विमल मिश्र
१२ जून, २०२५ को अमदाबाद हवाई अड्डे से रवाना एयर इंडिया के एआई१७१ ड्रीमलाइनर के उड़ते ही ध्वस्त हो जाने से मारे गए २७५ लोगों में विमान दल के सात सदस्यों के साथ कई मुंबई के भी थे। मुंबई खुद भी भारतीय विमानन इतिहास की कई भयंकर हवाई दुर्घटनाओं का साक्षी रहा है, जिनमें कई आश्चर्यजनक रूप से अमदाबाद हादसे से मिलती-जुलती हैं।
अमदाबाद अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से १२ जून को लंदन के लिए रवाना एयर इंडिया का एआई१७१ ड्रीमलाइनर उड़ान भरने के ३४ सेकंड के भीतर पर कटे पक्षी की तरह जमीन पर गिरकर करीब पौने से तीन सौ निर्दोष बलि लेकर ढेर हो गया। बीते वर्षों में मुंबई ने भी ऐसे कई भीषण हादसे देखे हैं।
उड़ते ही समुद्र में समा गया विमान
१ जनवरी, १९७८। नए साल की इससे अपशकुनी शुरुआत हो नहीं सकती थी। मुंबईकरों ने १९७८ के नववर्ष के लिए जश्न की जमकर तैयारियां की थीं। रात साढ़े आठ बजे सेलिब्रेशन के लिए वे महफिल जमाते कि एक भयानक खबर ने उन्हें चौंका दिया। ‘एयर इंडिया के बोइंग ७४७ ‘एंपरर अशोक’ की फ्लाइट ८५५ – जो सांताक्रुज इंटरनेशनल एयरपोर्ट से दुबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए रवाना हुई थी – महज तीन किलोमीटर दूर बांद्रा तट के पास अरब सागर में व्रैâश हो गई थी। बांद्रा और आस-पास के वे लोग, जिन्होंने इसे घटते देखा- इस हादसे को कभी भुला नहीं पाएंगे। एक हवाई जहाज- जो अभी आसमान में उड़ा ही था कि सहसा ऊपर जाने के बजाय गोते खाने लगा और पलक झपकते ही नीचे अरब सागर में ओझल। बचाव तो दूर, प्लेन पर सवार १९० पैसेंजर और २३ क्रू मेंबर समेत २१३ लोगों में किसी को संभलने का मौका भी नहीं मिल पाया। सब कुछ घट गया है महज १०१ सेकंड के भीतर और हवाई अड्डे से सिर्फ तीन किलोमीटर की दूरी पर। यह नौबत आई है खराब उपकरणों की वजह से, जो उड़ान के फौरन बाद विमान को यह संकेत देकर गुमराह कर देते हैं कि विमान दाईं ओर झुक रहा है, जबकि विमान दरअसल, सीधा होता है। लिहाजा, इस कोण को सही करने के लिए पॉयलट्स तीखा बायां मोड़ लेते हैं और विमान औंधे मुंह पानी में समा जाता है।
दुर्घटना के बाद बरामद कॉकपिट वायस रिकॉर्डर से जो डेटा मिला अगर उस पर यकीन करें तो विमान की ऊंचाई बताने वाला एल्टीट्यूड डाइरेक्टर इंडिकेटर (एडीआई) खराब हो गया था, जिसकी वजह से वैâप्टन को ऊंचाई का अनुमान नहीं हो पा रहा था। हादसे में एयर इंडिया ने अपना सबसे सुरक्षित माना जानेवाला विमान खो दिया। ‘एंपरर अशोक’ भारत आनेवाला पहला ७४७ जंबो जेट विमान था। उस समय देश का सबसे शानदार विमान। उसकी भीतरी दीवारों, केबिनों और पैनल्स पर देशी म्यूरल और वॉल पेपर्स थे, अपर डेक पर गलीचे, सोफा सेट और बार की सुविधायुक्त फर्स्ट क्लास लाउंज था और जहां आवभगत का जिम्मा राजस्थानी घाघरा-चोली पहने सबसे खूबसूरत परिचारिकाओं को ही दिया जाता था।
विमान बना आग का गोला
करवा चौथ की रात थी। अभिनेता जितेंद्र सांताक्रुज एयरपोर्ट से लौटकर रात को घर की बॉलकनी में खड़े ही थे, तभी आकाश में उन्होंने एक भयानक दृश्य देखा, ‘…देखता हूं, एक आग का गोला ऐसे-ऐसे जा रहा है। एयरपोर्ट की तरफ…’ कपिल शर्मा शो में आए जंपिंग जैक दर्शकों को बताने में लगे थे वह भुक्तभोगी वृत्तांत, जो भारतीय विमानन के इतिहास की एक सबसे भयानक दुर्घटना के रूप में दर्ज है। वह दुर्घटना, जिसने विमान के सभी ९६ सवारों को पलक झपकते ही मौत की नींद सुला दिया था।
यह हादसा लिखा है १२ अक्टूबर, १९७६ को इंडियन एयरलाइंस वैâरावेली की चेन्नई (मद्रास) जानेवाली फ्लाइट १७१ के नाम। जितेंद्र को शूटिंग के लिए चेन्नई जाना था। फ्लाइट का वक्त था शाम सात बजे। जब वे एयरपोर्ट पहुंचे तो पता चला कि फ्लाइट दो घंटे लेट है और रात साढ़े आठ-नौ बजे जाएगी। उन्हें खयाल आया कि आज तो करवा चौथ है। पत्नी निर्जल व्रत में होगी। जितेंद्र आगे बताते हैं, ‘मैने फिर शोभा को घर पे फोन किया। कहा, चांद निकल रहा है कि नहीं निकल रहा है। देख लो, खतम कर देते हैं किस्सा।’ जब घर लौटे तो देखा पत्नी को बॉलकनी पर – चांद निकलने का इंतजार करती हुई। पत्नी ने फिर हठ करके उन्हें वापस एयरपोर्ट जाने ही नहीं दिया।’ इस तरह इस हादसे ने जितेंद्र का ‘किस्सा खत्म होने’ से बचा लिया। एंबुलेंस हादसे की जगह – रनवे नौ के अंतिम सिरे बिखरे हुए थे सवारों के शव, जो विमान के साथ ही झुलस गए थे। हादसे में ८९ यात्रियों और छह विमान कर्मियों में एक भी नहीं बचा। ज्यादातर यात्रियों को सीट बेल्ट खोलने का मौका भी नहीं मिल पाया था।
उस जमाने में हवाई अड्डों में दर्शक दीर्घा भी हुआ करती थी, जिसके कई दर्शकों ने खिड़कियों से यह हादसा देखा। विमान उड़ता है… हवाई अड्डे की हद पार करते ही मिनटों के भीतर उसके एक इंजन से लपटें निकल रही होती हैं… आग विशाल गोले में तब्दील हो जाती है… वापस लौटता है और पछाड़ खाकर नीचे गिर पड़ता है। उसके परखच्चे उड़ गए हैं… रनवे और आस-पास बस, आग ही आग है और है आंसू और चीख-चिल्लाहट। विमान ३०० फुट ऊपर से कटे पंख वाले पंछी की तरह जमीन पर गिरा है। उसकी भयानक आवाज से सांताक्रुज की दर्जनों इमारतों की खिड़कियों के कांच चटख गए हैं। हादसे की वजहों की पड़ताल से जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक विमान के उड़ते ही उसके दो नंबर वाला इंजन फेल हो गया था। तकनीकी भाषा में इसका कारण हाई प्रेशर वाले टेंथ स्टेज कंप्रेशर डिस्क में ‘मेटल फटीग’ बताया गया है, जिसने कारण पॉवर प्लांट को फेल कर दिया है। कंप्रेशर विस्फोट के बाद टुकड़े-टुकड़े हो गया है, जिससे हवाई ईंधन ने इंजन बे में घुसकर उसे धधका दिया है और ईंधन की सप्लाई लाइनें कट-फट गई हैं। नतीजा संपूर्ण विनाश…। इंजन की आग ने विमान के हाइड्रोलिक फ्लूइड की सप्लाई को खत्म और उसके सर्वेस कंट्रोल के संचालन को ध्वस्त कर दिया है और विमान नियंत्रण से बाहर होकर व्रैâश हो गया है।
कैप एंपरर अशोक: एयर इंडिया के बोइंग ७४७ की फ्लाइट ८५५ – ‘एंपरर अशोक’ और समुद्र से बरामद उसका मलबा। ‘एंपरर अशोक’ १ जनवरी, १९७८ को सांताक्रुज इंटरनेशनल एयरपोर्ट से रवाना होने के महज तीन किलोमीटर दूर बांद्रा तट के पास अरब सागर में व्रैâश हो गया था।
कैप १७१ : १२ अक्टूबर, १९७६ को सांताक्रुज एयरपोर्ट से उड़ते ही ध्वस्त इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर १७१ के अवशेष।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर
संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)