राजेश विक्रांत
मुंबई
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कमाल के लिए जाने जाते हैं। वे कोई भी कमाल कर सकते हैं। सर्जिकल के नाम पर फर्जीकल स्ट्राइक कर सकते हैं। अर्थव्यवस्था के आंकड़े को बढ़ा-चढ़ाकर बता सकते हैं। सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के आंकड़े में बढ़ोतरी कर सकते हैं। संभवत: उनकी प्रेरणा, प्रोत्साहन व सहयोग से चुनाव आयोग भी आंकड़ों की हेराफेरी में अगर उस्ताद बन गया है, तो इसका श्रेय मोदी को ही जाएगा। चुनाव आयोग ने जो किया है, उससे चुनावी पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
लोकतंत्र में चुनाव आयोग से आशा की जाती है कि वो चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता का पालन गंभीरता से करेगा, लेकिन शायद ऐसा हुआ नहीं है। चुनावी प्रक्रिया में सुधार को लेकर काम कर रही संस्था- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स- एडीआर ने लोकसभा चुनाव २०२४ को लेकर दावा किया है कि ५३८ संसदीय क्षेत्रों में डाले गए मतों और गिने गए मतों की संख्या में अंतर है। एडीआर के विश्लेषण के अनुसार, लोकसभा चुनावों में ३६२ संसदीय क्षेत्रों में पड़े कुल वोटों से ५,५४,५९८ वोट कम गिने गए। वहीं १७६ संसदीय निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पड़े कुल वोटों से ३५,०९३ वोट ज्यादा गिने गए।
अगर एडीआर का दावा सही है तो यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हिंदुस्थान में चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता पर बड़े गंभीर सवाल खड़े करता है। हालांकि, एडीआर ने यह साफ नहीं किया कि वोटों में इस अंतर की वजह से कितनी सीटों पर अलग परिणाम सामने आए, लेकिन मतगणना के दौरान ३६२ सीटों पर वोट कम गिने जाने तथा १७६ सीटों पर वोट ज्यादा गिने जाने से बड़ी संख्या में परिणाम प्रभावित हुए हैं, इतना तो तय है। लोकसभा चुनावों के दौरान देशभर में जैसा ट्रेंड चल रहा था, उसे देखते हुए यह तो तय ही था कि भाजपा को मिली २४० सीटों में कायदे की कमी आती। यह भी हो सकता है कि तब भाजपा १०० का भी आंकड़ा न हासिल कर पाती।
वोटों के गिनने में हुई हेराफेरी पर चुनाव आयोग की ओर से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। चुनाव आयोग ने ७ जून को लोकसभा चुनाव २०२४ में कुल वोटिंग का आंकड़ा जारी किया था। इस बार कुल मिलाकर ६५.७९ प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। यह २०१९ चुनाव के मुकाबले १.६१ प्रतिशत कम है। पिछली बार कुल आंकड़ा ६७.४० प्रतिशत था, लेकिन चुनाव आयोग को इसके बजाय कुल वोटों की संख्या जारी करनी चाहिए, जो कि उसने नहीं किया।
लोकसभा चुनाव के दौरान भी आयोग की भूमिका ऐसी हो गई थी कि उसे सरकार का जेबी आयोग तक कह दिया गया था। एक तो उसने भीषण गर्मी में चुनावों का कार्यक्रम बनाया। चुनावी प्रक्रिया ७७ दिनों तक चलती रही, जबकि इसे २२-२५ दिन में पूरा किया जा सकता था। इसके साथ ही देश भर में भाजपा नेता सांप्रदायिक चुनावी भाषण देते रहे, लेकिन आयोग खामोश बैठा रहा या दिखावे की कार्रवाई करता रहा। मसलन, मोदी ने राजस्थान के बांसवाड़ा में भाषण दिया था, जिसमें घुसपैठिए और ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले जैसे अपमानजनक जुमलों का प्रयोग किया गया, लेकिन मोदी की जगह भाजपा अध्यक्ष को नोटिस जारी कर दिया गया। कांग्रेस के खातों के प्रâीज होने की खबर तथा इलेक्टोरल बॉन्ड के मुद्दे पर भी आयोग बहरा बन गया था, जबकि चुनाव आयोग को न सिर्फ निष्पक्ष होना चाहिए, बल्कि निष्पक्ष दिखना भी चाहिए।
चुनाव आयोग की हरकतों की वजह से एडीआर की हालिया रिपोर्ट पर भरोसा किया जा सकता है कि आयोग ने अपना फर्ज गंभीरता से नहीं निभाया, जाहिर है कि यह सब मोदी के इशारे पर ही किया गया होगा। वोटिंग का अंतिम आंकड़ा जारी करने में अत्यधिक देरी करना, अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों और मतदान केंद्रों पर हुई वोटिंग के क्षेत्रवार व केंद्रवार आंकड़े उपलब्ध नहीं कराना, शायद आयोग ने जानबूझकर और सच छुपाने के लिए किया है।
इसके साथ ही यहां पर एक सवाल और उठता है कि क्या चुनाव परिणाम आंकड़ों के अंतिम मैचिंग के आधार पर घोषित किए गए थे? आयोग ने वोटों की गिनती पर अंतिम और प्रामाणिक डेटा जारी करने से पहले परिणाम घोषित क्यों किए? ईवीएम में पड़े वोटों, उनकी गिनती में अंतर, चुनाव संपन्न होने के कुछ दिन बाद अंतिम मतदान प्रतिशत में वृद्धि, केंद्रवार डाले गए वोटों की संख्या का खुलासा न करना, डाले गए वोटों के आंकड़े जारी करने में बहुत देरी और अपनी वेबसाइट से कुछ आंकड़ों को हटाने पर भी आयोग की ओर से कोई सफाई नहीं आई है।
इससे साफ-साफ लगता है कि आयोग ने मोदी या सरकार के जेबी आयोग के रूप में काम किया और मनमर्जी काम किया। आयोग मोदी को हेट स्पीच के लिए फटकार नहीं लगा पाया, बल्कि उसने पार्टी अध्यक्ष को जवाबदेह बना दिया। इसने चुनाव में कुल वोटों की संख्या की बजाय, वोटिंग प्रतिशत जारी कर दिया और अब एडीआर की रिपोर्ट में आयोग एक बार फिर कटघरे में खड़ा हो गया है। पूरी चुनावी प्रक्रिया संदेह के घेरे में आ गई है। क्या आयोग इस बारे में सफाई देगा?
(लेखक तीन दशक से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और ११ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)