मुख्यपृष्ठनए समाचारवाह रे मोदी सरकार... आरबीआई की नजर में खेती-दिहाड़ी भी रोजगार!

वाह रे मोदी सरकार… आरबीआई की नजर में खेती-दिहाड़ी भी रोजगार!

अर्थशास्त्रियों का मानना है,
‘ये नियमित वेतन वाले काम नहीं’
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
मोदी सरकार दावा करती है कि देश में रोजगार बढ़ा है और इसके लिए वह तमाम आंकड़े गिनाती है। मगर अब पता चला है कि इसमें घपला है। हाल ही में आई आरबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, खेती करनेवाले और दिहाड़ी पर मजदूरी करनेवालों को भी रोजगार की श्रेणी में डाल दिया गया है। ऐसे में मोदी सरकार और आरबीआई की काफी फजीहत हो रही है। इस मामले में अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ये नियमित वेतन वाले काम नहीं हैं।
इस बारे में प्राइवेट सेक्टर के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ये नौकरियां रेगुलर वेतन वाली औपचारिक नौकरियों के बराबर नहीं हैं। यह बयान श्रम विभाग के आंकड़ों के बाद आया है, जो इस हफ्ते जारी किए गए थे। इन आंकड़ों के अनुसार, २०१७-१८ से हर साल २ करोड़ नए रोजगार पैदा हुए हैं। यह सिटी बैंक की उस रिपोर्ट को गलत साबित करता है, जिसमें कहा गया था कि २०१२ के बाद से हर साल केवल ८८ लाख नौकरियां ही दी गई हैं। अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट के हेड अमित बसाले ने कहा, ‘यह स्पष्ट है कि रोजगार में होने वाली बढ़ोतरी का एक बड़ा हिस्सा कृषि और स्व-रोजगार से आ रहा है, जिसमें खुद का काम करना या बिना वेतन वाला पारिवारिक काम शामिल है।’ बसाले ने कहा कि वित्तीय वर्ष २०२२-२३ तक के विस्तृत आंकड़ों के आधार पर रोजगार में हुई वृद्धि को नियमित वेतन वाली औपचारिक नौकरियों के बराबर नहीं माना जा सकता है। मार्च २०२४ में खत्म हुए वित्तीय वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार की संख्या में ४.६७ करोड़ की बढ़ोतरी हुई है। रिजर्व बैंक के अनुसार, कुल रोजगार अब ६४.३३ करोड़ हो गया है, जो कि एक साल पहले ५९.६७ करोड़ था।
हालांकि, आंकड़ों के पीछे की कहानी थोड़ी जटिल है। अमित बसाले का कहना है कि रिजर्व बैंक के डेटा में बताए गए १० करोड़ नए रोजगारों में से ४.८ करोड़ सिर्फ खेती से जुड़े हैं। बसाले ने ये भी कहा, ‘मैं इन्हें असली नौकरी नहीं मानता। ये वो लोग हैं, जो खेती कर रहे हैं या खुद का छोटा काम कर रहे हैं, क्योंकि बाजार में कंपनियों द्वारा पर्याप्त कर्मचारियों की मांग नहीं है।’ रिजर्व बैंक ने रोजगार में हुई बढ़ोतरी का अनुमान तो लगाया है, लेकिन यह नहीं बताया कि किन क्षेत्रों में ये नौकरियां पैदा हुई हैं। भाजपा हालिया लोकसभा चुनावों में बहुमत नहीं पा सकी थी। सत्ता बचाए रखने के लिए उसे सहयोगी दलों का सहारा लेना पड़ा। मोदी ने २०१४ में पहली बार सत्ता हासिल की थी, उस वक्त उन्होंने हर साल २ करोड़ नौकरियां पैदा करने का वादा किया था। लेकिन विश्लेषकों और राजनीतिक विरोधियों ने वादा पूरा न करने के लिए उनकी आलोचना की है। विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, ‘मोदी सरकार का एकमात्र मिशन युवाओं को बेरोजगार बनाना है।’ यह बयान सिटी बैंक की रिपोर्ट के बाद आया था, जिसने भारत में रोजगार को लेकर फिर से बहस छेड़ दी है।

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