‘ईडी’ २.० सरकार में ‘२ हाफ’ हो जाएंगे ‘२ पाव’! …मंत्रिमंडल सीट बंटवारे में भी भाजपा झुकने को तैयार नहीं

रामदिनेश यादव / मुंबई
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस ने और उप मुख्यमंत्री के रूप में एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने शपथ ली है। अब सभी की नजरें मंत्रिमंडल विस्तार पर टिकी हैं। शिंदे गुट और अजीत पवार गुट ज्यादा मंत्रालय पाने के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं, लेकिन भाजपा अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए शिंदे और अजीत पवार को दबाने में लगी है।
पिछली महायुति सरकार में सीएम शिंदे को फुल और दो डीसीएम को हाफ कहा जाता था। जानकारों का मानना है कि ईडी २.० सरकार में जो दो डीसीएम बनाए गए हैं, वे हाफ की जगह अब पाव भर रह जाएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि इनकी ताकत अब कम कर दी जाएगी। अजीत पवार को पहला बड़ा झटका लगा है। भाजपा उन्हें जल संपदा विभाग न देकर शिंदे को दे रही है। तो शिंद से सीएम पद तो छीना गया ही है, साथ ही उन्हें गृह मंत्रालय भी नहीं दिया गया है।
शिंदे को सर्वजनिक बांधकाम विभाग के साथ राजस्व भी मिल सकता है, तो वहीं अजीत पवार के दो विभाग यह कहकर कम कर दिए जा रहे हैं कि फिर आपको पुणे का पालक मंत्री नहीं बनाया जाएगा।

शिंदे-दादा कोटे से भी बनेंगे भाजपा के मंत्री!
ईडी २.० सरकार का गठन हो चुका है। नए मंत्रिमंडल में कुल ४२ मंत्रालय में से भाजपा २४ से अधिक मंत्री अपने बनाएगी, जबकि शिंदे गुट को १० और अजीत पवार गुट को ८ मंत्री पद मिलेंगे। शिंदे को ५ वैâबिनेट और ५ राज्य मंत्री तो अजीत पवार को चार वैâबिनेट और चार राज्य मंत्री पद मिलेंगे। आश्चर्य की बात तो यह होगी कि शिंदे और दादा कोटे से भी भाजपा के लोग मंत्री बनेंगे। आज मंत्रालय के विभागों के बंटवारे के लिए महायुति की बैठक भी आयोजित की गई है।
शिंदे को भाजपा ने दिया ‘टुकड़ा’
भाजपा द्वारा पहले मुख्यमंत्री और फिर गृह मंत्रालय शिंदे को देने से इनकार करने के बाद उनकी नाराजगी बढ़ गई है, लेकिन शिंदे को उनकी औकात के अनुसार, सीमित मंत्रालय देकर भाजपा कंट्रोल में रखेगी। हालांकि, गिरीश महाजन से लेकर देवेंद्र फडणवीस तक ने शिंदे की नाराजगी दूर करने के लिए कई प्रयास किए। शिंदे उप मुख्यमंत्री पद की शपथ नहीं ले रहे थे, पर फडणवीस ने खुद पहल कर तीन ऑप्शन दिए, जिसके बाद उन्होंने शपथ ली। शिंदे का तर्क भी अपनी जगह सही है कि पिछली बार महायुति सरकार में देवेंद्र फडणवीस उप मुख्यमंत्री थे, उनके पास गृह विभाग था तो अगर इस बार उन्हें उप मुख्यमंत्री पद दिया जा रहा है, तो गृह मंत्रालय भी मिलना चाहिए। लेकिन भाजपा ने गृह मंत्रालय शिंदे को देने से इनकार कर दिया, जिसके कारण यह नाराजगी का मामला शुरू हुआ।
भाजपा-दादा गुट में पालक मंत्री पद पर तकरार
पुणे जिले के पालक मंत्री पद के लिए भाजपा कार्यकर्ता और अजीत पवार गुट के समर्थक अपने-अपने नेताओं को मौका दिए जाने की मांग कर रहे हैं। दोनों ही दलों के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं द्वारा इस मांग को लेकर जोर-शोर से आवाज उठाई जा रही है। इस संबंध में भाजपा नेता चंद्रकांत पाटील ने कहा कि महायुति में यदि कुछ निर्णय होता है, तो सभी को समझदारी दिखानी चाहिए। दादा गुट के जिला अध्यक्ष प्रदीप गारटकर ने अजीत पवार को पालक मंत्री बनाए जाने की मांग की है। उनका दावा है कि २००४ से दादा पुणे शहर और जिले के लिए सक्रिय भूमिका में रहे हैं। उनके पास जिले की राजनीति और प्रशासन का गहरा अनुभव है, साथ ही प्रशासन पर उनकी पकड़ भी मजबूत है। इस आधार पर दादा को पालक मंत्री बनाए जाने की मांग जोर पकड़ रही है।

२००४ से दादा पुणे शहर और जिले के लिए सक्रिय भूमिका में रहे हैं। उनके पास जिले की राजनीति और प्रशासन का गहरा अनुभव है, इस आधार पर दादा को पालक मंत्री बनाए जाने की मांग जोर पकड़ रही है।

 

शिंदे के बगैर शपथ विधि कार्यक्रम की थी तैयारी …सरकार में अभी से नजर आ रहे हैं मतभेद -संजय राऊत ने किया दावा

सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के बावजूद सरकार बनाने में १५ दिन लग गए। हाल ही में शपथ ग्रहण समारोह हुआ, जिसमें केवल तीन लोगों ने शपथ ली। महाराष्ट्र को अब भी पूरा मंत्रिमंडल नहीं मिला है। इसका मतलब साफ है कि सबकुछ ठीक नहीं है। महायुति को लेकर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता और सांसद संजय राऊत ने मीडिया से बातचीत के दौरान कई बड़े खुलासे किए।
उन्होंने कहा कि पूर्ण बहुमत की सरकार होने के बावजूद सरकार में अस्थिरता और मतभेद नजर आ रहे हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कई योजनाओं की घोषणा की और नई नीतियां प्रस्तुत कीं, लेकिन उनके साथी उन्हें काम करने देंगे या नहीं, यह बड़ा सवाल है।
संजय राऊत ने कहा कि नागपुर के अधिवेशन से पहले मंत्रिमंडल विस्तार की बात कही जा रही है, लेकिन यह भी संभव नहीं है। महायुति में जो विवाद चल रहा है, उसे देखें तो भविष्य में कुछ लोगों को सिर्फ दिखावे के लिए यह विस्तार किया जाएगा।
राऊत ने कहा कि शहरी विकास और गृह मंत्रालय को लेकर अड़े शिंदे को अंतत: उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी पड़ी। भाजपा ने शिंदे को दरकिनार कर शपथ ग्रहण की तैयारी कर रखी थी। उद्धव ठाकरे ने बहुमत खोने पर तुरंत इस्तीफा दिया और सरकारी बंगला छोड़ दिया, लेकिन कुछ लोग सत्ता से चिपके रहते हैं और इसके लिए जद्दोजहद करते हैं।
संजय राऊत ने शपथ ग्रहण कार्यक्रम को भी भाजपा का राजनीतिक कार्यक्रम बताया। उन्होंने कहा कि भाजपा के बड़े नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों की उपस्थिति ने साफ संकेत दिया कि यह उनका कार्यक्रम था। भाजपा के १३२ विधायकों के बीच सहयोगियों की स्थिति केवल आश्रितों जैसी रह गई है। राऊत ने यह भी कहा कि उद्धव ठाकरे जैसे नेता दुर्लभ हैं, जो पद को छोड़ने का साहस दिखाते हैं। देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों को फोन किया, जिसमें शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे भी शामिल थे। संजय राऊत ने बताया कि उद्धव ठाकरे ने फडणवीस को शुभकामनाएं दीं।

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र को शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे और यशवंतराव चव्हाण की विरासत मिली है, जिन्होंने सिखाया कि विरोधियों के साथ वैâसा व्यवहार करना चाहिए। राऊत ने भाजपा पर आरोप लगाया कि उसने विपक्षियों को खत्म करने के लिए सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग किया। भाजपा विरोधियों के परिवार तक पहुंचने, उन्हें जेल में डालने और बदले की राजनीति करने में लगी हुई है।

 

शिंदे, डर, खटपट और साजिश,  अंतिम क्षणों तक  फड़फड़ा रहा था दिल!

सामना संवाददाता / मुंबई
येन केन प्रकारेण देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ही ली, परंतु इस शपथ के पीछे लंबी कहानी है, जिसमें एकनाथ शिंदे का ड्रामा भी है और विनोद तावडे की कटिंग भी है। इसमें डर भी है और खटपट का खौफ भी। यदि सभी कुछ योजना के अनुरूप नहीं हुआ होता तो शायद महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री के तौर पर देवेंद्र फडणवीस शपथ नहीं ले पाते। ५ दिसंबर को मुंबई के आजाद मैदान में राज्य के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने से पहले तक देवेंद्र फडणवीस की धड़कनें बढ़ी हुई थीं।
राजनीतिक गुप्तचरों की मानें तो इसके लिए लंबी योजना बनाई गई थी, जिसके पहले अध्याय के तहत विनोद तावडे को वसई में ट्रैप कराया गया था, क्योंकि उस वक्त तक भाजपा के संभावित मुख्यमंत्रियों के चेहरे के तौर पर तावडे का नाम सबसे आगे चल रहा था। तावडे की प्रतिमा को मलिन किए बिना उन्हें दरकिनार करना संभव नहीं था। इसलिए गुप्तचर मानते हैं कि भाजपाई खेमे से तावडे की वसई यात्रा की खबर लीक कराई गई, बावजूद इसके चुनावी नतीजों के बाद तावडे का ही सेंसेक्स शीर्ष पर बना रहा। भाजपा के आलाकमान द्वय तावडे के ही पक्ष में थे। इसके कारण अनेक हैं, राजनैतिक भी और व्यक्तिगत भी। इसलिए उन्हें महाराष्ट्र का जातिगत गणित साधने के लिए मराठा चेहरे की दरकार थी, जो तावडे के रूप में पूरी भी हो रही थी। गुप्तचर दावा करते हैं कि जब इसकी भनक तावडे विरोधी खेमे को लगी तो उन्होंने एकनाथ शिंदे को बतौर मोहरा इस्तेमाल किया। उन शिंदे को, जिन्हें बखूबी ज्ञात था कि उनकी झोली में मुख्यमंत्री पद ठीक उसी तरह टपका है, जैसे बिल्ली के भाग्य से छींका टूटता है। वे जानते थे कि वे मुख्यमंत्री पद के लिए किसी भी लिहाज से दावेदार नहीं हैं, फिर भी कई दिनों तक उनके रूठने और मनाने का सिलसिला चलता रहा और आलाकमान को लगातार इस भ्रम में बनाए रखा गया कि यदि महायुति के घटक दलों को बांधे रखना है तो फडणवीस से बेहतर ‘बॉन्डिंग एजेंट’ कोई नहीं हो सकता है।

भाजपा का यही ‘नया इतिहास’ है

भारी बहुमत के बाद भी विश्व की ‘सबसे बड़ी पार्टी’ भाजपा लगभग दो सप्ताह तक मुख्यमंत्री पद के चेहरे पर सहमत नहीं हो सकी। वह भी तब, जब उसके पास भारी-भरकम संख्या बल था। इसका कारण शिंदे तो थे ही, साथ ही विनोद तावडे भी थे। जब चेहरा तय नहीं हुआ तो विपक्ष ने भारी दबाव बनाया। उस पर विधानसभा की अवधि भी समाप्त हो गई। आखिर तमाम तरह के दबावों के बीच तावडे के नाम को काटकर फडणवीस के नाम को फाइनल किया गया। हालांकि, राजनैतिक गुप्तचर दावा करते हैं कि राज्यपाल द्वारा शपथ ग्रहण के लिए आमंत्रित किए जाने तक फडणवीस का दिल फड़फड़ा रहा था कि कहीं आखिरी क्षण पर भी पासा पलट न जाए क्योंकि भाजपा का यही ‘नया इतिहास’ है। योगी आदित्यनाथ, केशव प्रसाद मौर्य, शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे, रमण सिंह जैसे कई चेहरे इसके शिकार हैं। कई कतार में हैं क्योंकि शिकारियों की फितरत अभी बदली नहीं है। उनकी नजर अब की मुख्यमंत्रियों से हटी नहीं है। आगे देखेंगे होता है क्या? ै

पूरे देश की नजर मारकडवाड़ी पर! …बैलेट पेपर के समर्थन में उतरे ग्रामवासी …ईवीएम विरोध के आंदोलन में सहभागी होंगे शरद पवार

सामना संवाददाता / मुंबई
एनसीपी (शरदचंद्र पवार) अध्यक्ष शरद पवार कल रविवार को मारकडवाड़ी जाएंगे। मारकडवाड़ी ईवीएम विरोधी देश का पहला गांव है, जहां बैलेट पेपर से वोटिंग का विरोध किया गया था। राहुल गांधी समेत आघाड़ी के नेता जल्द ही यहां का दौरा करेंगे और शरद पवार रविवार को पहली बार यहां पहुंचेंगे।
रविवार को ही मालशिरस के विधायक और इस आंदोलन के नेता उत्तमराव जानकर का शपथ ग्रहण समारोह भी होने वाला था। हालांकि, खबर है कि अब उन्होंने राष्ट्रपति की इजाजत लेकर सोमवार को राष्ट्रपति कक्ष में शपथ लेने का फैसला किया है।
पुलिस प्रशासन ने गांव में कर्फ्यू लगा दिया और मतदान प्रक्रिया रोक दी। सोलापुर जिले के मालशिरस तालुका का मारकडवाड़ी गांव राज्य में चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि इस गांव के नागरिकों ने बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की थी। इसके लिए आंदोलन भी किया गया। ग्रामीणों ने बैलेट पेपर पर मतदान की पूरी तैयारी कर ली थी। हालांकि, पुलिस प्रशासन ने गांव में कर्फ्यू लगाकर मतदान प्रक्रिया रोक दी। इसके चलते ग्रामीण मतपत्र पर अपनी इच्छानुसार मतदान नहीं कर सके। हालांकि, यह गांव इस समय खूब चर्चा में है। प्रशासन ने कहा था कि मारकडवाड़ी में मतदान प्रक्रिया अवैध थी। इस जगह पर कर्फ्यू भी लगाया गया था इसलिए मतदान प्रक्रिया रद्द कर दी गई।

ग्रामीणों के खिलाफ मामला
बैलेट पेपर से मतदान प्रक्रिया के लिए पहल करने वाले मारकडवाड़ी के १७ लोगों सहित १०० से २०० अन्य ग्रामीणों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। यह मामला विधानसभा चुनाव के नतीजे को प्रभावित करने की मंशा से ईवीएम मशीन के संबंध में अफवाह फैलाकर दोबारा मतदान का प्रावधान नहीं होने पर प्रशासन के आदेश की अवहेलना करने के मामले में दर्ज किया गया है। इस पर नागरिकों से मतपत्र पर वोट देने की अपील कर समाज में डर पैदा करने और नफरत पैदा करने का भी आरोप लगाया गया है।

पुणे के पालक मंत्री पद को लेकर खींचतान! …अजीत पवार और चंद्रकांत पाटील ने किया दावा

सामना सवाददाता / मुंबई
देवेंद्र फडणवीस ने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, जबकि शिंदे गुट के नेता एकनाथ शिंदे और दादा गुट के अजीत पवार ने उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। ऐसे में अब सबकी नजरें कैबिनेट विस्तार पर हैं। साथ ही इस बात पर भी चर्चा चल रही है कि किस जिले का संरक्षक किसे मिलेगा। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई के बाद पुणे शहर राज्य के सबसे तेजी से बढ़ते शहर के रूप में पूरे देश में जाना जाता है। आईटी हब, सेवा क्षेत्र, शैक्षणिक और अप्रवासियों का घर बनते जा रहे पुणे जिले के संरक्षक मंत्री पद को लेकर अब चर्चा शुरू हो गई है।
पुणे जिले के पालक मंत्री पद के लिए फिलहाल दोनों पार्टियों के नेताओं की ओर से अजीत पवार और चंद्रकांत पाटील के नाम का दावा किया जा रहा है।
भाजपा कार्यकर्ता और अजीत पवार समूह के कार्यकर्ता इच्छा व्यक्त कर रहे हैं कि उनके नेता को पुणे जिले के संरक्षक मंत्री के रूप में मौका दिया जाना चाहिए। खास बात यह है कि दोनों पार्टियों के पदाधिकारी और कार्यकर्ता इस तरह की मांग पर जोर दे रहे हैं। जब बीजेपी नेता चंद्रकांत पाटील से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अगर महागठबंधन में कुछ भी होता है तो समझदारी दिखानी चाहिए। अजीत पवार गुट के जिला अध्यक्ष प्रदीप गर्टकर ने अजीत पवार को पालकमंत्री बनाने की मांग की है। इसलिए पुणे जिले के संरक्षक मंत्री पद को लेकर महागठबंधन में रस्साकशी तेज है।
इस बीच अजीत पवार २००४ से पुणे शहर और पुणे जिले के लिए सक्रिय हैं, उनके पास जिले की राजनीति और प्रशासन का व्यापक अनुभव है। इसके अलावा उनकी प्रशासन पर भी अच्छी पकड़ है, इसलिए प्रदीप गरातकर ने मांग की है कि अजीत पवार को संरक्षक मंत्री बनाया जाए।
दादा रह चुके हैं जिले के पालक मंत्री
ऐसे में देखा जा रहा है कि बीजेपी नेता भी यहां पालक मंत्री पद पर जोर दे रहे हैं क्योंकि, पुणे जिले में बड़ी संख्या में बीजेपी विधायक चुने गए हैं इसलिए यदि जिले की कमान भाजपा के पास रहेगी तो कार्यकर्ताओं को लगता है कि कार्यकर्ताओं को खुश कर काम करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। खास बात यह है कि अजीत पवार खुद यहां संरक्षक मंत्री पद के लिए जोर लगाएंगे, क्योंकि पहले भी वह यहां संरक्षक मंत्री का पद अपने पास रखने पर जोर दे चुके हैं।

 

वेतन के साथ ही कई योजनाओं पर मंडरा रहा है संकट … खजाना खाली है! …सरकार को खर्च के लिए हर महीने चाहिए रु. २८ हजार करोड़

-नवनिर्वाचित विधायकों के लिए भी नहीं है विकास फंड
-जिन विभागों ने निधि नहीं की खर्च, अब उनसे होगी वसूली
सुनील ओसवाल / मुंबई
राज्य में ‘ईडी’ २.० सरकार ने अपना कार्यभार संभाल लिया है। मगर सरकार को कर्मचारियों को वेतन देने व अन्य कई योजनाओं पर खर्च करने के लिए फंड ही नहीं है। सरकार का खजाना खाली है। ऐसे में नवनिर्वाचित विधायकों को देने के लिए भी सरकार के पास ‘विधायक फंड’ नहीं है। बताया जाता है कि इसके लिए विधायकों को कम से कम ढाई-तीन महीने का इंतजार करना पड़ेगा। फंड का जुगाड़ होने के बाद उन्हें निधि आबंटित की जाएगी।
मंत्रालय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पिछली सरकार ने जो विभिन्न विभागों में राशि दी थी, उनमें से कई ने पूरा पैसा खर्च नहीं किया है। अब सरकार जो पैसा खर्च नहीं हुआ है, उसे वापस लेने का मन बना रही है। इससे सरकार के खजाने में कुछ पैसा आने की उम्मीद है। बता दें कि राज्य सरकार को हर महीने खर्च के लिए २८ हजार करोड़ रुपए की जरूरत है। पिछली सरकार ने विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगने से पहले ३ करोड़ २० लाख रुपए की विधायक निधि बांटी थी। अब आचार संहिता खत्म होने के बाद १.८० करोड़ रुपए की बाकी धनराशि देनी है। मगर खजाना खाली होने से जिला योजना समितियों की ६० प्रतिशत और विधायकों की १.८० करोड़ की बकाया धनराशि मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि आगामी बजट आने के बाद ही विभिन्न मदों में पैसा आएगा।

नवनिर्वाचित विधायकों को २०२४-२५ के लिए दिसंबर से मार्च तक तीन महीने के लिए १ करोड़ ८० लाख रुपए की विधायक निधि मिलेगी। सरकार की ओर से अभी तक इसका वितरण नहीं किया गया है। सूत्रों ने बताया कि राज्य में जिला स्तर पर जिला योजना समिति को भी ४० फीसदी फंड मिल चुका है और अगले चरण के लिए २० फीसदी फंड आने वाले वर्षों में मिलेगा। समय आ गया है कि प्रशासन कर्मचारियों के वेतन, पेंशन, विभिन्न योजनाओं के लिए दी जाने वाली सब्सिडी, ऋण और उस पर ब्याज के लिए, विभिन्न विभागों द्वारा खर्च न की गई रकम को वापस लेकर काम चलाए। बताया जाता है कि विभिन्न विभागों में कम से कम सात हजार करोड़ रुपए की राशि पड़ी है। फिलहाल, इस राशि को सरकार वापस लाकर अपना खर्च चलाएगी। बता दें कि राज्य सरकार को हर महीने मूलधन और ब्याज लौटाने, संजय गांधी निराधार योजना, एसटी निगम अनुदान आदि के लिए लगभग २८ हजार करोड़ रुपए की जरूरत है। इस राशि को जुटाने के लिए शासन का युद्ध स्तर पर प्रयास जारी है।

‘कातिल’ सरकार लेगी २,६१४ पेड़ों की बलि! …मेट्रो कारशेड और मल-निस्सारण केंद्र के लिए काटे जाएंगे पेड़

पर्यावरण प्रेमियों में आक्रोश
प्रेम यादव / मीरा-भायंदर
उत्तन के डोंगरी इलाके में मेट्रो कारशेड के निर्माण के लिए १,४०६ पेड़ों की कटाई का पैâसला प्रशासन ने लिया है। इसके अलावा मीरा-भायंदर मनपा (एमबीएमसी) ने मल-निस्सारण केंद्र की स्थापना के लिए १,२०८ पेड़ों को उखाड़ने की अनुमति मांगी है। इतने बड़े पैमाने पर हरित क्षेत्र को खत्म किए जाने से पर्यावरण प्रेमियों में गुस्से की लहर है। उनका कहना है कि अब पेड़ों की कातिल सरकार आ गई है।
एमएमआरडीए ने मेट्रो रूट-९ के लिए डोंगरी गांव में कारशेड निर्माण का निर्णय लिया है। इसके लिए जिला कलेक्टर कार्यालय से जमीन का अग्रिम कब्जा एमएमआरडीए को सौंप दिया गया है। अब इस स्थल पर कारशेड के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई है, जिसमें सबसे पहले बाधा बन रहे १,४०६ पेड़ों को उखाड़ने का काम किया जाएगा।
एमएमआरडीए के कार्यकारी अभियंता सचिन कोठवाले ने मीरा-भायंदर मनपा से इन पेड़ों को उखाड़कर पुन: रोपण की अनुमति मांगी है। उद्यान विभाग ने २५ नवंबर २०२४ को सात दिनों की अवधि देकर इस पर आपत्ति दर्ज कराने के लिए सार्वजनिक नोटिस जारी किया था। अंतिम दिन तक गिनी-चुनी आपत्तियां दर्ज की गर्इं, जिसके चलते निगम आयुक्त संजय काटकर द्वारा इन पेड़ों को हटाने की अनुमति देने की संभावना है।
प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी
इसको लेकर पर्यावरण प्रेमियों का आरोप है कि मीरा-भायंदर मनपा और एमएमआरडीए की योजनाएं विकास के नाम पर शहर के प्राकृतिक संसाधनों को बर्बाद कर रही है। हजारों पेड़ों को उखाड़ना न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि स्थानीय जैव विविधता और जलवायु पर भी गंभीर प्रभाव डालेगा।

मल-निस्सारण केंद्र के लिए १,२०८ पेड़ों की कटाई
२०१७ में आरक्षण क्रमांक २५९ पर `ज्ञानज्योति सावित्रीबाई फुले उद्यान’ की स्थापना की गई थी। अब इसी स्थान पर मल-निसारण केंद्र बनाने के लिए १,२०८ पेड़ों को हटाने की योजना बनाई गई है। जल आपूर्ति विभाग के कार्यकारी अभियंता ने इन पेड़ों को उखाड़कर पुन: रोपण की अनुमति के लिए उद्यान विभाग को पत्र लिखा है। अधिकारियों के मुताबिक, जल्द ही आयुक्त के आदेश के तहत इन पेड़ों को हटाया जाएगा।

जल्द मिलेगा वंदे भारत स्लीपर ट्रेन का आनंद …आधुनिक सुविधाओं से होगी लैस

सामना संवाददाता / मुंबई
भारतीय रेलवे ने वंदे भारत स्लीपर ट्रेन का पहला प्रोटोटाइप तैयार कर लिया है, जो जल्द ही परीक्षण के लिए पटरियों पर उतरेगा। इस ट्रेन की शुरुआत का समय इन परीक्षणों की सफलता पर निर्भर करेगा। केंद्रीय रेल, सूचना एवं प्रसारण और इलेक्ट्रॉनिक्स व आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राज्यसभा में बताया कि यह ट्रेन लंबी और मध्यम दूरी की यात्राओं के लिए डिजाइन की गई है और यात्रियों के लिए आधुनिक सुविधाओं से लैस है।
वंदे भारत स्लीपर ट्रेन में कवच तकनीक, जो ट्रेन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए डिजाइन की गई है, को शामिल किया गया है। यह ट्रेन एचएल फायर सेफ्टी मानकों के अनुरूप है, साथ ही इसमें व्रैâशरोधी डिजाइन और झटकेमुक्त सेमी-पर्मानेंट कपलर लगाए गए हैं। यात्रियों की सुविधा के लिए इन ट्रेनों में आपातकालीन संवाद प्रणाली, दिव्यांग यात्रियों के लिए विशेष शौचालय, केंद्रीय रूप से नियंत्रित दरवाजे और सीसीटीवी वैâमरे जैसी सुविधाएं भी दी गई हैं। ऊपरी बर्थ पर चढ़ने के लिए आरामदायक सीढ़ी और यात्री सुविधाओं की निगरानी के लिए सेंट्रलाइज्ड कोच मॉनिटरिंग सिस्टम भी लगाया गया है।

कम समय में पूरा होगा सफर
यह ट्रेन तेज गति के साथ कम समय में गंतव्य तक पहुंचने में सक्षम है। नया ब्रेकिंग सिस्टम इसे ऊर्जा कुशल बनाता है। इसके अलावा, यात्रियों को अधिक आरामदायक सफर का अनुभव मिलेगा। मंत्री ने बताया कि २ दिसंबर, २०२४ तक भारतीय रेलवे में वंदे भारत चेयर कार की १३६ सेवाएं संचालित हो रही हैं। इनमें से १६ ट्रेनें तमिलनाडु के विभिन्न स्टेशनों को जोड़ रही हैं। सबसे लंबी दूरी की वंदे भारत सेवा दिल्ली और बनारस के बीच ७७१ किलोमीटर का सफर तय करती है। रेल मंत्री ने कहा कि नई ट्रेन सेवाओं का परिचालन यात्रियों की मांग, संचालन की व्यवहार्यता और संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर करता है।

550 दिनों में 60 हजार शरणार्थी!…मोदी सरकार का मणिपुर में उपलब्धि…पीड़ितों के दिल्ली में धरना देने तक की नहीं है अनुमति

कांग्रेस समेत प्रमुख 10 विपक्षी दलों ने जताया रोष

सामना सवाददाता / नई दिल्ली
मणिपुर हिंसा को लेकर विपक्षी गठबंधन इंडिया ने पीएम मोदी से मांग की है। गठबंधन दलों ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिंसा प्रभावित राज्य का दौरा करें। मणिपुर के लोगों से उनके जुड़ाव के चलते राज्य में शांति और सामान्य स्थिति कायम हो सकती है। विपक्षी गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के नेताओं ने दावा किया कि उन्हें जंतर-मंतर पर धरना देने की अनुमति दी गई।

मणिपुर कांग्रेस प्रमुख मेघचंद्र ने कहा कि हम जंतर-मंतर पर धरना देनेवाले थे, लेकिन अधिकारियों ने हमारे अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। हमारे साथ लगभग १० राजनीतिक दल हैं। हमें विरोध करने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। इसके बाद भी हम रुकेंगे नहीं और हमारा विरोध जारी रहेगा। हमने पीएम मोदी को ज्ञापन सौंपा है। उन्होंने कहा कि मणिपुर भारत का हिस्सा है। पिछले १८ महीनों में केंद्र सरकार ने इतनी लापरवाही क्यों बरती है? ६० हजार से ज्यादा लोग राहत शिविरों में हैं और सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है। हमें और कितनी तकलीफ सहनी होगी? मणिपुर के लोग प्रधानमंत्री से राज्य में शांति बहाल करने की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस प्रमुख ने आरोप लगाया कि मणिपुर राज्य सरकार पर केंद्र का नियंत्रण है और मुख्यमंत्री कुछ नहीं कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि यहां अघोषित राष्ट्रपति शासन लगा है। गृह मंत्री सीधे राज्य में स्थिति को नियंत्रित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार की लापरवाही को दर्शाता है। प्रधानमंत्री ने न तो मणिपुर की स्थिति पर बात की है और न ही राज्य का दौरा किया है। इसके अलावा उन्होंने प्रतिनिधियों को भी चर्चा के लिए आमंत्रित नहीं किया है।

मणिपुर के राजनीतिक दलों के संयोजक क्षेत्रीमयुम शांता ने कहा कि वे शांति और सामान्य स्थिति की बहाली की मांग के लिए ३,००० किलोमीटर दूर मणिपुर से नई दिल्ली आए हैं, लेकिन उन्हें धरना-प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं दी गई। हम केंद्र सरकार के रवैये की निंदा करते हैं। भाजपा की डबल इंजन सरकार के कुप्रशासन के कारण ही हम इस स्थिति का सामना कर रहे हैं। हमें सरकार ने बांट दिया है। हम चाहते हैं कि यह खत्म हो और हम फिर से एकजुट हों। हम मणिपुर की एकता और अखंडता के लिए खड़े हैं।

३१ मार्च तक लगवा लो हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट! …वरना लगेगा भारी जुर्माना आरटीओ ने तय की ३१ मार्च की डेडलाइन

सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र सरकार ने वाहन चालकों के लिए एक नया नियम लागू किया है, जो लाखों वाहन मालिकों के लिए परेशानी का कारण बन सकता है। राज्य में अप्रैल २०१९ से पहले पंजीकृत दो करोड़ से अधिक वाहनों पर ३१ मार्च २०२५ से पहले हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाना अनिवार्य कर दिया गया है। इस नियम का पालन नहीं करने वालों पर जुर्माना लगाया जाएगा।
बता दें कि हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट्स एक दुर्लभ एल्यूमिनियम मिश्रधातु से बनाई जाती हैं, जिसमें परावर्तक फिल्म और भारत का प्रतीक अशोक चक्र का होलोग्राम होता है। इन प्लेट्स पर नीले रंग में `आईएनडी’ अक्षर और १० अंकों का लेजर क्रमांक होता है, जो इन्हें छेड़छाड़-रोधी बनाता है। वाहन की विंडस्क्रीन पर तीसरा पंजीकरण स्टीकर लगाना भी अनिवार्य है।
नियम न मानने पर जुर्माना
मार्च २०२५ के बाद, जिन वाहनों पर हाइ सिक्योरिटी नंबर प्लेट नहीं होगी, उन पर मोटर वाहन अधिनियम, १९८८ के तहत दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। जुर्माने की राशि अभी घोषित नहीं की गई है।
चार महीनों में असंभव
सेवानिवृत्त आरटीओ अधिकारियों ने इस नियम को अव्यावहारिक और लागू करने के लिए कठिन बताया है। उनका कहना है कि सिर्फ चार महीनों में दो करोड़ से अधिक वाहनों पर हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाना असंभव है।

३ क्षेत्रों में ३ कंपनियों की नियुक्ति
क्षेत्र १- रोस्मर्टा सेफ्टी सिस्टम्स लिमिटेड (१२ आरटीओ कार्यालय)
क्षेत्र २- रियल मजोन इंडिया लिमिटेड (१६ आरटीओ कार्यालय)
क्षेत्र ३-एफटीए एचएसआरपी सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड (२७ आरटीओ कार्यालय)

वाहन चालकों के लिए सिरदर्द
वाहन मालिकों का कहना है कि उनको चार महीनों में दो करोड़ से अधिक वाहनों पर हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगाने के लिए नियुक्त कंपनियों की वेबसाइट पर जाकर अपॉइंटमेंट लेनी होगी। प्लेट्स तैयार होने में दो दिन का समय लगेगा। इंस्टॉलेशन के बाद वाहन की सारी जानकारी वेबसाइट पर अपलोड की जाएगी। वहीं सरकार द्वारा वाहन चोरी रोकने और पहचान सुनिश्चित करने के लिए एचएसआरपी प्लेट्स को महत्वपूर्ण बताया गया है। वैसे इतनी बड़ी संख्या में वाहनों पर निर्धारित समय सीमा के अंदर प्लेट्स लग पाएंगे, इस पर सवाल खड़े हो रहे हैं। महाराष्ट्र के वाहन चालकों के लिए आने वाले कुछ महीने बेहद भागदौड़ भरे साबित हो सकते हैं।

शुल्क
दोपहिया और ट्रैक्टर के लिए ४५० रुपए
तिपहिया वाहन के लिए ५०० रुपए
चारपहिया वाहन के लिए ७४५ रुपए (जीएसटी अतिरिक्त)