संपादकीय : सच्ची आजादी की तलाश में…

आज देशभर में ७८वां स्वतंत्रता दिवस सामान्य हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। हमारे देश को यह आजादी स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों के रक्तरंजित संघर्ष से मिली है। हजारों ज्ञात-अज्ञात वीरों ने इसके लिए बलिदान दिया, अपना सर्वस्व होम कर दिया। ऐसे सभी वीरों और उनके त्याग और बलिदान की पुण्यस्मृति ही हर साल मनाया जाने वाला स्वतंत्रता दिवस है। स्वतंत्रता दिवस नई पीढ़ी को देशभक्ति की प्रेरणा देने का दिन है। यह वर्षों से मनाया जाता रहा है। लेकिन पिछले दस सालों में इसे भी एक ‘इवेंट’ का रूप दे दिया गया है। क्योंकि मौजूदा सरकार और इवेंट एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसलिए दिन, कार्यक्रम, घोषणा कोई भी हो, उसे ‘ग्रैंड इवेंट’ बनाने की लगातार कोशिश की जाती रही है। यहां तक ​​कि दो साल पहले मनाया गया आजादी का ‘अमृत महोत्सव’ भी इससे नहीं बच पाया। असली देशभक्ति और उसे व्यक्त करना कोई इवेंट की बात नहीं है। लोगों में देश के प्रति बहुत प्यार है। हर साल वह अपने तरीके से उत्साह के साथ स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। तो उसका इवेंट क्यों? मूलत: ७७ साल पहले जिन चीजों के लिए हमें यह आजादी मिली थी, उनकी आज हकीकत क्या है? क्या साढ़े सात दशक बाद भी आजादी का लक्ष्य हासिल हो सका? यदि यह हासिल नहीं हुआ है तो एक शासक के रूप में सरकार उस संबंध में क्या कदम उठा रही है? हुक्मरानों को इन सवालों का जवाब देना चाहिए। इसके लिए आत्ममंथन करना चाहिए, लेकिन उसके बजाय स्वतंत्रता दिवस को भी एक ‘इवेंट’ बनाकर इसमें आम लोगों को गाफिल कर फंसाने की कोशिश की जा रही है। ‘हर घर तिरंगा’ अभियान पर आपत्ति की कोई वजह नहीं है, लेकिन क्या उन घरों में रहने वाले परिवारों को आजादी का लाभ मिल रहा है? मिल रहा है तो कितना, यदि कोई हो? या फिर सच्ची आजादी अब भी उनसे कोसों दूर है? क्या पिछले साढ़े सात दशकों में देश की प्रगति का लाभ सचमुच अंतिम व्यक्ति तक पहुंच रहा है? अगर ७८वें स्वतंत्रता दिवस पर भी इतने सारे सवाल अनुत्तरित रह जाएं तो क्या होगा? जिन्हें इन प्रश्नों का उत्तर देना है और यह पता लगाने का प्रयास करना है कि स्वतंत्रता का लाभ आम लोगों तक वैâसे पहुंचाया जा सकता है वे शासक ही इन सवालों को अनदेखा कर रहे हैं। देश का विकास आजादी के बाद नहीं, बल्कि २०१४ के बाद हुआ है इस तरह की शेखी बघारी जा रही है। आज हम ७८वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, लेकिन देश के लोगों को आज भी सच्ची आजादी की तलाश है। क्योंकि उसके बदले में अलग ही चीजें उन पर थोपी जा रही हैं। कथित राष्ट्रवाद और धर्मवाद की आग भड़काकर देश में पारंपरिक धार्मिक स्वतंत्रता और सद्भाव को कमजोर किया जा रहा है। सर्वधर्मसमभाव के मूल सिद्धांत पर संदेह के घेरे में डालने का प्रयास किया जा रहा है। सार्वजनिक उपक्रमों को निजी उद्योगपतियों को बेचा जा रहा है। हालात कुछ ऐसे बन रहे हैं कि जैसे नए पूंजीवाद के चंगुल में जनता की आर्थिक स्वतंत्रता कैद होने जा रही है। केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर राजनीतिक विरोधियों और आलोचकों के हक और ताकत छीनने का प्रयास किया जा रहा है। देश की वर्तमान स्थिति यह है कि विपक्ष, आलोचकों और लोकतंत्र के चारों स्तंभों के संवैधानिक अधिकार खतरे में हैं और केंद्रीय जांच एजेंसियों को अप्रतिबंधित स्वतंत्रता है। हालांकि, ‘चार सौ पार’ के नारे को देश की जनता ने लोकसभा चुनाव में हरा दिया। इसलिए ‘संविधान की स्वतंत्रता’ आज भी जीवित है। अन्यथा वह भी खतरे में थी। हालिया लोकसभा चुनाव के दौरान लोगों ने इस खतरे को पहचाना। सोच-समझकर वोट किया और सच्ची आजादी की ओर मजबूत कदम बढ़ाया। नि:संदेह, अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है। इसी चुने हुए सही मार्ग पर बिना डगमगाए चलने का संकल्प जनता को आज के ७८वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लेना चाहिए।

मेट्रो-३ ने मुंबई को ‘गंजा’ कर दिया! … हजारों की तादाद में काटे पेड़ पर वृक्षारोपण में गच्चा दे गए

सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (एमएमआरसी) ने मेट्रो-३ निर्माण के दौरान कम से कम पेड़ काटने का दावा किया था, लेकिन हकीकत कुछ और नजर आ रही है। मुंबई के रास्ते ‘गंजे’ नजर आ रहे हैं। पेड़ों की कटाई के बाद इन रास्तों से गुजरते हुए कुछ ऐसी ही फीलिंग आ रही है। यही नहीं, हजारों की संख्या में पेड़ काटने के बाद उन्हें वृक्षारोपण करना था, पर उसमें भी गच्चा दे दिया गया। इस कटाई की वजह से मुंबई के कई इलाकों में पेड़ पूरी तरह से खत्म हो गए हैं, जिसकी वजह से पैदल चलने वाले लोग धूप से परेशान हैं।

₹१२ करोड़ में लगाए गए सिर्फ ६८३ पेड़!
मेट्रो-३ के निर्माण के लिए रास्ते में आनेवाले बहुत से पेड़ काट डाले गए। इसके बाद दूसरी जगह पर पेड़ लगाने थे पर काटे गए पेड़ की तुलना में काफी कम पेड़ लगाए गए। एमएमआरसी ने अदालत के निर्देशों का पालन करते हुए मेट्रो स्टेशन के निकट २,९३१ पेड़ लगाने की योजना बनाई है, जिसकी अनुमानित लागत १२ करोड़ बताई जा रही है। अभी तक सिर्फ ६८३ पेड़ लगाए गए हैं। अधिकारियों का कहना है कि बाकी पेड़ भी जल्द लगाए जाएंगे।
एमएमआरसी द्वारा दिए गए आंकड़े से यह सवाल उठता है कि इतनी धीमी प्रगति के साथ क्या यह वृक्षारोपण योजना समय पर पूरी हो सकेगी? और क्या वास्तव में इन पेड़ों का विकास और देखभाल सही तरीके से की जा सकेगी? एमएमआरसी का दावा है कि यह प्रक्रिया देश में किसी भी इंप्रâास्ट्रक्चर परियोजना में पहली बार अपनाई गई है, जिसमें ठेकेदार को पेड़ों को विकसित करके उनकी देखभाल करनी है। लेकिन इस दावे के बावजूद उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति इस पूरे कार्यक्रम की निगरानी कर रही है। हर बैठक में समिति एमएमआरसी से कार्यक्रम की प्रगति की रिपोर्ट मांग रही है।

विधानसभा जीतनी है तो भ्रष्टाचार से दूर रहें भाजपा के मंत्री!…आरएसएस ने सिखाया सबक

सामना संवाददाता / मुंबई
आरएसएस ने महायुति सरकार पर तबादलों में भ्रष्टाचार के आरोप पर नाराजगी जताई है। संघ ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा है कि तबादलों से महायुति सरकार की छवि खराब हो रही है। साथ ही यह भी सलाह दी है कि भाजपा के मंत्रियों को तबादलों में भ्रष्टाचार से दूर रहना चाहिए। आरएसएस ने कहा है कि अगर विधानसभा चुनाव जीतना है तो संघ और भाजपा के बीच समन्वय जरूरी है। इससे साफ हो गया है कि संघ और भाजपा के बीच तालमेल सही नहीं है। इसी के साथ इसका सीधा लाभ महाविकास आघाड़ी को होगा।
उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में भाजपा की प्रगति पुस्तिका पर मतदाताओं ने असंतोषजनक टिप्पणी की थी। इसके बाद से भाजपा की ओर से भी आत्ममंथन और मंथन जारी है। अहम बात यह है कि इस बीच भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच मतभेद की भी बातें सामने आई थीं। अब संभावना है कि दिवाली के बाद विधानसभा चुनाव होंगे इसलिए भाजपा चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार है। हालांकि, जिस तरह से आरएसएस भाजपा को आईना दिखाने का काम कर रहा है, उससे साफ हो गया है कि दोनों के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। एक तरफ भाजपा से जनता पहले से ही नाराज है। इसी में संघ भी भाजपा को सलाह दे रही है। ऐसे में अनुमान लगाया गया है कि इसका खामियाजा भाजपा को विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।
संघ की ये है सलाह
विधानसभा चुनाव जीतना है तो संघ और भाजपा के बीच समन्वय जरूरी है। विदर्भ संघ और भाजपा के बीच समन्वय होना चाहिए। संघ ने यह रुख अपनाया है कि भाजपा में मराठा, ओबीसी, दलित समुदाय के नेताओं को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए और उसके अनुसार योजना बनाई जानी चाहिए।

कैंसर का बढ़ेगा कहर! …२०५० तक पुरुष रोगियों की मौत में ९३% की होगी वृद्धि

रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा
सामना संवाददाता / मुंबई
जानलेवा रोग कैंसर का कहर बढ़नेवाला है। एक रिसर्च के अनुसार, साल २०५० तक कैंसर से पुरुषों की होनेवाली मौतों की संख्या में ९३ फीसदी की वृद्धि हो जाएगी। बता दें कि पुरुषों में प्रोस्टेट और फेफड़ों के कैंसर की संख्या बढ़ रही है। रिसर्चर ने पुरुषों में कैंसर की घटनाओं और मृत्यु दर का अनुमान लगाने के लिए १८५ देशों और क्षेत्रों के साथ-साथ ३० कैंसर टाइप्स और जनसांख्यिकीय डेटा के ऊपर रिसर्च किया है। रिसर्च के अनुसार, पुरुषों में महिलाओं की तुलना में धूम्रपान और शराब पीने की संभावना अधिक होती है, जिससे उनमें कैंसर और कैंसर से संबंधित मौतों का जोखिम बढ़ जाता है।

इसके अलावा, पुरुषों के काम के दौरान कार्सिनोजेन्स के संपर्क में आने की संभावना अधिक होती है और उनके वैंâसर की स्थिति की जांच करवाने की संभावना कम होती है। रिसर्चर के मुताबिक ६५ साल या उससे अधिक उम्र वाले पुरुषों की जीवित रहने की दर युवा पुरुषों की तुलना में कम थी, क्योंकि वे चिकित्सा के प्रति कम सहनशील होते हैं और जीवन में बाद में निदान प्राप्त करते हैं। इसके अलावा, उनमें से कुछ स्वास्थ्य सेवा के लिए भुगतान करने में असमर्थ हैं। इसी अवधि में यह अनुमान लगाया गया है कि वैंâसर से मरने वाले वृद्ध पुरुषों की संख्या ३.४ मिलियन से बढ़कर ७.७ मिलियन हो जाएगी, जबकि नए मामलों की संख्या २०२२ में ६ मिलियन से बढ़कर २०५० तक १३.१ मिलियन हो जाएगी।

पुरुषों के लिए खतरनाक
है कार्सिनोजेन्स का संपर्क
बनता है कैंसर का कारण
पुरुषों में कैंसर का खतरा बढ़ रहा है। साल २०५० तक वैंâसर के कारण पुरुषों में होनेवाली मौतों में ९३ फीसदी की वृद्धि हो जाएगी। एक रिसर्च में इस बात का खुलासा हुआ है। पुरुषों के काम के दौरान कार्सिनोजेन्स के संपर्क में आने की संभावना अधिक होती है और उनके कैंसर की स्थिति की जांच करवाने की संभावना कम होती है।
बता दें कि कार्सिनोजेन्स ऐसा तत्व है जो १०० से ज्यादा पदार्थों में पाया जाता है और वैंâसर को बढ़ावा देनेवाला कारक होता है। रिसर्चर के मुताबिक ६५ साल या उससे अधिक उम्र वाले पुरुषों की जीवित रहने की दर युवा पुरुषों की तुलना में कम थी, क्योंकि वे चिकित्सा के प्रति कम सहनशील होते हैं और जीवन में बाद में निदान प्राप्त करते हैं। इसके अलावा, उनमें से कुछ स्वास्थ्य सेवा के लिए भुगतान करने में असमर्थ हैं। इसी अवधि में यह अनुमान लगाया गया है कि वैंâसर से मरने वाले वृद्ध पुरुषों की संख्या ३.४ मिलियन से बढ़कर ७.७ मिलियन हो जाएगी, जबकि नए मामलों की संख्या २०२२ में ६ मिलियन से बढ़कर २०५० तक १३.१ मिलियन हो जाएगी।

देश का व्यापार घाटा बढ़ा! … निर्यात कम, आयात ज्यादा

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
हिंदुस्थान का व्यापार घाटा बढ़ गया है। इसका प्रमुख कारण है कि देश का निर्यात घट रहा है और आयात बढ़ रहा है। वस्तुओं का निर्यात जुलाई में सालाना आधार पर १.२ प्रतिशत घटकर ३३.९८ अरब डॉलर रहा है। एक साल पहले इसी महीने में यह आंकड़ा ३४.३९ अरब डॉलर था। सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, देश का आयात जुलाई में ७.४५ फीसदी बढ़कर ५७.४८ अरब डॉलर हो गया, जो पिछले साल इसी महीने में ५३.४९ अरब डॉलर था। व्यापार घाटा जुलाई में २३.५ अरब डॉलर रहा है। आयात और निर्यात के अंतर को व्यापार घाटा कहते हैं। वाणिज्य सचिव सुनील बर्थवाल ने आंकड़े जारी करने के बाद कहा कि मौजूदा रुझानों को देखने से पता चलता है कि देश का कुल माल एवं सेवा निर्यात पिछले साल के आंकड़े को पार कर सकता है।

राम मंदिर की सुरक्षा रामभरोसे! … लीकेज के बाद लाइटें भी हुईं चोरी!

योगी सरकार की हो रही चौतरफा आलोचना
सामना संवाददाता / लखनऊ
बीते दिनों बारिश की वजह से अयोध्या में राम मंदिर की पोल खुल गई थी। इससे उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार की आलोचना भी खूब हुई थी। लीकेज के बाद अब राम नगरी अयोध्या में प्रशासन की भारी लापरवाही सामने आई है। राम मंदिर की ओर जानेवाले रामपथ और भक्तिपथ पर लगी हजारों लाइटें चोरी हो गई हैं। इस मामले में एफआईआर दर्ज कर ली गई हैं। जिस तरह से भीड़भाड़ वाली अयोध्या में चोरी की घटनाएं सामने आई हैं, उससे समग्र सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं।
राम मंदिर की ओर जानेवाले राम पथ और भक्ति पथ पर लगाई गई ५० लाख से ज्यादा कीमत की हजारों लाइटें चोरी हो गई हैं। चोरी हुई लाइटों में ३८०० बैम्बू लाइटें हैं जबकि ३६ गोबो प्रोजेक्टर लाइटें है। इस घटना की जानकारी पुलिस को चोरी के करीब दो महीने बाद पता चली है। अयोध्या विकास प्राधिकरण द्वारा यश एंटरप्राइजेज और कृष्णा ऑटोमोबाइल्स को दिए गए ठेके के अनुसार, राम मंदिर की ओर जाने वाले रामपथ पर पेड़ों पर ६,४०० बांस की लाइटें, भक्तिपथ पर ९६ गोबो प्रोजेक्टर लाइटें लगाई गर्इं थीं।

अगर बीजेपी जीती तो राजनीति छोड़ दूंगा
अयोध्या (यूपी) से सपा सांसद अवधेश प्रसाद ने मिल्कीपुर उप-चुनाव को लेकर बुधवार को कहा, `मिल्कीपुर उप-चुनाव जीतने से सपा को कोई नहीं रोक सकता।’ उन्होंने कहा, `२०२७ में यूपी में सपा की सरकार बनेगी और अगर बीजेपी ५० से ज्यादा सीट जीतती है तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा।’

शिवसेना भवन प्रांगण में आज ध्वजारोहण! …उद्धव ठाकरे रहेंगे उपस्थित

समय – सुबह ८ बजे
सामना संवाददाता / मुंबई
देश के स्वतंत्रता दिवस पर आज दादर स्थित शिवसेना भवन के प्रांगण में शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे द्वारा ध्वजारोहण किया जाएगा। ध्वजारोहण समारोह सुबह ८ बजे होगा। इस मौके पर शिवसेना नेता व युवासेना प्रमुख आदित्य ठाकरे भी मौजूद रहेंगे।
१५ अगस्त १९४७ को भारत को आजादी मिली। भारत माता को अंग्रेजों के जुल्मों से मुक्त कराने के लिए लाखों देशभक्तों ने घर-परिवार की परवाह न करते हुए आजादी की लड़ाई में खुद को झोंक दिया था। उन्होंने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। शिवसेना ने भी हमेशा राष्ट्रीय गौरव बनाए रखा है। १५ अगस्त को देश के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए स्वतंत्रता का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया जाता है। आज उद्धव ठाकरे झंडा फहराएंगे और तिरंगे को सलामी देंगे।

आंगनवाड़ी सेविकाओं की सरकार को सुध नहीं …नाराज सेविकाएं निकालेंगी राज्यव्यापी मोर्चा!

सामना संवाददाता / मुंबई
पिछले साल से ही अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहीं आंगनवाड़ी सेविकाओं का घाती सरकार की ओर से दमन जारी है। आखिरकार एक बार फिर से न्याय की उम्मीद में वे पिछले तीन दिनों से धरना प्रदर्शनरत हैं। हालांकि, घाती सरकार की ओर से कोई भी प्रतिनिधि उनकी सुध लेने नहीं पहुंचा है। ऐसे में बाध्य होकर दो लाख आंगनवाड़ी सेविकाओं को २१ अगस्त से राज्यव्यापी मोर्चा निकालना पड़ेगा।
उल्लेखनीय है कि आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने अपनी मांगों को लेकर ४ दिसंबर २०२३ से २५ जनवरी २०२४ तक ५२ दिनों की राज्यव्यापी हड़ताल की थी। इसमें उन्होंने आशा कर्मचारियों की तुलना में अधिक मानधन वृद्धि का सरकारी निर्णय जल्द से जल्द लिया जाना चाहिए। उन्हें कानूनी रूप से ग्रेच्युटी दी जानी चाहिए। पहले की चर्चा में सहमति के अनुसार, उन्हें मासिक पेंशन योजना लागू की जानी चाहिए, जैसी मांगे की गई थीं। हालांकि, हड़ताल के दौरान महिला व बाल विकास मंत्री ने लिखित आश्वासन दिया था कि पहले आशा सेविकाओं के मानधन में वृद्धि की जाएगी। उसके बाद आंगनवाड़ी सेविकाओं के मानधन को भी बढ़ाया जाएगा। फिलहाल, घाती सरकार ने १४ मार्च २०२४ को आशा सेविकाओं के मानधन में ५,००० रुपए प्रतिमाह की वृद्धि का निर्णय लिया है।

कल से हड़ताल पर
सरपंच और ग्रामसेवक
सरकार ग्राम पंचायत संबंधी विभिन्न मांगों की अनदेखी कर रही है। इससे नाराज अपनी मांगों को लेकर ग्राम पंचायत कर्मचारी १६ अगस्त से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर रहेंगे। इस हड़ताल में सरपंच, उपसरपंच, ग्राम पंचायत सदस्य, ग्रामसेवक, ग्राम पंचायत कर्मचारी, कंप्यूटर ऑपरेटर शामिल हैं। इस बीच २८ अगस्त तक मांगें नहीं मानी जाने पर मुंबई के आजाद मैदान में धरना प्रदर्शन किया जाएगा। इस तरह की जानकारी अखिल भारतीय सरपंच परिषद के अध्यक्ष जयंत पाटील ने दिया है।

सीएम और डीसीएम में बढ़ी अनबन : दादा को दबाने का दांव! … अजीत पवार गुट की कई फाइलें अटकी

सामना संवाददाता / मुंबई
उपमुख्यमंत्री व वित्त मंत्री अजीत पवार गुट की कई फाइलें मुख्यमंत्री कार्यालय में अटकने की जानकारी सामने आ रही है। कई मंत्रियों के विभाग के लिए गए कुछ पैâसले और विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों में विकास कामों की कई फाइलें रोकी गई हैं। इससे उनमें नाराजगी पैâल गई है। सूत्रों के मुताबिक, इसके चलते सीएम और दादा के बीच अनबन होती हुई दिखाई दे रही है। इतना ही नहीं, असंवैधानिक मुख्यमंत्री के इस रुख से महायुति में विवादों की चिंगारी भड़कती हुई भी दिख रही है।
आगामी विधानसभा चुनाव मुहाने पर पहुंच गया है इसलिए सभी लोग अपने निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम निधि प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सत्ता में एक बार फिर तीन दल है इसलिए एक बार फिर से निधि आवंटन और विभाग की फाइलों को लेकर विवाद होने की संभावना प्रबल होती नजर आ रही है। इसी बीच यह जानकारी सामने आ रही है कि पवार गुट के विधायकों और मंत्रियों की कई फाइलें मुख्यमंत्री कार्यालय में शिव भोजन थाली की दर वृद्धि के प्रस्ताव जैसी १८ से २० अहम फाइलें अटकी हुई हैं, लेकिन दादा गुट के विधायक और मंत्री इस पर खुलकर बोलने की बजाय छिपे तौर पर बात करते नजर आ रहे हैं।

पुरानी योजनाओं के खिलाफ साजिश
अजीत पवार गुट निजी तौर पर आरोप लगा रहा है कि जिन फाइलों के लिए मुख्यमंत्री के स्तर पर अनुमति की जरूरत है, वे अटकी हुई हैं। वर्तमान में मुख्यमंत्री लाडली बहन योजना, अन्नपूर्णा योजना, युवा प्रशिक्षण जैसी कई योजनाओं की घोषणा की गई है, इसलिए पुरानी योजनाओं के खिलाफ साजिश रचने की जानकारी सामने आ रही है। हालांकि, इन योजनाओं की घोषणा से पहले कई विधायकों और मंत्रियों की फाइलें मुख्यमंत्री कार्यालय को भेजी गर्इं, जिस पर निर्णय नहीं लिया गया है। ऐसे में दादा गुट नाराज दिखाई दे रहा है।

अपनों की बेरुखी का कड़वा सच …अस्थियों को विसर्जन का इंतजार

प्रेम यादव / भायंदर
मीरा-भायंदर के श्मशानों में बड़ी संख्या में अस्थिकलश आलमारियों में सहेज कर रखे गए हैं, जो बरसों से अपने परिजनों द्वारा विसर्जन का इंतजार कर रहे हैं। ये अस्थिकलश सिर्फ मृतकों के अवशेष नहीं हैं, बल्कि उन रिश्तों की कड़वी सच्चाई भी हैं, जिनके लिए लोग जीवनभर पसीना बहाते हैं। चिता की आग ठंडी होते ही जिन अपनों ने मृतकों को भुला दिया, उनके लिए अब इन अस्थियों का कोई महत्व नहीं रह गया है। श्मशानों में सुरक्षित रखे गए ये अस्थिकलश इस बात के प्रतीक हैं कि आज की दुनिया में भावनाओं और रिश्तों की कीमत कितनी कम हो गई है।
प्रशासन की उदासीनता से अस्थियों का अनादर
मनपा प्रशासन पर सवाल उठते हैं कि आखिर इन अस्थियों के बारे में पहले क्यों नहीं सोचा गया? जिन अस्थियों को सम्मानपूर्वक जल में विसर्जित किया जाना चाहिए था, उन्हें सालों तक श्मशानों की आलमारियों में क्यों छोड़ दिया गया? मनपा प्रशासन की यह लापरवाही न केवल धार्मिक मान्यताओं का अपमान है, बल्कि मानवता के खिलाफ भी है। कोविड-१९ महामारी के दौरान की कई अस्थियां भी इन्हीं आलमारियों में बंद पड़ी हैं। सवाल यह है कि क्या प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं थी कि समय पर इन अस्थियों को उचित सम्मान दिया जाता?
मीरा-भायंदर मनपा ने हाल ही में एक जनसूचना जारी की है, जिसमें परिजनों से अपील की गई है कि वे सात दिनों के भीतर श्मशान से अपनों की अस्थियां लेकर जाएं। यदि ऐसा नहीं किया गया तो प्रशासन वैदिक विधि के साथ इन अस्थियों का विसर्जन कर देगा।