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न तो मुनाफा, न ही धंधा! …फिर भी चुनावी बॉन्ड खरीदकर दिया चंदा! …सामने आया बॉन्ड खरीदनेवाली कई फर्जी कंपनियों का गोरखधंधा

सामना संवाददाता / मुंबई
चुनाव आयोग की वेबसाइट पर प्रकाशित होने के बाद चुनावी बॉन्ड से जुड़ी कई सनसनीखेज जानकारियां बाहर आ रही हैं। इसके तहत कई ऐसी कंपनियों का पता चला है जिनका न तो कोई धंधा है और न ही वे मुनाफा कमा रही हैं। इसके बावजूद उन्होंने चुनावी बॉन्ड खरीदकर चंदा दिया है। माना जा रहा है कि इस गोरखधंधे में कई फर्जी कंपनियां लिप्त हैं। इस बात का खुलासा खोजी पत्रकारिता करने के लिए मशहूर ‘रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ ने किया है। जब से सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद एसबीआई द्वारा दी गई जानकारी को चुनाव आयोग ने सार्वजनिक किया है, देश का राजनीतिक माहौल गर्म हो गया है। इसके बाद केंद्र की भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं।

कानूनी जामा पहना कर भ्रष्टाचार को बनाया वैध!
-चुनावी बॉन्ड पर ‘रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ का सनसनीखेज विश्लेषण

ऐसी कंपनियां भी हैं, जो ऐसे समय चंदा तो दे रही हैं जब कोई मकसद स्पष्ट नहीं है और न तो उनके पास इतना पैसा है, लेकिन वो कहीं और से पैसा लाकर राजनीतिक दलों को गोपनीय तरीके से फंड दे जाती हैं’

चुनावी बॉन्ड से जुड़ी कई जानकारियां बाहर आ रही हैं। इस बारे में ‘रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ ने इसका सनसनीखेज विश्लेषण किया है। वरिष्ठ पत्रकार और रिपोर्टर्स कलेक्टिव के सदस्य नितिन सेठी कहते हैं, ‘शुक्रवार को हुई सुनवाई में इसी पर बहस हुई कि एसबीआई और चुनाव आयोग ने जो जानकारियां दी हैं उसमें वो सीक्रेट नंबर नहीं हैं, जिससे पता चलता कि किसने, किसको पैसे दिए।’
गौरतलब है कि एसबीआई ने यूनिक नंबर के मिलान सहित जानकारी देने के लिए पहले ३० जून का समय मांगा था, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। नितिन सेठी कहते हैं कि अभी हमें बस अंदाजा लग पा रहा है कि किन कंपनियों ने इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदा और किन राजनीतिक दलों को दिया। अगर ये यूनिक नंबर आ जाए तो कोई भी पता कर सकता है कि इन कंपनियों ने किस राजनीतिक दल को चंदा दिया। कलेक्टिव रिपोर्टर्स ने चुनाव आयोग के डेटा का बारीकी से विश्लेषण किया है।
नितिन सेठी कहते हैं, ‘ऐसी कंपनियां हैं, जिनके यहां छापा पड़ा तो पार्टी फंड में पैसा दिया। ऐसी कंपनियां भी हैं, जिनका अपना कोई धंधा या मुनाफा नहीं है फिर वो भी पार्टियों को चंदा दिए जा रही हैं। ऐसे कई व्यक्ति हैं जो बड़ी कंपनियों से जुड़े हैं, लेकिन वो निजी तौर पर करोड़ों रुपए फंड दे रहे हैं। ऐसी कंपनियां भी हैं, जो ऐसे समय चंदा तो दे रही हैं जब कोई मकसद स्पष्ट नहीं है और न तो उनके पास इतना पैसा है, लेकिन वो कहीं और से पैसा लाकर राजनीतिक दलों को गोपनीय तरीके से फंड दे जाती हैं।’ उदाहरण देते हुए वो कहते हैं कि दो कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने बड़े पैमाने पर इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे। एक है फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, जिसे एक लॉटरी किंग के नाम से जाने जाने वाले सैंटियागो मार्टिन चलाते हैं। इसका कोई भी मुनाफा नहीं है। इसका दफ्तर भी नहीं मिलेगा, उसने हजार करोड़ रुपए से ज्यादा चंदा दिया। दूसरी है देश की जानी मानी कंपनी जिसने खुद सीधे चंदा नहीं दिया, बल्कि एक छोटी सी निजी मालिकाने वाली कंपनी के मार्फत राजनीतिक दलों को कई सौ करोड़ रुपए चंदा दिया। उस कंपनी का आम तौर पर नाम तक पता नहीं चलेगा और ना ही उसका कोई मुनाफा है।
यह कंपनी हजारों करोड़ रुपए का कारोबार करती है लेकिन उसका कहना है कि उसे कोई मुनाफा नहीं होता। लेकिन वो फिर राजनीतिक दलों को कई सौ करोड़ रुपए का फंड दे देती है। ऐसे में स्पष्ट है कि चुनावी बॉन्ड की आड़ में एक बड़ा घोटाला चल रहा है।

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