मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनामेहनतकश : न खाने को था न सिर पर छत थी  मेहनत...

मेहनतकश : न खाने को था न सिर पर छत थी  मेहनत से बने नगरसेवक

अनिल मिश्रा

पद-प्रतिष्ठा पाने के बाद कोई भी हो कुछ सालों में ही उसका रहन-सहन बदल जाता है, उसकी जीवन शैली बदल जाती है। आलीशान घर और गाड़ियों में चलने लगता है। विरले ही ऐसे होते हैं जो किसी अच्छे पद पर पहुंचने के बाद भी जमीन से जुड़े रहते हैं। इन्हीं में से एक हैं उल्हासनगर शहर के रहनेवाले गजानन प्रहलाद शेलके, जो कि पूर्व नगरसेवक हैं। लोग इन्हें सादगी और ईमानदारी की मिसाल मानते हैं। भ्रष्टाचार को अभिशाप मानने वाले गजानन प्रहलाद शेलके को देखकर कोई भी यह नहीं कह पाएगा कि ये नगरसेवक रह चुके हैं। शेलके का मानना है कि पुण्यकर्म करने से कुल की तीन पीढ़ी संपन्न होती हैं। शेलके आज भी कंपनी में काम करके अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। उन्हें जानने वाले कहते हैं कि गजानन शेलके चाहते तो वे भी करोड़पति बन जाते और अन्य नगरसेवकों की तरह आलीशान मकान में रहते, शरीर पर बहुमूल्य आभूषण पहनते। लेकिन उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया, जिससे चरित्र पर दाग लगे। इनका एक ही उद्देश्य है लोगों की सेवा करना। गजानन शेलके अपने बारे में बताते हैं कि वे दसवीं पास करने के बाद पैसा कमाने के उद्देश्य से साल १९८५ में अकोला जिले के दनोरी गांव से उल्हासनगर आए थे। उस समय उनके पास मात्र सौ रुपए ही थे। उल्हासनगर आने के बाद वे एनआरसी कंपनी में कोन बनाने का काम करने लगे। वे बताते हैं कि उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब वे भूखे-प्यासे रात में सो जाया करते थे, क्योंकि खाने को नहीं मिलता था। कभी-कभी उसल पाव ही खाकर रात बिता देते थे। सिर पर छत नहीं थी तो गाड़ी के नीचे ही सो जाते थे। कुछ समय बाद ही एनआरसी कंपनी बंद हो गई, जिसके बाद वे लूम कारखाने में काम करने लगे। लूम कारखाने में काम करते हुए वे शिवसेना पार्टी की नीतियों और विचारों से प्रभावित होकर पार्टी के लिए काम करने लगे। उनकी जनसेवा की भावना और मेहनत को देखते हुए उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी। उनकी यह मेहनत रंग लाई, और उन्हें शिवसेना की तरफ से उल्हासनगर-३ में स्थित रेणुका सोसायटी इलाके का शाखा प्रमुख बना दिया गया। लेकिन उन्हें उस समय झटका लगा जब चुनाव में नगरसेवक का टिकट नहीं मिला। उनकी जगह शिवसेना ने भारती तड़करी बाई को चुनाव मैदान में उतारा। लेकिन वे थोड़े मतों से हार गईं। इसके बाद शेलके ने शिवसेना छोड़ आरपीआई ज्वाइन कर ली और इन्हें टिकट भी मिल गया। चूंकि इलाके में इनका मान-सम्मान अधिक था, इसलिए लोगों ने इन्हें भारी मतों से जिताया। आज भी गजानन शेलके ने समाजसेवा को नहीं छोड़ा। वे अपने वेतन का आधा हिस्सा गरीब जरूरत मंद लोगों को खाने-पिलाने, गरीब परिवार की लड़कियों की शादी में सहयोग करने, गरीब बच्चों को पढ़ाने, उनके लिए किताब खरीदने सहित अन्य कार्यों पर खर्च कर देते हैं। आज भी विट्ठल रुक्मिणी मंदिर पर हरिनाम सप्ताह, हल्दी कुंकु, नवरात्रि जैसे सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन कर समाज को जोड़ने का काम करते हैं।

अन्य समाचार