बात-जज्बात : सेक्स वर्कर्स को मिलेगी पेंशन!

एम एम सिंह

दुनिया के सबसे पुराने पेशे में से एक है जिस्मफरोशी! इस पेशे का हिस्सा बनना हमेशा से ही महिलाओं की इच्छा के खिलाफ रहा है। भले ही समाज इन्हें हमेशा से गिरी नजरों से देखता आ रहा है, लेकिन यह भी सच है कि समाज उनके बगैर कभी रह भी नहीं पाया है! इस हकीकत को शिद्दत से स्वीकार करते हुए बेल्जियम ने रविवार को इतिहास रच दिया। वो दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया है, जिसने सेक्स वर्कर को औपचारिक रोजगार अनुबंध पर हस्ताक्षर करने की अनुमति दी है- जिससे उन्हें बीमारी की छुट्टी, मातृत्व वेतन और पेंशन की सुविधा मिल गई है।
नया कानून सेक्स वर्कर के मौलिक अधिकारों की भी गारंटी देता है, जिसमें ग्राहकों को मना करने, कार्य की शर्तें तय करने और किसी भी समय कार्य रोकने की क्षमता शामिल है। हालांकि, सांसदों ने यह कानून मई में ही पारित कर दिया था, लेकिन आधिकारिक तौर पर यह रविवार को लागू हुआ। बेल्जियम के सेक्स वर्कर्स यूनियन, यूटीएसओपीआई का हिस्सा मेल मेलिसियस ने अपने इंस्टाग्राम पर कहा, ‘मैं इस समय बेल्जियम की एक बहुत ही गर्वित सेक्स वर्कर हूं। जो लोग पहले से ही इस इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं, उन्हें बहुत अधिक सुरक्षा मिलेगी और जो लोग इस इंडस्ट्री में काम करने जा रहे हैं, उन्हें भी पता होगा कि उनके अधिकार क्या हैं।’
हालांकि, बेल्जियम में सेक्सुअल सर्विस देना या उनके लिए भुगतान करना पहले से ही अवैध नहीं था। लेकिन कानून वेश्यालयों और सेक्स वर्क को सपोर्ट देनेवाले तीसरी पार्टी जैसे मकान मालिक, बैंकर, ड्राइवर को टार्गेट करता था और अक्सर उन पर ‘दलाल’ होने का आरोप लगाया जाता था। २०२२ में बेल्जियम के सांसदों ने सेक्स वर्क को अपराध से मुक्त करने और दलाली की परिभाषा को संकीर्ण करने के लिए मतदान किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सेक्स वर्करों को बैंकर, बीमाकर्ता, ड्राइवर या एकाउंटेंट खोजने में परेशानी न हो।
अब नया कानून इससे भी आगे जाता है और सेक्स वर्कर्स को अन्य व्यवसायों के समान ही श्रम अधिकार और सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें पेंशन, बेरोजगारी, स्वास्थ्य बीमा, पारिवारिक लाभ, वार्षिक अवकाश और मातृत्व अवकाश तक पहुंच शामिल है। सेक्स वर्करों के बुरे हालात के लिए दुनियाभर में अलग-अलग आंदोलन चलाए जा रहे हैं। सरकारों से कानून बनाने की मांगें की जाती रही हैं, लेकिन कोई भी सरकार बेल्जियम सरकार की तरह ईमानदारी और इतनी शिद्दत से गंभीर नहीं दिखी। सेक्स वर्करों की जिंदगी में उजाले का आगाज करनेवाले इस कानून के लिए बेल्जियम सरकार का इस्तकबाल करना बनता है।

झांकी : अनुभव

अजय भट्टाचार्य

अपने प्रदेश से दिल्ली पार्सल कर दिए गए मामाजी के फोन की घंटी टनटनाई। मामाजी के पीए ने फोन उठाया तो सामने से आवाज आई, ‘हलो मी लाडक्या भाऊ बोलतोय, जरा मामा ला फोन द्या।‘ पीए ने मामाजी को जाकर बताया कि साहब किसी लाडक्या भाऊ का फोन है। मामाजी फोन पर आए और बोले, कौन लाडक्या भाऊ?’
‘अरे साहेब मी बोलतोय, फेकनाथ।‘
‘कहां से बोल रहे हो’? मामा ने पूछा।
‘महाराष्ट्र से, पहचाना नहीं क्या? मामा मैंने अपने राज्य में लाडकी बहीण योजना शुरू की और इसी वजह से अब आपकी पार्टी सहित हमारी सरकार बनेगी। अभी समझा क्या? मैं कौन।‘
‘हां समझा, बधाई। ध्यान रखिए इससे सरकार बनती है, लेकिन योजना लागू करनेवाला मुख्यमंत्री नहीं बनता, यह मेरा अनुभव है।‘
सुनते ही भाऊ ने फोन कट किया और सीधे अपने गांव चल दिए।
डर
कभी महायुति सरकार में मंत्री रहे और २०२४ के लोकसभा चुनाव में महायुति की ओर से परभणी लोकसभा चुनाव लड़नेवाले नेताजी इन दिनों भाजपा की आलोचना कर रहे हैं। दिलचस्प यह है कि लोकसभा चुनाव में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके लिए प्रचार सभा की थी। विधानसभा चुनाव में उन्होंने पार्टी के कई उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, लेकिन उन्हें सिर्फ एक सीट पर सफलता मिली। अब उन्हें डर है कि पार्टी का इकलौता विधायक खुद को ही न पार्टी का सर्वेसर्वा घोषित कर सरकार में शामिल हो जाए!

धोखाधड़ी पर भाजपा चुप
पार्टी से जुड़े व्यक्तियों से संबंधित धोखाधड़ी के मामलों के बीच भाजपा स्पष्ट रूप से चुप रही है। सबसे हालिया विवाद भूपेंद्र सिंह झाला से जुड़ा है, जो ६,००० करोड़ रुपए के निवेश घोटाले में फंसे हैं। कई भाजपा नेताओं के साथ अपनी निकटता के लिए जाने-जानेवाले झाला ने कथित तौर पर पार्टी के एक विधायक के समर्थन से वर्षों तक बेखौफ काम किया। एक अन्य घटना में भाजपा विधायक कन्या लाल किशोरी के पिता आश्रम शालाओं (एससी / एसटी छात्रों के लिए बोर्डिंग स्कूल) में नौकरी दिलाने के लिए मोटी रिश्वत मांगते पकड़े गए। बढ़ते सबूतों के बावजूद, पार्टी ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है। चुप्पी के कारण जमीनी स्तर के कार्यकर्ता नेतृत्व का बचाव करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। एक उत्तेजित भाजपा विधायक ने दुख जताते हुए कहा, ‘नेता वातानुकूलित कार्यालयों में आराम से बैठते हैं, जबकि हम जनता के गुस्से का सामना करते हैं। हमारे पास उनके लिए कोई जवाब नहीं है।’
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)

रौबीलो राजस्थान : बिकण नै तैयार हां सा

बुलाकी शर्मा राजस्थान

आखी दुनिया रा क्रिकेट खिलाड़ी बाजार में ऊभा है।‌ बां ऊपरां बोली लाग रैई है, बियां ई जियां धान मंडी में गेहूं, बाजरी,‌ मूंग, मोठ आद खाद्य सामग्री री लाग्या करै। सेलिब्रिटी बाजणिया‌ क्रिकेटर खुल्लै खाळै बिकण सारू त्यार है। बाजारवाद रै इण जुग में मिनख वस्तु बणग्यो है। वस्तु री उनमान बो खरीददार नै उडीक रैयो है। चोखै दामां‌ में बिकण सारू‌ त्यार रैवै।‌‌
दूजी नांवचीन हस्तियां ई बिकण नै उडीवैâ पण बे गुपताऊ तरीवैâ सूं बिवैâ। खुल्लै‌-खाळै बिकण सूं बचै। बिकण पछै ई बे लोगां में ओ भरम बणायो राखै वैâ बै अणमोल है। बां नै कोई खरीद नीं सवैâ। बे आपरै उसूलां ऊपरां अडिग है। बां नै खरीदणियो इण भोम ऊपरां हालै कोई जलमियो ‌ई कोनी।
पण आईपीअ‍ेल रो बाजार सगळा भरम तोड़ण में लाग्योड़ो है। बरसां सूं बो क्रिकेटरां री नीलामी करावै। बांरो बेस प्राइस राखै। प्रâेंचाइजी कंपनियां चीज-बस्त उनमान बांरी जांच-परख करै। आपरी कुंत मुजब बोली लगावै अर बांनै खरीदै। सेलिब्रिटी बणिया क्रिकेटर बिक’र लाज नीं, गीरबो मैसूस करै। किणी क्रिकेटर नै कोई खरीददार नीं मिलै तद बीं री हालत बीं विधायक जिसी हुय जावै जिको मंत्री पद री उम्मीद में आपरी पार्टी छोड’र सत्ताधारी पार्टी रो डंडो अर झंडो झालै पण कोर्ट दलबदल रो दोसी मानता थका बीं नै विधायक पद सूं मुगत करण रो आदेस सुणाय देवै।
राजस्थानी में वैâवत‌ है- रूपली पल्लै तो रोही में ई चल्लै। रुपिया पैंâको अर तमाशो देखो। खरीद करणियो पक्को व्यापारी हुवै। फायदो बो पैला देखै। आईपीअ‍ेल बाजार तो सट्टा बाजार सूं ई‌‌ आगै है। बे ही क्रिकेटर जिका टीवी माथै दूजी कंपनियां रा आइटम खरीदण सारू विग्यापन करै अर अठै खुद आइटम बणनै बिकै। बोली लगावणियै सारू बे सेलिब्रिटी नीं, फकत अ‍ेक आइटम है। बो बीं माथै बोली लगावै जिकै नै लियां बीं री टीम जीत सकै अर लगायोड़ा रूपियां सूं बो सांतरी कमाई कर सकै।
बिकणो सोरो कोनी। मजदूरां‌ नै मजबूरी में बिकणो पड़ै। आपरी मजूरी बेचण सारू दिन ऊगतां ई बे बाजार में ऊभा हुय जावै। बांनै खरीददार मिल्या बां रै घर रो चूल्हो चेतन हुवै। सेलिब्रिटी क्रिकेटर मजबूरी में नीं, पइसा‌ कमावण सारू बिकै। जिको जित्तै ऊंचै दामां में बिकै, बीं रो स्टेटस ई बित्तो ऊंचो बाजै। बिकण सारू लोग ऊभा है। बोल्यां लाग रैयी है। सौदेबाजी हुय रैयी है। लोग बिक रैया है। बिकणिया हरखीज रैया है। बाजार में ऊभा कबीरदास जी उदास भाव सूं देख रैया है।

चीथड़ों में लिपटे दृष्टिहीन ‘सोनू’ को देखा सबने! ..लेकिन इंसानियत जागी शराफत की!

विक्रम सिंह/सुल्तानपुर
मानवीय संवेदनाओं के तारों को कंपा देने वाली ये दास्तां है यूपी के सुल्तानपुर शहर की। यहां बीच शहर रामलीला मैदान ओवरब्रिज के पास फुटपाथ पर चीथड़ों में लिपटा पड़ा ठिठुरता कंपता एक नेत्रहीन शख्स दस दिनों से पड़ा रहा। किसी राहगीर की संवेदना जगी तो सोशल मीडिया में भी इस घटनाक्रम का जिक्र हुआ लेकिन इंसानियत बस सोशल प्लेटफॉर्म पर दुःख जताती इमोजी’ज में पसीज कर रह गई। जुम्बिश तक न हुई! ऐसे में आगे आए
शराफत अली बब्बू ,उनके दो छोटे बच्चे और आज़ाद समाजसेवा समिति की टीम। जिसने साबित किया कि ‘इंसानियत’ और ये समाज अभी जिंदा है।
घटनाक्रम यूं है। दस दिनों से एक दृष्टिहीन बेसहारा गंदगी में लिपटा हुआ जीर्णशीर्ण अवस्था में शहर के रामलीला ओवरब्रिज के निकट पड़े होने की सूचना आज़ाद समाज सेवा टीम से जुड़े शराफत खान बब्बू को प्राप्त हुई। तब से लगातार वे अपने दो छोटे बच्चों मो. हुसैन व बेटी हलीमा फिर्दोस के साथ उसके नहलाने धुलाने व भोजन आदि की व्यवस्था में लग गए। यही नहीं उन्होंने उसके जिला जवार और गांव आदि की भी खूब पड़ताल की। मानसिक रूप से स्वस्थ किंतु नेत्रहीन व्यक्ति जब शराफत की शराफत से हिल मिल गया तो अपनी समस्त जानकारी भी उनसे शेयर की। जिसके आधार पर व्यक्ति की शिनाख्त सोनू पुत्र नन्कऊ (४०) रायबरेली जनपद के सलोन तहसील थाना नसीराबाद के ग्राम सभा बंधन का पुरवा के रूप में हुई। अब शराफत ने अपनी संस्था आज़ाद समाज सेवा समिति कणसाथियों की मदद ली। उस नेत्रहीन व्यक्ति के घर पर कई बार संपर्क किया लेकिन परिजन उसको लेने को तैयार नहीं हुए।ऐसे में शराफत साथियों के साथ जा पहुंचे नेत्रहीन को लेकर उसके गांव ! ग्राम प्रधान तुलसीराम से भेंट हुई और उन्होंने अपना कर्तव्य निभाया। सोनू को अपनी सुपुर्दगी में लेकर उसके भरण-पोषण का जिम्मा लिया। ऐसे में नेत्रहीन सोनू भी अपने गांव आकर पुलकित हो उठा। सवाल फिर वहीं है कि ..कौन है असल मजहब इंसानियत या फिर ‘सियासत’ में रोजाना सुर्खियों में रहने वाला हिंदू -मुसलमान !

संभल जैसी घटना और भी हो सकती है- रामगोविंद चौधरी

मुख्यमंत्री के चहेते अफसरों ने दिया संभल की दुर्भाग्यपूर्ण घटना को अंजाम,

 

मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और उत्तर प्रदेश के पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने प्रशासनिक अफसरों के संगठनों से अपील किया है कि वह कार्यपालिका की मर्यादा बचाने के लिए उन अफसरों को अपनी जमात से बाहर करें जो संभल की खूनी घटना को अंजाम दिए हैं। जो सम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और उसको धार देने के लिए संभल में नियोजित तरीके से पहले दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति पैदा किए, फिर गोली वर्षा करवाकर पांच लोगों की जान ले लिए, जो सांसदों को भी संभल के पीड़ितों से नहीं मिलने दे रहे हैं। उन्होंने कहा है कि भारतीय लोकतंत्र में कार्यपालिका का एक सम्मानित स्थान रहा है। संभल की घटना में वहाँ तैनात अफसरों का आचरण उक्त स्थान और सम्मान को गहरा चोट पहुँचाने वाला है। उन्होंने कहा कि डबल इंजन की सरकार सभी मोर्चे फेल हो चुकी है। महंगाई जानलेवा स्थिति में पहुँच चुकी है। बेरोजगारी चरम पर है। रुपया अपने सबसे बुरे दौर में हैं डबल इंजन की सरकार को समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करे। उन्होंने कहा है कि इस बदहाल स्थिति की तरफ से लोगों का ध्यान हटाने के लिए मुख्यमंत्री बटेंगे – कटेंगे का खेल खेल रहे हैं और उनके कुछ चहेते अफसर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए संभल जैसी दुर्भाग्य पूर्ण घटना को अंजाम दे रहे हैं।

राम गोविन्द चौधरी ने संभल की घटना को आखिरी घटना नहीं समझे। डबल इंजन की सरकार सूबे में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए इस तरह की घटनाएँ और जगहों पर भी करेगी और करायेगी। इससे सावधान रहने की जरुरत है। उन्होंने कहा है कि जब से बीजेपी सरकार आई है देश और प्रदेश में मुसलमानों सहित अन्य अल्पसंख्यकों, पिछड़ों, दलितों और उनके फासिस्ट विचाराधारा से इक्तेफाक नहीं रखने वाले अगड़ों को प्रताड़ित कर रही हैं। मुकदमे और बुलडोजर का सहारा लेकर डरा रही हैं जो अत्यंत ही चिंतनीय और निंदनीय हैं बीजेपी समझ रही है कि यह प्रदेश केवल उनका और उनके द्वारा पोषित गुंडों का ही है। सरकार की इस समझ के खिलाफ प्रदेश के युवा पीढ़ी,छात्र, किसान व्यापारी अधिवक्ता सहित सभी वर्गों को जो जहां हैं, वहीं इस सरकारी साजिश के खिलाफ आवाज उठायें यह देश अब दूसरी संपूर्ण क्रांति मांग रहा है। अन्यथा आने वाली पीढ़ी वर्तमान को माफ नहीं करेगी।

तय रेट से ज्यादा पैसा वसूलने पर खाद विक्रेता पर एफआईआर

दीपक तिवारी

विदिशा जिले के सिरोंज में सिद्धि विनायक ट्रेडर्स पर शनिवार को यूरिया विक्रय का परीक्षण कराया गया था। जिसमें संबंधित दुकानदार द्वारा निर्धारित मूल्य से अधिक दर पर खाद का विक्रय करना पाए जाने पर कृषि विभाग द्वारा सिद्धि विनायक ट्रेडर्स के संचालक मोहन सिंह रघुवंशी और सुरेंद्र बघेल के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की कार्यवाही की गई है।

सिरोंज एसडीएम हर्षल चौधरी ने बताया कि सिरोंज के सिद्धि विनायक ट्रेडर्स पर कृषक अरविन्द पुत्र भैया साहू को यूरिया के दामों का परीक्षण करने हेतु क्रय करने भेजा गया था। दुकानदार द्वारा 267 की बोरी 450 रूपए में विक्रय की गई। जिसका भुगतान फोन पे के माध्यम से किया गया था। तय मूल्य से अधिक दर पर खाद विक्रय करने पर राजस्व अमले के द्वारा दुकान को सील किया गया और आज रविवार को कृषि विभाग द्वारा पुलिस थाना सिरोंज में एफआईआर दर्ज कराई गई है।

सटायर : छिपकली का मंदिर

डाॅ रवीन्द्र कुमार

हमारे भारत महान में वसुधैव कुटुम्बकम के अनूठे दृश्य दिखाई देते हैं। पूरे विश्व में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलेगा। आप तो नाम लो ! हमारे यहाँ मेंढक का मंदिर है, चूहों का मंदिर है, साँप का मंदिर है, भेड़िये का मंदिर है, नंदी बैल का है तो गाय को भी पूजा जाता है। एक सूबे में तो मैंने वीज़ा मंदिर भी देखा है। आपका अगर वीज़ा न लग रहा हो तो वहाँ जाकर अरदास मांगें और मनचाहे देश का वीज़ा पाएँ।

हमारे देश में जितना प्रकृति प्रेम का ज़िक्र और दिखावा है उतना कहीं देखने में नहीं आता है। साथ ही जितनी प्रकृति की अवहेलना है वैसी भी कहीं नहीं। यूं हम नदियों को माता मानते हैं। देख लीजिये क्या हाल किया है हमने सभी नदियों का। हम पेड़ों की पूजा करते हैं। दीप जलाते हैं। पेड़ों के चक्कर लगाते हैं। जैसे ही अवसर मिलता है उसे काट देते हैं और चूल्हे में जला देते हैं अथवा अपने घर के लिए या कारोबार के लिए फर्नीचर बनवा लेते हैं।

यह हमारे अंदर का एक विरोधाभास है जो हम सबके मिजाज में है। माता-पिता के रोज़ सुबह पैर छूते हैं और पहले अवसर पर उन्हें घर से बाहर कर देते हैं। अब घर से बाहर करने की बात पुरानी हो गई है अब तो उनको रास्ते से हटा देने के कुचक्र रचे जाते हैं। जीवन साथी के लिए सुपारी दी जाने लगी है। सरकार तो अपने कर्मचारियों को 30 साल की सर्विस के बाद ‘एक्स’ कर देती है आजकल हम लोग अपने ‘बाबू’ अपनी ‘बेबी’ को 30 दिन में ही ‘एक्स’ कर देते हैं। यह एक्स..वाई… ज़ेड हमें कहाँ ले जाकर छोड़ेगा?

पूजा में एक काल सर्प दोष बताया जाता है। उसके उपाय स्वरूप आपको चांदी के साँप को पूजा में उपयोग करते हुए दान किया जाता है। सुना है इस छिपकली के मंदिर में सोने की छिपकली है। लोग उसे स्पर्श कर प्रणाम करते हैं और अपनी मनौती मांगते हैं। वही छिपकली घर में दिख जाये तो हँगामा मचा देते हैं। सब उसके पीछे पड़ जाते हैं। घर से बाहर निकाल कर ही दम लेते हैं।

इसी तरह चूहे का जो मंदिर है वहां चूहे निर्बाध रूप से विचरण करते हैं। वही चूहा अगर घर में घुस आए तो तुरंत चूहेदानी लगा दी जाती है। यूं लोग बिल्ली को भी पवित्र मानते हैं और उसे दूध-मलाई खिलाते हैं। इसमें साँप का उदाहरण विशेष रूप से उल्लेखनीय है। आप नाग पंचमी पर देखें कैसे साँप की ढूंढाई होती है। पीता नहीं है फिर भी जगह-जगह आपको कटोरा भर दूध रखा हुआ मिल जाएगा। ऐसे में कोई साँप दिख जाये तो बल्ले बल्ले! ऐसा लोग समझते हैं कि अब सब काम सफल हो जाएँगे। वही साँप अगर पड़ोस में भी निकल आए तो हम सहम जाते हैं और अपने दरवाजे-खिड़कियों की जांच करने लगते हैं।

हम कितने भोले-भाले थे मोर पंख नोटबुक में रख कर निश्चिंत हो जाते थे कि हम पढ़ें ना पढ़ें विद्यारानी अपना काम करेंगी और हमारी जर्जर नैया पार उतारेंगी। मुझे ज्ञात नहीं, क्या हमारे समाज में कहीं बिच्छू, रीछ, साँप की मौसी, नेवले और गिरगिट की पूजा भी की जाती है क्या ? करनी चाहिए उनके साथ ही ये भेदभाव क्यों? आखिर पौराणिक कथाओं में जाम्बवंत के योगदान का वर्णन है। बंदर तो हनुमानजी का साक्षात रूप है ही।

लब्बोलुआब ये है कि बच के रहना रे बाबा…बच के रहना रे ! हम आपको तिखाल में बैठा कर मार देते हैं। हम आपका दिन मनाने लगें, जयंती मनाने लगें तो आपको सावधान होने की ज़रूरत है। यदि आपकी पूजा हो रही है और आपको आत्याधिक आदर-सम्मान मिलने लगे तो आपको घबराना चाहिए क्यों कि हम आपको ‘डिरेल’ करने वाले हैं। नाग-पंचमी तो एक ही दिन आती है बाकी 364 दिन तो हमारे हैं। हम पढ़ते आए हैं कि गरुड़ ने सीता जी का पता श्री राम को दिया था। उस हिसाब से गरुड़ हमारा आदरणीय होना चाहिए मगर देखिये हमने उसे अपने कारनामों से विलुप्त प्रायः कर दिया है। अतः यह बात आप गांठ बांध लीजिये हम दिखावा ज्यादा करते है और मन ही मन प्लान कर रहे होते हैं कि इससे क्या फायदा मिल सकता है? क्या लाभ लिया जा सकता है? इसकी खाल बेचें ? या इसकी मूंछ या इसके पंजे ?

छिपकली दीदी आप यह सोच कर खुश मत होना कि आपका मंदिर है या अपको सोने में ढाल कर मंदिर में स्थापित कर दिया गया है। गौतम बुद्ध मूर्ति पूजा के खिलाफ थे लोगों ने उनके जाने के बाद उनकी ही मूर्ति ढाल दी और हर धातु, हर लकड़ी, हर मिट्टी में ढाल दी। अभी वक़्त है छिपकली दीदी आप तो अपनी पूंछ छोड़, समय रहते निकल लो पतली दरार से। इससे पहले कि गुठखा बनाने वाले किसी सौदागर की नज़र आप पर पड़े।

जातिवाद से ऊपर उठकर भारतीयता और इंसानियत की पहचान बनाएं-भरतकुमार सोलंकी

बांग्लादेश में हिंदुओं की वर्तमान स्थिति केवल एक देश विशेष की समस्या नहीं हैं, बल्कि यह पूरे उपमहाद्वीप के लिए एक गंभीर चेतावनी हैं। वहां हिंसा का शिकार होनेवाले हिंदुओं को यह नहीं पूछा जा रहा कि वे ब्राह्मण हैं, राजपूत हैं, वैश्य हैं, या शूद्र। वहां केवल एक पहचान देखी जा रही हैं-वे हिंदू हैं। यह घटना हमें भारत में एक गहरा सवाल पूछने पर मजबूर करती हैं- क्या हम अब भी अपने भीतर जातीय और धार्मिक विभाजन में बंटे रह सकते हैं? या हमें अपनी सोच को इन सीमाओं से ऊपर उठाकर एक मजबूत राष्ट्रीय और वैश्विक पहचान बनाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए?

भारत, जो “वसुधैव कुटुंबकम” की भूमि हैं, आज भी जाति और वर्ग के आधार पर बंटा हुआ है। जब हमारे पड़ोसी देश में हिंदुओं को केवल उनकी धार्मिक पहचान के कारण निशाना बनाया जा रहा है, तो यह जरूरी हो जाता है कि हम अपनी प्राथमिकताओं पर विचार करें। क्या जातिवाद और संकीर्ण सोच हमें इस तरह की चुनौतियों का सामना करने में कमजोर नहीं बना रहे? भारत की पहचान केवल जातियों और वर्गों के संग्रह से नहीं हो सकती; इसे इंसानियत, एकता और समर्पण के मूल्यों पर आधारित होना चाहिए।

लेकिन यह बदलाव कैसे संभव है? सबसे पहले, हमें अपनी सोच से जातीय और धार्मिक सीमाओं को मिटाना होगा। हमें समझना होगा कि जातिवाद न केवल हमारे समाज को विभाजित करता है, बल्कि हमारी राष्ट्रीय ताकत को भी कमजोर करता है। अगर भारत को वैश्विक मंच पर मजबूती से खड़ा होना है, तो हमें “भारतीय” के एकल और सार्वभौमिक लेबल को अपनाना होगा। यह तभी संभव होगा जब हम शिक्षा, सामाजिक संवाद और नीतियों के माध्यम से जातिवाद के खिलाफ एक समग्र अभियान चलाएं।

इसके साथ ही, यह भी जरूरी हैं कि हम अपनी धार्मिक पहचान को मानवता के व्यापक दायरे में प्रस्तुत करें। जब तक हम खुद को केवल “हिंदू,” “मुस्लिम,” या “ईसाई” के रूप में परिभाषित करेंगे, हम एक बड़े वैश्विक दृष्टिकोण को अपनाने में असफल रहेंगे। क्या यह बेहतर नहीं होगा कि भारत को एक ऐसे देश के रूप में जाना जाए जो “वसुधैव कुटुंबकम” के आदर्श को जीता है?

हमें बांग्लादेश की स्थिति से सीखना चाहिए। भारत को एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करना होगा जो जातीय और धार्मिक भेदभाव से परे हो। अगर हम भारत में जातिवाद को समाप्त करने और एकता के विचार को मजबूत करने में सफल होते हैं, तो यह संदेश न केवल हमारी सीमाओं के भीतर, बल्कि विश्व स्तर पर भी जाएगा। यह दुनिया को दिखाएगा कि भारत केवल विविधताओं का देश नहीं हैं, बल्कि वह स्थान हैं जहाँ विविधता में एकता की भावना सचमुच जी जाती हैं।

तो सवाल यह हैं—क्या हम इन पुराने बंधनों को तोड़ने और एक नई सोच अपनाने के लिए तैयार हैं? क्या हम जातिवाद से ऊपर उठकर एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं, जो हर भारतीय को एक समान अवसर और सम्मान प्रदान करे? और क्या हम इस भारतीयता को विश्व मंच पर इस तरह प्रस्तुत कर सकते हैं कि यह मानवता का उदाहरण बन सके? अगर हाँ, तो अब समय हैं कि हम अपने भीतर और अपने समाज में इस बदलाव को शुरू करें।

साकिब रिजवी मेमोरियल कैंसर जागरूकता मैराथन संपन्न

-पर्यावरणीय स्थिरता-महिला सुरक्षा के लिए जागरूकता पैदा करने की एक पहल
-सुरक्षा बढ़ाने के लिए इनोवेटिव ऐप और आपातकालीन कार्ड लॉन्च

सामना संवाददाता / मुंबई
रिजवी ग्रुप के ‘हेल्प योरसेल्फ फाउंडेशन’ द्वारा आयोजित, एडवोकेट रूबीना अख्तर हसन रिजवी और डॉ. अख्तर हसन रिजवी के नेतृत्व में आयोजित ६वीं साकिब रिजवी मेमोरियल कैंसर जागरूकता मैराथन बांद्रा पूर्व बीकेसी स्थित एमएमआरडीए जी८ ग्राउंड में सफलता के साथ संपन्न हुआ। इसका आयोजन कैंसर जागरूकता, पर्यावरणीय स्थिरता और महिला सुरक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
इस मैराथन में हजारों धावक, स्वयंसेवक और समर्थक एकत्र हुए। मैराथन का मुख्य विषय ‘महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण’ था। साथ ही गो ग्रीन, प्लास्टिक-मुक्त अभियान ने पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाई। इस मौके पर अभिनेता अरबाज खान, स्वरा भास्कर, और मुनव्वर फारुकी कार्यक्रम के प्रमुख चेहरे थे। साथ ही ओलंपियन ऐश्वर्या मिश्रा और राहुल कदम इस कार्यक्रम के राजदूत थे। सांसद वर्षा गायकवाड, विधायक हारुन खान, तारक मेहता शो के नितीन देसाई, अजमेर दरगाह के कमिटी मेंबर जावेद पारेख, डॉ कासीम इमाम आदि भी मौजूद थे। इस अवसर पर एड. रूबीना अख्तर हसन रिजवी ने कहा कि आज का विशाल समर्थन हमारे सामूहिक प्रयासों की ताकत को दर्शाता है। यह मैराथन सिर्फ एक कार्यक्रम ही नहीं, बल्कि बदलाव के लिए एक आंदोलन है, जिसका उद्देश्य कैंसर जागरूकता, स्थिरता और महिला सुरक्षा को बढ़ावा देना है। रूमी केयर ऐप हमारे भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए हमारी प्रतिबद्धता है। आप खुद की मदद किए बिना कभी किसी की मदद नहीं करते। आप खुद को मजबूत बनाए बिना कभी किसी का साथ नहीं देते। इस आयोजन में पूरे दिन विभिन्न कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। कार्यक्रम का समापन एक भव्य पुरस्कार समारोह के साथ हुआ, जहां विभिन्न श्रेणियों के प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया। राजनीतिक गणमान्य व्यक्तियों, विभिन्न देशों के वाणिज्य दूतों, चिकित्सा विशेषज्ञों ने कैंसर पर अनुभव साझा किए, जिससे कई लोगों में आशा की किरण जगी।

राजस्थान में जमीन-मकान खरीदना आज से हुआ महंगा

रमेश सर्राफ धमोरा
जयपुर। राजस्थान के लोगों के लिये अब घर-जमीन खरीदना अब महंगा हो गया है। राज्य सरकार ने आज 2 दिसम्बर से बढ़ी हुई डीएलसी रेट (बाजार कीमत) को लागू कर दिया है। शहरी इलाकों में डीएलसी रेट 5 से 15 फीसदी तक जबकि ग्रामीण इलाकों में 50 फीसदी बढ़ाई गई है। 15 फीसदी के हिसाब से 50 लाख रुपए कीमत के एक मकान या भूखंड की रजिस्ट्री करवाने पर पुरुषों को 66 हजार रुपए ज्यादा देने होंगे। खास बात यह है कि अब शहरी क्षेत्रों में जमीन की रजिस्ट्री वर्ग गज या वर्ग मीटर के बजाय एक समान वर्ग मीटर में ही होगी। वहीं ग्रामीण इलाकों में कृषि भूमि की रजिस्ट्री बीघा के बजाय हेक्टेयर में होगी।

सरकार ने इससे पहले इसी साल एक अप्रैल को भी डीएलसी दरों में 10 फीसदी का इजाफा किया था। इस तरह एक साल में दूसरा मौका है जब डीएलसी रेट बढ़ाई हैं। शनिवार और रविवार को लगातार दो दिन पंजीयन एवं मुद्रांक विभाग (रजिस्ट्रेशन एंड स्टांप डिपार्टमेंट) ने सॉफ्टवेयर में दरों को अपडेट करवाने का काम किया। इसे देखते हुए 30 नवंबर और 1 दिसंबर को विभाग के संबंधित कर्मचारियों-अधिकारियों की छुट्टियां भी रद्द रहीं।

डीआईजी स्टांप जयपुर जी.एल. शर्मा को जून-जुलाई में जिला स्तरीय समितियों से प्रस्ताव मिले थे। इन प्रस्तावों पर चर्चा के बाद डीएलसी रेट बढ़ाने का निर्णय किया है। सभी उपखंड एरिया से डीएलसी के प्रस्ताव करीब पांच माह पहले जून में मांगे गए थे। इन प्रस्तावों पर चर्चा के बाद ये बढ़ोतरी की गई हैं। बताया जा रहा है कि जिन ग्रामीण एरिया में डेवलपमेंट तेजी से हुआ है, वहां शहरीकरण तेजी से बढ़ा है। उन एरिया में डीएलसी की दरें 50 फीसदी तक बढ़ाई हैं। इसके अलावा सिंचित कृषि भूमि की डीएलसी रेट में भी 50 फीसदी तक इजाफा किया है। क्योंकि अधिकांश जगहों पर सिंचित जमीनों की डीएलसी असिंचित जमीनों के समान या कुछ जगहों पर कम थी।

सूत्रों के मुताबिक जयपुर में दरों में 15 फीसदी तक का इजाफा किया है। कई जगहों पर 10 और कुछ जगहों पर 5 या 8 फीसदी का इजाफा किया है। सीकर रोड और जगतपुरा के एरिया में डीएलसी दरों में ज्यादा बढ़ोतरी की गई है। जिन स्थानों की डीएलसी दरों में 15 प्रतिशत का इजाफा हुआ है, वहां 50 लाख रुपए कीमत के एक मकान या भूखंड की रजिस्ट्री करवाने पर पुरुषों को 66 हजार रुपए ज्यादा देने होंगे। वहीं, महिला के नाम पर रजिस्ट्री करवाने पर 56 हजार 250 रुपए ज्यादा देने होंगे।

अभी तक पुरुषों के नाम पर संपत्ति खरीदने पर 8.8 प्रतिशत की दर से रजिस्ट्री शुल्क लगता था। इसमें 6 प्रतिशत स्टांप ड्यूटी और 1 प्रतिशत रजिस्ट्रेशन फीस होती थी। कुल स्टांप ड्यूटी पर 30 प्रतिशत का अलग से सरचार्ज और अन्य चार्ज लगता था। इसी तरह महिला के नाम पर रजिस्ट्री करवाने पर करीब 7.5 प्रतिशत की दर लगती थी। इसमें 5 प्रतिशत स्टांप ड्यूटी और 1 प्रतिशत रजिस्ट्रेशन फीस होती थी। वहीं, स्टांप ड्यूटी पर 30 प्रतिशत सरचार्ज शामिल होता है।