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भोजपुरिया व्यंग्य: प्रभुनाथ शुक्ल भदोही, नेताजी रंग बदले सीखले बाड़े, जनता कब सीखी?

हमनी के देश में विचारधारा के जंग चल रहल बा। चुनाव के मौसम में इ स्थिति बहुत साफ हो जाला। राजनीति गिरगिट निहन रंग बदलेले। हमनी के नेताजी के विचार चाहे जवन होखे, दुपट्टा-टोपी पहिनते ही देवता निहन जनता-जनार्दन समझ जाला कि हमनी के नेताजी के विचारधारा का ह। वैसे गिरगिट आ राजनीति में हमनी के कवनो अंतर ना बुझाला। जइसे गिरगिट रंग बदलेला ओसही राजनीति में हमनी के नेता लोग भी रंग बदलेला। हमनी के नेता देश समाज बदे बहुत चिंतित बाड़े। काल्ह तक उ विचारधारा में धर्मनिरपेक्ष रहले। सार्वभौमिकता के बात करत रहलें। जाति आ धर्म उनका खातिर बेमतलब के बात रहे। जाति-धर्म के बात करे वाला लोग से उनका नफरत रहे। लेकिन जब जमाना बदल गईल त उ हो राजनीति के प्रोफेशनल बना देले। जबले ऊ अपना विचार आ सिद्धांत पर अडिग रहले तब ले केहू उनका पर सवाल ना उठावत रहे। जनता इहो कहत रहे कि नेताजी के जमाना खतम हो गइल बा। बाकि जब उ पुरनका पार्टी छोड़ के आपन विचार आ सिद्धांत बदल दिहलन आ वीआईपी गाड़ी में सुरक्षा संग सफर करे लगलन त उनकर किस्मत बोले लागल। नेताजी के प्रोफेशनल आईटी सेल के लोग उनकर छवि सुधारे में कमाल कईले। अब इलाका के हर बच्चा के युवा प सिर्फ नेताजी हावी बाड़े। समाज में उनकर पूँछ बढ़ल आ चम्मच उनकर तारीफ करे लागल।

नेताजी के जब समय के अहसास भईल त राजनीति में उनुकर रुचि अवुरी प्रगति बढ़ गईल। उ अपना राजनीति के शुरुआत धर्मनिरपेक्षता से कईले। बाद में उ वामपंथी परिधान पहिनले। जब राजनीति में मोड़ आ गईल अउरी सत्ता के सुख से वंचित हो गईले त समाजवादी विचारधारा के समर्थक बन गईले। जइसे-जइसे समय बदलत गइल, सर्वहारा वर्ग दलित, शोषित आ वंचित के सेवा के चिंता करे लागल। उहाँ से भी जब सत्ता के डेरा टुटे लागल त उ लोग राष्ट्रवादी हो गईले। हमनी के नेता के खूंटा से बान्हल पसंद ना होखेला। ऊ भटकल स्वभाव के हउवें। सवाल उठत बा कि जब प्रकृति बदलत बा त नेताजी विचारधारा से काहे बान्हल रहले। एही तरे उ आपन भविष्य के निवेश कईले। जबकि नेताजी जी के साथ देवे वाला जनता जनार्दन जहां से आपन सफर शुरू कईले रहले उहाँ हीं बाड़े। हो सकेला! जनता समय के संगे रंग बदलल ना सीखलस।

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