किसानों को मणिपुर जैसे हालात में मत पहुंचाइए  …पीएम मोदी से बोले रणदीप सुरजेवाला

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने किसानों के प्रदर्शन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि किसानों को मणिपुर जैसे हालात में मत पहुंचाइए, क्या वे आतंकवादी हैं। एमएसपी को लेकर बॉर्डर पर बैठे किसानों को लेकर सुरजेवाला ने कहा कि तीन काले कानूनों को वापस लेने के लिए किसानों को धरना देना पड़ा था। कुछ इसी तरह की स्थिति अब भी बन रही है। यहां तक कि किसानों को रोकने के लिए तीन लेयर की सिक्योरिटी भी लगाई गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने किसानों को लेकर कहा कि देश के किसानों में त्राहिमाम मचा हुआ है। पहले ३७८ दिनों तक किसान बॉर्डर पर बैठे रहे, फिर तीन काले कानून वापस लिए गए। एक बार फिर देश का किसान बॉर्डर पर बैठा है। धरती के भगवान किसानों पर जुल्म किया जा रहा है। उनके पास फिल्म देखने का समय है, लेकिन किसानों की बात सुनने का नहीं। सुरजेवाला ने कहा कि कृषि मंत्री झूठ बोलते हैं कि किसानों को फसल लागत का ५० फीसदी मुनाफा दिया जा रहा है। दो सालों का चार्ट आपके सामने है, जिससे पता चलता है कि पिछले २ सालों में एमएसपी क्या दिया गया। देश के किसानों को मणिपुर जैसे हालात में मत पहुंचाइए। क्या किसान आतंकवादी या उग्रवादी है? आखिर किसान देश के प्रधानमंत्री से क्यों नहीं मिल सकता।

रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि किसी को भी दिल्ली आने की इजाजत है। हरियाणा बॉर्डर पर जो तीन लेयर सुरक्षा लगी है। अगर उसे चीन बॉर्डर पर लगा दिया जाता तो चीन हमारे भूभाग पर कब्जा नहीं करता। किसान कह रहे हैं कि हम सौ लोग आना चाहते हैं। उनको रोकने के लिए कील, नस्तर और दीवारें खड़ी की जा रही हैं। सौ किसान दिल्ली चलकर क्यों नहीं आ सकते। इतना ही नहीं सुरजेवाला ने कहा कि वह सोमवार को अडानी मुद्दे के साथ किसानों के मुद्दे को भी संसद में उठाएंगे।

मोदी के राज्य में मुन्नाभाई! …रु. ७० हजार में मेडिकल की डिग्रियां बेचने वाले गिरोह का भंडाफोड़

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश से भ्रष्टाचार को खत्म करने की बात करते हैं, उधर उनके राज्य में ही भ्रष्टाचार पांव फैलाए बैठा है। गुजरात में नागरिकों की जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले मुन्नाभाई तैयार हो रहे थे। जी हां, गुजरात पुलिस ने सूरत से डॉक्टर की फर्जी डिग्री देने वाले एक गिरोह का भंडाफोड़ किया है।
बता दें कि ये गिरोह आठवीं पास लोगों को भी मेडिकल की डिग्री देते थे और हर एक से ७०,००० रुपए लेते थे। इतना ही नहीं रजिस्ट्रेशन रीन्यू करवाने के लिए ५ हजार रुपए फीस भी लेते थे। इस गिरोह के पास १,२०० फर्जी डिग्रियों का डेटाबेस था। गुजरात पुलिस ने गिरोह से डिग्री खरीदने वाले १४ फर्जी डॉक्टरों को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने बताया कि मुख्य आरोपी डॉ. रमेश गुजराती को भी गिरफ्तार कर लिया गया है।
मिली जानकारी के अनुसार, आरोपी बोर्ड ऑफ इलेक्ट्रो होम्योपैथिक मेडिसिन (बीईएचएम) गुजरात द्वारा जारी की गई डिग्रियां बेच रहे थे। पुलिस को उनके पास से सैकड़ों एप्लीकेशन, सर्टिफिकेट और टिकट मिले। पुलिस ने बताया कि उन्हें सूचना मिली थी कि फर्जी डॉक्टर की डिग्री वाले तीन लोग एलोपैथी की प्रैक्टिस कर रहे हैं और रेवेन्यू डिपार्टमेंट ने पुलिस के साथ मिलकर उनके क्लीनिक पर छापा मारा।
पूछताछ करने पर आरोपियों ने बीईएचएम द्वारा जारी की गई डिग्री दिखाई। इसके बारे में पुलिस ने कहा कि यह फर्जी है, क्योंकि गुजरात सरकार ऐसी कोई डिग्री जारी नहीं करती है। जांच में पता चला कि आरोपी इन फर्जी डिग्रियों को एक फर्जी वेबसाइट पर रजिस्टर कर रहा था। पुलिस के अनुसार, मुख्य संदिग्ध को पता चला कि भारत में इलेक्ट्रो-होम्योपैथी अनरेगुलेटेड है।

ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल … बैलेट पेपर से हो चुनाव … सुप्रिया सुले की मांग

सामना संवाददाता / मुंबई
ईवीएम को लेकर जनता में बढ़ते असंतोष के बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सांसद सुप्रिया सुले ने बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की है। पुणे में आयोजित एक प्रेस कॉन्प्रâेंस में उन्होंने केंद्र सरकार और महायुति पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि ईवीएम को लेकर जनता में भ्रम और असंतोष बढ़ रहा है। जब किसी परीक्षा का पेपर लीक हो जाता है तो परीक्षा रद्द कर दी जाती है। इसी तरह, चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए बैलेट पेपर पर मतदान करवाना जरूरी है।
सुले ने कहा कि अगर एक बार बैलेट पेपर से मतदान हो गया, तो ईवीएम से जुड़े किसी भी विवाद की गुंजाइश नहीं बचेगी। दुनिया में भी बदलाव हो रहे हैं, तो भारत को इसमें क्या परेशानी है?
सोलापुर जिले के मारकड़वाड़ी में बैलेट पेपर से मतदान कराने का प्रयास किया गया, लेकिन सरकार ने इसे रद्द कर दिया। उन्होंने सवाल किया अगर कोई गांव संविधान के दायरे में रहकर कोई प्रक्रिया या मॉकड्रिल करना चाहता है, तो इसे रोका क्यों जा रहा है? सरकार ऐसी गतिविधियों को अपराध कैसे मान सकती है?

बीकानेर जेल से रिहा कैदी ने खुद किया सरेंडर … गलती से पुलिस प्रशासन ने किया था रिहा

सामना संवाददाता / बीकानेर
राजस्थान के बीकानेर में अजब-गजब मामला सामने आया है। पुलिस की लापरवाही की वजह से एक आरोपी को रिहा कर दिया गया, जबकि वह एक दूसरे मामले में आरोपी था। बताया जा रहा है कि बीकानेर की सेंट्रल जेल में एक आरोपी हत्या और एनडीपीएस के मामले में बंद था। हत्या के मामले में उसे तीन साल की सजा हुई थी, जिसमें उसे कोर्ट की तरफ से जमानत मिल गई थी, लेकिन एनडीपीएस केस में उसे जमानत नहीं मिली थी। जेल अधिकारियों ने उसे गलती से रिहा कर दिया। यही नहीं जेलकर्मियों की गलती को सही कराने के लिए खुद अपराधी वकील को लेकर कोर्ट पहुंचा, जहां से कोर्ट ने उसे वापस जेल भेज दिया।
एक रिपोर्ट के अनुसार, आरोपी मदनलाल खीचड़ पर हत्या और मादक पदार्थों की तस्करी के केस दर्ज थे। एडीजे कोर्ट ने हत्या के मामले में मदनलाल को ३ साल की सजा सुनाई थी, लेकिन इस मामले में जमानत मिल गई थी। जमानत मिलने के बाद बुधवार को जेल प्रशासन ने उसे रिहा कर दिया। जेल प्रशासन भूल गया कि मदनलाल पर एनडीपीएस के तहत भी केस दर्ज है, जिसको लेकर उसे जेल में ही रखना था। गुरुवार को जब कोर्ट से वारंट आया तब जेल प्रशासन को अपनी गलती का एहसास हुआ। इसके बाद जेल अधीक्षक सुमन मालीवाल ने इसकी सूचना एसपी कावेंद्र सिंह सागर को दी और आरोपी मदनलाल की तलाश शुरू की गई। जब आरोपी नहीं मिला तो पुलिस प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए। आखिरकार, आरोपी ने खुद अपने वकील के साथ शुक्रवार को कोर्ट में सरेंडर कर दिया।

शादी से इनकार करने पर की मां की हत्या …पश्चिम दिल्ली में हत्या के आरोप में बेटा गिरफ्तार

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
पश्चिम दिल्ली के ख्याला इलाका में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। जहां एक बेटे ने अपनी मां की हत्या कर दी। मृतक महिला का नाम सुलोचना बताया जा रहा है। दरअसल ६ दिसंबर की रात करीब ८:३० बजे ख्याला थाने में एक युवक ने पीसीआर को कॉल कर बताया कि उसकी मां की हत्या कर दी गई है और उनके झुमके गायब है। पुलिस मौके पर तुरंत पहुंची और जांच में जुट गई। पुलिस जांच में सामने आया कि घर में कोई लूटपाट नहीं हुई थी और ना ही कोई कीमती सामान गायब है। पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर जांच शुरू की।
पुलिस ने परिवार और पड़ोसियों से पूछताछ की। इलाके के तमाम सीसीटीवी फुटेज को भी खंगाला गया। जांच के दौरान सावन पर पुलिस को शक हुआ। क्योंकि वो पुलिस के सवालों का जवाब ठीक से नहीं दे पा रहा था और जब उससे सख्ती से पूछताछ की गई तो उसने अपना जुर्म कबूल कर लिया। उसने बताया कि उसका बड़े भाई कपिल की शादी हाल ही में तय हुई थीrं। इस पर सावन ने अपनी मां से कहा कि वो भी एक लड़की से शादी करना चाहता है। जिसे वो पहले से जानता है, लेकिन सावन की मां ने उसे डांटा और कहा कि अगर उसने दोबारा ये बात उठाई तो उसे प्रॉपर्टी से बेदखल कर दिया जाएगा। इस बात से गुस्सा होकर सावन ने अपनी मां की हत्या कर दी। उसने पुलिस को गुमराह करने के लिए झूठी कहानी बनाई , लेकिन पुलिस ने इस घटना का पर्दाफाश कर दिया।

जीवन दर्पण : विवाह की अड़चनें होंगी दूर वैदिक विधि से कराएं पूजा

डाॅ. बालकृष्ण मिश्र

गुरुजी मेरे विवाह में क्या अड़चनें आ रही हैं? क्यों अनुकूल जीवनसाथी मिलने में परेशानी आ रही है?
-सचिन राजू तिवारी
(जन्म ७ फरवरी २००१ रात्रि १२:४५ जौनपुर उत्तर प्रदेश)
सचिन जी, आपका जन्म बुधवार को हुआ है और राशि आपकी कर्क है। कर्क राशि पर इस समय शनि की ढैया भी चल रही है, जो मार्च २०२५ में समाप्त हो जाएगी। मैरिज की दृष्टि से देखें तो तुला लग्न में आपका जन्म हुआ है और तुला लग्न का स्वामी शुक्र लग्नेश भी है और अष्टमेश भी है। लग्नेश और अष्टमेश छठे भाव पर बैठा है। लग्नेश और अष्टमेश जब छठे भाव पर बैठता है,तो बार-बार विवाह तय होकर भी कोई न कोई की अड़चन आ जाती है और विशेष बात यह है कि चौथे स्थान पर जहां से सुख का विचार किया जाता है, उस स्थान पर सूर्य भी बैठा हुआ है। कुंडली आपकी मांगलिक नहीं है, लेकिन चौथे स्थान पर बैठा हुआ सूर्य और आठवें स्थान पर बैठा हुआ शनि एवं बृहस्पति विवाह में बाधा डाल रहे हैं, इसके लिए आपको वैदिक विधि से पूजा करनी चाहिए। वैदिक विधि से पूजा कराएंगे तो वैवाहिक जीवन में आने वाली अड़चनें दूर हो जाएंगी। यदि महादशा के आधार पर हम देखें तो शादी आपकी कब तक होगी तो शादी का समय चल रहा है, क्योंकि बुध की महादशा में शुक्र का अंतर चल रहा है। आपको वैदिक विधि से पूजा करनी चाहिए। जीवन की गहराई को जानने के लिए आपको संपूर्ण जीवन दर्पण भी बनवाना चाहिए।

गुरुजी, मेरा बार-बार एक्सीडेंट हो जाता है। क्या कारण है? कृपया मुझे बताएं और उपाय भी बताएं।
-मंगेश ब्रह्मदीन मिश्रा
(जन्म २३ दिसंबर १९८८ दिन में १२:१० प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश)
मंगेश जी, आपका जन्म शुक्रवार को हुआ है। आर्द्रा नक्षत्र के प्रथम चरण में राशि आपकी मिथुन बन रही है, अगर लग्न के आधार पर हम देखें तो मीन लग्न में आपका जन्म हुआ है। आपकी राशि से इस समय गोचर में १२ में भाव पर देवगुरू बृहस्पति बैठे हुए हैं और १२ में भाव के स्वामी शनि देव हैं और शनि की ही महादशा चल रही है। आपकी कुंडली में शनि की महादशा में बुध का अंतर चल रहा है। बुद्ध आपकी कुंडलीr में सप्तमेश भी है और मार्केश भी है। इस कारण से बार-बार आकस्मिक दुर्घटना हो रही है। इसके लिए आपको वैदिक विधि से पूजन करना आवश्यक होगा, नहीं तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है । कुंडली आपकी बहुत अच्छी है। वैदिक विधि से पूजा करा लेंगे तो जीवन में निखार आ जाएगा।

गुरुजी, मेरी राशि क्या है ? क्या मेरी कुंडली में कालसर्प का योग बना हुआ है कृपया उपाय बताएं ?
-संतोष सागवेकर
(जन्म २१ जून १९८८ रात्रि १:४५ रत्नागिरी महाराष्ट्र )
संतोष जीr, आपका जन्म मंगलवार को हुआ है। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के द्वितीय में राशि आपकी सिंह बन रही है। यदि लग्न के आधार पर हम आपकी कुंडली को देखें तो मीन लग्न में आपका जन्म हुआ है। लग्न का स्वामी आपकी कुंडली में बृहस्पति है, जो पराक्रम भाव पर बैठा है और पराक्रम भाव पर बैठकर भाग्य के भाव को अपनी पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। इसलिए भाग्यशाली तो हैं, लेकिन मेहनत बहुत करते हैं। आपकी कुंडली में १२ वें स्थान पर मंगल ग्रह के साथ में राहु बैठकर अंगारक योग भी बना रहा है और केतु ग्रह के साथ चंद्रमा छठे भाव पर बैठकर आपकी कुंडली में महापद्म कालसर्प योग भी बना रहा है। इस कारण आपका व्यर्थ में खर्च एवं पैसे का न बचना तथा मन में बेचैनी भी बनी रहती है। आपको वैदिक विधि से महापद्म नामक कालसर्प योग की पूजा करानी चाहिए और विस्तार से जानने के लिए आपको संपूर्ण जीवन दर्पण भी बनवाना चाहिए।

‘जीवन दर्पण’ कॉलम के तहत यदि आप अपने बारे में कुछ जानना चाहते हैं तो अपना नाम, जन्म तारीख, जन्म समय और जन्म स्थान के साथ अपना सवाल व्हाट्सऐप नंबर ९२२२०४१००१ पर लिख भेजें।

चित्रकूट भाजपा विधायक व एसडीएम में नोक-झोंक! …सुरेंद्र सिंह ने कार्रवाई की दी धमकी

मध्य प्रदेश के चित्रकूट के भाजपा विधायक को एसडीएम द्वारा दो टूक जवाब देने का मामला सामने आया है। दरअसल, चित्रकूट से बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह गहरवार ने भरे मंच राजस्व विभाग के अधिकारियों पर एक के बाद एक आरोप लगाए तो मौके पर मौजूद एसडीएम मझगवां जीतेंद्र वर्मा को नागवार गुजरा। एसडीएम ने आपत्ति जताई जो विधायक को बुरा लगा। इसके बाद दोनों के बीच भरे मंच ही तीखी नोक-झोंक होने लगी। बात बिगड़ती चली गई और बीजेपी विधायक ने एसडीएम को बोला कि सुनिए ज्यादा बकवास यहां न करिए। इस पर एसडीएम ने भी दो टूक कह दिया कि हटवा दीजिए मुझे।
विधायक सुरेंद्र सिंह गहरवार एसडीएम से भी एक कदम आगे निकल गए। उन्होंने राजस्व अधिकारी जीतेंद्र वर्मा को कहा कि हटवाना नहीं है, कार्रवाई करवाऊंगा। बीजेपी विधायक और एसडीएम के बीच भरे मंच पर हॉट-टॉक (नोक-झोंक) चित्रकूट जिले में ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है।
दरअसल, चित्रकूट विधानसभा के मझगवां ग्राम पंचायत में सरकारी समस्या निवारण शिविर चल रहा था। लोग अपनी समस्याएं लेकर आए थे। इसी बीच चित्रकूट विधायक ने अपना संबोधन शुरू कर दिया और प्रशासनिक कार्यक्रम को सभा का रूप देने से बातों-बातों में मामला बिगड़ता चला गया। विधायक और एसडीएम के बीच तीखी नोक-झोंक शुरू हो गई।
विधायक सुरेंद्र सिंह ने कहा कि राजस्व का महा अभियान चल रहा है। सरकारी आदेश के विपरीत उनके क्षेत्र में पटवारी अपने हल्के के गांवों में नहीं जाते हैं। विधायक की इस बात से एसडीएम सहमत नहीं हुए और एसडीएम जीतेंद्र वर्मा ने जवाब देते हुए कहा कि उनके सभी पटवारी अपने हल्का में रहते हैं, फिर क्या दोनों के बीच तल्खी बढ़ती चली गई। विधायक ने तो एसडीएम को यहां तक कह दिया कि ज्यादा बकवास मुझसे मत करिए।

पत्नी संग विधायक पद की शपथ लेने पहुंचे कांग्रेसी झनक … ईवीएम के खिलाफ आंदोलन के चलते टल गया मामला

सामना संवाददाता / मुंबई
रिसोड विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस विधायक अमित झनक शनिवार को अपने परिवार के साथ शपथ ग्रहण के लिए विधानभवन पहुंचे थे। उनके साथ उनकी पत्नी और बेटा भी मौजूद थे, लेकिन महाविकास आघाड़ी (मविआ) के नेताओं ने शपथ ग्रहण का बहिष्कार करने का निर्णय लिया, जिसके कारण झनक शपथ नहीं ले सके। उनकी पत्नी और बेटे उनके शपथ विधि कार्यक्रम को नहीं देख पाए। अब वे विधायक पद की शपथ आज लेंगे।
अमित झनक की पत्नी ने कहा कि यह हमारे लिए अविस्मरणीय पल है। अमित झनक चौथी बार विधायक बने हैं, यह हमारे लिए गर्व का क्षण है। मैं पहली बार शपथ ग्रहण देखने के लिए आई थी और अब चौथी बार विधायक बने हैं तो फिर आई हूं।
मविआ नेताओं ने फैसला किया कि सभी विधायक रविवार को शपथ लेंगे। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए अमित झनक ने कहा कि हम शपथ ग्रहण के लिए तैयार होकर आए थे, लेकिन अब यह रविवार को होगा। वरिष्ठ नेताओं के निर्णय के अनुसार, महाविकास आघाड़ी का शपथ ग्रहण कल होगा। अमित झनक ने शपथ ग्रहण के लिए खास दिगंबरी जैन समाज के हाथ से बुना जैकेट पहना था। उन्होंने कहा कि जैन समाज के हैंडलूम केंद्र में वे आशीर्वाद लेने गए थे, वहां उन्होंने यह जैकेट भेंट की थी। मैंने वादा किया था कि जब मैं शपथ ग्रहण के लिए जाऊंगा तो यही जैकेट पहनूंगा। आज मैंने अपना वादा निभाया है।

शिलालेख : अद्भुत है ‘स्मृति’ तंत्र!

 हृदयनारायण दीक्षित
स्मृति को सामान्यतया अतीत का भाग कहा जाता है, लेकिन स्मृति हमेशा वर्तमान होती है। घटनाएं या विचार अभिव्यक्ति या अन्य सरोकार बेशक अतीत का भाग होते हैं, लेकिन उनकी स्मृति हमेशा वर्तमान है। अच्छी स्मृति परम सौभाग्य है। जो जितना जीवंत है, वह उतना ही स्मृतिपूर्ण। जीवन के अंतिम भाग में स्मृति क्षीण होती जाती है। बुढ़ापे में परिजन बताते हैं कि अब वे पहचान नहीं पाते। स्मृति समृद्धि परिपूर्ण तरुणाई है और स्मृतिलोप परिपूर्ण रुग्णता। परिवार, संपत्ति, ममत्व, अपनत्व, नेह-स्नेह का घनत्व सब कुछ स्मृति के सहारे हैं। स्मृति गई तो सब कुछ गया। स्मृति में संसार है। स्मृति नहीं तो संसार नहीं। स्मृति में शुभ है, अशुभ भी है। स्मृति के अनेक भाग आहतकारी होते हैं और अनेक भाग आह्लादकारी। भारतीय चिंतन में स्मृति को विशेष महत्व मिला है।
याज्ञवल्क्य स्मृति और मनुस्मृति आदि चर्चित स्मृतियां हैं। मनुस्मृति की प्रशंसा नीत्से जैसे विद्वानों ने की है। मनुस्मृति में एक कल्पित विधि व्यवस्था है। ऐसी विधि व्यवस्था भारतीय इतिहास की किसी भी राज्यव्यवस्था में नहीं थी।
‘स्मृति’ तंत्र अद्भुत है। देखे, सुने, पढ़े और अनुभूति प्रतीति का संचित कोष। स्मृति और विवेक ज्ञान का पर्याय हैं। ब्रिटेन के प्रतिष्ठित स्मृति विशेषज्ञ ई.डी. कूक ने स्मृति क्षमता के विकास पर मजेदार बात कही है। कूक के अनुसार ‘रोमांस और यौन संबंधों के बारे में सोचने से मस्तिष्क तीव्र होता है। भावनाएं और आकर्षण मिलते हैं, रुचि बढ़ती है। इससे स्मृति क्षमता में वृद्धि होती है।’ कूक ने जोड़ा है कि प्राचीन रोम और यूनान के राजनेता और तर्कशास्त्री वाद-विवाद के पूर्व यौन संबंध और रोमांस के बारे में सोचते थे। उनका मानना था कि इससे तर्कशक्ति का विकास होता है।’
भारतीय परंपरा में स्मृति क्षमता के लिए सतत अध्ययन व ‘शांति पाठ’ का प्रावधान है। हरेक उपनिषद् के प्रारंभ व अंत में शांति पाठ के मंत्र हैं। अशांत चित्त ज्ञान ग्राह्य नहीं होता। प्रशांत चित्त की ग्राह्यता का क्या कहना? पढ़े या सुने को स्मृति का स्थायी भाव बनाने के लिए पाठ के अंत में फिर से शांति पाठ की व्यवस्था है। केनोपनिषद् के शांतिपाठ में स्तुति है ‘यहां प्रतिपादित तत्व मुझमें रहें, मैं उनमें रहूं।’ मेरा सुना देखा गया सुरक्षित रहे। ऐतरेय उपनिषद का शांति पाठ ध्यान देने योग्य है, ‘मेरी वाणी मन में स्थिर हो। मन वाणी में स्थिर हो। मन और वाणी अलग-अलग न हों। हे मन और वाणी! तुम दोनों मुझे ज्ञान प्राप्त कराओ। आचार्य से सुना और अनुभव से प्राप्त ज्ञान मेरा त्याग न करे। यहां स्मृति को सुदृढ़ और सर्वकालिक बनाने की स्तुति है।’
यौन विचार या रोमांस चित्त प्रशांत नहीं करते। चित्त अशांत करने में ही उनकी भूमिका है और अशांत चित्त मूल स्मृति को भी अव्यवस्थित करते हैं। स्मृति ज्ञान संपदा है। हमारा भोगा और जाना हुआ सार। पाया हुआ, खोया हुआ, कहा सुना और पढ़ा हुआ अमूल्य संचय। यहां कोई चुनाव नहीं। स्मृति में सार्थक-निरर्थक का सहअस्तित्व है। इतिहास स्मृति है और संस्कृति भी। वेद, भौतिकी, पराभौतिकी, खगोल या भूगोल भी स्मृति हैं। वैदिक संहिता को श्रुति कहा जाता है। वे सुने गए हैं। तब लिपि नहीं थी। वे सुनाए गए थे। तब वे सुनाने वाले ऋषियों की स्मृति में थे। बाद में सुनने वाले भाग्यवानों की स्मृति का भाग बने।
स्मृति में अनंत रंग रूप हैं। इनमें से सत्य, शिव और सुंदर का चयन हमारा काम है। सत्य, शिव और सुंदर के निर्णय भी हम स्मृतिकोष से ही करते हैं। स्मृतिकोष में उपस्थित तथ्यों से उनकी जांच करते हैं। तब उन्हें सत्य-असत्य, शिव-अशिव या सुंदर असुंदर के खांचे में डालते हैं। हमारा चित्त निर्णायक भूमिका का निर्वहन करता है, लेकिन निर्णय के हरेक क्षण और चुनौती में स्मृति ही आधारभूत भूमिका निभाती है। स्मृति प्रकृति का प्राणवान उपहार है मानव जाति के लिए। मनुष्य को ही क्यों सभी प्राणियों के लिए भी। पौधों की संवेदनशीलता स्मृतिपूर्ण है। वे पानी देनेवाले किसान या कर्मचारी को देखकर प्रसन्न होते हैं और लकड़ी काटने वाले को देखकर सन्न। पशु भी पालक को देखकर पुलकित होते हैं और कसाई को देखकर भयग्रस्त। सारे खेल प्रकृति और स्मृति के हैं।
स्मृति हमें सचेत करने का काम करती है। निर्णय लेना हमारा ही काम है। स्मृतिलाभ वास्तविक लाभ है। अर्जुन को मिली स्मृति असाधारण है। हमारी स्मृति में अपने गांव, क्षेत्र की सड़कों के नाम संख्या, लंबाई, चौड़ाई हो सकते हैं। मित्रों, शत्रुओं के नाम फोन नंबर भी स्मृति भाग हो सकते हैं। होते भी हैं। अर्जुन के पास ऐसी स्मृति थी। यहां वस्तुत: मूल स्मृति का उल्लेख है। हम अनंत के अंश हैं। हम अनंत ही हैं, लेकिन हमारा बोध इकाई का है। हमारे स्मृतिकोष के सारे अनुभव अंशी हैं। हम हैं, वस्तुए हैं। हम है और वन उपवन। हम हैं और यह संसार है। गहन संपूर्णता के बोध में हमारी स्मृति संपूर्ण को समेट लेती है। वृहदारण्यक उपनिषद् के एक मंत्र में ऋषि ऐसी ही स्मृति की चर्चा करते हैं- ‘यह पूर्ण है, वह पूर्ण है, यह पूर्ण उस पूर्ण का विस्तार है। पूर्ण में पूर्ण घटाओ तो पूर्ण ही शेष बचता है।’ गीता में इसी स्मृति की चर्चा है। कथावाचक ज्ञानी प्रोफेसर या आचार्य पूर्ववर्ती विद्वानों के ज्ञान का उल्लेख करते हैं। हम उन्हें विद्वान कहते हैं। स्मृति और विवेक के कारण ही वे विद्वान हैं।
गीता में ज्ञान परंपरा है। कृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि ‘यह ज्ञान मैंने ही सूर्य को दिया था फिर परंपरा से तमाम ज्ञानियों, राजर्षियों तक पहुंचा, लेकिन काल के प्रभाव में यह ज्ञान नष्ट हो गया। वही ज्ञान मैं तुमको दे रहा हूं।’ यहां राष्ट्रीय स्मृति की चर्चा है। अर्जुन ने कहा कि ये सारे लोग बहुत पहले हुए थे। कृष्ण ने कहा ‘हमारे तुम्हारे तमाम जन्म हो चुके। मैं जानता हूं, तू नहीं जानता।’ श्रीकृष्ण की स्मृति गहरी है। अर्जुन की सामान्य। श्रीकृष्ण की स्मृति में अपने संभवन का संपूर्ण इतिहास है। अर्जुन की स्मृति में तात्कालिक जीवन की स्मृति। ‘स्मृति लब्ध’ शब्द महत्वपूर्ण है। तब अंश, संपूर्ण हो जाता है। स्मृति आंतरिक दिव्यता है रोमांस चर्चा से इसकी क्षमता नहीं बढ़ती। कामसूत्र के रचनाकार वात्स्यायन ने इसे स्मृति क्षीणता का कारक बताया है। श्वेताश्वतर उपनिषद में हम सबको अमृत पुत्र कहा गया है। यह बात हम सबको स्मृति में सुरक्षित रखनी है।

संडे स्तंभ : क्यों याद करें कोरोना!

 

विमल मिश्र
मुंबई के इतिहास के नृशंसतम आतंकवादी हमलों का साक्षी रहा है तो भीषण प्राकृतिक आपदाओं का भी। पर कोविड काल की त्रासदियों की इस शहर पर आई किसी भी आफत से कोई तुलना नहीं की जा सकती। पांच वर्ष पहले इन्हीं दिनों कोरोना ने चीन में पहली दस्तक दी थी और काल दूत बनकर दुनिया में छा गया था।

इंटरकॉम पर हाउसिंग सोसायटी से फोन था- पुराने अखबार चाहिए। जब घर पर हाउस मेड्स, अखबार और दूधवाला- सभी का आना बंद था, मैसेज आया- नीचे आ जाइए। विधायक जी ने सब्जी-फल वाले का प्रबंध किया है। दस दिन से आलू, प्याज और टमाटर खा-खाकर बेरस हुई जुबान ने कदम जबरदस्ती उठवा दिए। मार्च, २०२० लगे कोरोना लॉकडाउन में दस दिन में पहली बार दरवाजे खोले थे। देखा, हमारे दिए अखबारों की चिप्पियों का बंडल लिफ्ट के ठीक बगल की दीवार पर कील से बंधा था- इस समझाइश के साथ कि इसी चिप्पी को पकड़कर दरवाजा खोलना और फ्लोर पर जाकर सीधे बगल की डस्टबिन में डाल देना।
कोविड-१९ के ये शुरुआती दिन थे, जब लंबे अंतराल के बाद नीचे उतरते ही सारी परिचित चीजें बेगानी लगने लगतीं। होमगार्ड-पुलिस वाले और विशेष पास लेकर निकले फ्रंटलाइन वर्कर्स गुजरते हुए आप डरा करते। एकमात्र सांत्वना थी घर के नीचे वाली रौनकदार सड़क, जिस पर भी अब खौफनाक सन्नाटा पसरा था। नाइट कर्फ्यू के सन्नाटे को चीरती पुलिस की साइरन वाली गाड़ी, किसी मरीज को लेने आई एंबुलेंस या कोरोना मृतक को लेने आई शववाहिका खौफ को और बढ़ा देती।
‘घर-घर ‘वर्चुअल ऑफिस’ खुल गए और ‘वर्क फ्राॅम होम’ चलने लगा। सोसायटी के वाट्सअप अब अशुभ समाचारों का उगालदान बन गया था- ‘अमुक फ्लैट वाला अस्पताल में है’, ‘अमुक होम क्वारंटाइन में’ या ‘अब-तब की हालत में’। एक दिन ऐसा आया, जब छोटे बेटे को छोड़कर हमारा पूरा परिवार भी ‘पॉजिटिव’ होकर इस नामुराद बीमारी की गिरफ्त में था। हमारा विंग अब कंटेनमेंट जोन में और सीलबंद था। महानगरपालिका वाले बीच-बीच में आते और धुएं का टॉनिक देकर चले जाते।
जिंदगी रुकी पड़ी थी और अफवाहें जोरों पर। ऐसे में छोटी-छोटी बातें ध्यान खींचतीं। सब्जी गरम पानी से धोई की नहीं! कचरा उठाने वाले ने मास्क और दस्ताना तो पहन रखा है! पास खड़ा अमुक खांस तो नहीं गया! नीचे के फ्लैट वाला अपनी सिगरेट का धुआं बालकनी पर क्यों उगल रहा है? पार्सल लाने वाला सुरक्षित दूरी पर तो खड़ा है! हैंडवाश खत्म तो नहीं हो गया? पल्स ऑक्सीमीटर जरा ऊपर-नीचे होते सांस अटक जाया करती।
कोरोना की शुरुआत चीन से हुई। मुंबई में इसका हल्ला २०१९ के आखिरी महीनों से ही मचने लगा था। ३ फरवरी, २०२० को मुंबई महानगरपालिका ने चीन, हांगकांग, ब्रिटेन आदि देशों से आनेवाले विमान यात्रियों की बुखार, जुकाम, खांसी सरीखे लक्षणों की जांच से इसके रोकथाम की शुरुआत की थी। ११ मार्च को दुबई से आया एक बुजुर्ग दंपति पहली बार कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया, जिसे संक्रामक रोगों के कस्तूरबा अस्पताल में भेजकर पृथक कर दिया गया। स्थिति की भीषणता को देखते हुए ‘वॉर रूम’ बने और आरटी-पीसीआर टेस्ट करने का अधिकार प्राइवेट लेबोरेटरीज को भी दे दिया गया। मई से अक्टूबर के बीच नौबत यहां आ पहुंची कि अस्पतालों में जगह ही नहीं बची। फरवरी, २०२१ से कोरोना की दूसरी लहर आई, इस बार और हाहाकारी। पहली लहर जहां धारावी और वर्ली कोलीवाड़ा सरीखे घनी आबादी वाली झोपड़पट्टियों और चॉलों में केंद्रित थी, इस बार इसने बहुमंजिली इमारतों को मुख्य निशाना बनाया। तीसरी लहर में तो ऐसी इमारत वालों की तादाद बढ़कर ८०-९० प्रतिशत हो गई। दर्द और लापरवाही की सिहरा देनेवाली कहानियों के बीच बीमारी का पता लगने और मौत के बीच फासला दूसरी लहर में दिनों से घटकर घंटों तक रह गया। न डॉक्टरों के पास पर्याप्त समय था, अस्पतालों में मरीजों की लिए आईसीयू बेड, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, रेमडेसिविर इंजेक्शन व दूसरी दवा और साधन। २०२१ में सरकार की राष्ट्रीय वैक्सीनेशन योजना शुरू हुई, जो बूस्टर डोज के साथ खत्म हुई। २०२२ में ओमायक्रॉन पैâला और सुना कि इस बीच तीसरी और शायद चौथी लहर भी आईं।
रुक गई लाइफलाइन
लोकल ट्रेन और बेस्ट की बसें- जो मुंबईकरों की पहली साथी हैं-अब बेगानी सी लगने लगी थीं। महीनों पूरी तरह बंद रहने के बाद जब ये अत्यावश्यक सेवाओं के लिए सीटों पर सोशल डिस्टेंसिंग मार्कर के साथ खुलीं तो जिसके मुंह पर देखो चेहरे पर मास्क और हाथों में सैनेटाइजर। विंडो सीट्स की पूछ और बढ़ी और फोर्थ सीट के लिए झगड़े होने बंद हो गए। बसों में स्टैंडी को अनुमति नहीं थी और टैक्सियों में दो से अधिक कोई बैठ नहीं सकता था। वेतन का बड़ा हिस्सा अब ऑटो और टैक्सी पर खर्च होने लगा। हाथों पर ‘होम क्वारंटाइन’ का स्टैंप देखते ही साथी यात्रियों के चेहरे पर भय पसर जाता। मुंह खुला देख लोग बिदकते और अगर कोई खांस दे तब तो मानो शामत। तापमान और ऑक्सीजन लेवल के लिए थर्मल स्क्रीनिंग थी ही, स्टेशनों पर एंटीजन जांच भी होने लगी। हरसंभव सामान को डीप क्लीन और सैनिटाइज किया जाने लगा था। हवाई अड्डों पर घुसने और बाहर निकलने के पहले आरटी-पीसीआर जरूरी शर्त थी। बाहरगांव की ट्रेनों से आए यात्रियों को जहां स्टेशनों पर लाइन बनाकर कोरोना की निगेटिव रिपोर्ट दिखाने और क्यूआर कोड स्वैâन होने पर ही बाहर जाने की अनुमति मिलती थी, वहीं लोकल यात्रियों को वैक्सीन सर्टिफिकेशन दिखाना अनिवार्य था। इसमें आवागमन प्रतिबंधित होने के कारण बसें बदल-बदल के चार से पांच घंटे रोज आने-जाने में व्यर्थ करने से आजिज होकर नकली आईडी व पास का चलन बढ़ा और जेब में जुर्माना रखकर यात्री खुलेआम बेटिकट घूमने लगे।
कफन, आंसू और कंधा
मुंबई में इन दिनों जहां देखो, केवल दु:ख और संत्रास की कहानियां थीं। अखबार बंद हो जाने से उनके पीडीएफ वर्जन की आदत डाली, जो केवल और केवल कोरोना की खबरों से ही भरे थे। महामारी की इस सूनामी में सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट किसी परिचित चेहरे को फोटो के साथ देखते ही मन आशंका से धकधका उठता था। लॉक डाउन के बाद करीब २० लाख कुशल-अकुशल मजदूर मुंबई के दूध वाले, सब्जी व फल वाले, टैक्सी व ऑटोरिक्शा वाले, धोबी व लांड्रीवाले, फरसाण वाले, सैलून वाले, हमाल व ड्राइवर, दुकानदार, मंदिरों के पुजारी, छोटे-मोटे काम करनेवालों के साथ अपने प‌रिवारों के साथ सरकार द्वारा चलवाई मजदूर विशेष ट्रेनों व बसों से, वाहन जुटाकर, साइकिल से या पैदल ही उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और केरल के अपने गांवों में चले गए। इससे देश की आर्थिक राजधानी में आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह ठप पड़ गर्इं।
कोरोना जीवन की सबसे विकट परीक्षा थी, जिसमें हमारी कोशिशें ही हमारी दवा बन गर्इं और आशा हमारा ऑक्सीजन। मतलब कि इस दुनिया में जहां लोगों के पास अमूमन जिंदा लोगों के लिए भी लम्हा खर्च करने की फुरसत नहीं हुआ करती, आम लोग कोरोना से दम तोड़ रहे अनजान लोगों के लिए अपने व्यस्त समय के घंटों जर्द कर रहे थे। कफनखसोटी के जमाने में मरने वालों की अंतिम यात्रा के लिए कफन और कंधा पेश करते हुए।
कोरोना की खबरें आज भी सुनने में आती हैं, पर जैसे कोई आम बीमारी। सब कुछ वैसा हो गया है, जैसे कोरोना नाम की नामुराद चीज कभी हुई ही नहीं। कोरोना सिर्फ दो साल पहले तक की बात है, पर सुनो तो लगता है किस्से-कहानियों की तरह वह दु:स्वप्न, जो सीना चीरने वाले अनगिनत घाव दे गया और कुछ सीखें भी।