मुख्यपृष्ठअपराधपंचनामा : पार्षदविहीन मनपा के दो वर्ष पूर्ण! ...क्या बिना जनप्रतिनिधियों के...

पंचनामा : पार्षदविहीन मनपा के दो वर्ष पूर्ण! …क्या बिना जनप्रतिनिधियों के कार्य चल सकता है? 

अशोक तिवारी

मुंबई महानगरपालिका में पार्षदों का कार्यकाल समाप्त हुए दो वर्ष पूरे हो चुके हैं। देश का सबसे अमीर महानगरपालिका दो साल से बिना जन प्रतिनिधियों के चल रहा है। महानगरपालिका में आयुक्त यानी प्रशासक का राज कायम है। प्रशासक ने दो बजट भी पेश किए। करोड़ों के कार्य स्वीकृत किए गए, शासनादेश जारी किए गए। इस मौके पर इस बात पर चर्चा चल रही है कि क्या वाकई पार्षदों की अनुपस्थिति से नागरिकों पर कोई फर्क पड़ा, क्या नागरिकों के हित के काम बाधित हुए या फिर वे सुचारू रूप से चल सके।
बता दें कि मुंबई महानगरपालिका का कार्यकाल ७ मार्च २०२२ को समाप्त हो गया, तब से ये प्रशासक के अधीन है। मुंबई महानगरपालिका चुनाव २०२२ में होने की उम्मीद थी, दो साल बीत गए, लेकिन चुनाव अभी तक नहीं हुए। पिछले दो साल से मनपा प्रशासक के अधीन चल रहा है। इन प्रशासकों ने दो बजट भी पेश किए। पूर्व नगर आयुक्त एम. सुकथांकर ने १९८४ में महानगरपालिका प्रशासक के रूप में काम किया था। महानगरपालिका में ३८ साल बाद एक बार फिर प्रशासनिक नियम लागू हो गया, लेकिन इस बार प्रशासक का राज लंबे समय से चल रहा है। महानगरपालिका पर प्रशासक का राज होने के कारण आयुक्तों की आड़ में उसके कामकाज में राज्य सरकार का हस्तक्षेप भी बढ़ गया है।
मुंबई शहर जिला संरक्षक मंत्री दीपक केसरकर और मुंबई उपनगर जिला संरक्षक मंत्री मंगलप्रभात लोढ़ा को मनपा मुख्यालय में कार्यालय दिया गया। इस प्रकार महानगरपालिका के प्रशासन में राज्य सरकार का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप शुरू हुआ और एक नई प्रथा भी स्थापित हुई। इन दो सालों में राज्य की राजनीति में हुए बड़े घटनाक्रमों के चलते राजनीति के लिए प्रशासक शासन के इस्तेमाल की भी चर्चा हो रही है। इन दो वर्षों के दौरान बड़ी मात्रा में कार्य शुरू किए गए। इस अवधि के दौरान, सड़क कंक्रीटीकरण कार्य, सीवरेज रीसाइक्लिंग परियोजना, दहिसर वर्सोवा एक्सप्रेसवे, दहिसर भायंदर एक्सप्रेसवे जैसे प्रमुख बुनियादी ढांचे के काम किए गए हैं। स्थायी समिति और सदन की सारी शक्तियां आयुक्त को दे दी गई हैं।
इस मुद्दे पर जनता की क्या राय है उस पर एक नजर डालते हैं।

लोकतंत्र का उत्सव है चुनाव, विराम नहीं लगना चाहिए
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव चुनाव ही होता है। चुनाव न करना सिर्फ जनता की समस्याओं को ही नहीं पैदा करता है, बल्कि लोकतंत्र के उत्सव में एक बाधा है। किसी भी समस्या के लिए जनता अपने चुने गए प्रतिनिधि से सवाल-जवाब कर सकती है, यहां तक कि उनसे झगड़ा भी कर सकती है।
-शंकर वाघ, समाज सेवक

लोकतंत्र के लिए खतरा
लोकतंत्र में जनता के प्रतिनिधि ही प्रशासनिक अधिकारियों पर दबाव बनाकर जनता का काम करवाते हैं। जनप्रतिनिधि को दोबारा जनता के पास वोट मांगने के लिए जाना होता है, इसलिए वह अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और जनता का काम करते हैं। प्रशासनिक अधिकारी ५८ वर्षों के लिए फिक्स हो जाते हैं। उन्हें जनता की समस्याओं से कोई मतलब नहीं होता है। नगरसेवक न होने की वजह से मेरे प्रभाग में कितने शौचालयों के दरवाजे टूटे हैं, गटर भरी पड़ी हुई है, लेकिन प्रशासन के अधिकारी कुछ नहीं सुनते हैं। अगर चुनाव नहीं कराकर प्रशासन को ही सारी जिम्मेदारी दी गई तो संविधान और लोकतंत्र का औचित्य ही क्या रह जाएगा।
-विजयेंद्र (बीजू) शिंदे, पूर्व नगर सेवक, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष
नहीं सुनते अधिकारी
जनप्रतिनिथियों को न चुनने की वजह से मुंबई शहर की झोपड़पट्टियों में जन समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। कहीं पर शौचालय चॉकअप है तो कहीं पर गटर भरे पड़े हैं और कहीं कूड़े का ढेर पड़ा हुआ है। प्रशासन के अधिकारी किसी भी जनहित के कार्य को अंजाम नहीं दे रहे हैं। स्लम क्षेत्र की अधिकांश जनता को पता ही नहीं है कि इन दिनों नगरसेवकों के कोई पास पावर नहीं है। काम न होने की वजह लोग नगरसेवकों को मान रहे हैं। जो नगरसेवक पूर्व में चुने गए थे, उनके प्रति जनता बहुत गुस्से में है। -सुशील राम कल्याण गुप्ता, समाज सेवक

संविधान और प्रजातंत्र की अवहेलना
पिछले दो वर्षों से मुंबई महानगरपालिका में जनप्रतिनिधि नहीं होने की वजह से लगता है कि देश के नेताओं को प्रजातंत्र और संविधान का भी खौफ नहीं है। अगर सारा काम प्रशासन के ही अधिकारी कर सकते हैं तो देश में संविधान और प्रजातंत्र को लागू करने का उद्देश्य ही अधूरा रह जाता है। हजारों वर्षों की गुलामी के बाद आजाद हुए देश में प्रजातंत्र की संकल्पना की गई थी। इस तरह से चुनाव न कराकर प्रशासन के हाथ में सत्ता देना गैर जिम्मेदाराना और मनमानी पूर्ण रवैया है।
-रविंद्र जगदाले, आम मुंबईकर

इमरजेंसी की याद दिलाते हैं
झोपड़पट्टियों में मनपा के अधिकारी जमकर वसूली कर रहे हैं। लोगों को मनमाने तौर पर नोटिस दी जा रही है, क्योंकि जनप्रतिनिधि नहीं होने की वजह से उनसे सवाल-जवाब करने वाला कोई नहीं है। इतना ही नहीं अधिकारी जो चाह रहे हैं, वही कर रहे हैं और उनका काम हो जाने के बाद नोटिस बंद कर दी जा रही है। सुना है कि मुंबई मनपा अब अपनी इमरजेंसी के लिए एक फिक्स की गई रकम को भी तोड़ने जा रही है। अगर शीघ्र चुनाव नहीं कराए गए तो यह अधिकारी मनपा की तिजोरी को पूरी तरह से खाली कर देंगे।
-राकेश कुमार पांडे, नागरिक

अन्य समाचार