मुख्यपृष्ठसंपादकीयप्याज का निर्यात... कैसा ‘गिफ्ट'; घुटने टेक दिए!

प्याज का निर्यात… कैसा ‘गिफ्ट’; घुटने टेक दिए!

केंद्र की मोदी सरकार को आखिरकार महाराष्ट्र के किसानों के आगे झुकना ही पड़ा। महाराष्ट्र में प्याज निर्यात प्रतिबंध हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। सत्ताधारी दल यह कहते हुए अपनी पीठ थपथपा रहा है कि मोदी ने महाराष्ट्र के किसानों को ‘गिफ्ट’ दिया है। लेकिन ये कोई गिफ्ट नहीं है। महाराष्ट्र में जनाक्रोश के सामने मोदी सरकार ने घुटने टेक दिए हैं। यदि मोदी सरकार वास्तव में महाराष्ट्र में प्याज उत्पादकों को ‘गिफ्ट’ देना चाहती थी, तो उन्होंने पहले केवल गुजरात से सफेद प्याज के निर्यात की अनुमति क्यों दी? महाराष्ट्र और गुजरात के साथ अलग व्यवहार क्यों किया गया? गुजरात के साथ-साथ महाराष्ट्र पर अकारण लगाया गया प्याज निर्यात प्रतिबंध क्यों नहीं हटाया गया? पहले इन प्रश्नों का उत्तर दें और फिर देर से आए इस ज्ञान का ढिंढोरा पीटें। हकीकत तो यह है कि गुजरात और महाराष्ट्र को अलग-अलग न्याय देने से हमें लोकसभा चुनाव में नुकसान होगा, वोटों का पलड़ा हमारे पक्ष में नहीं झुकेगा, महाराष्ट्र में मोदी के चेले-चपाटों को हकीकत का एहसास हो गया। उन्हें एहसास हुआ कि यहां के किसानों और विपक्ष के गुस्से की चिंगारी का चटका महाराष्ट्र में मोदी की सभाओं और उनके उम्मीदवारों को लगेगा। इसलिए फोन घनघनाए और जल्दबाजी में महाराष्ट्र में भी प्याज निर्यात प्रतिबंध हटा दिया गया। केंद्र के शासकों का उनके ‘होम स्टेट’ को लेकर प्रेम और महाराष्ट्र के प्रति उनकी नफरत पिछले दस वर्षों में बार-बार सामने आई है। देश के मुखिया के लिए देश की जनता एक समान होनी चाहिए। लेकिन मौजूदा हुक्मरान का सबकुछ बेकार है। जब से वह सत्ता में आए हैं, उनका झुकाव हमेशा अपने मातृराज्य की ओर रहा है। और उसमें यदि बात महाराष्ट्र की हुई तो गुजरात का पलड़ा नीचे और महाराष्ट्र का पलड़ा ऊपर यह उनकी नीति रही है। शासकों का यह गुजरात प्रेम महाराष्ट्र के प्याज उत्पादकों की जान की आफत बन गई। यह भयानक है। उन्होंने दिसंबर २०२३ से महाराष्ट्र पर प्याज निर्यात प्रतिबंध लाद दिया। यहां के किसान और व्यापारी पिछले चार महीने से इस प्रतिबंध को हटाने के लिए आक्रोश व्यक्त कर रहे थे। वे सरकार से गुहार लगा रहे थे कि निर्यात प्रतिबंध से उनकी सांसें घुट रही हैं, उन्हें राहत दी जाए। उनकी सांसें घुटे या फिर कुछ भी हो जाए लेकिन गुजरात के प्याज उत्पादक और व्यापारियों का जिंदा रहना जरूरी है, ऐसा मोदी सरकार ने तय कर लिया था। महाराष्ट्र के किसान को जमीन पर ले आना और गुजरात के किसान को निर्यात के लिए रेड कारपेट बिछाना। प्याज से लेकर बुलेट ट्रेन तक और उद्योग से लेकर विदेशी सरकारी मेहमानों के आतिथ्य तक हर जगह मोदी सरकार का गुजरात प्रेम देखा गया है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के साथ ‘चाय पे चर्चा’ अमदाबाद में साबरमती तट पर और चीनी राष्ट्रपति से झूला पर चर्चा गुजरात में ही। इन मंडलियों के स्वागत का मेन्यू और वेन्यू गुजरात ही है। मुंबई के वैश्विक वित्तीय केंद्र, हीरा व्यापार और महाराष्ट्र में आने वाली हजारों करोड़ रुपए की परियोजनाओं को गुजरात की ओर ले जाना और देश के विकास के लिए तथाकथित ‘गुजरात मॉडल’ का ढोल पीटना। मोदी सरकार के गुजरात प्रेम और महाराष्ट्र द्वेष की फेहरिस्त अंतहीन है। इसमें महाराष्ट्र के गरीब प्याज किसानों को भी जोड़ा गया। लेकिन महाराष्ट्र के निर्यात प्रतिबंध को बरकरार रखते हुए गुजरात का दो हजार मीट्रिक टन सफेद प्याज का निर्यात मोदी सरकार के खिलाफ चिंगारी बन गया। इस चिंगारी से महाराष्ट्र में सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ आग भड़क जाती। लोकसभा चुनाव में उस पार्टी का भविष्य जल कर खाक हो जाता। इसीलिए महाराष्ट्र के प्याज को भी आनन-फानन में निर्यात के लिए खोल दिया गया है। यानी यह तुम्हें देर से सूझा हुआ सयानापन है। महाराष्ट्र के किसान और जनता आपके इस भेदभाव को बिल्कुल नहीं भूलेंगे। प्याज के बहाने आपका गुजरात प्रेम एक बार फिर उजागर हो गया है। महाराष्ट्र का प्याज निर्यात प्रतिबंध हटाकर आपने यहां के किसान को कोई ‘गिफ्ट’ नहीं दिया है। आपको महाराष्ट्र के जनाक्रोश के सामने अपने घुटने टेकने पड़े हैं!

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