मुख्यपृष्ठनए समाचारमेहनतकश : कम उम्र में मिली बड़ी सफलता

मेहनतकश : कम उम्र में मिली बड़ी सफलता

आनंद श्रीवास्तव

वर्ष १९६० में कोलकाता में जन्मी डॉ. नीता शाह महज २१ वर्ष की उम्र में डॉक्टर बन गर्इं। उसके बाद १९८५ में वह आई सर्जन बन गर्इं। इतने कम उम्र में उन्होंने यह सफलता हासिल की। डॉ. नीता शाह को शैक्षणिक कार्यकाल के दौरान हमेशा से ही गोल्ड मेडल मिलता रहा है। साधारण पारिवारिक बैकग्राउंड वाली डॉ. नीता शाह जब मेडिकल सर्जन के लिए एडमिशन लेने गर्इं उस दौरान एक ही सीट रहती थी, जिसे उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त कर हासिल किया। सायन के लोकमान्य तिलक अस्पताल और केईएम अस्पताल में नौकरी करते हुए उन्होंने ऑपरेशन में अपना अनुभव बढ़ाया। मेरा ज्यादा ध्यान आंखों के इलाज पर ही था। इसलिए मैंने आई सर्जन होने की ठान ली थी। जब एडमिशन की बारी आई तब मैरिट के आधार पर मुझे सर्जन की डॉक्टरी पढ़ाई के लिए एडमिशन मिल गया। कई विद्यार्थियों में से सिर्फ मुझे ही एडमिशन मिला, जिसकी खुशी मुझसे ज्यादा मेरे परिवारवालों को थी। वे बताती हैं कि जब मैं सर्जन बन गई, तब मैंने पैâसला किया कि मैं ज्यादा-से-ज्यादा लोगों की सेवा करूंगी। इसके लिए वर्ष २००० में मैंने अपने पति के साथ मिलकर खुद का छोटा-सा अस्पताल शुरू किया। वर्ष १९९१ में मैंने पहली बार प्रैक्टिस शुरू किया था और कुछ ही साल बाद अपना खुद का दवाखाना शुरू किया, जिसकी खुशी कुछ अलग ही थी। आज डॉ. नीता शाह अपना खुद का दवाखाना तो चला ही रही हैं, लेकिन वह देश-विदेश के कई मेडिकल सेमिनारों में बतौर गेस्ट लेक्चरर बुलाई जाती हैं। जहां वे आंखों की बीमारियों के बारे में लोगों को जानकारी देने के साथ-साथ अवेयरलेस पैâलाने का भी काम करती हैं। बीते दिनों को याद कर वे बताती हैं कि किस तरह आज उनका ये सपना पूरा हो गया है। आज उनका आयुष आई क्लिनिक भी काफी चर्चित हो गया है। आज डॉ. अग्रवाल आई हॉस्पिटल ग्रुप ने इनके ट्रीटमेंट की प्रणाली से प्रभावित होकर टाई-अप किया है। अब डॉ. नीता शाह और उनकी टीम रोजाना लगभग पचास लोगों की मुफ्त सर्जरी करती है। वे कहती हैं कि अपने पुराने दिन मैं भूली नहीं हूं इसलिए वैâसा भी मरीज क्यों न आए, उसकी सेवा करना ही मैंने अपना एकमात्र ध्येय बना लिया है।

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