संजय राऊत -कार्यकारी संपादक
विजय के सौ पिता होते हैं। पराजय लावारिस होती है। महाराष्ट्र में चुनाव नतीजों के बाद एक गूढ़ और भयानक शांति फैली हुई है। कहीं उत्सव नहीं, जल्लोश नहीं। मानो जनता के मन के विरुद्ध नतीजे आए हैं। ‘ईवीएम’ पर पुन: प्रश्नचिह्न लग गए हैं। कारण महाराष्ट्र में इतने बुरे नतीजे आ ही नहीं सकते!
महाराष्ट्र में सामने आए आश्चर्यजनक नतीजों पर चर्चा करना, दीवार पर सिर पटकने जैसा है। ‘‘जब तक मोदी-शाह दिल्ली में सत्तासीन हैं, तब तक चुनाव नहीं लड़ना चाहिए,” इस बात पर अब सभी सहमत हो रहे हैं। भाजपा की राजनीति का विरोध करने वाले दलों को यह समझ लेना चाहिए कि निष्पक्ष चुनाव का युग समाप्त हो चुका है।
२३ तारीख को सुबह ८ बजे वोटों की गिनती शुरू हो गई। प्रारंभ में पोस्टल बैलेट (मतपत्रों) की गिनती की गई। इसके मुताबिक, महाराष्ट्र में १३८ सीटों पर महाविकास आघाड़ी के उम्मीदवार आगे चल रहे थे। मुकाबला बराबरी का था।
९ बजे महायुति और महाविकास आघाड़ी दोनों १३७-१३७ सीटों पर आगे चल रही थीं। ठीक १० बजे आंकड़े बदल गए। महाविकास आघाड़ी केवल ५३ और महायुति २११ इस तरह का उलटफेर हो गया। चुनाव में हार-जीत होती रहती है। यही लोकतंत्र का असली स्वरूप है, लेकिन महाराष्ट्र जैसे राज्य में जो हुआ वह सीधे तौर पर लोकतंत्र की हत्या है। भाजपा, शिंदे गुट, अजीत पवार इन्होंने दो सौ से ज्यादा सीटें जीतीं। लोग इस ‘ईवीएम’ नतीजे पर भरोसा करने को तैयार नहीं हैं। ‘ईवीएम’ भारतीय लोकतंत्र के लिए अभिशाप है। क्या यह अभिशाप भारत के अस्तित्व को ही नष्ट कर देगा?
हत्या होती रहेगी
जब तक ईवीएम हटाकर बैलेट पेपर पर चुनाव शुरू नहीं किया जाएगा, तब तक महाराष्ट्र की तरह लोकतंत्र की हत्या होती रहेगी। यहां तक कि अमेरिका, इंग्लैंड जैसे आधुनिक सुधारवादी देश भी अपने चुनावों में ईवीएम का उपयोग नहीं करते हैं। २००६ में नीदरलैंड ने ईवीएम पर प्रतिबंध लगा दिया। २००९ में रिपब्लिक ऑफ आयरलैंड ने ईवीएम पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद इटली ने भी अपने चुनावों से ईवीएम को हटा दिया। मार्च २००९ में जर्मनी के सुप्रीम कोर्ट ने इसे घोटाला घोषित करते हुए ‘ईवीएम’ वोटिंग को गैरकानूनी घोषित कर दिया। नॉर्वे, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, कोस्टारिका, फिलीपींस, ग्वाटेमाला, बांग्लादेश ने भी ईवीएम का इस्तेमाल बंद कर दिया। जापान जैसे देश ने भी २०१६ से यह कहते हुए ‘बैलेट’ पेपर पर ही मतदान करने का फैसला किया कि ईवीएम से मतदान पारदर्शी नहीं है। अमेरिका में एलन मस्क ने बार-बार जाहिर किया है कि ईवीएम एक जंबो घोटाला है और सभी ईवीएम को एक साथ हैक करके इच्छानुसार मतदान कराए जा सकते हैं। मस्क से लेकर अमेरिका, यूरोप जैसे देश मूर्ख हैं और भारत के मोदी-शाह और उनकी भाजपा इतनी समझदार! महाराष्ट्र जैसे अहम राज्य के नतीजे जिस तरीके से घोषित हुए, उसके बाद ऐसा नहीं लगता कि देश की चुनावी प्रक्रिया पर किसी को भरोसा होगा। सुप्रीम कोर्ट अब उसी ईवीएम की वकालत कर रहा है।
घटनाक्रम देखें
महाराष्ट्र में ‘नतीजा’ चौंकाने वाला है। जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस, शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस को सफलता मिली तब क्या ईवीएम घोटाला नहीं हुआ? यह प्रश्न निरर्थक है। बैलेट पेपर पर चुनाव कराने की मांग पिछले दस साल से हो रही है। ईवीएम से चुनाव जीतने वाले कई लोगों ने बैलेट पेपर पर ही चुनाव कराने की मांग की है। अमेरिकी तकनीशियनों ने महज ५ मिनट में ईवीएम को हैक करके दिखा दिया और ये प्रत्यक्ष सभी ने देखा। महाराष्ट्र के अनगिनत मतदान केंद्रों पर भाजपा ने क्या खेल किया, ये देखिए।
-ध्यान दें कि २०१४ में मोदी लहर थी। तब भी भाजपा को इतनी सीटें नहीं मिली थीं। इस बार भाजपा ने १४८ सीटों पर चुनाव लड़ा और १३२ सीटें जीतीं। स्ट्राइक रेट ८९ फीसदी। क्या यह संभव है?
-महाराष्ट्र में विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के अनुसार मतदाता सूची से नाम हटाकर उनकी जगह ‘फर्जी’ नाम डाले जाने को लेकर हंगामा शुरू ही था। अब ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र के प्रत्येक बूथ पर लगभग सौ वोट बढ़ाए गए। इस तरह ४०० बूथों पर चालीस हजार मतदान जो हर विधानसभा क्षेत्र में बढ़ाए गए, ऐसा दिखाई देता है।
-२० नवंबर को जब मतदान हुआ तब महाराष्ट्र में ५ करोड़ ७० लाख लोगों ने वोट किया था। २३ नवंबर को जब वोटों की गिनती हुई तो ७ करोड़ ७० लाख वोट गिने गए। ये ‘ऊपर के’ २ करोड़ वोट कहां से आए?
-महाराष्ट्र में वोटिंग प्रतिशत वैâसे बदल गया? उन आंकड़ों के जंतर-मंतर को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। २० तारीख को शाम ५ बजे मतदान प्रतिशत ५८.२२ फीसदी था। फिर रात ११.३० बजे यह प्रतिशत बढ़कर ६५.०२ फीसदी हो गया। वोटों की गिनती शुरू होने से पहले वोटिंग प्रतिशत ६८.०५ फीसदी हो गया।
तो फर्क समझें।
६.८०% + १.०३%= ७.८३%
इतना वोट वैâसे बढ़ गया?
क्या ईवीएम गर्भवती है?
अवधान गांव की व्यथा
महाराष्ट्र के नतीजों पर भरोसा नहीं किया जा सकता और ईवीएम पूरी तरह से सेट किए गए, इसे लेकर अब शंका नहीं रही। ईवीएम भी सेट किया गया और न्यायालय भी सेट कर लिया गया, तो फिर देश में बचा क्या? शरद पवार ने लोकसभा में १० में से ८ सीटें जीतीं। अजीत पवार को सिर्फ १ सीट मिली। अब शरद पवार को विधानसभा में १० सीटें और अजीत पवार को ४१ सीटें मिलती हैं, यह हिंदी सिनेमा का रोमांचक अंत है।
-धुले ग्रामीण से कांग्रेस के कुणाल पाटील हार गए। उस विधानसभा क्षेत्र के अवधान गांव के लोग अब चुनाव आयोग के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। कुणाल पाटील की संस्था में गांव के ७० फीसदी लोग काम करते हैं। वहां कुणाल पाटील को शून्य वोट मिले। इस वजह से पूरा गांव निषेध करते हुए सड़कों पर उतर आया।
-कराड दक्षिण विधानसभा बूथ संख्या १६४ पर कुल मतदान ५१४ है, जबकि वहां भाजपा को ५५७ वोट मिले।
नासिक से वंचित के उम्मीदवार अविनाश शिंदे ने कहा, ‘‘मेरे घर में ही ६५ मतदाता हैं, गांव के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों सहित ३५० लोग मेरे साथ थे। लेकिन मुझे केवल ४ वोट मिले।’’ पूरे महाराष्ट्र में ऐसा ही करके चुनाव को हाईजैक कर लिया गया। ऐसी तस्वीर थी कि महाराष्ट्र के चुनाव पर जनता ही काबिज रहेगी, लेकिन ‘ईवीएम’ ने ही चुनाव को हाईजैक कर लिया। नांदेड़ में विधानसभा के साथ लोकसभा उपचुनाव भी हुए थे। कांग्रेस ने लोकसभा में जीत हासिल की, लेकिन भाजपा ने निचली छह विधानसभाओं में जीत हासिल की। कांग्रेस को एक भी विधानसभा में जीत नहीं मिली। यानी ईवीएम सिर्फ विधानसभा के लिए सेट की गई थीं। हरियाणा में मतदान और मतगणना के दौरान जो हुआ, वही महाराष्ट्र में हुआ। हरियाणा में हर विधानसभा क्षेत्र में १५ हजार वोट ब़ढ़ाए गए और वहां भी लोकतंत्र ने आत्मसमर्पण कर दिया। महाराष्ट्र के नतीजों के बाद कुछ अति समझदार लोग महाविकास आघाड़ी को रोज ज्ञान सिखा रहे हैं। महाविकास आघाड़ी में घटक दलों के बीच सामंजस्य नहीं था और नेता अति आत्मविश्वास में रहे। उन्होंने मेहनत नहीं की। ये बिल्कुल गलत है। जीत के सौ पिता होते हैं और हार लावारिस होती है। महायुति के अकूत पैसे, जोड़-तोड़ के खेल, पुलिस, ईडी का दबाव तंत्र, न्यायालय की निष्क्रियता पर कोई बात नहीं करता। लोग हर जगह ईवीएम के खिलाफ शिकायत कर रहे हैं। उस पर भी वो चुप है। ये लोग बैलेट पेपर पर चुनाव कराने पर जोर नहीं देते। लेकिन ज्ञान देने में उनके बीच प्रतिस्पर्धा है। महाविकास आघाड़ी के सीट आवंटन में छोटी-मोटी अड़चनें थीं, लेकिन किसी ने इसे टूटने की स्थिति तक नहीं पहुंचाया। विदर्भ में कांग्रेस की ही हवा है यह कांग्रेस का तर्क था इसलिए उन्होंने विदर्भ में बड़ा हिस्सा ले लिया। शरद पवार, उद्धव ठाकरे, नाना पटोले और उनके सहयोगियों ने कड़ी मेहनत नहीं की, ऐसा आरोप लगाना अनुचित होगा। शरद पवार, उद्धव ठाकरे ने प्रचार का तूफान ला दिया था। लोकसभा की अपेक्षा यह चुनाव ज्यादा संघर्षपूर्ण है, ये मानकर विधानसभा चुनाव लड़ा गया, लेकिन चुनावी यंत्रणा ही बेच दी गई। चुनाव आयोग ने राज्य को बेच दिया। इसलिए वास्तविक मतदान की अपेक्षा कुछ लाख वोट अधिक गिने गए। इस वजह से नतीजा पलट गया। विधानसभा के नतीजों के बाद लोगों में खुशी का वातावरण नहीं है। फडणवीस- शिंदे कैसे जीत गए? ये सवाल जनता के जहन में है। राज्य में एक प्रकार की गूढ़ शांति है!
शांति! ईवीएम गर्भवती हो गई!
शांति! ईवीएम हैक हो गया!
शांति! लोकतंत्र मर चुका है!