८ करोड़ की सर्जरी!

ब्राजील की रहनेवाली ३१ साल की जेनिफर के ऊपर अमेरिकी मॉडल किम कार्दशियन की तरह दिखने का जुनून सवार है। ऐसे में किम की तरह दिखने के लिए जेनिफर ने कई बार सर्जरी करवाई। पानी की तरह पैसे बहाए। कुल ८ करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च करने के बाद वो सुंदर दिखने लगीं, लेकिन सर्जरी करवाना बंद नहीं किया। हाल ही में किम कार्दशियन की हमशक्ल ने खुलासा किया है कि फिलर इंजेक्शन की लत के कारण मां बनने का उनका सपना टूट गया है.

चिता पर जिंदा हुई महिला … मौजूद लोगों के उड़ गए होश

मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में एक मुर्दा शख्स के जिंदा होने का मामला सामने आया है। जानकारी के मुताबिक, एक महिला के अंतिम संस्कार की तैयारियां चल रही रही थीं, तभी पास में खड़े लोगों को महिला के हाथ-पैर हिलते दिखाई दिए व बॉडी पर पसीना दिखाई दिया तो मौके पर मौजूद परिजन सहित रिश्तेदार व मुक्तिधाम पर मौजूद लोग चौक गए। वहां मौजूद लोगों के होश उड़ गए। तत्काल महिला को एंबुलेंस से अस्पताल ले जाया गया।
शहर की शांति नगर कॉलोनी में रहनेवाले डीईओ कार्यालय में काम करनेवाले रविंद्र श्रीवास्तव की ५६ वर्षीय पत्नी अनीता पिछले कुछ दिन से बीमार चल रही थीं। गुरुवार की रात अचानक से अनीता की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई तो स्वजन उन्हें अस्पताल ले गए। डॉक्टरों ने महिला की हालत को गंभीर बताते हुए मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। सुबह महिला के अंतिम संस्कार के लिए उसे मुक्तिधाम ले जाया गया।

काहें बिसरा गांव : सिरिंगी और जोगी बाबा के गीत

पंकज तिवारी
‘जागऽ होऽ बमभोला सबेर भवाऽ’ सवेरे-सवेरे ही गेरुआ वस्त्र धारण किए जोगी बाबा का यह गीत सुनकर मन सुकून से भर उठता था। आस-पास से लोग सुनने आ जाते थे। कभी-कभी तो घंटों बाबा गाते रहते थे और लोग मस्त होकर सुनते रहा करते थे। एक दिन की बात है भोलू भयानक वाली नींद में था, बाहर बड़ी ही मधुर आवाज लहराव के साथ उसके कानों तक जा रही थी। भैंस-गाय लगातार चोकर रहे थे। पेड़ों पर चिड़ियों का चहचहाना अचानक से बढ़ गया था। हवा भी शांत हो उसी आवाज के आगोश में समाई हुई थी।
भोलू भी उठ बैठा, दौड़कर दादी के पास गया। दादी, दादी देखो तो बाहर कोई आया हुआ है। बहुत ही सुरीली आवाज में गीत गाए जा रहा है। मन करता है कि लगातार उसे सुनता ही रहूं। ‘काउ…? काउ…?’ कई बार पूछना पड़ा दादी को। दादी कान से कम सुनती थीं। जब बात समझ में आई तो भाग कर मोहारे को आ गर्इं। बाएं हाथ में बड़ी सी सिरिंगी, दाहिने कंधे पर बड़ा सा झोला, पांव में पतला सा खड़ाऊं, दाएं हाथ में सिरिंगी बजाने के लिए छोटी सी छड़ी साथ ही मधुर कंठ से मधुर गीत गाते जोगी बाबा बिल्कुल अपने में ही खोए हुए लगातार गाए और बजाए जा रहे थे। आहहहहहहा… बिल्कुल ही मस्त होकर, भाव-विभोर होकर दादी गीत सुने जा रही थीं और बगल में ही बिल्ली भी बैठी हुई थी। दरवाजे पर कभी भी, कोई भी आता था निराश होकर नहीं जाता था। दादी दानवीर दादी थीं। खुद खाने को मिले न मिले लोगों को जरूर खिलाती थीं। जोगी बाबा को गाते देख दादी भर गिलास माठा लेकर आ गर्इं और बाबा को देते हुए वहीं ओसारे में बने ओटा पर बैठ जाने को बोलीं, जबकि बाकी लोग बाबा से और भी गाना सुनाने के लिए आग्रह कर रहे थे। जोगी बाबा एक से बढ़कर एक गाना सुनाए ही जा रहे थे। माठा पीने और गुड़ खाने के बाद अपने पेट पर हाथ फेरते बाबा पुन: गाने लगे थे। सुबह-सुबह पेड़ों पर कलरव करते चिड़ियों का झुंड, मदमस्त कर देती हवाओं के बीच सुरीले अंदाज में गाते बाबा जी के गीतों पर लोग फिदा हो गए थे। आनंद कई गुना बढ़ गया था। दादी ने उन्हें शाम को खाने का निमंत्रण दे दिया और साथ ही टोपा भर करके अनाज भी। जोगी बाबा मुस्कुराते हुए खूब फूलो-फलो, परिवार तरक्की करे का आशीर्वाद देकर आगे बढ़ गए, जबकि इधर ददा यह सारी करामात देखकर अंदर ही अंदर जले जा रहे थे, कुढ़े जा रहे थे। उन्हें दादी की यह सारी करामात बस तमाशा लगती थी, पर कर कुछ नहीं पा रहे थे। दादी के आगे बोलने की हिम्मत नहीं थी ददा में। दादी को पूरे गांव भर के लोग खूब मानते थे, खूब इज्जत करते थे जबकि ददा को देख लोग रास्ता बदल लिया करते थे। ‘जेकरे हिंया मरकहिया गाय, ओकरे दुअरवां केउ ना जाय’ वाली कहावत मशहूर थी ददा के बारे में। ददा और सभी के लिए मरकहिया गाय ही थे, जबकि दादी के सामने मामला बिल्कुल ही उलट होता था‌। दादी दान के मामले में कुछ भी नहीं सोचती थीं, जबकि ददा कई दिनों तक सो ही नहीं पाते थे, लेकिन चलता कहां था ददा का। चलना तो दादी का ही होता था। आज भी वही हुआ था जो दादी ने चाहा था। लोग जोगी बाबा के पीछे-पीछे तब तक उनके गाए गीतों को सुनते रहते जब तक कि बाबा गांव भर में घूमते रहते थे। कुछ घर ऐसे भी होते थे जहां बाबा के सामने ही घर का दरवाजा ही बंद कर दिया जाता था, पर बाबा के चेहरे पर भाव जरा सा भी नहीं बदलता था वो गाते हुए और सिरिंगी बजाते हुए ही दूसरे दरवाजे की तरफ मुड़ जाते थे, जबकि साथ चल रहे लोगों और बच्चों को गुस्सा भी आता था, पर बाबा सभी को समझा दिया करते थे- ‘बेटा देना-लेना हमारे तुम्हारे बस की बात नहीं है सब प्रभु की माया है, उनकी जो आज्ञा होगी वही होगा। हम आप तो बस रंगमंच पर अपने-अपने हिस्से का अभिनय कर रहे हैं, जिसको निर्देशित करनेवाले प्रभु ही हैं।’ लोग भाव-विभोर हुए बाबा के गीत के साथ ही बातों में भी डूबने लगे थे।
(लेखक बखार कला पत्रिका के संपादक एवं कवि, चित्रकार, कला समीक्षक हैं)

तड़का : भ्रष्टाचार की हवा

कविता श्रीवास्तव
महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग में राजकोट किले पर नवनिर्मित छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा का ढह जाना कोई मामूली बात नहीं है। करोड़ों रुपए की लागत से बड़ी हड़बड़ी में इस स्मारक का निर्माण किया गया और श्रेय लेने में अग्रणी रहनेवाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसी हड़बड़ी में इस स्मारक का उद्घाटन किया। अब उन्होंने इस गलती को मानते हुए माफी मांग कर मामले का पटाक्षेप करने की कोशिश की है, लेकिन कुछ ही महीने में स्मारक के ढह जाने से इसके निर्माण में हुए कथित भ्रष्टाचार की कलई खुल गई है। छत्रपति शिवाजी महाराज को पूरा महाराष्ट्र अपना आराध्य देव मानता है। मुगलों के खिलाफ तगड़ी लड़ाई लड़कर उन्हें धूल चटाने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता के सामने पूरा हिंदुस्थान अपना सिर झुकाता है। हिंदवी स्वराज की स्थापना में वीर छत्रपति शिवाजी महाराज के योगदान को हिंदुस्थान कभी भी भूल नहीं सकता है। उन्होंने अपने छापामार युद्ध के दम पर मुगलों के छक्के छुड़ा दिए थे। देश में सबसे ज्यादा किले बनाने का कीर्तिमान भी वीर छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम ही है। उनके बनवाए हुए किले आज भी महाराष्ट्र के अनेक जिलों में पूरी शान से खड़े हैं। राजकोट किले पर उनकी प्रतिमा लगवा कर स्मारक बनवाने के मामले में कई प्रकार की खामियां उजागर हो रही हैं। इसके लिए धन महाराष्ट्र शासन ने उपलब्ध कराया। काम नौसेना ने करवाया। काम किया ठेकेदारों ने। अब महाराष्ट्र शासन, नौसेना, ठेकेदार आदि के बीच पर दोषारोपण का खेल जारी है। राज्य के मुख्यमंत्री वीर छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के ढहने का कारण समुद्री किनारों से चलनेवाली तेज हवाओं को बता रहे हैं। जिस ठेकेदार को गिरफ्तार किया गया है वह कह रहा है कि उसने केवल चबूतरा बनाने का काम किया। महाराष्ट्र सरकार की ओर नौसेना उंगली दिखाकर अपना पल्ला झाड़ने से बाज नहीं आ रही है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने दौर में मराठा नौसेना की फौज बनाई थी। समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिए उनकी कोशिशों को नई पीढ़ी को समझाने के लिए यह स्मारक प्रेरणादायक होगा, ऐसा समझा जा रहा था। लेकिन नवनिर्मित मूर्ति के इतनी शीघ्रता से ढहने के बाद इसके काम में घटिया किस्म की सामग्रियों के इस्तेमाल की शंका स्वाभाविक है। यह किसकी जिम्मेदारी है? विपक्षी महाविकास आघाड़ी अब सरकार के प्रति यदि जूतामार आंदोलन करके जनता की भावना व्यक्त कर रही है तो यह लोगों की जागरूकता को दिखाने के साथ ही वीर छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रति अपने समर्पित भावना को दर्शाती प्रतिक्रिया भी है। विपक्ष ने ही माफी की मांग की थी। शुक्रवार को पालघर पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के ढह जाने पर माफी मांग कर मामले को शांत करने की कोशिश जरूर की है, लेकिन यह पूरा प्रकरण गहरी जांच का विषय है। लेकिन सवाल है कि क्या इस जांच में कथित भ्रष्टाचार की बातें उजागर होती भी हैं या नहीं।

निवेश गुरु : बिना तलवार, बिना युद्ध सपनों का साम्राज्य खुद बनाएं!

भरतकुमार सोलंकी
भारत का इतिहास सैकड़ों रियासतों, उनके उत्थान-पतन और सत्ता संघर्षों का सजीव उदाहरण है। प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल तक राजा-महाराजाओं का सबसे प्रमुख लक्ष्य अपने साम्राज्य का विस्तार और स्थायित्व बनाए रखना रहा है। इस क्रम में अक्सर छोटे-छोटे रजवाड़ों को भेंट में देना, राजनीतिक विवाहों के जरिए संबंधों को मजबूत करना और कूटनीति के माध्यम से सत्ता संतुलन बनाए रखना आम बात थी। ये सभी तरीके राजा-महाराजाओं के बीच वर्चस्व बनाए रखने के उपाय थे। हालांकि, इस समय सत्ता प्राप्त करने का एक प्रमुख साधन युद्ध था, जहां एक राजा दूसरे राजा की रियासत पर आक्रमण कर उसे अपने साम्राज्य में शामिल कर लेता था।
समय बीतने के साथ, शिक्षित संत्री-मंत्रियों की संख्या बढ़ी और इसने शासन प्रणाली में कागजी कार्यवाही की शुरुआत की। अब न केवल युद्ध, बल्कि समझौतों के जरिए भी सत्ता हासिल की जाने लगी। इन समझौतों को कागज पर लिखा जाने लगा और उस पर हस्ताक्षर किए जाने लगे। यह प्रणाली धीरे-धीरे पूरे भारत में प्रचलित हुई और इसने शासकों के बीच एक नया चलन शुरू किया- समझौतों के माध्यम से सत्ता का हस्तांतरण। साम्राज्यों के स्वरूप और शासन करने के तरीकों में बदलाव तब आया, जब औद्योगिक क्रांति ने भारत सहित पूरे विश्व को प्रभावित किया। इस समय राजा-महाराजाओं की सत्ता धीरे-धीरे कम होती गई और नए आर्थिक मॉडल सामने आए। विशेष रूप से उपनिवेशवाद और इसके साथ आई आर्थिक नीतियों ने रियासतों की शक्ति को कमजोर कर दिया। ब्रिटिश शासन के अंतर्गत रजवाड़ों का पतन हुआ और आधुनिक शासन प्रणाली की नींव रखी गई। आधुनिक युग में रियासतों का स्थान बड़े कॉर्पोरेट घरानों ने ले लिया है। पुराने समय में जो काम तलवार और युद्ध के माध्यम से होता था, अब वह आर्थिक रणनीतियों और शेयर बाजार के माध्यम से हो रहा है। आज के समय में बड़े उद्योगपति और कॉर्पोरेट कंपनियां, शेयर इक्विटी को खरीदने और बेचने के माध्यम से कंपनियों पर नियंत्रण हासिल कर रही हैं। ये कंपनियां विभिन्न देशों में अपना आर्थिक साम्राज्य पैâला रही हैं, जैसे कि एक समय में राजा अपने साम्राज्य का विस्तार करते थे। इस प्रकार सत्ता संघर्ष की पुरानी परंपरा आज के कॉर्पोरेट युग में एक नए रूप में देखी जा सकती है। आज के दौर में साम्राज्य बनाने का तरीका पूरी तरह से बदल गया है। अब किसी को तलवार या युद्ध के मैदान में उतरने की आवश्यकता नहीं है। आर्थिक और तकनीकी विकास ने ऐसे अवसर प्रदान किए हैं जहां लोग अपने कौशल, निवेश और रणनीतिक सोच के माध्यम से अपना साम्राज्य खड़ा कर सकते हैं। व्यापार, स्टार्टअप्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने सामान्य व्यक्ति को भी वह ताकत दी है कि वह अपने विचारों को बड़ा रूप देकर वैश्विक स्तर पर पहचान बना सके। चाहे वह किसी कंपनी का मालिक हो या सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, आज हर कोई अपने खुद के साम्राज्य का निर्माण कर सकता है, बशर्ते उसके पास दृढ़ इच्छाशक्ति और सही रणनीति हो।
(लेखक आर्थिक निवेश मामलों के विशेषज्ञ हैं)