बुलाकी शर्मा
राजस्थान
रात रा दस बजग्या है पण चंदरमाजी ओजूं दरसण देवण नै कोनी पधारिया। घरां री छात माथै ऊभी सुहागण भागण लुगायांं आभै कानी निजर टिकायांं है। सित्तर बरसां रै अड़ै-गड़ै भुवा सा ई उडीक में है। अेक लुगाई भुवा सा सूं पूछ्यो, `आपरा साबजी तो ब्यांव हुयां पछै आपरै साथै रैया ई कोनी, ना अबै बुढ़ापै में आपरो ध्यान राखै, फेर ई आप बरत क्यूं करो भुवा सा?’
`सुहागण नै आपरै सुहाग री रक्षा सारू बरत राखणा चाइजै, बायली।’ `पण भुवा सा, म्हांरा फूंफोसा तो बरसां तांई खुद नै कंवारो बतावता रैया। मजबूरी में बां नै बाद में ब्यांव रो बतावणो पड़ियो। फेर ई आप लगोलग बरत-उपवास करो, गळै में मंगळसूत्र राखो। फूफो सा तो ब्यांव में फेरा लेंवता दियोडा बचनां नै ई भूलग्या है, भुवा सा। जे थांरा पोता जी म्हारै साथै इसो व्यवहार करता नीं तो म्हैं बां नै बां री नानी याद दिराय देंवती भुवा सा।’
आपरै भाई रै पोतै री बीनणी रो सवाल सुण’र बे बोल्या, `आपांनै आपांरै स्त्री धर्म री पालना में चूक नीं करणी चाइजै बीनणी बेटा। म्हैं म्हारो धरम निभा रैयी हूं। आपरै पुरुष धरम री पालना सारू सोचणो बां नै है, म्हनै नीं।’ `अेक बात बतावो भुवा सा वैâ कोई आपसूं जबरानी मंगळसूत्र खोस’र किणी दूजी लुगाई नै देय देवै तो?’ छोटकी बीनणी बांरै घणी मूंडै लाग्योड़ी है। इसो अबखो सवाल करती ई घबरायी कोनी। पण भुवा सा चिङग्या, `थूं तो साव ई मूरख है अे बीनणी। मंगळसूत्र कोई सजावटी वैâ सोभाऊ गहणो कोनी हुवै। सुहागण रै सुहाग री सेनाणी हुवै। पैली बात तो आ वैâ सुहागण आपरै सुहाग री सैनाणी मंगळ सूत्र किणनै ई लेवण कोनी देवै अर दूजी बात आ वैâ कोई लुगाई किणी दूजी लुगाई रो मंगळ सूत्र पैरै कोनी। कीं सोच-विचारनै बात करिया कर बीनणी।’ `पण भुवा सा, केई मोटा नेता चुनावां में इसी ई बातां कर रैया है। फूंफो सा ई अेड़ी बातां करता रैया है। आप टीवी माथै खबरां देखो कोनी कांई?’ `थारा फूंफो सा जित्ता दिन म्हारै साथै रैया, बां दिनां री छिब म्हारै हिवडै में थिर है बेटा। म्हैं बां सारू मंगळ सूत्र पहरूं, बरत-उपवास करूं। म्हनै छोड’र गयां पछै री छिब सूं म्हनै कांई लेवणो है बेटा।’ अचाणचक आभै ऊपरां चंदरमाजी आपरी आभा बिखेरण लाग्या। सगळ्यां साथै भुवा सा ई पूजा में लागग्या।