वारा यात्रा टिकट परीक्षक (टीटीई) स्वप्निल कुसाले को ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) के पद पर प्रमोट किया गया है। ये नियुक्ति मुंबई के स्पोर्ट्स सेल में हुई है। सेंट्रल रेलवे के चीफ पब्लिक रिलेशन ऑफिसर स्वप्निल नीला ने इसकी पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि प्रमोशन का आदेश जारी कर दिया गया है।

क्लीन बोल्ड : जेकोविच का जज्बा

अमिताभ श्रीवास्तव

इसे कहते हैं देश के लिए जीतना। हिंदुस्थानी खिलाड़ियों को सीखना चाहिए यह जज्बा, जो टेनिस के नोवाक जेकोविच में है। जेकोविच सितसिपास से भिड़ रहे थे। ६-३ से पहला सेट जीतने के बाद दूसरे सेट में चोटिल हो गए। ऐसे समय जब वो सितसिपास से यह मैच लगभग हारने की कगार पर थे। सर्बिया के दर्शक एकदम खामोश हो गए। जेकोविच की हालत इस मैच को छोड़ देने जैसी हो चुकी थी। उनके चिकित्सक ने आकर कुछ राहत दी तो जेकोविच कोर्ट में फिर उतरे, मगर अबके तो दर्द से कराह उठे। सर्बिया के दर्शक जो अब तक जोकोविच के लिए उत्साहवर्धन कर रहे थे, उनके छुके सिर और आंखों में आंसू थे कि जेकोविच का अब खेलना कठिन है। यह जेकोविच ने देखा और अपने चिकित्सक से पेन किलर दवा ली। दवा लेकर वो अपने देश के लिए कोर्ट में फिर उतरे और अबकी बार अपने विरोधी को टाई ब्रेकर में जाकर मात दी। अपना मैच लगभग गंवा चुके जेकोविच ने अपने देश के दर्शकों के लिए चोट की परवाह किए बिना मैच खेला और जीता। यह होता है देश के लिए खेलना और उसका जज्बा।

यह तो अन्याय है
पेरिस ओलिंपिक के जरिए विश्व में यह सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो गया, क्योंकि यह मुक्केबाजी में महिलाओ के प्रति अन्याय है। अब इस संदर्भ में तर्क जो भी दे दिए जाएं, किंतु यह सरासर अन्याय है कि एक महिला खिलाड़ी से पुरुष खिलाड़ी भिड़े वो भी महिला बनकर। दरअसल, मामला यौन परिवर्तन का है, जो मान्य किया गया किंतु है सरासर गलत। मुक्केबाजी स्पर्धा में एक बायोलॉजिकल पुरुष इमान खलीफ को एक महिला खिलाड़ी के साथ मुकाबले की अनुमति देने का मामला सामने आया। ओलिंपिक में एक बायोलॉजिकल पुरुष इमान खलीफ को पेरिस में एक महिला के रूप में लड़ने की अनुमति दी गई। मुकाबले में इमान ने कथित तौर पर इटली की महिला मुक्केबाज एंजेला वैâरिनी की नाक तोड़ दी। वैâरिनी ने खलीफ से २ जोरदार मुक्के खाने के बाद ४६ सेकंड के भीतर मुकाबला छोड़ दिया। उसने कहा ओलिंपिक मुक्केबाजी में यह असामान्य है। वैâरिनी ने अपना हेलमेट फर्श पर फेंक दिया और चिल्लाई- यह अन्याय है। पेरिस ओलिंपिक में हुई इस घटना को लेकर पुरी दुनिया सन्न है। हैरी पॉटर की लेखिका जेके राउलिंग ने एक्स पर पोस्ट डालकर पेरिस ओलिंपिक में हुई इस घटना की निंदा करते हुए इसे ‘अपमानजनक’ बताया। इस लिस्ट में एलन मस्क भी शामिल हुए।

खत्म होती चुनौतियां
ओलिंपिक में हिंदुस्थानी चुनौतियां धीरे-धीरे खत्म होने के कगार पर पहुंच रही हैं। वहीं जो मेडल हैं, वो केवल शूटिंग में दर्ज हुए हैं। शूटिंग के अलावा जिनसे तगड़ी उम्मीद थी जैसे तिरंदाजी, मुक्केबाजी, बैडमिंटन उसमें हिंदुस्थानी एथलीट लगभग बाहर हो चुके हैं। अब भाला फेंक, गोला फेंक और कुश्ती से बड़ी आस है। ऐसा आखिर क्यों होता है कि हम हर ओलिंपिक में केवल उम्मीदें टूटती हुई देखते हैं। सैकड़ों एथलीट खेलते हैं, गिनती के जीतते हैं और वो जिनसे उम्मीद भी नहीं होती। दरअसल, यह सारा हमारे ओलिंपिक के लिए तैयारी कराने तथा फेडरेशन द्वारा सिलेक्शन की खामियां हैं। हालांकि, पिछले वर्षों से आज खेलों में बहुत विकास हुआ है, धन लगा है और सुविधाओं के मामले में भी जबरदस्त विकास है। इसके बावजूद कुछ खिलाड़ियों के प्रति उदारता और केवल ओलिंपिक के लिए खिलाड़ी न बनाने की मुहिम की कमी से यह हालत होती है। समय रहते इस कमी के बड़े गड्डे को भरते हुए हिंदुस्थान को ओलिंपिक के लिए ही तैयार करना चाहिए खिलाड़ी, वरना हर बार चुनौतियों को इसी तरह खत्म होते हुए ही देखेंगे।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार व टिप्पणीकार हैं।)